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ये लोग लड़ने मरने के लिये ही पैदा हुये हैं


आज फिर पाकिस्तान के पेशावर में एक बम विस्फोट हुआ है जिसमें अभी तक की जानकारी के अनुसार 8 लोग मारे गये हैं, ये हमला पाकिस्तान की खुफिया संस्था आईएसआई के क्षेत्रीय कार्यालय पर हुआ है। 

पिछले 2-3 महीने से कोई दिन ऐसा नहीं जा रहा, जब पाकिस्तान में रोज कुछ न कुछ ऐसी घटनायें न घट रही हो। 

FATA Pakhtun Area Pakistan

दरअसल पाकिस्तान के उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत और पास के कबीलाई इलाकों (फाटा) के पख्तून लोगों का काम ही लड़ना मरना है। ये पख्तून या पठान जाति बहादुर और लड़ाकू है। 

ये लोग हजारों सालों से इसी तरह से लड़ते आये हैं। इन लोगों ने सिकंदर से लड़ाई लड़ी, बाबर, अकबर, जहांगीर, शाहजहां से लड़े, अंग्रेजों से लड़े, महाराज रणजीत सिंह के जमाने में लड़े पर कुछ काबू में रहे, सोवियत संघ के खिलाफ अफगानिस्तान में लड़े और अब पाकिस्तान की सेना और सरकार से लड़ रहे हैं। 

दरअसल पुराने भारत के इस इलाके से भारत की शुरुआत थी और आर्यों ने बहुत ही रणनीतिक तौर पर इस दुर्गम इलाके में ऐसी जातियों को बसाया था जो कि लड़ने में माहिर थीं और जिनके लिये लड़ांई जीवन जीने का एक तरीका है। पुराने जमान् में ये लोग शठ कहलाते थे और इन लोगों की इतनी बदनामी थी कि एक कहावत थी कि शठ को शठ की भाषा में जबाव  देना चाहिये।

जब सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया था तब इन लोगों ने सिकंदर की सेना के साथ बहुत ही बहादुरी से लड़ा था और इनका इतना आतंक था कि सिकंदर की सेना जो कि एक तिहाई रह गई थी, ने भारत में आगे जाने से इंकार कर दिया था। 

सिकंदर के जाने के बाद चाणक्य ने इनको  छापामार लड़ाई के लिये प्रशिक्षण दिया जो कि ये लोग अभी तक प्रयोग करते हैं। छापामार लड़ाई की तैयारी से ही सेल्युकस के बाद भारत में यवन शासन खत्म हो गया।  

इस पूरे इलाके की संरचना भी इस प्रकार की है कि दुश्मन वहां फंस जाता है इस कारण अक्सर लंबी लड़ाई चलती है। अंग्रेजों को इन्होंने 1897 मे औरक्जई में बुरी तरह हराया था। इसके बाद अंग्रेज इस इलाके में कभी शांति से नहीं रह सके और इल के कबीले वाले इलाकों को अंग्रेजों ने विशेष अधिकार से केवल राजनीतिक एजेन्ट रख कर आजाद ही रखा था। 

अंग्रेजों की ये व्यवस्था पाकिस्तान ने भी अभी तक जारी रखी हुई है जिसकी वजह से ये लोग अभी भी पुराने कबीलों वाले सिस्टम से रह रहे हैं और आज भी केवल लड़ना-भिड़ना जारी रखे हुये हैं। अंग्रेजों का ये लोग सिर काट लेते थे जिससे अंग्रेजों में इनका बहुत खौफ था।  

इनको नये जमाने के हिसाब से पढ़ना-लिखना और कुछ काम सिखाया नहीं गया है। इसलिये ये लोग अभी भी पुराने जमाने के कबाले वाले तरीकों से रह रहे हैं और कबीले का सरदार जिसे मलिक या बाबा कहते हैं का कहना मानकर चलता है और अपने कबीले के लिये छोटी मोटी बातों पर भी लड़ते मरते रहते हैं।

Manisha शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

सबको पप्पू बना रहा है पाकिस्तान


आज के समाचार पत्रों में न्यूयार्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के हवाले से ये खबर प्रकाशित की गई है कि पाकिस्तान ने अमेरिका को धोखे में रखकर अमेरिका से मिली हारपून मिसाइलों को अवैध तरीके से विकसित कर लिया है, हालांकि पाकिस्तान ने इस बात का खंडन किया है। 

लेकिन सबको पता है कि पाकिस्तान अमेरिका के आतंकवात विरोधी अभियान की आड़ में अमेरिका से खूब आर्थिक और हथियारों की मदद ले रहा है। 

अमेरिका की मजबूरी है कि उसे आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान की मदद चाहिये ही, और इसी बात को पाकिस्तान खूब समझता है। पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका से मिल रही सैन्य मदद का गलत इस्तेमाल कर अपनी सैन्य ताकत बढ़ा रहा है।  

दिखाने के लिये पाकिस्तान अपने ही बनाये हुये तालीबान से लड़ रहा है और ऐसे दिखा रहा है कि तालीबान को कितना नुकसान हो चुका है। 

दरअसल पाकिस्तान को पता है कि एक न एक दिन अमेरिका अफगानिस्तान से जायेगा ही और तब तालीबान ही पाकिस्तान का भरोसे का साथी बनेगा और उसी के वेश में उस के सैनिक और तालीबानी अफगानिस्तान पर कब्जा कर लेंगे।  

कुल मिलाकर आतंकवाद की लड़ाई में पाकिस्तान फायदे में नजर आ रह है और अमेरिका और भारत सहित सबको पप्पू बना कर अपना हित साध रहा है।

Manisha सोमवार, 31 अगस्त 2009

कारगिल लड़ाई के 10 वर्ष : हमें चाहिये मुशर्रफ जैसे लीडर


आज पाकिस्तान द्वारा भारत पर थोपे गये कारगिल की लड़ाई की 10वीं वर्षगांठ है। अमर शहीद सैनिकों और
General Musharraf
उनके अफसरों की बहादुरी और कुशलता और शहादत को भल कौन भारतीय भुला सकता है? 

कैप्टन सौरभ कालिया, कैप्टन विक्रम बत्रा, कैप्टन विजय थापर, कर्नल वांगचुक, मेजर बलवंत सिंह, हवलदार योगेंद्र सिंह यादव, तोपखाने के कई कई वीर सपूतों ने अपनी जान देकर भारत का मान रखा। 

बिलकुल सीधी चढ़ाई चढ़ते हुये दुश्मन का मुकाबला विरले वीर, साहसी और जीवट के पक्के सैनिक ही कर सकते हैं। और इस तरह की लड़ाई को जीतना वास्तव में एक अनोखी गौरव गाथा है। 

कारगिल में वीरता की इतनी कहानियां लिख गईं हैं जो सदियों तक कही जाती रहेंगी। 


लेकिन सैनिकों के इस वीरता पूर्वक कारनामे को नमन करने के वावजूद उस समय के खलनायक मुशर्रफ को एक दूसरी ही वजह से याद कर रही हूं। 

पहली वजह से तो वो पिटने लायक है और भर्त्सना के लायक है। लेकिन दूसरी वजह है उसका चाणक्य की नीतियो पर चलते हुये जबर्दस्त रणनीतिकार होना। 

आखिर ये उसी के दिमाग की उपज थी कि भारत की सोती हुई सेना को पता ही नहीं चला कि उनकी खाली की हुई चौकियों पर पाकिस्तानी घुसपैठियों (छद्म सैनिक) ने कब्जा कर लिया और जो लड़ाई हुई उसमें भारत के वीर जवाव तो हताहत हुये ही, भारत की रक्षा तैयारियों का भी जायजा लिया गया, कश्मीर समस्या पर दुनिया का ध्यान भी खींच लिया और साथ ही पाकिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार को भी फंसा दिया। 

यानी की एक तीर से कई शिकार। 

मुशर्रफ और वहां की सेना चाणक्य की नीतियों पर चल कर गुप्त और छद्म गतिविधियां करके अपने दुश्मन (भारत) तो हमेशा परेशान करते रहते हैं और भारत को कभी चैन से नहीं बैठने देते हैं। 



क्या हमें ऐसा नेता नहीं चाहिये जो इस तरह से अपने दुश्मनों के परेशान करता रहे? क्या हमें ऐसे लीडर नहीं चाहिये जो रणनीतिक तौर पर दूर की सोंचे और कार्यवाही करें। 

अभी हाल ही में चीन के एक प्रांत में दंगा हो गया तो वहां के राष्ट्रपति ने तुरंत चेतावनी दे दी कि कोई दखलंदाजी न करे वर्ना अच्छा नहीं होगा, तो क्या हमें ऐसे नेता नहीं चाहिये जो दुनिया में आंखों में आंखे डाल कर अपनी बात कह सकें? 

यहां तो हालत ये है कि इन्ही मुशर्रफ साहब को एक नेता ने अपने यहां बिना बात के न्यौत लिया और एक नेता ने लिखित में मान लिया कि भारत बलूचिस्तान में गड़बड़ियों मे शामिल है। 

आखिरी बार इस तरह की कुछ खूबियों वाला लीडर इंदिरा गांधी के रूप में जरुर मिला था। वैसे भारत को प्रभावशाली नेता काफी लंबे समय से नहीं मिले हैं। 

याद कीजिये कृष्ण, समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त, अशोक, शेरशाह सूरी, अकबर जैसे कितने नाम हैं भारत में जो गिने जा सकते हैं। हम भारतीय सब प्रकार से सक्षम हैं, सबसे अच्छे हैं बस अच्छे नेतृत्व से वंचित हैं।

आज भी कारगिल की दसवीं वर्षगांठ पर नेता गायब हैं।

Manisha रविवार, 26 जुलाई 2009