कार कंपनियां ब्रांड ऐम्बेसडर क्यों बनाती हैं?

कार कंपनियां ब्रांड ऐम्बेसडर क्यों बनाती हैं?


कल कार कंपनी फियेट (FIAT) ने अपनी नयी छोटी हैचबैक कार ग्रांडे पुंटो (Grande Punto) को बाजार में उतारा था और आज के समाचार पत्रों में उसने अपने विज्ञापन भी जारी किये हैं। 

Grande Punto


इस विज्ञापन को देखने से पता चल रहा है कि फियेट ने प्रचार के लिये क्रिकेटर युवराज सिंह को अपना ब्रांड ऐम्बेसडर नियुक्त किया है। 

युवराज सिंह में और ग्रांडे पुंटो में समानता तो फियेट ही जाने पर मेरा मानना है कि कारों के विज्ञापनों में किसी क्रिकेटर या फिल्मी कलाकार की कोई आवश्यकता नहीं है, कार कंपनियां खांम खां ही अपना पैसा इन पर बर्बाद करती हैं। 

 कार भारत में ऐसी चीज है जो कि जिन्दगी में एक या दो बार ही खरीदी जाती है और कार को खरीदने की प्रक्रिया में पूरा परिवार शामिल होता है। 


कार खरीदने में कई पहलुओं का ध्यान रखा जाता है मसलन कार की कीमत, एवरेज, कार की सामाजिक स्थिति वगैरह, ऐसे में लोग किसी फिल्मी कलाकार या किसी बड़े खिलाड़ी की बातों पर यकीन नहीं कर पाते हैं। 

और दूसरी बात ये है कि ये बड़े कलाकार या खिलाड़ी खुद तो करोड़ों रूपये वाली कारों मे चलते हैं और विज्ञापन आम आदमी की कार का करते हैं जो कि यकीन लायक नहीं होता हैं। 

फियेट की ही बात लीजिये तो उसकी पिछली कार पालियो (Palio) के विज्ञापन के लिये सचिन तेन्दुलकर को लिया गया था फिर भी वो कार नहीं चली। 

मारुती ने वरसा (Versa) के विज्ञापन के लिये अमिताभ बच्चन और अभिषेक बच्चन को लिया था फिर भी वो कार नहीं चली। 

टोयोटा की इन्नोवा (Innova) कार के लिये आमिर खान को लिया गया था जिसको ठीक-ठाक सफलता मिली। 

सबसे ज्यादा सफल शाहरुख खान द्वारा प्रचारित सैंट्रो (Santro) कार रही है। 

कार कंपनियां को अपने विज्ञपनों में अपनी कार की खूबियों को प्रचारित करना चाहिये और फिल्मी कलाकारों या खिलाडियों को ब्रांड ऐम्बेसडर बना कर उनको करोड़ों रुपये देने के बजाय अपने ग्राहकों को उन रुपयों के बदले कार की कीमत कम करके ग्राहकों को फायदा देना चाहिये।

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2 टिप्‍पणियां

  1. मनीश भाई विज्ञापन हमेशा उस चीज का दिया जाता है, जो घटिया हो, जो बिकने के काबिल ना हो. बस ओर कोई कारण नही.
    धन्यवाद

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  2. @राज भाटिया जी,

    यहां मनीश कोई नहीं है, मैं मनीषा हूं।

    मनीषा

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