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प्लाज्मा थैरेपी क्या है? Plasma Therapy Kya Hai?


आजकल आप सब लोग प्लाज्मा थैरेपी का नाम बहुत सुन रहे हैं। दरअसल कोरोना की महामारी से जो कोहराम मचा है, उसमें अभी तक कोई इलाज न होने की वजह से बड़ी संख्या में लोगों की जान जा रही हैं। कुछ डाक्टरों ने अपने अस्पतालों मे प्लाज्मा थैरेपी के द्वारा कोरोना के इलाज में कुछ सफलता का दावा किया हैं। दिल्ली में तो भारत का पहला प्लाज्मा बैंक भी बनाया गया है। तो ऐसे में आप के भी मन में आता होगा कि पता करें कि आखिर प्लाज्मा थैरेपी क्या है (Plasma Therapy Kya Hai)?

Manisha सोमवार, 13 जुलाई 2020

स्वाईन फ्लू का प्रकोप बढ़ गया है


पिछले करीब 15 दिनों से दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में और उत्तर भारतswine-flu के सभी राज्यों में स्वाईन फ्लू मान की बीमारी फिर से बड़े पैमाने पर लौट आई है।  

हमारे एक परिचित को भी स्वाईन फ्लू हो गया है जिनसे मिलने के बाद हमें भी डाक्टर द्वारा टैमी फ्लू नाम की दवा खाने को बोला गया है। परिवार में सभी ने ये गोली खा ली है। 

वैसे होम्योपैथी की इन्फ्ल्यूऐंजा-200 व अपनी पारंपरिक तुलसी का काढ़ा भी इसमें प्रभावी बताया जा रहा है। हमारे परिचित वेंटीलेटर पर अस्पताल में भर्ती हैं और स्थिति गंभीर है।

विशेषज्ञों का कहना है कि जाड़े के आगमtami-fluन के कारण ही स्वाईन फ्लू के केस बढ़ गये हैं, लेकिन जाड़ा तो हर साल आता है, इसी साल इतना घातक क्यों है?  

जिस तरह से बड़े पैमाने पर ये इस समय फैल रहा है उससे तो ये भी लगता है कि किसी विकसित देश ने अपने देश में स्वाईन फ्लू के बचाव के टेस्ट के लिये भारत में तो नहीं फैला दिया या फिर किसी आतंकी संगठन ने चुपचाप तो नहीं फैला दिया?  

बहरहाल जो भी हो, रोजाना लोगों के मरने और स्वाईन फ्लू से पीड़ित होने की खबरे छप रही हैं और अस्पतालों में जगह कम पड़ रही है। स्थिति गंभीर है। सरकारें प्रयत्न कर रही हैं पर अभी अपर्याप्त है।

Manisha गुरुवार, 10 दिसंबर 2009
शिफ्ट की नौकरी से कम होती जिंदगी

जिंदगी कम करती शिफ्ट की नौकरी


प्रेस ट्रस्ट की एक खबर के अनुसार शिफ्ट में काम करना खतरनाक है। 

अगर आपकी शिफ्ट (पाली) जल्दी-जल्दी बदलती है तो थोड़ा संभल जाएं। 

शिफ्ट में जल्दी बदलाव आपकी सेहत के लिए ठीक नहीं है। इससे आप बीमारी के शिकार हो सकते हैं, जो आपकी जिंदगी छोटी कर सकती है। 

एक नए अध्ययन से पता चला है कि शिफ्टों में काम करने वालों की जिंदगी सामान्य पाली में काम करने वालों की अपेक्षा छोटी हो जाती हैं। 

रायपुर के पंडित रविशंकर शुक्ला विश्वविद्यालय में स्कूल आफ लाइफ साइंसेज के अतनु कुमार पाती द्वारा किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है। 

उन्होंने नागपुर में दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के दिन में काम करने वाले 3,912 तथा पालियों में काम करने वाले 4,623 कर्मचारियों पर यह अध्ययन किया। इसमें पता चला कि दिन में काम करने वाले व्यक्तियों का जीवनकाल पालियों में काम करने वाले अपने समकक्षों से 3.94 साल ज्यादा होता है। 

दिन में काम करने का मतलब है सुबह नौ से शाम छह बजे तक की पाली। इसमें एक बजे से एक घंटे का भोजनावकाश शामिल है। जबकि, पालियों में काम करने वाले लोगों की शिफ्ट रोटेट होती रहती है।

Manisha सोमवार, 23 अप्रैल 2007