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जी हां, यहीं होगा अगर तालीबान न हारा तो!


तालीबान के कालो कारनामे Taliban

अमेरिका की प्रतिष्ठित पत्रिका टाइम (TIME) द्वारा अपने नये अंक में छापे गये आलेख और चित्र द्वारा दुनिया को चेताया है कि अफगानिस्तान में क्या हो सकता है यदि वहां पर तालीबान को न हराया गया तो। 

ये खतरा जितना अफगानिस्तान के लिये वास्तविक है क्योंकि वहां के लोग तो तालीबान के 5 वर्षों के राज में देख चुके हैं कि कितना जालिम राज्य था उनका, बल्कि पाकिस्तान, कश्मीर और भारत के लोगों के लिये भी है। 

अगर अमेरिका अपने कहे अनुसार तालीबान को बिना हराये अफगानिस्तान से निकल गया तो फिर वहां पर पाकिस्तान की मदद से वापस से तालीबान आसानी से कब्जा कर लेगा और फिर ये खतरा सीधे भारत की सीमा तक आ जायेगा। 

उम्मीद की जानी चाहिये अमेरिका के राष्ट्रपति भारत के नेताओं की तरह लफ्फाजी में फंसकर कोई फैसला न लेकर अपनी दुनिया के प्रति जिम्मेदारी निभायेंगे और पहले की तरह अफगानिस्तान से भाग नहीं जायेंगे। 

टाइम पत्रिका के इस आलेख से एक विवाद तो खड़ा हो गया है लेकिन मैं इस मामले में टाइम पत्रिका के साथ हूं क्योंकि मुझे मालूम है कि औरतों की स्थिति तालीबान के राज में क्या थी और क्या होगी?  

क्या ये नाक कटी महिला को ह्दय विदारक तस्वीर आपको सचेत नहीं करती है?

Manisha शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

एक झटके में मिट गई अमन की आशा !


भारत और पाकिस्तान के संबंधों में मुंबई के 26/11 हमलों को बाद जो गिरावट और बातचीत में जो गतिरोध आया
Aman-Ki-Asha
है उस को लेकर फिर से भारत में शांतिवादी सक्रिय हो रहे हैं। 

इसी सिलसिले में भारत में टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार पाकिस्तान के जंग नाम के अखबार के साथ मिल कर  अमन की आशा नाम से भारत और पाकिस्तान की दोस्ती के लिये अभियान चला रहा है। 

इसी तरह से कुछ पुराने शांतिवादी और बुद्धिजीवियों ने टीवी के अपने कार्यक्रमों में इस तरह के विषयों को लेकर ट्रेक-टू डिप्लोमेसी शुरु कर दी है।  

हालांकि भारत की जनता और सरकार अभी तो इस प्रकार की किसी अमन की आशा की उम्मीद न रखते हुये इससे दुर ही बने हुये हैं। 

अमन की आशा  का यह कार्यक्रम अभी पूरा भी नहीं हुआ है कि आईपीएल-3 में क्रिकेट खिलाड़ियों के नीलामी कार्यक्रम में पाकिस्तानी खिलाड़ियों को किसी भी टीम द्वारा न लिये जाने से एक ही  झटके में अमन की आशा मिट गई है। 

अब पाकिस्तान में तरह-तरह की भारत विरोधी आवाजें सुनाई दे रही हैं और टाइम्स ऑफ इंडिया तथा जंग अखबार की अमन की आशा का प्रोग्राम बेकार की कवायद बन गया है।

इसी के साथ-साथ पाकिस्तान में अमेरिका के रक्षा मंत्री राबर्ट गेट्स ने यह कहकर अमन की आशा  को धक्का पहुंचाया है कि भारत का संयम खत्म हो सकता है यदि फिर से 26/11  की घटना दोहराई गई।  इससे भी भारत-पाक संबंधों में गिरावट और वाद-विवाद और गहरा सकता है। 

साथ-साथ ये भी पता चल रहा है कि अमेरिका दोनों देशों को डराकर दक्षिण एशिया के इस क्षेत्र में अपना रुतबा बढ़ी रहा है और भारत-पाक के आपसी संबंधों में चौधरी बन रहा है।

पर फिलहाल तो अमन की आशा मिट गई है। वैसे भी ऐसी आशा थी भी किसे?

Manisha गुरुवार, 21 जनवरी 2010