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अपनों को बचाने का चलन


बेईमानी, भ्रष्टाचार और अपराधों में किसी भी प्रकार फंसने वाले लोगों के बचाव में अब लोग खुलकर आने लगे हैं।
Hum Sab Ek Hain
समाज में अब किसी प्रकार की शर्मिंदगी नहीं बची हैं। 

कल ही के समाचार पत्रों में छपा है कि केरल की आईएएस (IAS) एसोसियेशन ने सीवीसी प्रमुख  थामस के बचाव करते हुये बयान जारी किया है और कहा है कि वो किसी भी केस में दोषी नही हैं। 

इससे पहले राडिया टेप में प्रमुख पत्राकारों के नाम आने पर इस समाचार को विभिन्न पत्र-पत्रिकायों व टीवी समाचार चैनलों द्वारा छिपाने की पूरी कोशिश की गई थी। 

वो तो कछ लोगों का जमीर जाग गया वरना बात दब जाती और दबा दी जाती। इसी तरह के कई किस्से पहले भी हो चुके हैं। 

राजनीतिज्ञ तो अपने विरोधी को भी इस तरह के आरोपों से बचा ले जाते हैं। वकीलों द्वारा कई बार अपने साथी वकीलों को पुलिस द्वारा पकड़े जाने या न्यायालय द्वारा कुछ टिप्पणी किये जाने पर आये दिन हड़ताल पर जाने के समाचार छपते रहते हैं। 

एक् बार एक आयकर इंस्पेक्टर के रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़े जाने पर पूरे डिपार्टमेंट ने हड़ताल कर दी थी। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में लोग आज भी छंटे हुये बदमाशों, अपराधियों और नेताओं को केवल इसलिये समर्थन देते हैं क्योंकि वो उनकी जाति का होता है।

ये सब घटनायें इस बात की और इशारा कर रही हैं कि समाज में नैतिक मूल्यों में जबर्दस्त गिरावट आई है और शायद ये भी कि लोग जब देखते हैं सत्ता के शीर्ष से कुछ कार्यवाही नहीं की जाती बल्कि बढ़ावा ही दिया जाता है तो लोगो को लगता है कि वो या उनके आसपास के लोग कुछ गलत नहीं कर रहे हैं। 

 क्या आप अपने किसी के द्वारा गलत करने पर उसका समर्थन करते हैं?

Manisha रविवार, 5 दिसंबर 2010

शराब पीकर दुर्घटना करने में भी बराबरी?


हम सब महिलाओं को उनके अधिकार और बराबरी के लिये संघर्ष करते रहते हैं। भारत में औरतों को अपना हक लेने के लिये कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। हमें पुरुषों के समान अधिकार और सम्मान मिलना ही चाहिये। 

लेकिन कुछ बराबरी इस तरह की है कि औरतों को न ही मिले तो ठीक है। 

Manisha सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

लोकतंत्र नीचे तक नहीं पहुंचा है


हम लोग यह बात  दुनिया को गर्व से बताते हैं कि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं और हमारे यहां लोकतंत्र लोकतंत्र की परम्परायें रही हैं। 

लेकिन दुसरी ओर मैं देखती हूं कि वास्तव में सच्चे लोकतंत्र के तो कोई लक्षण ही नहीं हैं। 

सच्चा लोकतंत्र वो होता है जहां पर कोई अदना सा भी अपनी बात कह सके, अपनी बात के लिये लोगो का समर्थन ले सकें। 

लेकिन व्यवहार में क्या हो रहा है? अभी हाल ही में तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत के बाद कहा गया कि मुख्यमंत्री का चुनाव कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी करेंगी। 

अब नवनिर्वाचित विधायकों को तो काम ही नहीं रहा अपने और प्रदेश के लिये कोई नेता वो चुनने से वंचित हो गये, इसी तरह बीजेपी ने राजस्थान में वसुंधरा राजे से कहा कि वो पद छोड़ दे भले ही वहां के भाजपा के विधायक चाह रहे कि वो उस पद पर रहें। 

उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार और बसपा के सारे निर्णय खुद ही लेना चाहती हैं, किसी अन्य को कोई निर्णय लेने की आजादी नहीं है। यहां तक की मंत्री भी अपने विभाग के सिसी आदमी का ट्रांसफर तक नही कर सकता। 

दिल्ली में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों के लिये तैयारी को लेकर निगरानी का मामला उठा तो सीधे प्रधानमंत्री को दखल देनी पड़ी। 

नीचे कोई सही तरीके से निर्णय लेने के लिये नहीं है। यानी सारे निर्णय उपर के लोग ही लेंगे, नीचे कोई जिम्मेदार नहीं है। 

क्या ऐसे ही लोकतंत्र चालाया जाता है? 

हमारे घरों में भी कुछ ऐसा ही हाल है। भले ही बच्चे वयस्क हो जायें, लेकिन घर के अधिकांश मामलों में घर के बुजुर्ग ही अंतिम फैसला करना चाहते हैं। 

आखिरकार निर्णय लेने की क्षमता नीचे तक तो पहुंचनी ही चाहिये न। 

क्या केवल समय पर चुनाव करा देना ही लोकतंत्र है या अपने व्यवहार में लोकतांत्रिक बनना भी जरुरी है?

Manisha सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

शराब रुपी अमृत पीकर मरते लोग


आज गुजरात के अहमदाबाद में जहरीली शराब पीकर जान गंवाने वालों का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। प्रशासन ने  अब तक 86 लोगों की मौत की पुष्टि कर दी है। लेकिन, यह आंकड़ा 100 के पार पहुंचने की आशंका जताई जा रही है। इससे पहले कुछ दिन पूर्व में ये किस्सा दिल्ली में हुआ था। 

Manisha गुरुवार, 9 जुलाई 2009

खोखली होती भारत में परिवार संस्था


खोखली होती भारत में परिवार संस्थापिछले कुछ समय से समाचार पत्रों में छपने वाले कुछ समाचारों से ऐसा लगता है मानो भारत में परिवार नाम की संस्था पर ग्रहण लग गया है। 

पहले मुंबई, फिर पंजाब, उसके बाद दिल्ली और भी न जाने कहां कहां से ऐसी खबरें आईं कि विश्वास नहीं हुआ। 

ये खबरें थीं सगे बाप द्वारा अपनी ही बेटी से जबर्दस्ती या सहमति से सेक्स संबंध स्थापित करने की। पिछले कुछ समय से ये समाचार कुछ ज्यादा ही आ रहें हैं। 

परिवार जहां बच्चों को प्यार, संस्कार और सुरक्षा मिलनी चाहिये  वहां ये सब होगा तो परिवार का ही क्या मतलब रह जाता है। दुसरी ओर  इंदौर और पंजाब से सी खबरे आईं कि अपने मां-बाप के कत्ल के लिये सगे पुत्र ने ही सुपारी दी। 

कई जगह ऐसा काम पुत्रियों द्वारा भी किया गया है। 

इसके अलावा भतीजे द्वारा चाचा-ताउ की हत्या की खबरें तो आम हो चुकी हैं। पैसे के लिये अब किसी रिश्ते का कोई मोल नहीं रह गया हैं ऐसा लगता है। 

संपति और पैसै का आखिर क्या करेंगे जब अपना ही कोई नहीं होगा। पत्नी द्वारा पति की हत्या करना या कराना या पति द्वारा पत्नि की हत्या करना रोज सुर्खियों में होता है। 

तांत्रिकों को फेर में पड़कर अपने सगे संबंधियों या अड़ोस-पड़ोस के बच्चों की हत्या करना भी आजकल काफी सुना जाता है। एक जगह तो मां-बाप ने पुत्र पाने के ले लिये पुत्री का हत्या करदी और कई जगह भतीजे-भांजियों की भी बलि लोग चढाते हैं। 

इन तांत्रिकों के चक्कर में कई घर बरबाद हो गये लेकिन तांत्रिकवाद अब तो फैलता ही जा रहा है और कई समाचार चैनलों तक पर तांत्रिक दिखने लगे हैं। पढ़े-लिखे और शहरी लोग भी इन सब चक्करों में पड़ रहे हैं।

पूरे परिवार के द्वारा आत्महत्या की खबरें अब बहुत आम हो चुकी हैं और आत्महत्या के मामले में भारत दुनिया में नंबर एक हो चुका है। 

परिवार का मुखिया छोटे-छोटे मासुमों को भी मारकर खुद आत्महत्या कर लेता है। जिन मां-बाप को इन बच्चों को पोसना चाहिये वो ही इन्हें मार रहे हैं।

समाज का बन्धन कम हो गया है। हर कोई मन-सर्जी से अपनी जिन्दगी जीना चाहता है। 

एकाकी पन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के दौर में ऐसा लगता है कि भारत में अब परिवार की संस्था जो समाज का सबसे मजबूत हिस्सा है खतरे में है।

Manisha रविवार, 12 अप्रैल 2009