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दीपावली पर देसी से दूर लोग


कल धूमधाम से हमारा सबसे बड़ा त्यौहार दीपावली संपन्न हुआ, हालांकि अभी कुछ और साथी त्यौहार बाकी हैं। 
 
दीवाली
जैसा कि दीवाली पर आम तौर पर होता है हम सभी लोग अपने घरों को सजाते हैं और बाजार में बड़े पैमाने पर खरीदारी करते हैं। 

लेकिन मुझे तब बहुत दुख होता है जब मैं ये देखती हूं कि भारतीयों (हिन्दुओं) के ही देश में भारतीय (हिन्दु) ही त्यौहार का मजा बिगाड़ने को तैयार रहते हैं।

मजबूरी में हमें देसी छोड़ विदेशी वस्तुयें खरीदनी पड़ती हैं। 

पिछले कई वर्षों से चीन से बड़े पैमाने पर ऐसा सामान आ रहा है जो कि दीवाली पर काफी प्रयोग होता है। 

तरह-तरह की रोशनी वाली लाइटें, आतिशबाजी, यहां तक की लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां भी चीन से आ रही हैं। इस बार लोगों द्वारा बड़ी मात्रा में भारतीय बैंकों से खरादे गये  सोने के सिक्के भी स्विटजरलैंड से बन कर आये हैं और पूरे शुद्ध हैं। 

विदेशी वस्तुयें न केवल सस्ती हैं बल्कि अच्छी क्वालिटी की भी हैं। लोगों को शायद बुरा लगे लेकिन जो वस्तुयें देसी लोगों के हाथ मे हैं वो न केवल मंहगी हैं बल्कि घटिया स्तर की और नकली तक हैं। 

पूरे बाजार में नकली देसी घी, नकली मावा, नकली पटाखें भरे पड़े हैं। ऐसे में अगर लोग विदेशी सामान न खरादें तो क्या करें? कोई आश्चर्य की बात नहीं अगर कुछ दिनों में विदेशी देसी-घी और मिठाई भी भारत में आने लगें।

आखिर क्यों भारतीय अपने ही देश को लोगों को क्यों ठगने की कोशिश करते हैं और नकली व घटिया सामान देकर अपने ही देश का त्यौहार बिगाड़ रहे हैं?

Manisha रविवार, 18 अक्तूबर 2009

क्या कोई राष्ट्रपिता के लिये भी तर्पण करता है?



आजकल हिन्दुओं के घर में श्राद्ध पक्ष चल रहा है और घर में श्राद्ध तर्पण होते देख वैसे ही मन में आया कि क्या कोई राष्ट्रपिता (महात्मा गांधी) और स्वतंत्रता संगाम में गुमनाम मरे लाखों क्रांतिकारियों और आन्दोलन कारियों के लिये भी तर्पण करता होगा?  

क्या लोगों को अपने घरों में श्राद्ध कर्म करते समय इनके लिये भी तर्पण कराना चाहिये?

क्या कोई राष्ट्रपिता के लिये भी तर्पण करता है?


Manisha मंगलवार, 15 सितंबर 2009

आखिर किस बात की खुशी है इन्हें?


न्यायालय द्वारा सबूतों के अभाव में उज्जैन के प्रोफेसर सबरवाल के हत्यारों को छोड़ने के बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं द्वारा देखिये किस प्रकार से प्रसन्नता व्यक्त की जा रही है। 

New Low in Hindu Politics


आखिर किस बात की खुशी है इन्हें? क्या अपने गुरु के मारे जाने की (अभी गुरु पूर्णिमा को गुजरे कुछ ही दिन हुये हैं) या उनके हत्यारों के छूट जाने की? 

क्या ये हमारी हिंदु संस्कृति है? हिदूवादियों के गिरावट का इससे कोई निकृष्ट उदाहरण हो सकता है क्या?


Manisha मंगलवार, 14 जुलाई 2009