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क्या कोई राष्ट्रपिता के लिये भी तर्पण करता है?



आजकल हिन्दुओं के घर में श्राद्ध पक्ष चल रहा है और घर में श्राद्ध तर्पण होते देख वैसे ही मन में आया कि क्या कोई राष्ट्रपिता (महात्मा गांधी) और स्वतंत्रता संगाम में गुमनाम मरे लाखों क्रांतिकारियों और आन्दोलन कारियों के लिये भी तर्पण करता होगा?  

क्या लोगों को अपने घरों में श्राद्ध कर्म करते समय इनके लिये भी तर्पण कराना चाहिये?

क्या कोई राष्ट्रपिता के लिये भी तर्पण करता है?


Manisha मंगलवार, 15 सितंबर 2009

गांधी के विचारों को भी तो बचाईये


गांधी महात्मा गांधी की निजी वस्तुओं को जिसमें उनका चश्मा, जेब घड़ी, चप्पलें, एक प्लेट और एक कटोरी शामिल है, को अमेरिकी में नीलामी किये जाने के खिलाफ भारत सरकार काफी प्रयत्न कर रही है कि किसी तरह ये नीलामी रुक जाये और गांधीजी की विरासत जो कि देश की धरोहर है देश में वापस आ जाये। 

लेकिन नीलामकर्ता ने  नीलामी रोकने के लिए भारत सरकार के सामने कड़ी शर्तें पेश की हैं जिनमें अपनी प्राथमिकता बदलकर सैन्य खर्च के बजाय विशेष तौर पर निर्धनतम लोगों को स्वास्थ्य सुविधा दिए जाने की शर्त शामिल है। 

सरकार का और उस पर इस नीलामी को रोकने के लिये दबाब डालने नालों का ये प्रयास सराहनीय है लेकिन ये और भी सराहनीय होगा यदि सरकार और सब लोग मिल कर गांधीजी के विचारों को बचायें। हो ये रहा है कि गांधी जी की वस्तुयें बचाई जा रही हैं और उनके विचारों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।


गांधी जी शराब के सख्त खिलाफ थे और शराब के खिलाफ जीवन पर्यन्त संघर्ष करते रहे पर अब सरकार ही शराब की दुकानें खुलवा रही हैं। जिस कांग्रेस को गांधीजी ने शराब के विरोध में लगाया था उसके मंत्री अब पब भरो आन्दोलन चलाना चाहते है। गांधीजी ने दुनिया को अहिंसा सिखाई पर हमारे देश मे अब हिंसा से समाधान खोजे जाते हैं। लोग अपनी बात मनवाने के लिये पिटाई का सहारा ले रहे हैं। बात बात पर लोग लड़ने पर उतारु हो जाते हैं। 

गांधी जी देश के गांवो की और देश की स्वावलंबन की बाते करते थे, हम वापस दूसरे देशो की कंपनियों को आमंत्रित कर रहे हैं।  गांधी जी के विचारों का मजाक बनाना मध्यम वर्ग का शौक है। गांधी को मजबूरी का नाम बताया जाता है। 

ऐसे कृतघ्न राष्ट्र में पहले गाधी जी और उनके विचारों की रक्षा होनी चाहिये फिर हमें उन से जुड़ी हुई वस्तुओ के बारे में सोचना चाहिये, ये नही कि बस नाम के लिये हल्ला मचा कर नीलामी रोक ली और फिर गांधीजी को भूल गये।

Manisha गुरुवार, 5 मार्च 2009