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मानसून कहां गया?


भीषण गर्मी में हम लोग बारिश का इंतजार कर रहे हैं और बारिश है कि देश में कहीं पता ही नहीं है। 

पिछले कई दिनों से तापमान 40 डिग्री के उपर चल रहा है और जीवन में कष्ट बढ़ा रहा है। भारत सरकार कह रही है कि मानसून के आने में कुछ देर हो सकती है और इस बार बारिश भी सामान्य से कम होगी। 

मानसून कहां गया?


सरकार के अनुसार मानसून के इस बार सामान्य से कम रहने से देश की कृषि व अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है। 

ये तो सरकार की बातें हैं लेकिन समान्य जन तो गर्मी से राहत के लिये मानसून की बारिश का ही इंतजार कर सकते है। 

एक बात जो मुझे समझ नहीं आई कि हर बार अप्रैल के महीने में सरकार के मंत्रीजी और मौसम विभाग के अधिकारी मानसून की सामान्य होने की घोषणा करने क्यों चले आते हैं? अब कह रहे हैं कि कम बारिश होगी। 

अब अगर मानसून नहीं आया है तो कोई भी बता देगा कि बारिश औसत से  कम ही होगी, मौसम विभाग वाले क्या खास बता रहे हैं। 

कई वर्षों से अप्रैल के महीने में भविष्यवाणी करते हैं और फिर गलत निकलने पर आंकड़े पेश करके अपने आपको साबित करने की कोशिश करते हैं। 



दो साल पहले इनकी भविष्यवाणी को लेकर जब संसद में हंगामा हुआ तो अपना मॉडल बदलने के लिये 500 करोड़ रुपये की मांग की गई ताकि नये उपकरण खरीदे जायें और सही जानकारी दी जा सके।

ये मांगे मान भी ली गई पर फिर भी इस बार इनकी अप्रैल की भविष्यवाणी गलत हो गई। 

आम जनता तो पहले से ही मौसम विभाग पर भरोसा नहीं करती है और कई प्रकार के चुटकुले मौसम विभाग को लेकर प्रचलित है। 

बहरहाल उम्मीद है कि इंद्र देव भारत से नाराज नहीं होंगे और जल्दी ही बादलों को भारत में जोरदार बारिश करने का आदेश देगें। आप सब भी उपर वाले से दुआ कीजिये।

Manisha गुरुवार, 25 जून 2009

कार कंपनियां ब्रांड ऐम्बेसडर क्यों बनाती हैं?


कल कार कंपनी फियेट (FIAT) ने अपनी नयी छोटी हैचबैक कार ग्रांडे पुंटो (Grande Punto) को बाजार में उतारा था और आज के समाचार पत्रों में उसने अपने विज्ञापन भी जारी किये हैं। 

Grande Punto


इस विज्ञापन को देखने से पता चल रहा है कि फियेट ने प्रचार के लिये क्रिकेटर युवराज सिंह को अपना ब्रांड ऐम्बेसडर नियुक्त किया है। 

युवराज सिंह में और ग्रांडे पुंटो में समानता तो फियेट ही जाने पर मेरा मानना है कि कारों के विज्ञापनों में किसी क्रिकेटर या फिल्मी कलाकार की कोई आवश्यकता नहीं है, कार कंपनियां खांम खां ही अपना पैसा इन पर बर्बाद करती हैं। 

 कार भारत में ऐसी चीज है जो कि जिन्दगी में एक या दो बार ही खरीदी जाती है और कार को खरीदने की प्रक्रिया में पूरा परिवार शामिल होता है। 


कार खरीदने में कई पहलुओं का ध्यान रखा जाता है मसलन कार की कीमत, एवरेज, कार की सामाजिक स्थिति वगैरह, ऐसे में लोग किसी फिल्मी कलाकार या किसी बड़े खिलाड़ी की बातों पर यकीन नहीं कर पाते हैं। 

और दूसरी बात ये है कि ये बड़े कलाकार या खिलाड़ी खुद तो करोड़ों रूपये वाली कारों मे चलते हैं और विज्ञापन आम आदमी की कार का करते हैं जो कि यकीन लायक नहीं होता हैं। 

फियेट की ही बात लीजिये तो उसकी पिछली कार पालियो (Palio) के विज्ञापन के लिये सचिन तेन्दुलकर को लिया गया था फिर भी वो कार नहीं चली। 

मारुती ने वरसा (Versa) के विज्ञापन के लिये अमिताभ बच्चन और अभिषेक बच्चन को लिया था फिर भी वो कार नहीं चली। 

टोयोटा की इन्नोवा (Innova) कार के लिये आमिर खान को लिया गया था जिसको ठीक-ठाक सफलता मिली। 

सबसे ज्यादा सफल शाहरुख खान द्वारा प्रचारित सैंट्रो (Santro) कार रही है। 

कार कंपनियां को अपने विज्ञपनों में अपनी कार की खूबियों को प्रचारित करना चाहिये और फिल्मी कलाकारों या खिलाडियों को ब्रांड ऐम्बेसडर बना कर उनको करोड़ों रुपये देने के बजाय अपने ग्राहकों को उन रुपयों के बदले कार की कीमत कम करके ग्राहकों को फायदा देना चाहिये।

Manisha गुरुवार, 18 जून 2009

क्या इंटरनेट एक्सप्लोरर में आपके साथ भी ऐसा हो रहा है

मेरे कंम्प्यूटर पर इंटरनेट एक्सप्लोरर का 7वां संस्करण स्थापित है। मैं पिछले करीब महीने भर से देख रही हूं कि हिंदी के कुछ चिठ्ठे जब एक्सप्लोरर में खोले जाते है तो खुलने के तुरंत बाद एक संदेश  जाते है कि इंटरनेट एक्सप्लोरर  इस चिठ्ठे को ठीक से नहीं खोल पायेगा और फिर ओके (OK) बटन दबाने पर वह चिठ्ठा बंद हो जाता है। 

इसके बाद भी वहां पर कोई गतिविधि चलती रहती है क्यों कि चिठ्ठे के बंद होने के बाद भी वहां कुछ भी टाइप करके चलाने की कोशिश करें वह चलता नहीं है। 

ProbleminHindiblogs 
 
ये समस्या सिर्फ हिंदी चिठ्ठों में ही आ रही है और वो भी सिर्फ इंटरनेट एक्सप्लोरर में ही। 

मोजीला फायरफॉक्स और गूगल क्रोंम में ऐसा नहीं होता है। मेरे विचार में इंटरनेट एक्सप्लोरर  जावास्क्रिप्ट को ठीक से नहीं चला पा रहा है। 

ये समस्या सिर्फ मेरे ही कंप्यूटर पर ही नहीं है बल्कि कई और जगह भी देखी है। अगर आप मेंसे किसी को ऐसी कोई समस्या आई है और आप पर कोई समाधान हो तो बतायें।

Manisha बुधवार, 17 जून 2009
पिछले कुछ दिनों की यात्रा के बाद हम लोग वापस अपने घर  आ गये हैं। हरिद्वार, ऋषिकेश, बद्रीनाथ आदि की यात्रा हम लोगों ने की। काफी थकाने वाली और कई प्रकार के नये अनुभवों वाली रही ये यात्रा। समय मिलने पर इनके बारे में लिखना होगा।

Manisha

परीक्षाओं के परिणामों में कई अच्छाईयां


आजकल विभिन्न परीक्षाओं के परिणामों के जारी होने के दिन हैं। 

विभिन्न राज्य बोर्डों और इंजीनियरिंग, मेडिकल तथा कुछ प्रसिद्ध प्रतियोगी परीक्षाओं के परिणामों के बारे में कई दिनों से समाचार पत्रों में कुछ न कुछ छप रहा है। 

इसमें दो तरह की खबरें खास तौर पर छप रही हैं, एक तो इस तरह की कि कौन से कौन से छात्र-छत्राओं और उम्मीदवारों ने इन परीक्षाओं में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है।

 वो क्या बनना चाहते हैं, किस तरह उन्होने तैयारी की, और वो आने वाले वर्षों के छात्र-छत्राओं और प्रतियोगियों के लिये क्या कहना चाहेंगे। 

लेकिन मेरे विचार में जो दूसरी तरह की खबरें इन परीक्षाओं के बारे में छप रही हैं, वो ज्याद महत्वपूर्ण हैं और ये वो समाचार हे जो ये बताते हैं कि किस तरह कुछ छात्र-छत्राओं और प्रतियोगियों ने विपरीत परिस्थितियों में परीक्षाओं में सफलता प्राप्त की है। 

कोई चाय वाले का बेटा है, कोई कामवाली बाई की बेटी है, कोई अत्यंत गरीब है, कोई 30 किलोमीटर रोज चलकर पढ़ने जाता था। किसी ने शानदार शैक्षिक परिस्थितियां न होने पर भी केवल लगन और मेहनत से परीक्षा पास की। इस तरह की खबरें मानवीय क्षमता का उच्चतम स्तर हैं। 

ये समाचार इन बातों को प्रदर्शित करते हैं कि किस तरह लोग अपने माहौल को दृढ़ निश्चय से बदलने को प्रयासरत हैं। ऐसे समाचारों को और प्रमुखता से प्रसारित करना चाहिये।

Manisha सोमवार, 1 जून 2009

आस्ट्रेलिया क्यों जाते हो, यहां क्या कमी है?

विदेश में पढ़ाई

आस्ट्रेलिया से भारतीय छात्रों के साथ रंगभेदीय भैदभाव के कारण होने वाले हमले निंदनीय हैं। 

भूमण्डलीकरण के इस जमाने में एक देश के छात्र दूसरे देशों में जाते रहते हैं। अधिकांश देश दूसरे देशों के छात्रों को अपने विश्वविद्यालयों में पढ़ने के लिये आकर्षित करते रहते हैं जिसके पीछे अपनी साख बढ़ाना तथा संपन्न लोगों से पैसा कमाना भी शामिल है। 

विभिन्न् देशों और संस्थानों की फैलोशिप जैसे कि कॉमनवैल्थ की योजनाओं की वजह से भी एक दूसरे देशों में लोग पढ़ाई के लिये आते-जाते हैं। अत: ऐसी रंगभेदी घटनायें वहां के लोगों के संकीर्ण रवैये को दर्शाती हैं। 



आस्ट्रेलिया तो किसी न किसी कारण से भारत से विवाद करता ही रहता है। कभी हिंद महासागर में भारतीय नौसेना को लेकर, कभी क्रिकेट में किसी  विवाद को लेकर, कभी नाभिकीय संस्थानों को यूरेनियम न देकर आदि।

मेरे विचार में आस्ट्रेलिया की पढ़ाई भारत की पढ़ाई के मुकाबले बहुत अच्छे स्तर की नहीं हैं। 

सिर्फ विदेशों मे पढ़ाई करने के नाम पर वहां जाने की बात है वर्ना भारत के शैक्षिक संस्थानों की दक्षता और स्तर ज्यादा अच्छा है और अब तो भारत में प्राइवेट शैक्षिक संस्थान और विश्वविद्यालय भी खुल गये हैं ऐसे में विदेश में पढ़ाई करने जाने की क्या जरुरत है। 

अपने देश की पढ़ाई करके अपने देश में ही काम करिये।  

एक बात और है कि हर देश के लोगों में राष्ट्रीयता की एक भावना होती जो कि कई लोगों में ज्यादा हो जाती और वो किसी विदेशी को अपनी धरती पर तरक्की करते देख खुश नहीं होते। 

ऐसी भावना हमारे देश में भी है। अत: बाहर के किसी देश में इस तरह की घटनाओं की संभावना बनी रहती है।

Manisha रविवार, 31 मई 2009

ब्लॉग बंद होने पर कोई रास्ता नह


जब से ब्लॉगर पर से हिंदीबात ब्लॉग हटाया गया है तब से कोई भी रास्ता नजर नहीं आ रहा है कि किससे सम्पर्क किया जाये और क्या किया जाये।

तमाम जगह साइटों, फोरमों पर घूम ली पर कोई बात बनती नजर नहीं आ रही है।

मुझे लगता है कि गूगल का ये सिस्टम बहुत ही खराब है जहां पर अच्छे-खासे चलते हुये ब्लॉग को हटा देते हैं और अपील करने की भी कोई जगह नहीं है।

ब्लॉगर पर तमाम तरह की स्पैंम साईटें, पोर्न साइटें और तमाम खराब साइटें चल रही हैं पर उन को न कुछ कहकर सही ब्लॉगरों को परेशान किया जा रहा है।

मैने विभिन्न फोरमों पर देखा कि बहुत सारे लोग परेशान हो और उनके वर्षों पुराने ब्लॉग हटा दिये गये हैं वो भी बिना किसी सूचना के।

पूरा सिस्टम आटोमैटिक होने कि वजह से गड़बड़ है। देखते हैं क्या होता हैं, फिलहाल तो मैं अब हिंदीडायरी.कोम पर लिखूंगी।

Manisha शुक्रवार, 22 मई 2009

अधिकांश ट्रैवल साइटें चोरी की सामग्री से चल रही हैं


कल हम लोगों नें बच्चों की गरमियों को दौरान कुछ पर्यटन स्थलों को भ्रमण के लिये इंटरनेट पर विभिन्न ट्रैवल साइटों से उन स्थानों के बारे में जानकारी लेने की कोशिश की । 

ऐसे में गूगल के माध्यम से किसी भी स्थान को खोजने पर आने वाली अधिकांश वेबसाइटों पर वही-वही जानकारी मिली। 

यहां तक की हर शब्द और वाक्य  सब वही के वही । 

ऐसा लगता ही गूगल ऐडसेंस का फायदा लेने के लोगों ने पर्यटन वेबसाइटें  खोल रखी हैं और इधर-उधर से जानकारी चुराकर साइट तैयार करके बना दी गई हैं । 

1-2 साइटों को छोड़कर किसी भी साइट से कोई नई बात पता नहीं लगी । किसी पर कोई विस्तृत जानकारी नहीं है। 

बस पर्यटन ब्लॉग ही हैं जिन पर कुछ अलग सी जानकारी है वर्ना अधिकांश ट्रैवल बेवसाइटें किसी भी स्थान की जानकारी के लिये चोरी की सामग्री से चल रही हैं। 

इस को देखने के लिये आप गूगल में किसी भी स्थान को खोजने को कोशिश करिये और प्रथम 10 परिणामों को ब्राउजर में खोलकर देखिये, दस में से आठ में आप को एक जैसी बात लिखी मिलेगी।

Manisha सोमवार, 18 मई 2009

15वीं लोकसभा चुनाव परिणाम – कुछ आंकलन


15वीं लोकसभा चुनावों के परिणाम कल आ चुके हैं और संप्रग को वापस से सरकार बनाने के लिये मतदाताओं द्वारा चुना गया है। आने वाले कई दिनों में राजनीतिक विश्लेषक और राजनीतिज्ञ अपने – अपने विश्लेषण और निष्कर्ष निकालते रहेंगे और ऐसे समय में आम आदमी भी अपने हिसाब से कुछ सोचता है। 

मेरा भी इन लोकसभा चुनावों के परिणामों को लेकर कुछ आंकलन  है। 


vote counting
  
 
  1. मंहगाई जनता कितनी ही परेशान क्यों न हो, किसी भी चुनाव में मंहगाई को मुद्दा नहीं होती है।
  2. आतंकवाद भी इस देश में कोई मुद्दा नहीं है।
  3. मंदिर-मस्जिद, हिदु-मुस्लिम, मेरी जाति-तेरी जाति और आरक्षण की राजनीति के दिन पूरे हो गये हैं अब लोगों को विकास चाहिये, इसलिये इस बार वो दल अपने-अपने यहां जीत गये जो विकास के नाम की राजनीति कर रहे हैं। अब जनता को विकास चाहिये, जो विकास करेगा वो दुबारा जीतेगा। विकास को भूलकर खाली जातिवादी राजनीति और आरक्षण के झुनझुने पकड़ाने वाले नेता हार गये या फिर हाशिये पर आ गये हैं। 
  4. इंटरनेट द्वारा या बहुत हाई-फाई चुनाव प्रचार किसी काम का नहीं है। जनता चाहती है कि नेता परंपरागत रुप से उनसे रुबरु होकर वोट मांगे। इंटरनेट भ्रमण करने वाले और एसएमएस पाने वाले लोग वोट डालने नहीं निकलते हैं खासकर गर्मियों में, अगर चुनाव सर्दियों में हो तो फिर भी निकल सकते हैं।
  5. भाजपा जिसे पहले शहरी पड़े-लिखे मध्यम वर्ग की पार्टी कहा जाता था, शहरों में ही सबसे ज्यादी हारी है। इसका मतलब है कि भाजपा की नीतियां मध्यम वर्ग को समझ नहीं आ रही हैं। 
  6. भाजपा जीतने के लिये किसी भी प्रकार के समझौते को तैयार थी, इसका उदाहरण महा भ्रष्ट नीरा यादव को केवल कुछ वोटों के लालच में अपने दल में शामिल करने का है। 
  7. भाजपा में काफी लोग अपनी ही पार्टी को हराने के लिये काम करते है।
  8. पुराने एक ब्लॉग पोस्ट में मैंने कहा था कि भारत में सफल नेता बनने  लिये भारत को जानना जरुरी है और इसके लिये सघन भारत भ्रमण जरुरी है। इससे जमीनी स्तर की जानकारी मिलती है राहुल गांधी पिछले कुछ समय से ऐसा ही कर रहे हैं और उनका इसका फायदा मिल रहा। इसके विपरीत भाजपा के अधिकांश नेता और कुछ कांग्रेसी भी टीवी चैनलों की बहस में भाग लेकर अपनी नेतागिरी चमकाते हैं और असली चुनाव में नाकाम रहते हैं।
  9. अब विकास की राजनीति के दिन हैं खाली विचारधारा की बात करके या उर्दू लागू करके, बाबरी मस्जिद की बात छेड़के आप वोट नही पा सकते।
  10. भाजपा को अपने आप को नैतिक रुप से और विचारधारा से सबल बनाना चाहिये सफलता अपने आप मिल जायेगी। अगर भाजपा और पार्टियों जैसा ही आचरण करेगी तो लोग असली पार्टी को ही वोट देगें न कि भाजपा को। 
  11. कांग्रेस ने नये लोगों को काफी मौका दिया और इसका फायदा उसे मिला है।
  12. कांग्रेस को मीडिया का काफी सहारा मिला। मीडिया द्वारा भाजपा की बातों को उछालना और छोटे दलों की ब्लैकमेलिंग के खिलाफ महौल बनाना कांगेस को फायदा दे गया।
  13. भाजपा को मीडिया को मैनेज करना नहीं आता, अधिकांश भाजपाई अंग्रेजी समाचार चैनलों पर अंग्रेजी में बात करते हैं और जो चैनल भाजपा और हिन्दुवादियों का मजाक बनाते हैं उन्हीं पर भाजपाई ज्यादा मेहरबान रहते हैं और अपना नुकसान कराते हैं।

Manisha रविवार, 17 मई 2009

चुनाव आयोग ने पप्पू बनाया 

कल जब मैं और मेरे पति मतदान के लिये निर्धारित स्थान पर पहुंचे तो पता चला कि हमारा नाम वोटर लिस्ट से गायब है। हमारे पास वोटर आईडी कार्ड था, पहले भी वोट डाला हुआ है, लेकिन इस बार पता नहीं कैसे सोसाईटी के अधिकांश लोगों का नाम गायब था। 


Voter Id Card


यानी कि चुनाव आयोग ने ही पप्पू बना दिया। ऐसी प्रशासनिक भूलों के खिलाफ आम आदमी कुछ नहीं कर सकता है। क्या ऐसी व्यवस्था नहीं हो सकती कि मौके पर ही प्रमाण देख कर वोटर लिस्ट में नाम जोड़े जा सकें और नाम काटने वाले अधिकारी के खिलाप कार्यवाई की जा सके। 

चुनाव आयोग जनता और नेताओं पर तो तमाम तरह की बंदिशें और संहिताये लागू करता है, लेकिन ऐसी घटनायें जो हर चुनाव में होती हैं कि नाम गायब हो गये उसमें कुछ भी शायद नहीं करता है।

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Manisha शुक्रवार, 8 मई 2009