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मैकाले की शिक्षा का विकल्प क्या है? 


श्रीमान जी.कें. अवधिया जी ने अपने चिठ्ठे धान के देश में मैकाले द्वारा भारत के विषय में उसके विचार तथा मैकाले के द्वारा भारत में प्रारम्भ की गई शिक्षा प्रणाली के बारे में कहा गया है। 

मैं बचपन से समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में इस तरह के लेख पढ़ती आ रही हूं जिनमें यह बताया जाता रहा है कि मैकाले ने भारत में अंग्रेजी शासन को मजबूत करने और भारत के लोगों को क्लर्क बनाने लायक ही शिक्षा देने के उद्देश्य से ऐसी शिक्षा-प्रणाली लागू करी जिसे भारत में लोगों का नैतिक ह्रास हो गया और केवल क्लर्कों की फौज तैयार हो गई। 

हो सकता है ये सही बात हो, क्योंकि अंग्रेज शासक थे और वो अपने हिसाब से ही शिक्षा देना चाहते थे। 

लेकिन मुझे आज तक कोई ऐसा लेख पढ़ने को नहीं मिला जो मैकाले से पहले की शिक्षा-प्रणाली के बारे में विस्तार से बताये और साथ ही ये भी बताये कि अगर मैकाले की शिक्षी-प्रणाली में इतनी खराबियां हैं तो उसकी वैकल्पिक शिक्षा-प्रणाली क्या हो? 

विद्वान लोग इस बारे में कुछ बता पायें को कुछ पता चले।  


मैंने तो ये देखा है कि यहां पर कई तरह कि शिक्षा दी जा रही है, मदरसों की, आरएसएस की, राज्यों के बोर्डों की, केन्द्रीय सीबीएसई की, आईसीएससी की, गरीबों की अलग और मंहगे पब्लिक स्कूलों और बोर्डिंग स्कूलों की अलग। 

अगर ये सब मैकाले का ही सिस्टम लागु कर रहे हैं तो इन्हीं में से तो हमारे इंजीनियर, डाक्टर, शिक्षाविद, अर्थशास्त्री इत्यादि निकल रहे है जो पूरी दुनिया में काम पाते हैं और तीसरी दुनिया के कई देशों के बच्चे इसी शिक्षा के लिये भारत आते हैं। 

कहीं ऐसा तो नहीं कि हमें पूरी प्रणाली को बदलने  के बजाय उसको स्तरीय बनाना चाहिये। आप लोग बतायें कि आखिर हमारी शिक्षा-प्रणाली कैसी होनी चाहिये?

Manisha सोमवार, 26 जनवरी 2009

गणित का प्रश्न : राजनीति में कौन किसके साथ है?


आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर राजनीतिक दांव-पेंच, उठा पटक और आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है। आम मतदाता के लिये भ्रम की स्थित बन रही है। आइये देखिये कि क्या स्थिति है : 

Indian Parliament भारतीय संसद

  •  समाजवादी पार्टी की कहना है कि भाजपा और बसपा मिले हुये हैं।
  • बसपा का कहना है कि कांग्रेस, सपा और भाजपा मिले हुये हैं।
  • भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस के इशारे पर बसपा वरुण गांधी पर रासुका लगा रही है।
  • मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस से बिना समझौते के अलग चुनाव लड़ रही है लेकिन संयुक्त प्रगतिशील मोर्चे (संप्रग - UPA)  को उसका समर्थन है और उसका कहना है कि देश में धर्मनिरपेक्षी सरकार बिना कांग्रेस के नही बन सकती। 
  • लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान के दल बिहार में कांग्रेस को हटाकर अलग से चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन संप्रग  के घटक दल हैं।
  • लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान के दल संप्रग  के घटक दल  हैं लेकिन मुलायम सिंह यादव के साथ मिलकर एक नया चौथा मोर्चा भी बना लिया है
  • अन्नाद्रमुक की जयललिता कांग्रेस के साथ जाना चाहती हैं और भाजपा को खुश करने के लिये कुछ कुछ हिन्दुत्व समर्थक बयान भी जारी कर देती हैं।
  • शरद पवार का दल संप्रग  का घटक दल है लेकिन वो खुद भी प्रधानमंत्री बनना चाहते है
  • वामपंथी दल अब संप्रग  के घटक दल नहीं हैं, अलग से चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन चुनावों के बाद परिस्थितियों को देखते हुये सरकार में शामिल हो सकते हैं।
  • मायावती की पार्टी तीसरे मोर्चे के साथ भी है और देश भर में अकेले चुनाव भी लड़ रही है।


मेरी तो समझ में नही आ रहा कि कौन किसके साथ है?  कोई बता सकता है कि कौन सी पार्टी किस से मिली हुई है और किसके विरोध में है। यह एक गणित का प्रश्न का बन गया है कि राजनीति में कौन किसके साथ है।

Manisha रविवार, 4 जनवरी 2009

वॉग मैगजीन अब भारत में भी


अपनी पसंद की मैगजीन फेमिना लेने पास के ही स्टाल पर जाना हुआ तो देखा कि वॉग (Vogue) भी नई पत्रिकाओं की भीड़ में रखी है। बुक स्टाल वाले ने बताया कि ये अब यहां भी शुरु हो गई है। 

उत्सुकतावश वॉग का पहला संस्करण तो खरीद लिया ये देखने के लिया कि आखिर इस मैगजीन की इतना नाम है, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई देशों में छपती है, चलो देखते हैं। 
 

पहला संस्करण 356 पेज का मोटा सा 100/- की कीमत का है। 

अधिकांश पत्रिका मंहगी चीजों और विलसिता वाली चीजों के विज्ञापनों से भरी हुई है। ज्यादातर विज्ञापन मंहगी घड़ियों के हैं। 

विदेशी पत्रिकायें अब एक एक करके भारत में आती जा रही हैं। वॉग के मुकाबले के लिये पहले से ही कोस्मोपोलिटन (Cosmopolitan) पत्रिका भारत में छप रही है। 

इन विदेशी पत्रिकाओं का मुकाबले के लिये भारत की पत्रिकाओं वुमेन्स ऐरा (Women's Era) और फेमिना (Femina) ने भी अपना स्तर बढ़ा लिया है। 

ये भी अब मोटी मोटी आने लगी हैं। 

अब पढ़ने वालों के पास ज्यादा विकल्प हैं।

Manisha बुधवार, 17 अक्तूबर 2007

लोकसभा टीवी - एक स्तरीय समाचार चैनल


हाल के दिनों में लोकसभा टीवी को देखने का मौका मिला। हमारे केबल टीवी पर लोकसभा टीवी नहीं आता था। केवल टीवी के खराब प्रसारण से परेशान होकर हमने अब टाटा स्काई लगवा लिया है। 

केबल के मुकाबले इसमें पिक्चर और आवाज दोनों ही केबल के मुकाबले बहुत अच्छे हैं। 
Loksabha TV टाटा स्काई पर लोकसभा टीवी आता है। इसको घर में कोई नहीं देखता था। 

चैनल सर्फिंग में इसे छोड़कर सब आगे बढ़ जाते थे। सब यही सोचते थे कि ये एक और सरकारी चैनल है जो कि लोकसभा कि कार्यवाही को दिखाने के लिये शुरु किया गया है। ये भी दूरदर्शन का तरह ही होगा। 

एक दिन समाचार पत्र में लोकसभा टीवी पर पेस्टनजी फिल्म के आने का विज्ञापन देखकर पता चला कि इस चैनल पर हिंदी फिल्में भी आती हैं। 

मुझे और मेरे पतिदेव दोनों को ही आर्ट फिल्में कुछ ज्यादा ही पसंद आती हैं। 

तो जाहिर है कि हमने पेस्टनजी पिक्चर का आनन्द लिया। 

अब चैनल सर्फिंग के दौरान लोकसभा टीवी पर कुछ देर रुका जाने लगा। अगले ही हफ्ते लोकसभा टीवी लोकसभा टीवी पर धारावी फिल्म को दिखाया गया। 

ये फिल्म भी शौक से देखी गयी और अच्छी भी बहुत लगी। लोकसभा टीवी पर इन फिल्मों को शनिवार की रात 9.30 बजे और दुबारा रविवार को दिन में 2.00 बजे से दिखाया जाता है।



इन फिल्मों को देखने के दौरान और बाद में लोकसभा टीवी पर हमने कई और प्रोग्राम देखे। देखने के बाद पता चला कि लोकसभा टीवी दूरदर्शन की छाया से मुक्त है। 

इस पर न तो प्राइवेट चैनलों की तरह टीआरपी की आपाधापी में दिखाये जाने वाले सांप-सांपिन, नाच और अपराध के समाचार हैं और न हीं दूरदर्शन के जैसे थकाउ प्रोग्राम। इस पर न केवल स्तरीय प्रोग्राम हैं बल्कि सामयिक विषयों पर कई अच्छे प्रोग्राम हैं। 

हालांकि बड़ो को ये प्रोग्राम देखने चाहिये, लेकिन बच्चों के लिये तो लोकसभा टीवी बहुत ही उत्तम है क्योंकि इसके कार्यक्रमों का स्तर न केवल अच्छा है बल्कि साफ सुथरा भी है और ज्ञानवर्धक तो हैं हीं। 

प्रतियोगी परीक्षा के दावेदारों के लिये सामान्य ज्ञान बढ़ाने के लिये लोकसभा टीवी सही माध्यम है। हमारे घर में सबको लोकसभा टीवी हिंदी के बाकी समाचार चैनलों के मुकाबले ज्यादा अच्छा लगता है 

और इसको अब नियमित रुप से देखा जा रहा है। एक जमाना था जम हम लोग सरकारी समाचार चैनल दूरदर्शन से परेशान होकर निजी समाचार चैनलों पर गये थे और अब उन से परेशान होकर वापस सरकार के ही चैनल को अच्छा पा कर उसे देख रहे हैं।

लोकसभा टीवी के कार्यक्रम वेबकास्ट के जरिये भी यहां देखे जा सकते हैं। कार्यक्रमों की समय-सारणी यहां उपलब्ध है।

Manisha शुक्रवार, 21 सितंबर 2007
शिफ्ट की नौकरी से कम होती जिंदगी

जिंदगी कम करती शिफ्ट की नौकरी


प्रेस ट्रस्ट की एक खबर के अनुसार शिफ्ट में काम करना खतरनाक है। 

अगर आपकी शिफ्ट (पाली) जल्दी-जल्दी बदलती है तो थोड़ा संभल जाएं। 

शिफ्ट में जल्दी बदलाव आपकी सेहत के लिए ठीक नहीं है। इससे आप बीमारी के शिकार हो सकते हैं, जो आपकी जिंदगी छोटी कर सकती है। 

एक नए अध्ययन से पता चला है कि शिफ्टों में काम करने वालों की जिंदगी सामान्य पाली में काम करने वालों की अपेक्षा छोटी हो जाती हैं। 

रायपुर के पंडित रविशंकर शुक्ला विश्वविद्यालय में स्कूल आफ लाइफ साइंसेज के अतनु कुमार पाती द्वारा किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है। 

उन्होंने नागपुर में दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के दिन में काम करने वाले 3,912 तथा पालियों में काम करने वाले 4,623 कर्मचारियों पर यह अध्ययन किया। इसमें पता चला कि दिन में काम करने वाले व्यक्तियों का जीवनकाल पालियों में काम करने वाले अपने समकक्षों से 3.94 साल ज्यादा होता है। 

दिन में काम करने का मतलब है सुबह नौ से शाम छह बजे तक की पाली। इसमें एक बजे से एक घंटे का भोजनावकाश शामिल है। जबकि, पालियों में काम करने वाले लोगों की शिफ्ट रोटेट होती रहती है।

Manisha सोमवार, 23 अप्रैल 2007

भारतीय बचत नहीं करते


एक सर्वेक्षण के अनुसार ज्यादातर भारतीयों में धन की बचत करने की प्रवृत्ति नहीं होती। अपनी इस आदत के कारण आय के स्त्रोत समाप्त होने की स्थिति में उनके सामने गंभीर आर्थिक संकट पैदा हो जाता है। 
नेशनल काउंसिल फॉर अप्लाइड इकनोमिक रिसर्च के इस सर्वेक्षण ने इस मिथक को तोड़ दिया है कि भारतीय विशेषकर गुजराती समुदाय पैसों की बचत करने वाले होते हैं।

मैक्स न्यूयार्क लाइफ (एमएनवाईएल) के अनुसार देशभर में 63000 लोगों के बीच किए गए सर्वेक्षण में पाया गया है कि पैसा बचाने की प्रवृत्ति नहीं होने के कारण कारण अधिकतर भारतीय उस समय संकट की स्थिति में फंस जाते हैं जब उनके मुख्य आय के स्त्रोत समाप्त हो जाते हैं। 

एमएनवाईएल के सहयोग से किए गए इस सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 96 प्रतिशत लोगों का कहना है यदि उनकी आय के प्रमुख स्त्रोत बंद हो जाएं तो वे अपनी बचत के सहारे एक साल से अधिक समय तक जीवन-यापन नहीं कर सकते हैं। 

गुजरात के बारे में सूद ने बताया कि राज्य में 96 प्रतिशत और अहमदाबाद में 98 प्रतिशत लोगों के समक्ष आय के स्त्रोत बंद होने की स्थिति में तत्काल आर्थिक संकट पैदा होने का खतरा है।

वैसे यह सर्वेक्षण पुरानी मान्यताओं को तोड़ता हुआ दिख रहा है। अभी तक को भारतीय अपनी आय में से कुछ न कुछ बचाने की कोशिश करते थे, खास कर व्यवसायी वर्ग तो बचत के लिये मशहूर हैं।

कड़ी : नेशनल काउंसिल फॉर अप्लाइड इकनोमिक रिसर्च की वेबसाइट

Manisha गुरुवार, 12 अप्रैल 2007

गांव के इन नामों का क्या मतलब है?


उत्तर प्रदेश में आजकल चुनाव का माहौल है। अत: चुनाव से संबंधित खबरें समाचार पत्रों में छपती रहती हैं। एक खबर के अनुसार एक वर्तमान विधायक ने अपने क्षेत्र के जिन गांवों का दौरा किया उनके नाम इस प्रकार हैं। जावली, डगरपुर, गोठरा, निठौरा, घिटौरा, सिरौरा, नवादा, गौना, सिंगौला, खेकड़ा, रटौला, पांची, चमरावल, कहरका, मुकारी, घटौली, पटौली, ढिकौली, पिलाना इत्यादि।

खबर के इन गांवों के नामो को पढ़ कर लगा कि यह नाम किस आधार पर रखे गये होंगे। मैं कोई इतिहास की
छात्रा नहीं रही हूँ बल्कि मैं तो आई टी (IT) की छात्रा रही हूँ, लेकिन सामान्य जानकारी के अनुसार पुराने समय से ही गांवों, कस्बों व शहरों के नामों को रखने का कोई ठीक-ठीक सा कारण मालूम होता है। अत: यह एक कौतुहल का विषय है कि ऊपर लिखे नामों का क्या आधार रहा होगा। ये नाम गाजियाबाद जिले के एक विधानसभा क्षेत्र के हैं, यदि अन्य सभी जगहों का यदि अध्ययन किया जाये तो काफी नाम ऐसे मिलेंगे जो कौतुहल पैदा करेंगे।

गांवों, कस्बों व शहरों के नामों को रखने का आधार जितना मुझे समझ आया है उसके अनुसार नाम, खासकर गांवों और मुहल्लों के नाम अधिकतर किसी व्यक्ति या किसी जाति या किसी इलाके की ओर इशारा करते हैं। मसलन, जगतसिंहपुरा, टीकरी ब्राह्मणान, खटिकाना, सेवला जाट, पुरवियों का मोहल्ला, जटवाड़ा, मुहल्ला कायस्थान इत्यादि।
कुछ प्रचलित आधार ये हैं:
  • पुर - किसी विशेष कारण, व्यकि विशेष, जाति इत्यादि के ऊपर रखे हुये नाम जैसे कि जयपुर, उदयपुर, बाजपुर, ईश्वरपुर, इस्लामपुर, आदि।
  • बाद - अधिकांश मुस्लिम लोगों द्वारा या उनके नामों पर बसाये गये गांव, शहर जैसे हैदराबाद, उस्मानाबद, फिरोजाबाद, गाजियाबाद आदि।
  • गढ़ी - अधिकांश वह जगह जहां पर छोटी सैनिक चौकी या छोटा-मोटा किला इत्यादि होता था, छोटे राजा, जमीदार या सामंतों का रहने की जगह क्योंकि उन्हें बड़े राजा, बादशाह, महाराणा इत्यादि के लिये यहां पर सैनिक रखने होते थे। जैसे गढ़ी भदौरिया, प्रह्लाद गढ़ी आदि।
  • गढ़ - वह स्थान जहां कुछ बड़े किले या सैन्य व्यवस्था थी जैसे कि कुम्भलगढ़, सज्जनगढ़।
  • सर - जहां पर पानी के बड़े तालाब इत्यादि थे, मसलन अमृतसर, मुक्तसर, गरड़ीसर आदि।
  • डेरा - जहां पर किसी बडे फकीर या फौज के बड़े ओहदेदार का डेरा था जैसे कि डेरा बाबा फरीद खां, डेरा इस्माइल खां, डेरा गाजी आदि।
  • नगर - किसी के नाम पर या किसी के द्वारा बसाया हुआ, रिहाइशी इलाका जैसे विजयनगर, श्रीनगर आदि।
  • मंडी - नाम से ही पता चलता है कि ये मंडी होगी जैसे मंडी सईद खां, लोहा मंडी आदि।


इसके अलावा गांवों के नामों में इलाके के आधार पर भी कुछ वर्गीकरण है जैसे कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नाम के नगला शब्द प्रचलन में है जैसे कि नगला धनी, नगला छउआ, नगला पदी आदि, वहीं पश्चिमी राजस्थान के गांवों के नाम में वास और ढाणी का खूब प्रयोग होता है जैसे कि गैलावास, मीणावास, ठाकुरावास, ईश्वरसिंह की ढाणी, पटवारी की ढाणी आदि। गांवों के नाम के बारे में एक दिलचस्प बात ये है कि यदि नाम में खुर्द है तो एक गांव उसी नाम का कलां भी होगा जैसे कि अगर एक गांव है टीकरी खुर्द तो पड़ोस में एक गांव टीकरी कलां भी होगा। 

Venkatana


पूरा भारत तो मैंने घूमा नहीं है इसलिये बाकि जगह का कुछ पक्का पता नहीं है। कश्मीर में 'मर्ग' होते है जिनका मतलब कोई कश्मीरी ही बता सकता है जैस गुलमर्ग, सोनमर्ग, खिलनमर्ग आदि। श्रीनगर कश्मीर में पुराने शहर (down town Srinagar) में उस इलाके के नाम में कदल आता है जहां पर पुल होते हैं।

अब आप लोग इस पृष्ठभूमि में बतायें कि विधायक साहब द्वारा घूमें गये गांवों के नामों का क्या आधार है? गांवों, कस्बों व शहरों के नामों को रखने के बारे में और जानकारी आप लोग यहां दे सकते हैं।

Manisha शनिवार, 31 मार्च 2007

उफ यह गलत हिन्दी


जब भी मैं बाजार या कहीं जाती हूँ तो मुझे गलत और उलटे मतलब की हिंदी देखकर बहुत ही अफसोस और हिन्दी Hindi गुस्सा आता है। जब हम अपने बच्चों को अंग्रेजी के शब्दों की स्पेलिंग याद कराने के लिये उन्हें डराते-धमकाते हैं, उनसे अंग्रेजी सही लिखने की उम्मीद करते हैं, तो अपनी मातृ-भाषा के बारे में कैसे चलताऊ रवैया अपना लेते है। 

बहुत जगह गलत-सलत हिंदी लिखी रहती है। 

कुछ जो अभी याद आ रही हैं वो मैं बताती हूँ:
  • उत्तर भारत के अधिकांश ट्रकों के पीछे 'मां का आशीर्वाद' लिखा होता है। लेकिन यह हमेशा ही गलत रुप में 'मां का आर्शीवाद' लिखा होता है।
  • अधिकांश दर्जियों की दुकानों पर हिंदी में 'शूट स्पेशलिस्ट' लिखा होता है, जबकि अंग्रेजी में हमेशा सही Suit Specialist लिखा होता है।
  • खोमचे पर इडली-डोसा बेचने वालों की दुकानों पर 'इटली-डोसा' लिखा रहता है। कई बार यह और भी गलत रुप में इटली-डोशा लिखा होता है।
  • सभी जगह पर सड़क (रोड - Raod) के लिये 'रोड़' लिखा रहता है।
  • कई जगह जहां सड़क पर दुर्घटना होने की काफी संभावना रहती है, वहां लगाये हुये नोटिस बोर्ड पर अक्सर 'दुर्घटना संभावित क्षेत्र' की जगह 'दुर्घटना ग्रस्त क्षेत्र' लिखा रहता है। क्या उस क्षेत्र के साथ दुर्घटना होने की संभावना होती है?
इन बातों का क्या समाधान है?

Manisha शुक्रवार, 30 मार्च 2007

एक चिठ्ठी माननीय श्री शरद पवार, अध्यक्ष, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के नाम


यह चिठ्ठी एक अनाम भारतीय क्रिकेट प्रेमी की ओर से अध्यक्ष बीसीसीआई को लिखी जा रही है। इसे करोड़ो भारतीयों की तरफ से लिखा माना जाये।

शरद पवार

 
आदरणीय शरद पवार जी,

सादर नमस्कार,
आज मैंने रात भर जाग कर भारत और श्रीलंका के बीच विश्व कप क्रिकेट 2007 के लिये हुये मुकाबले को देखा। जैसी करोंड़ो भारतीयों की इच्छा थी, उसके अनुसार न खेलते हुये भारत की टीम ने श्रीलंका के आगे घुटने टेक दिये। 
मेरे अनुसार भारत की क्रिकेट टीम अक्सर ही ऐसा करती रहती है। इसलिये मैं आपके सामने यह प्रस्ताव रखना चाहता हूँ कि भारत की क्रिकेट टीम के वर्तमान खिलाड़ियों की जगह मुझे और मेरे मोहल्ले के तमाम लड़कों को भारतीय टीम में रखा जाना चाहिये। हमें भी मौका मिलना चाहिये। 
वर्तमान भारतीय क्रिकेट टीम के एक एक सदस्य को 1 लाख रुपये प्रति वन डे मैच के हिसाब से मिलते हैं (शायद इससे ज्यादा ही मिलते हैं) , लेकिन फिर भी यह टीम हार जाती है। शरद जी, हम लोग यह काम 50 हजार में करने को तैयार हैं । 
यानी की आखिर टीम को हरवाना ही है तो हम 50 प्रतिशत डिस्काउंट पर टीम हराने को तैयार हैं। हम टीम को हरवाने की पूरी गारंटी लेंगे (अगर आप लोग चाहें तो इससे भी कम पर बात कर सकते हैं)। 
जो काम भारत की टीम 50 ओवर में करती है, वो हम 25 ओवर में ही करवा देंगे। आप एक मौका तो दे कर देखिये।

शरदजी, यकीन जानिये इससे कई फायदे होंगे। आप देखेंगे कि इसमें सबका फायदा है, हमारा, आपका, आम जनता का और देश का। आइये, मैं आपको बताता हूँ कि ये सब फायदे कौन कौन से हैं। 

सबसे पहला फायदा तो यह हमें ही होगा। हम भारत की टीम को परमानेंटली हरवाने के जो पैसे लेंगे उससे हमारी गरीबी दूर होगी। हम आम भारतीयों को भी क्रिकेट की ग्लैमर भरी दुनिया देखने को मिलेगी।

जनता का देखिये कितना फायदा होगा, जब हम गारंटी के साथ भारत की क्रिकेट टीम को हरवायेंगे तो अरबों-करोड़ों भारतीयों को जीत की कोई आशा ही नहीं होगी और फिर किसी भी भारतीय क्रिकेट प्रेमी का दिल नहीं टूटेगा। 
हम आशा के अनुरुप ही प्रदर्शन करेंगे। जब दिल ही नहीं टूटेगा तो देश के लोग-बाग खुश रहेंगे और उनकी उत्पादकता बढ़ेगी। टीवी से लोग कम चिपकेंगे और काम के ऊपर ध्यान देंगे।

मुझे और मेरे साथियों या मेरे जैसे ही करोड़ों भारतीयों में से ही किसी को खिलाने से देश का भी बहुत फायदा है। जब हम गारंटी से हारेंगे तो देश में कहीं भी विरोध स्वरुप धरने प्रदर्शन नहीं होगा। देश की कानून व्यवस्था काबू में रहेगी। 
हम 25 ओवर में ही भारत की क्रिकेट टीम को हरवायेंगे तो करोंड़ो भारतीय जो क्रिकेट टीवी पर देखते हैं वो टीवी को जल्द ही बंद कर देंगे इससे बिजली की कितनी बचत होगी आप अंदाज लगा सकते हैं। 
हमारी आधी मैच फीस से भी देश को आर्थिक फायदा होगा।

अब मैं आपको बताता हूँ कि मुझे भारतीय क्रिकेट टीम में मौका देने में आपका कितना फायदा है। 
अब ये तो सभी जानते हैं कि आप एक मंझे हुये राजनीति के खिलाड़ी हैं। आपकी हर चाल में राजनीतिक नफा-नुकसान का आंकलन होता है। मुझे मौका देने में आपका राजनीतिक फायदा भी बहुत है। 
र्वप्रथम तो आप मुझ जैसे आम आदमी को मौका देकर देस में यह प्रचार कर सकते हैं कि आप और आप की सरकार आम आदमी का कितना ध्यान रखती है। 
"आपकी सरकार आम आदमी के साथ" यह नारा आप लगा सकते हैं। 
हमारी गरीबी दूर होगी तो आप हल्ला कर सकते हैं कि आप का शासन में आम आदमी की आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा है। 
जब टीवी पर मैच ज्यादा देर तक न देखे जाने के कारण टीवी बंद होने का कारण बिजली की बचत होगी, देश में बिजली की उपलब्धता बढ़ेगी जिसे भी आप अपने पक्ष में भुना सकते हैं। 
आप भी निश्चित होकर किसानों की समस्याओं की ओर ज्यादा दे पाओगे और विपक्षियों का मंह बंद कर पाओगे।
अत: आप से विनम्र निवेदन है कि एक बार मुझे क्रिकेट टीम में मौका जरूर दीजिये और आम आदमी के हाथ मजबूत कीजिये।

आपका,

एक भारतीय क्रिकेट प्रेमी - अ.ब.स.

Manisha रविवार, 25 मार्च 2007

वैधानिक चेतावनी - कमजोर दिल वाले क्रिकेट मैच न देखें


एक खबर के अनुसार जामनगर में एक आदमी भारत की बंगलादेश के खिलाफ विश्व कप में हार के सदमे को बर्दाश्त
वैधानिक चेतावनी
न कर पाने के कारण दिल का दौरा पड़ने से मर गया। इस बात को ध्यान में रखकर मेरे ख्याल से एक वैधानिक चेतावनी भारत द्वारा खेलने वाले सभी क्रिकेट मैच प्रसारणों पर तुरंत प्रभाव से प्रसारित की जानी चाहिये।

यह प्रसारण एक हॉरर शो है। इसको कमजोर दिल वाले न देखें। बच्चे अपने माता-पिता के साथ देखें। इस मैच में कुछ भी हो सकता है। भले ही भारत की ओर से एक दीवार (Wall), एक नवाब, एक सुल्तान, एक महाराजा, एक युवराज, एक मास्टर-ब्लास्टर खेल रहे हों, या फिर कोई दो लीटर दूध पीने वाला खेल रहा हो, भारत कभी भी, कहीं भी, किसी से भी हार सकता है। भारत की टीम आम आदमी की तरह प्रदर्शन कर सकती है। इस चेतावनी के बाद भी अगर कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से मैच देखता है, तो अपने हर्जे-खर्जे का जिम्मेदार खुद होगा

Manisha मंगलवार, 20 मार्च 2007