जून 2009

शुक्र है देश में मुस्लिम और इसाई संगठन हैं


चाहे आप मुझे पुरातनपंथी कहें, पिछड़ा कहें, दकियानूसी कहें या कुछ और लेकिन मैं सरकार द्वारा समलैंगिकों और कानून की धारा 377 हटाने के सख्त खिलाफ हूं। मुझे मालूम है कि इस समय देश में अपने आप को समलैंगिक समर्थक दिखाकर पर प्रगतिशील होने का फैशन है पर मैं क्या करूं मेरी जानकारी और विचारों के अनुसार मैं इसकी विरोधी हूं। मेरे इस बारे में विचार इस प्रकार हैं

  1. समलैंगिकता के समर्थक कहते हैं कि ये उनको कुदरत की देन है, भगवान ने उन्हे ऐसा बनाया है। हो सकता है ऐसा ही हो लेकिन फिर भी ये लोग अचानक से कुछ ज्यादा कैसे हो गये हैं? खैर, कुछ समय पहले एक शोध के अनुसार बताया गया था कुछ अपराधी जन्मजात अपराधी मानसिकता के होते हैं अर्थात कुदरत ने  बर्बर अपराधियों और बुरे लोगों को भी बनाया है तो क्या जिन पर ये साबित हो जाये वो जन्मजात ऐसे है तो क्या उनको अपराध करने की छूट सरकार द्वारा दी जानी चाहिये? इसके अलावा सामाचार पत्रों में भी कुछ खबरें इस प्रकार की आई थी कुछ लोग जबरन हिजड़े बनाये जा रहे है। क्या इसको बढ़ावा नहीं मिलेगा?
  2. समलैंगिकता के समर्थक कहते हैं कि धारा 377 उनको परेशान करने के काम आती है। वैसे आज तक कितने केस धारा 377 के सामने आये है? समलैंगिक तो धारा 377 के लगे होने के बावजूद इस काम में लगे हुये हैं। जिसको बुराई की ओर जाना है  उसको कोई रोक नहीं सकता है।
  3. कुछ समलैंगिकता के समर्थक कहते हैं कि ये सब तो भारतीय समाज में हजारों सालों से चला आ रहा है। बेशक चला आ रहा है। बुराई तो हमेशा से साथ रही है लेकिन उसको दबाने की भी कोशिश होती रही है। मानव सभ्यता के इतिहास में हत्या, चोरी, लूटमार वगैरह सब रही हैं, तो क्या इन सब पर से सिर्फ इसीलिये कानून की रोक हटा ली जानी चाहिये क्योंकि ये हजारों सालों से हो रही हैं और इनको कोई कानून नहीं रोक पाया है?
  4. समलैंगिकता के समर्थन में जब से पत्रकार खासकर अंग्रेजी के, और फैशन डिजायनर आये हैं तब से इसके लिये सरकार पर दबाव बनाया जा रहा है। इसके पक्ष में समाचार छापे जा रहे हैं।
  5. समलैंगिकता के समर्थक कहते हैं कि किसी बुराई को दबाने से वह और बढ़ती है पर मेरे विचार से इसका उल्टा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण शराब का है। शराबबंदी  के विरोधी भी ऐसी ही दलीलें देते हैं लेकिन जब से गली-गली शराब बिकनी शुरू हुई है शराबियों की संख्या बढ़ ही रही है।
  6. समलैंगिक यूरोप और अन्य देशों का उदाहरण देने लगते हैं कि वहां पर इसकी आजादी है इत्यादि। लेकिन जिन देशों में रोक है उनके नाम नहीं बताते। अमेरिका के भी 51 राज्यों में से आधे से भी ज्यादा राज्यों में इस पर रोक है। उनका नाम कोई नहीं बताता। दूसरी बात क्या भारत और यूरोप, अमेरिका के सामाजिक परिवेश समान हैं? यहां कौन सा समलैंगिक 18 वर्ष का रोते ही मां-बाप से अलग रहने लगता है?  अगर यूरोप, अमेरिका  का ही अनुसरण करना है तो हर बात में करो। सलेक्टिव बातों में नहीं।
  7. अगर सरकार गे-परेड की बात को ध्यान में रखकर धारा 377 हटाना चाहती है तो लाखों लोगो की इससे भी बड़ी रैली की जा सकती है समलैंगिकता के विरोध में।
  8. सारे ही धर्म समलैंगिकता को गलत बताते है और इसके लिये मना करते हैं। अगर लगता है कि धर्म गलत कह रहा है तो फिर उस धर्म को पूरा छोड़ो। कुछ बातों को मानना और कुछ को नहीं मानना गलत है। अखिर सारे धर्म गलत हैं और सिर्फ समलैंगिकता के समर्थक सही हैं ऐसा तो नहीं हो सकता। क्या समलैंगिकता कोई नया धर्म बनने जा रहा है?
LGBT


मैंने अपने दिल की बात कह दी है। शुक्र है देश में मुस्लिम और इसाई संगठन हैं जो इस समलैंगिकता की बुराई का विरोध कर रहे हैं वर्ना सरकार ने तो माहौल बना ही दिया था। 

हिंदु संगठन तो इस मामने कहीं दिख ही नहीं रहे हैं। ये भी अब प्रगतिशील होना चाहते हैं। अल्पसंख्य्कों की वजह से ही सही सरकार  पीछे तो हटी।

Manisha मंगलवार, 30 जून 2009

अज्ञात टिप्पणीकार पर रोक सही नहीं है


हिंदी चिठ्ठा जगत में इस समय अज्ञात टिप्पणाकारों द्वारा छद्म नामों से टिप्पणी करके लड़ाई-झगड़े कराने की कोशिश को लेकर हंगामा मचा हुआ। 

इस को लेकर आशीष खंडेलवालजी ने हिंदी ब्लॉग टिप्स के अपने चिठ्ठे पर कल काफी अच्छा व्यंग भी लिखा था। 

शास्त्रीजी और सुरेश चिपलूकरजी भी अपनी नाराजगी व्यक्त कर चुके हैं। 

मेरे विचार में परेशानी अज्ञात टिप्पणीकारों से न होकर उनके द्वारा की गई अनाप-शनाप टिप्पणियों को लेकर होनी चाहिये। 

अज्ञात या Anonymous पर रोक होना इंटरनेट की मुल अवधारणा के खिलाफ है। इंटरनेट के संस्थापकों ने इंटरनेट पर स्वतंत्र चिंतन और अभिव्यक्ति की अवधारणा को मजबूत करने के लिये ही इंटरनेट पर गुमनाम रहकर अपनी बात कहने की आजादी दी थी। इसका दुरुपयोग भी हुआ है लेकिन इसका फायद भी बहुत है। 

गुमनाम रहकर ही कई ब्लॉगर दुनिया में अपनी बात कह पाये हैं। क्या ईराक, ईरान, अफगानिस्तान, चीन या ऐसे कई देश जहां बोलने की आजादी नहीं है वहां पर लोग अपनी बात दुनिया के दूसरे हिस्सों में पहुंचा पाते? नहीं। 

कई बार अपनी बात आप अज्ञात रह कर ही कर सकते हैं। टिप्पणियों की भी ऐसी ही बात है। हम लोगों को अज्ञात टिप्पणी पर रोक के बजाय उस पर मोडरेशन लगा कर पहले उसे पढ़ कर आगे बढा़ना चाहिये।

 टिप्पणी अवांछित है, अश्लील है या किसी और को बदनाम करने के लिये की गई है, ऐसी टिप्पणी को हर हाल में रोका जाना चाहिये और इसके लिये कमेंट मोडरेशन काफी है। 

अज्ञात टिप्पणी पर रोक न लगाकर इसे सेंसर करना ज्यादा ठीक है।  अत: अज्ञात टिप्पणीकार पर रोक सही नहीं है।

Manisha शनिवार, 27 जून 2009

इतने शातिर विचार कैसे दिमाग में आते हैं?


आज के दिल्ली के अखबारों में एक ऐसी आपराधिक मामने की खबर छपी है जिससे ये पता चलता है कि अपराध करने में भारतीय लोगों का दिमाग कुछ ज्यादा ही तेज चलता है।  अगर यही दिमाग किसी खुराफात के बजाय ढंग के काम में लगाया जाता तो अपने साथ- साथ दूसरों का भी भला कर पाते। कुछ घटनायें जो मुझे याद हैं या हाल ही में हुई है शातिर विचार
  • एक तो आज ही की खबर है कि वह शातिर दिमाग के लोग अखबारों, टीवी चैनलों, बस स्टैंडों, रेलवे स्टेशनों व रेलगाड़ियों के टायलेट में गुमशुदा लोगों के लगे विज्ञापनों में छपे फोन नंबरों पर कॉल करके गुमशुदा लोगों के परिजनों से फिरौती की रकम ऐंठते थे। उनसे ये लोग कहते थे  कि तुम्हारे गायब लोग हमारे कब्जे में हैं और फिर उनसे फिरौती की रकम लेकर फरार हो जाते थे। कल इनको पुलिस ने पकड़ा है।

  • एक हमारे मिलने वाले उत्तर प्रदेश के एक विश्वविद्यालय में काम करते हैं, उन्होंने बताया कि वहां पर कुछ कर्मचारी बिना कुछ करे ही पैसा कमा लेते हैं। वो विभिन्न प्रवेश परीक्षाओं जैसे कि बी.एड., कानून आदि के परीक्षार्थियों से पास कराने के नाम पर पैसा ले लेते हैं और फिर कुछ न करके चुपचाप बैठ जाते हैं। परीक्षा का परिणाम आने पर जिनका चयन हो जाता है उनसे कहते हैं कि उन्होंने करवाया है और जिनका चयन नहीं होता है उनके पैसे वापस कर देते है।  पैसे वापस देने से साख भी बनी रहती है और बिना कुछ करे कमाई भी हो जाती है।

  • हमारे साथ पढ़ा एक लड़का रेलवे में काम करता है, उसने बताया कि बड़े रेलवे स्टेशनों पर गाड़ी का प्लेट फार्म बदल कर भी कमाई की जाती है। मान लीजिये कि एक प्रमुख गाड़ी रोज प्लेट फार्म नम्बर एक पर आती है तो उसी प्लेट फार्म पर यात्री सामान या पानी इत्यादि  खरीदने के लिये उतरते हैं, ऐसे में अन्य प्लेट फार्म को वेंडर भी कमाई करने के लिये स्टेशन व्यवस्थापकों को पैसे देकर किसी दिन गाड़ी को अपने दूसरे प्लेट फार्म पर भी रुकवा लेते हैं। स्टेशन व्यवस्थापक तकनीकी गड़बड़ी की बहाना लेकर प्लेट फार्म बदल देते हैं।

  • सोना और रुपया दुगना करके ठगी करने की कई घटनायें रोजाना समाचार पत्रों में छपती रहती हैं।

  • हाल ही में अशोक जडेजा और दिल्ली में कई ठगों के पकड़े जाने कि घटनायें सामने आई हैं।

  • छोटे से इलाज के बहाने किडनी निकालने की भी कई घटनायें सामने आती रहती है।

  • सत्यम कंप्यूटर्स के घोटाले कि जानकारी तो आप सब को पता है कि कैसे बैलेंस शीट में हेरा-फेरी करके अरबों रुपये इधर उधर किये गये।
यहां मेरे कहने का मतलब ये है कि इतने शातिराना विचार कैसे लोगों के दिमाग में आते हैं। क्या हम अपराधों के बजाय इनको समाज के हित में काम करने के लिये इनका दिमाग नहीं मोड़ सकते। इसी प्रकार के कई शातिराना विचारो के बारे में अगर आप जानते हैं तो यहां बताये ताकि लोग सतर्क रह सकें।

Manisha शुक्रवार, 26 जून 2009

मानसून कहां गया?


भीषण गर्मी में हम लोग बारिश का इंतजार कर रहे हैं और बारिश है कि देश में कहीं पता ही नहीं है। 

पिछले कई दिनों से तापमान 40 डिग्री के उपर चल रहा है और जीवन में कष्ट बढ़ा रहा है। भारत सरकार कह रही है कि मानसून के आने में कुछ देर हो सकती है और इस बार बारिश भी सामान्य से कम होगी। 

मानसून कहां गया?


सरकार के अनुसार मानसून के इस बार सामान्य से कम रहने से देश की कृषि व अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है। 

ये तो सरकार की बातें हैं लेकिन समान्य जन तो गर्मी से राहत के लिये मानसून की बारिश का ही इंतजार कर सकते है। 

एक बात जो मुझे समझ नहीं आई कि हर बार अप्रैल के महीने में सरकार के मंत्रीजी और मौसम विभाग के अधिकारी मानसून की सामान्य होने की घोषणा करने क्यों चले आते हैं? अब कह रहे हैं कि कम बारिश होगी। 

अब अगर मानसून नहीं आया है तो कोई भी बता देगा कि बारिश औसत से  कम ही होगी, मौसम विभाग वाले क्या खास बता रहे हैं। 

कई वर्षों से अप्रैल के महीने में भविष्यवाणी करते हैं और फिर गलत निकलने पर आंकड़े पेश करके अपने आपको साबित करने की कोशिश करते हैं। 



दो साल पहले इनकी भविष्यवाणी को लेकर जब संसद में हंगामा हुआ तो अपना मॉडल बदलने के लिये 500 करोड़ रुपये की मांग की गई ताकि नये उपकरण खरीदे जायें और सही जानकारी दी जा सके।

ये मांगे मान भी ली गई पर फिर भी इस बार इनकी अप्रैल की भविष्यवाणी गलत हो गई। 

आम जनता तो पहले से ही मौसम विभाग पर भरोसा नहीं करती है और कई प्रकार के चुटकुले मौसम विभाग को लेकर प्रचलित है। 

बहरहाल उम्मीद है कि इंद्र देव भारत से नाराज नहीं होंगे और जल्दी ही बादलों को भारत में जोरदार बारिश करने का आदेश देगें। आप सब भी उपर वाले से दुआ कीजिये।

Manisha गुरुवार, 25 जून 2009

कार कंपनियां ब्रांड ऐम्बेसडर क्यों बनाती हैं?


कल कार कंपनी फियेट (FIAT) ने अपनी नयी छोटी हैचबैक कार ग्रांडे पुंटो (Grande Punto) को बाजार में उतारा था और आज के समाचार पत्रों में उसने अपने विज्ञापन भी जारी किये हैं। 

Grande Punto


इस विज्ञापन को देखने से पता चल रहा है कि फियेट ने प्रचार के लिये क्रिकेटर युवराज सिंह को अपना ब्रांड ऐम्बेसडर नियुक्त किया है। 

युवराज सिंह में और ग्रांडे पुंटो में समानता तो फियेट ही जाने पर मेरा मानना है कि कारों के विज्ञापनों में किसी क्रिकेटर या फिल्मी कलाकार की कोई आवश्यकता नहीं है, कार कंपनियां खांम खां ही अपना पैसा इन पर बर्बाद करती हैं। 

 कार भारत में ऐसी चीज है जो कि जिन्दगी में एक या दो बार ही खरीदी जाती है और कार को खरीदने की प्रक्रिया में पूरा परिवार शामिल होता है। 


कार खरीदने में कई पहलुओं का ध्यान रखा जाता है मसलन कार की कीमत, एवरेज, कार की सामाजिक स्थिति वगैरह, ऐसे में लोग किसी फिल्मी कलाकार या किसी बड़े खिलाड़ी की बातों पर यकीन नहीं कर पाते हैं। 

और दूसरी बात ये है कि ये बड़े कलाकार या खिलाड़ी खुद तो करोड़ों रूपये वाली कारों मे चलते हैं और विज्ञापन आम आदमी की कार का करते हैं जो कि यकीन लायक नहीं होता हैं। 

फियेट की ही बात लीजिये तो उसकी पिछली कार पालियो (Palio) के विज्ञापन के लिये सचिन तेन्दुलकर को लिया गया था फिर भी वो कार नहीं चली। 

मारुती ने वरसा (Versa) के विज्ञापन के लिये अमिताभ बच्चन और अभिषेक बच्चन को लिया था फिर भी वो कार नहीं चली। 

टोयोटा की इन्नोवा (Innova) कार के लिये आमिर खान को लिया गया था जिसको ठीक-ठाक सफलता मिली। 

सबसे ज्यादा सफल शाहरुख खान द्वारा प्रचारित सैंट्रो (Santro) कार रही है। 

कार कंपनियां को अपने विज्ञपनों में अपनी कार की खूबियों को प्रचारित करना चाहिये और फिल्मी कलाकारों या खिलाडियों को ब्रांड ऐम्बेसडर बना कर उनको करोड़ों रुपये देने के बजाय अपने ग्राहकों को उन रुपयों के बदले कार की कीमत कम करके ग्राहकों को फायदा देना चाहिये।

Manisha गुरुवार, 18 जून 2009

क्या इंटरनेट एक्सप्लोरर में आपके साथ भी ऐसा हो रहा है

मेरे कंम्प्यूटर पर इंटरनेट एक्सप्लोरर का 7वां संस्करण स्थापित है। मैं पिछले करीब महीने भर से देख रही हूं कि हिंदी के कुछ चिठ्ठे जब एक्सप्लोरर में खोले जाते है तो खुलने के तुरंत बाद एक संदेश  जाते है कि इंटरनेट एक्सप्लोरर  इस चिठ्ठे को ठीक से नहीं खोल पायेगा और फिर ओके (OK) बटन दबाने पर वह चिठ्ठा बंद हो जाता है। 

इसके बाद भी वहां पर कोई गतिविधि चलती रहती है क्यों कि चिठ्ठे के बंद होने के बाद भी वहां कुछ भी टाइप करके चलाने की कोशिश करें वह चलता नहीं है। 

ProbleminHindiblogs 
 
ये समस्या सिर्फ हिंदी चिठ्ठों में ही आ रही है और वो भी सिर्फ इंटरनेट एक्सप्लोरर में ही। 

मोजीला फायरफॉक्स और गूगल क्रोंम में ऐसा नहीं होता है। मेरे विचार में इंटरनेट एक्सप्लोरर  जावास्क्रिप्ट को ठीक से नहीं चला पा रहा है। 

ये समस्या सिर्फ मेरे ही कंप्यूटर पर ही नहीं है बल्कि कई और जगह भी देखी है। अगर आप मेंसे किसी को ऐसी कोई समस्या आई है और आप पर कोई समाधान हो तो बतायें।

Manisha बुधवार, 17 जून 2009

पिछले कुछ दिनों की यात्रा के बाद हम लोग वापस अपने घर  आ गये हैं। हरिद्वार, ऋषिकेश, बद्रीनाथ आदि की यात्रा हम लोगों ने की। काफी थकाने वाली और कई प्रकार के नये अनुभवों वाली रही ये यात्रा। समय मिलने पर इनके बारे में लिखना होगा।

Manisha

परीक्षाओं के परिणामों में कई अच्छाईयां


आजकल विभिन्न परीक्षाओं के परिणामों के जारी होने के दिन हैं। 

विभिन्न राज्य बोर्डों और इंजीनियरिंग, मेडिकल तथा कुछ प्रसिद्ध प्रतियोगी परीक्षाओं के परिणामों के बारे में कई दिनों से समाचार पत्रों में कुछ न कुछ छप रहा है। 

इसमें दो तरह की खबरें खास तौर पर छप रही हैं, एक तो इस तरह की कि कौन से कौन से छात्र-छत्राओं और उम्मीदवारों ने इन परीक्षाओं में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है।

 वो क्या बनना चाहते हैं, किस तरह उन्होने तैयारी की, और वो आने वाले वर्षों के छात्र-छत्राओं और प्रतियोगियों के लिये क्या कहना चाहेंगे। 

लेकिन मेरे विचार में जो दूसरी तरह की खबरें इन परीक्षाओं के बारे में छप रही हैं, वो ज्याद महत्वपूर्ण हैं और ये वो समाचार हे जो ये बताते हैं कि किस तरह कुछ छात्र-छत्राओं और प्रतियोगियों ने विपरीत परिस्थितियों में परीक्षाओं में सफलता प्राप्त की है। 

कोई चाय वाले का बेटा है, कोई कामवाली बाई की बेटी है, कोई अत्यंत गरीब है, कोई 30 किलोमीटर रोज चलकर पढ़ने जाता था। किसी ने शानदार शैक्षिक परिस्थितियां न होने पर भी केवल लगन और मेहनत से परीक्षा पास की। इस तरह की खबरें मानवीय क्षमता का उच्चतम स्तर हैं। 

ये समाचार इन बातों को प्रदर्शित करते हैं कि किस तरह लोग अपने माहौल को दृढ़ निश्चय से बदलने को प्रयासरत हैं। ऐसे समाचारों को और प्रमुखता से प्रसारित करना चाहिये।

Manisha सोमवार, 1 जून 2009