www.HindiDiary.com

बीमारु प्रदेश पृथ्वी को बचा रहे हैं


आज 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस पर दिल्ली सरकार ने एक विज्ञापन जारी करके लोगों का आव्हान किया है कि लोग आज के दिन केवल एक घंचे के लिये शाम को 8.30 बजे से 9.30 बजे तक अपनी बिजली बंद रख कर पृथ्वी पर होने वाले पर्यावरणीय खतरे से बचाने में मदद करें। 

इससे पहले भी पिछले महीने पूरी दुनिया में एक दिन इसी वक्त पर लोगों ने बिजली बंद कर के पृथ्वी को बचाने की पहल में सहयोग दिया था। 

Earth Hour

 
अगर देखा जाये तो भारत का अधिकांश हिस्सा खासकर बीमारु कहे जाने वाले प्रदेश (बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश) इस तरह से तो पृथ्वी को वर्षों से बचाते आ रहे हैँ, क्योंकि इन प्रदेशों में रोजाना 6 से 18 घंटे तक बिजली आती ही नहीं है तो पृथ्वी को नुकसान पहुंचने का सवाल ही नहीं उठता। 

जिन जगहों पर पूरे दिन बिजली आती है जैसे कि दिल्ली, मुंबई और सभी प्रदेशों के मुख्यंमंत्रियों के गृह जनपद उनको छोड़कर लोगों से 1 घंटे के लिये बिजली बंद करने की बात कहना उनके जले पर नमक छिड़कना है। इस गर्मी के मौसम में आम भारतीय बिना बिजली के कैसे दिन काटते हैं, वो ही जानते हैं। 
 
इस तरह की बिजली की 1 घंटे की कटौती की बात भी एक प्रकार से अमीर देशों और मौज करने वालों का एक शोशा ही मालूम होती है। 

अफ्रीका और तीसरी दुनिया के देशों को, विकसित राष्ट्र जिन्होनें अपनी विलासिता से पृथ्वी को नुकसान पहुंचाया है, अब कमजोर और अल्प विकसित देशों पर पृथ्वी को बचाने का दबाव डाल रहे हैं। 

पर्यावरण की बात करना भी एक नया फैशन बन गया है।

Manisha बुधवार, 22 अप्रैल 2009

मंहगाई और आतंकवाद चुनाव में मुद्दा नहीं


अभी तक लोकसभा चनावों के लिये चल रहे चुनाव-प्रचार को देखकर तो ऐसा लगता है जैसे कि मंहगाई और आतकंवाद कोई मुद्दा ही नहीं है। कोई भी राजनीतिक दल इन के बारे में बात नहीं कर रहा है। 

रोजगार, मंहगाई, शिक्षा, विकास, आर्थिक संकट जैसे मुद्दों से मुंह चुराकर राजनीतिक दल पता नहीं कहां से कंधार कांड और बाबरी मस्जिद जैसे पुराने बासी मुद्दे उठा लाये हैं और देश की जनता के उपर जबर्दस्ती इनको मुद्दा बनाकर थोप रहे हैं। 

देश की जनता इस कुछ नया पाना चाहती है लेकिन लगता है की देश के नेताओं के पास कोई नयी बात है नहीं कहने को इसलिये दस-बीस साल पुरानी बातों के आधार पर चुनाव प्रचार कर रहे हैं। मीडिया भी ऐसी बातें नहीं उठा रहा है।

Manisha रविवार, 19 अप्रैल 2009

हमारे आसपास के बाल-श्रमिक


भारत में बाल श्रम पर प्रतिबंध है। इसको लेकर सरकार गंभीर है और लगातार अपने प्रयास करती रहती है। बाल श्रम पर रोक के मामले में पश्चिमी देशों का रवैया बहुत सख्त है और उनके अनुसार बालक से किसी भी प्रकार का काम कराना गलत है। 

लेकिन भारत के सामाजिक ढांचे में इस तरह की बात नहीं की जा सकती है। यहां पर कुछ करने पर बच्चों  को शाबाशी दी जाती है मसलन यहां पर खेतों में काम करते मजदूरो के साथ-साथ उनके बच्चे भी किसी न किसी रूप में मदद करते हैं। घरों में बच्चों को काम करना सिखाया जाता है। 

भारत के सामजिक वातावरण में अगर बच्चा अपने मां-बाप को गिलास में अगर पानी ला कर पिला दे तो सभी उसकी प्रशंसा करते हैं लेकिन पश्चिम में यही बाल श्रम हो जाता है।

 
हमारे आसपास के बाल-श्रमिक Stop Child Labour



मैं यहां पर जो बताने जा रही हूं वो हमारे घर के आसपास के बच्चों के बारे में है जिनको मैं रोज काम करते देखती हूं और सोचती हूं कि ये बाल श्रमिक की श्रेणी में आते हैं या नहीं। 

दरअसल हमारी सोसाइटी में चौकीदार, धोबी, और दूध बेचने आने वाले के बच्चे अपने-अपने पिता के काम में हाथ बंटाते हैं। चौकीदार के दो लड़के करीब 10 और 12 साल के सुबह गाड़ियां साफ करते हैं और अपने पिता की आमदनी बढाते हैं। 

धोबी का पुत्र प्रेस करने के कपड़े ले जाता है और प्रेस हो जाने के बाद देने आता है। 

एक दूध वाला  है जिसकी लड़की और लड़का अक्सर सोसाइटी के फ्लैटों में दूध पहुंचाने में पिता की मदद करते हैं। 


इन सबको देखकर लगता तो है कि ये लोग ये काम न करें लेकिन फिर ये ख्याल भी आता है कि अगर ये लोग अपने पिता की मदद कर के आमदनी बढ़ा रहे है तो इनमें इनको भी तो फायदा है। दूसरी बात ये है कि ये सब बच्चे पढ़ने जाते हैं और शायद इसी आमदनी की वजह से पढ़ाई का खर्च निकल रहा है। 

तो अगर ये लोग मेहनत करके गरीबी ले लोहा ले रहे हैं तो अच्छा ही कर रहे हैं। 

मैंने अड़ोस-पड़ोस में कई लोगों से बात की, पर सब लोग उनकी इस तरह परिवार को मदद करने को सराहते ही हैं यानी इस तरह के काम को सामाजिक स्वीकृति है। 

लोगों का कहना है कि अगर ये लोग दिन भर काम करते तब गलत था लेकिन इस तरह थोड़े सा काम करने से एक तो आमदनी बढ़ रही है, दूसरे कुछ काम सीख रहे है जो आगे काम आयेगा और तीसरे ये लोग किसी गलत संगत में फंसने से बच रहे है क्योंकि अपना कुछ समय तो इस तरह से व्यतीत कर रहे है। 

तो मैं निश्चय नहीं कर पा रही हूं कि ये गलत हो रहा है या सही।

Manisha सोमवार, 13 अप्रैल 2009

खोखली होती भारत में परिवार संस्था


खोखली होती भारत में परिवार संस्थापिछले कुछ समय से समाचार पत्रों में छपने वाले कुछ समाचारों से ऐसा लगता है मानो भारत में परिवार नाम की संस्था पर ग्रहण लग गया है। 

पहले मुंबई, फिर पंजाब, उसके बाद दिल्ली और भी न जाने कहां कहां से ऐसी खबरें आईं कि विश्वास नहीं हुआ। 

ये खबरें थीं सगे बाप द्वारा अपनी ही बेटी से जबर्दस्ती या सहमति से सेक्स संबंध स्थापित करने की। पिछले कुछ समय से ये समाचार कुछ ज्यादा ही आ रहें हैं। 

परिवार जहां बच्चों को प्यार, संस्कार और सुरक्षा मिलनी चाहिये  वहां ये सब होगा तो परिवार का ही क्या मतलब रह जाता है। दुसरी ओर  इंदौर और पंजाब से सी खबरे आईं कि अपने मां-बाप के कत्ल के लिये सगे पुत्र ने ही सुपारी दी। 

कई जगह ऐसा काम पुत्रियों द्वारा भी किया गया है। 

इसके अलावा भतीजे द्वारा चाचा-ताउ की हत्या की खबरें तो आम हो चुकी हैं। पैसे के लिये अब किसी रिश्ते का कोई मोल नहीं रह गया हैं ऐसा लगता है। 

संपति और पैसै का आखिर क्या करेंगे जब अपना ही कोई नहीं होगा। पत्नी द्वारा पति की हत्या करना या कराना या पति द्वारा पत्नि की हत्या करना रोज सुर्खियों में होता है। 

तांत्रिकों को फेर में पड़कर अपने सगे संबंधियों या अड़ोस-पड़ोस के बच्चों की हत्या करना भी आजकल काफी सुना जाता है। एक जगह तो मां-बाप ने पुत्र पाने के ले लिये पुत्री का हत्या करदी और कई जगह भतीजे-भांजियों की भी बलि लोग चढाते हैं। 

इन तांत्रिकों के चक्कर में कई घर बरबाद हो गये लेकिन तांत्रिकवाद अब तो फैलता ही जा रहा है और कई समाचार चैनलों तक पर तांत्रिक दिखने लगे हैं। पढ़े-लिखे और शहरी लोग भी इन सब चक्करों में पड़ रहे हैं।

पूरे परिवार के द्वारा आत्महत्या की खबरें अब बहुत आम हो चुकी हैं और आत्महत्या के मामले में भारत दुनिया में नंबर एक हो चुका है। 

परिवार का मुखिया छोटे-छोटे मासुमों को भी मारकर खुद आत्महत्या कर लेता है। जिन मां-बाप को इन बच्चों को पोसना चाहिये वो ही इन्हें मार रहे हैं।

समाज का बन्धन कम हो गया है। हर कोई मन-सर्जी से अपनी जिन्दगी जीना चाहता है। 

एकाकी पन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के दौर में ऐसा लगता है कि भारत में अब परिवार की संस्था जो समाज का सबसे मजबूत हिस्सा है खतरे में है।

Manisha रविवार, 12 अप्रैल 2009

स्कूल वाले फीस बढ़ाते ही जा रहे हैं 


पिछले 15-20 दिनों से दिल्ली और उसके आसपास के सभी निजी स्कूलों के छात्रों के अभिभावक आन्दोलन की स्कूल वाले फीस बढ़ाते ही जा रहे हैं राह पर हैं पर कोई सुनवाई नहीं हो रही है। 

आंदोलन की वजह है इन निजी विद्यालयों द्वारा मननानी तरह से मासिक फीस में बढ़ोतरी। 

स्कूलों का कहना है कि उन्हें शिक्षकों को छठे वेतन आयोग द्वारा वेतन बढ़ाने के कारण ज्यादा वेतन देना पढ़ेगा इसलिये फीस में वृद्धि आवश्यक है। 

कई वर्षों से ये स्कूल हर वर्ष इसी प्रकार फीस बढ़ाते आ रहे हैं, इसको लेकर कुछ लोग दिल्ली उच्च न्यायालय भी गये थे लेकिन वहां भी 40 प्रतिशत वृद्धि को मंजूरी मिल गई थी। 

इस वर्ष निजी स्कूलों को फीस में वृद्धि के लिये सरकार ने 500 रुपये तक बढ़ाने की मंजुरी दे दी थी। इसी बात का फायदा उठा कर और वेतन आयोग का बहाना लेकर पूरे राजधानी क्षेत्र में निजी पब्लिक स्कूलों ने अनाप-शनाप फीस वृद्धि कर दी है। 

इस बात से परेशान होकर अभिभावक फीस कम कराने के लिये आंदोलनरत हैं लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हो रही है। 

इसका कारण है कि ये स्कूल बड़े-बड़े लोगो द्वारा चलाये जाते हैं जिनकी पहुंच बहुत ऊपर तक होती है।  सीबीऐसई (CBSE) जो इन को मान्यता देता है, इस मामले में खामोश है और राज्य सरकारों का इन विद्यालयों पर कोई अंकुश नहीं है। 

ये स्कूल फीस वृद्धि के अलावा स्कूल ड्रेस, कॉपी-किताबों की बिक्री से भी कमाई करते हैं।  वास्तव में ये सब कई प्रकार की समानांतर शिक्षा प्रणालियों की वजह से होने वाली परेशानियां हैं। 

शिक्षा से सरकारों ने अपने हाथ खींच रखे हैं जिससे शिक्षा मंहगी होती जा रही है और आम आदमी परेशान है। ये स्थिति शायद पूरे देश में है।

Manisha रविवार, 5 अप्रैल 2009

चीनी हैकरों से दुनिया परेशान


हाल ही में एक खबर आई थी कि चीनी हैकरों ने भारत के अमेरिका स्थित काउंसलेट के ऑफिस में स्थित
कंप्यूटरों सहित दुनिया भर के कई महत्वपूर्ण  संगठनों के कंप्यूटरों पर हमला करके उनसे महत्पूर्ण दस्तावेज चुरा लिये। 

चीनी हैकरों से दुनिया परेशान


इससे पहले भी भारत की कई सरकारी वेबसाइटों पर भी चीनी  हैकरों द्वारा हमला करने की कई खबरें आ चुकी हैं। पता नहीं भारत सरकार ने इसको कितनी गंभीरता से लिया, लेकिन ऐसा लगता है कि चीन ने कंप्यूटर हैकिंग के जरिये गुप्तचरी की पक्की  व्यवस्था कर ली है और इसमें महारत हासिल कर ली है। 

चीन की इस हैकिंग से पश्चिमी देश भी परेशान और चिंतित हैं। कहने को ये सब चीन के कुछ हैकर करते हैं यूं दिखाने को चीन सरकार हमेशा इससे अलग रखती है लेकिन संभवतया इस सबके पीछे चीन सरकार ही जैसे कि पाकिस्तान में आतंकवाद कहने को नॉन-स्टेट एक्टर करते हैं लेकिन पीछे पाकिस्तान की सेना और आईएसआई होती है। 

चीन सरकार खुद इस हैकिंग के मामले में बहुत सतर्क है और अपने यहां अमेरिकी वेबसाइटों पर पूरी नजर रखती है और गूगल की अधिकांश सेवायें प्रतिबंधित हैं। चीन में आप ब्लोगस्पोट पर बनाये गये ब्लोगों को नहीं देख सकते हैं। गूगल अर्थ और विकीमैपिया भी उपलब्ध नहीं है और सभी सरकारी कंप्यूटर इंटरनेट से दूर रखे गये हैं। 



अब भारत को ये सोचना पड़ेगा कि अपने यहां सरकारी विभागों के कंप्यूटर और वेबसाइटों को हैकरों से और विशेष कर चीनी हैकरों से कैसे बचाया जाये? 
  • सबसे पहले भारत सरकार को इसको चीन की सरकार का समक्ष जोरदार तरीके से उठाना चाहिये कि ये सब नहीं चलेगा और अच्छे संबधों में इस तरह की हैकिंग बाधा बनेगी।
  • चीन से भारत आने वाले इंटरनेट ट्रैफिक पर निगाह रखनी चाहिये। 
  • सबसे महत्वपूर्ण है चीन से आने वाले इलेक्ट्रानिक उपकरणों की सघन जांच किया जाना। ये उपकरण सस्ते  होने के कारण भारत में काफी इस्तेमाल किये जाते हैं लेकिन इनके बारे में पूरी जानकारी किसी के पास नहीं है।
  • भारत में इंटरनेट की सेवा प्रदान करने वाली कंपनियां अधिकांशत:  चीन की हुआवेई कंपना के उपकरणों को भारत में प्रयोग करती हैं, अत: हुआवेई के डाटा कार्डों /  मोडेम कार्डो सहित सभी संचार उपकरणों की सघन जांच इलेक्ट्रानिक प्रयोगशालायों में की जानी चाहिये। 
हैकिंग रोकने के लिए जागरूकता और को सतर्कता की जरूरत है।

Manisha

शराब पीने वालों की सरकार को चिंता


हमारे यहां सरकार किसी की चिंता करे न करे पर शराब पीने वालों के लिये हमेशा सेवा में तत्पर रहती है। 
आखिर इतना राजस्व जो मिलता है। 

कभी किसी चीज की बाजार में कमी हो, साप्ताहिक बंदी कब होती है इसके बारे में सरकार द्वारा कभी भी विज्ञापन जारी करके जनता को नहीं बताया जाता है।

लेकिन जब कभी भी शराब बंदी दिवस (Dry Day) होता है, सरकार उसकी जानकारी कई दिन पहले से ही समाचार पत्रों में विज्ञापन करके बताने लगती है मानो बताती हो कि अभी से खरीद लो बाद में मत पछताना। 

सरकार को इस तरह विज्ञापन करने की क्या जरुरत है? जिस चीज का भारी विरोध होना चाहिये सरकार उसी के साथ है। 

आज के अखबारों में आया विज्ञापन देखिये, अभी से बताया जा रहा है कि कब शराब की दुकानें बन्द रहेंगीं।

Manisha गुरुवार, 2 अप्रैल 2009

मंहगाई से बेपरवाह मुद्रास्फीति दर


मुद्रास्फीति दर के 0.27 फीसदी रह जाने और तीस वर्षों में सबसे कम स्तर पर पहुंच जाने की खबर सभी कल के सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई थी। इससे समाचार से सह तो स्पष्ट हो गया कि मुद्रास्फीति दर के घटने और बढ़ने से आम जनता को परेशान करने वाली मंहगाई में कोई संबंध नहीं है। 

जब मुद्रास्फीति दर 12 प्रतिशत थी तब भी जनता मंहगाई से परेशान थी और अब जब कि 0 प्रतिशत है तब भी जनता मंहगाई से परेशान है। अर्थशास्त्र के विद्वान मुद्रास्फीति दर के इस प्रकार घटने बढ़ने की जो भी व्याख्या करें पर आम जनता के लिये इस का कोई महत्व नहीं है। 


आखिर कोई बताये कि जब मंहगाई दर 0.27 प्रतिशत है तब दूध, घी, सब्जियां, खाद्य पदार्थों के दाम भी जमीन पर न होकर आसमान पर क्यों हैं?  मुझे तो अर्थशास्त्र वैसे भी समझ में नहीं आता है तो शायद मैं अपनी बात ठीक से नहीं कह पा रही हूं, लेकिन मैं घर चलाती हूं तो इतना तो कह ही सकती हूं कि मुद्रास्फीति दर के घटने बढने से मंहगाई बेपरवाह है और अपनी चाल से चले जा रही है। 

मंहगाई से जनता रो रही है और मंहगाई दर औंधे मुंह पड़ी है। मंहगाई दर के कम होने का तात्कालिक फायदा तो अभी जनता को नहीं मिल रहा है।

Manisha रविवार, 29 मार्च 2009