लगता है कि मेरा अंग्रेजी का सरकारी नौकरी को बताने वाला ब्लॉग कम से कम भारत में तो नंबर एक ब्लॉग बन गया है। रोजाना पेज व्यू भी काफी ज्यादा है और अब तो फीड सब्सक्राइबर (फीड ग्राहक) की संख्या भी चार लाख के ऊपर हो गई है।
अपने दस्तावेज कागजों को प्रमाणित करने के लिये लिख कर दें
ये मैं अपने और दूसरों के भुक्तभोगी अनभव के आधार पर बता रही हूं कि जब भी कभी आप किसी नये मोबाइल फोन कनेक्शन, गैस कनेक्शन, क्रेडिट कार्ड लेने, बैंक में खाता खुलवाने हेतु अपने किसी कागजात की फोटोकोपी अगर किसी कर्मचारी या किसी को अन्य को दें तो कृपया उस पर साफ-साफ लिख दें किसी कि सिर्फ इसी काम के लिये ये कागज हैं।
अपने दस्तावेज कागजों को प्रमाणित करने के लिये लिख कर दें
स्वाईन फ्लू का प्रकोप बढ़ गया है
पिछले करीब 15 दिनों से दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में और उत्तर भारत के सभी राज्यों में स्वाईन फ्लू मान की बीमारी फिर से बड़े पैमाने पर लौट आई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि जाड़े के आगमन के कारण ही स्वाईन फ्लू के केस बढ़ गये हैं, लेकिन जाड़ा तो हर साल आता है, इसी साल इतना घातक क्यों है?
स्वाईन फ्लू का प्रकोप बढ़ गया है
26/11 : पश्चिम से ही हमेशा हमला हुआ है भारत पर
अगर आप इतिहास उठा कर देखें तो पायेंगे कि भारत भूमि पर केवल एक बार को छोड़ कर (जब चीन ने 1962 में भारत पर आक्रमण किया था) हमेशा पश्चिमी सीमा से हमला होता रहा है। केवल 1962 में ही उत्तर की ओर से चीन द्वारा हमला किया गया था।
26/11 : पश्चिम से ही हमेशा हमला हुआ है भारत पर
अंग्रेजी और हिंदी के अखबार और पत्रिकायों में बहुत विरोधाभास हैं
एनडीटीवी के पत्रकार एवं हिंदी के अच्छे चिठ्ठाकार श्री रवीश कुमार जी ने अपने चिठ्ठे कस्बा में यह प्रश्न उठाया था कि हिंदी-अंग्रेजी के अख़बारों का किसान अलग क्यों होता है?
- अंगेजी की पत्रिकाये हमेशा इस तरह के लेख छापती हैं – हाउ टू प्लीज योर मैन, नो हिज सेक्सी प्लेसेज, फिफ्टी वेज टू सेटिस्फाई हिम इत्यादि। इनमें योर मैन की बात की जाती है यानी ये बताया जाता है कि किसी से भी आप संबंध बना सकती हो। यहां कभी भी हसबैण्ड शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। पूरा ध्यान पति-पत्नी पर न होकर मैन-वूमेन पर होता है।
- अंगेजी के सारे अखबार मिलकर भी अकेले दैनिक जागरण से कम बिकते हैं (ताजा सर्वेक्षण 2009 के अनुसार) लेकिन फिर भी हिंदी समाचार पत्रों को भाषाई या वर्नाकुलर लिखते हैं और अपने आप को नेशनल (राष्ट्रीय) समाचार पत्र कहते हैं।
- पश्चिम की हर बुराई जैसे कि प्रास्टीट्यूशन, लिव-इन-रिलेशनशिप, लेस्बियन और गे सेक्स इत्यदि के समर्थन में लेखों की अंग्रेजी पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में बहुतायत रहती है और उसके पक्ष में माहौल बनाते रहते हैं।
- शराब के किसी बन्दीकरण के विरोध में भी अंग्रेजी पत्रकारिता सबसे आगे है।
- अब अंग्रेजी ही इनका जीवन-यापन का साधन है इसलिये ये अंग्रेजी को बढ़ावा देने के लिये हमेशा हल्ला करते रहते हैं। अंग्रेजी इनके अनुसार अंतर्राष्ट्राय भाषा है जिसके बिना भारत का विकास नहीं हो सकता।
- हिंदी के पत्र-पत्रिका वाले पता नहीं किस हीन भावना से ग्रस्त रहते हैं कि वो खुद ही हिंदी वालों को अंग्रेजी वालों के समतर समझते हैं। हिंदी के अखबारों और पत्रिकायों में वैज्ञानिक व अंतर्राष्ट्रीय विषयों पर बहुत ही कम छपता है। उनके अनुसार हिंदी के पाठकों का स्तर कम है।
- स्वतंत्र किस्म के लेख हिंदी पत्रिकायों और समाचार पत्रों मे कम ही आते है, अधिकांश समाचार ऐजेंसी से लिया हुआ होता है।
- हिंदी के समाचार पत्र स्थानीय समाचारों को बहुत ही अच्छा कवर करते हैं।
अंग्रेजी और हिंदी के अखबार और पत्रिकायों में बहुत विरोधाभास हैं
नकली नोट का पता आखिर कैसे लग सकता है?
अगर आप बैंक जायें तो आप देखेंगे कि जगह जगह इस बात के पोस्टर लगे रहते हैं कि आप अपने नोट के नकलीपन को कैसे पहचान सकते हैं।
नकली नोट का पता आखिर कैसे लग सकता है?
प्रसिद्ध अंगेरेजी ब्लॉगर अमित अग्रवाल नें सबसे मशहूर भारतीय ब्लोगों की सूची के हिंदी भाग में अब इस चिठ्ठे को भी शामिल कर लिया है। इसी समय मेरे इस हिंदीबात चिठ्ठे के 400 से के ऊपर फीड ग्राहक भी हो गये हैं।
हिंदीबात चिठ्ठा अब अमित के ब्लॉग सूची में भी
हैडली और राणा के नाम से देश को डराया जा रहा है
पिछले एक महीने से जब से अमेरिका की गप्तचर संस्था एफबीआई (FBI) ने डेविड हैडली और तहावुर्रहमान हुसैन राणा को गिरफ्तार किया है, देश के अखबारों में रोजाना उन से संबंधित समाचार छप रहे हैं।
जो समाचार छाप रहे है वो मेरे विचार में देश पर कोई अच्छा प्रभाव नहीं छोड़ रहे हैं। इन सभी समाचारों से बिना बम फोड़े ही देश को डराया जा रहा है। सोचने वाली बात ये है कि खुफिया जानकारी आखिर पत्रकारों को कौन और क्यों दे रहा है जिसे वो बिना जांचे छाप रहे हैं।
कभी छपता है कि हेडली देश में कई जगह घूमा, कभी छपता है कि वो कई फिल्मी लोगों के संपर्क में था। कभी छपता है कि वो 26/11 से ठीक पहले भारत में था, अन्य स्थानों पर होने वाले हमलों से पहले वहां था।
आज उसके द्वारा अपने एक दोस्त को भेजी गई ईमेल के जरिये आतंकवादियों के साहसिक होने की बात छापी गई हैं। यानी अब आतंकवाद के बारे में भी तारीफ की बातें छापी जा रही हैं।
ये वही देश है जहां आतंकवाद से लडने के लिये जीरो टोलरेंस की बाते कीं जाती हैं, वहां पर इन लोगो की खबरें कैसे छप रही हैं? मेरे विचार में ये सब अपने आप ही नहीं हो रहा है बल्कि एसा लगता है कि देश को डराया जा रहा है कि देखों तुम लोग कुछ नहीं कर सकते।
देश की पुलिस को कार्यवाही करनी चाहिये न कि जनता को डराने की खबरें छपवानी चाहिये।
हैडली और राणा के नाम से देश को डराया जा रहा है
किसके पीछे किसका हाथ है?
भारत में मंहगाई के लिये लोग कांग्रेस सरकार को दोषी मानते हैं। प्र
इस प्रकार हम लोग रोजाना षणयंत्रकारी नई नई थ्योरी पाते रहते हैं जिनसे ये हमारा पूरा मनोरंजन होता है और ये भी पता चलता है किसके पीछे किसका हाथ है।
किसके पीछे किसका हाथ है?
अब क्या होगा कोड़ा का? (पुराने अनुभवों के आधार पर)
झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के द्वारा अरबों रुपये की अवैध कमाई और भ्रष्टाचार के समाचारों के बाद हर
कोई सोच रहा है कि अब कोड़ा का क्या होगा?वैसे मधु कोड़ा को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है और वो अपने आप को राजनैतिक साजिश में फंसाने की बात करने लगे हैं और अपने को फंसाने वालों को देख लेने की बात भी करने लगे हैं।
इसके अलावा चाईबासा में हंकार रैली करने वाले हैं। यानी कुल मिला कर हम लोगों ने जैसा भ्रष्टाचार के पूराने मामलों में देखा है वैसा ही कुछ इस बार भी होने जा रहा है।
आइये देखें कि क्या हो सकता है -
- अभी शायाद इस बात का इंतजार हो रहा है कि कोई काबिल वकील जमानत के लिये मामला तैयार कर ले और मधु कोड़ा हजारों समर्थकों की भीड़ जुटा ले उसके बाद ही शायद गिरफ्तार किया जायेगा।
- आगामी विधानसभा चुनावों में भारी बहुमत से जीत कर आयेगा और फिर कहा जायेगा कि जनता की अदालत ने उनके पक्ष में फैसला दे दिया है।
- ये कि दो-चार विधायक और चुनके आ गये तो सरकार में आने वाली पार्टी सहयोग लेने के बदले में केस को लटका देगी।
- अगर कुछ नहीं हुआ तो भी केस तो बहुत लंबा चलेगा ही, बाद की बाद में देखी जायेगी।
यानी कि कुल मिलाकर जनता तो यही समझती है कि किसी का कुछ नहीं होगा क्योंकि इसस् पहले के घोटालों में भी किसी को कभी कोई सजा नहीं हुई है।
भारत में भ्रष्टाचार भी मंहगाई की तरह है जिससे सब परेशान है लेकिन कुछ होता नहीं है।
अब क्या होगा कोड़ा का? (पुराने अनुभवों के आधार पर)
ये लोग लड़ने मरने के लिये ही पैदा हुये हैं
आज फिर पाकिस्तान के पेशावर में एक बम विस्फोट हुआ है जिसमें अभी तक की जानकारी के अनुसार 8 लोग मारे गये हैं, ये हमला पाकिस्तान की खुफिया संस्था आईएसआई के क्षेत्रीय कार्यालय पर हुआ है।
पिछले 2-3 महीने से कोई दिन ऐसा नहीं जा रहा, जब पाकिस्तान में रोज कुछ न कुछ ऐसी घटनायें न घट रही हो।
दरअसल पाकिस्तान के उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत और पास के कबीलाई इलाकों (फाटा) के पख्तून लोगों का काम ही लड़ना मरना है। ये पख्तून या पठान जाति बहादुर और लड़ाकू है।
ये लोग हजारों सालों से इसी तरह से लड़ते आये हैं। इन लोगों ने सिकंदर से लड़ाई लड़ी, बाबर, अकबर, जहांगीर, शाहजहां से लड़े, अंग्रेजों से लड़े, महाराज रणजीत सिंह के जमाने में लड़े पर कुछ काबू में रहे, सोवियत संघ के खिलाफ अफगानिस्तान में लड़े और अब पाकिस्तान की सेना और सरकार से लड़ रहे हैं।
दरअसल पुराने भारत के इस इलाके से भारत की शुरुआत थी और आर्यों ने बहुत ही रणनीतिक तौर पर इस दुर्गम इलाके में ऐसी जातियों को बसाया था जो कि लड़ने में माहिर थीं और जिनके लिये लड़ांई जीवन जीने का एक तरीका है। पुराने जमान् में ये लोग शठ कहलाते थे और इन लोगों की इतनी बदनामी थी कि एक कहावत थी कि शठ को शठ की भाषा में जबाव देना चाहिये।
जब सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया था तब इन लोगों ने सिकंदर की सेना के साथ बहुत ही बहादुरी से लड़ा था और इनका इतना आतंक था कि सिकंदर की सेना जो कि एक तिहाई रह गई थी, ने भारत में आगे जाने से इंकार कर दिया था।
सिकंदर के जाने के बाद चाणक्य ने इनको छापामार लड़ाई के लिये प्रशिक्षण दिया जो कि ये लोग अभी तक प्रयोग करते हैं। छापामार लड़ाई की तैयारी से ही सेल्युकस के बाद भारत में यवन शासन खत्म हो गया।
इस पूरे इलाके की संरचना भी इस प्रकार की है कि दुश्मन वहां फंस जाता है इस कारण अक्सर लंबी लड़ाई चलती है। अंग्रेजों को इन्होंने 1897 मे औरक्जई में बुरी तरह हराया था। इसके बाद अंग्रेज इस इलाके में कभी शांति से नहीं रह सके और इल के कबीले वाले इलाकों को अंग्रेजों ने विशेष अधिकार से केवल राजनीतिक एजेन्ट रख कर आजाद ही रखा था।
अंग्रेजों की ये व्यवस्था पाकिस्तान ने भी अभी तक जारी रखी हुई है जिसकी वजह से ये लोग अभी भी पुराने कबीलों वाले सिस्टम से रह रहे हैं और आज भी केवल लड़ना-भिड़ना जारी रखे हुये हैं। अंग्रेजों का ये लोग सिर काट लेते थे जिससे अंग्रेजों में इनका बहुत खौफ था।
इनको नये जमाने के हिसाब से पढ़ना-लिखना और कुछ काम सिखाया नहीं गया है। इसलिये ये लोग अभी भी पुराने जमाने के कबाले वाले तरीकों से रह रहे हैं और कबीले का सरदार जिसे मलिक या बाबा कहते हैं का कहना मानकर चलता है और अपने कबीले के लिये छोटी मोटी बातों पर भी लड़ते मरते रहते हैं।
ये लोग लड़ने मरने के लिये ही पैदा हुये हैं
सही मौके को गंवाते लोग
आजकल झारखंड के भूतपूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा द्वारा 4000 करोड़ रुपये से ज्यादा के भ्रष्टाचार का मामला चर्चा में है। पता नहीं कभी आरोप सही भी सावित होंगे या नहीं, या फिर पुराने मामलों की तरह इसमें भी कुछ नहीं होगा और जनता सब जानकर भी कुछ नहीं कर पायेगी।
सही मौके को गंवाते लोग
हमें तो भूतों से शिकायत है
जी.के.अवधिया जी ने अपने ब्लॉग धान के देश में भूतो के उपर पूरा शोध पत्र पेश किया है। मुझे व्यक्तिगत तौर पर तो भूतों पर कोई विश्वास नहीं है लेकिन जितना भी भतों के बारे में जानकारी है वो सब राजकुमार कोहली, रामसे बंधुओं और रामगोपाल वर्मा और कुछ हॉलीवुड के फिल्मकारों के कारण ही है।
हमें तो भूतों से शिकायत है
सवाल ये है कि आप क्या कर लेंगे?
अमेरिका की एफबीआई ने बीते दिनों पाकिस्तान मूल के अमरीकी डेविड हेडली और पाकिस्तान में जन्मे कनाडाई नागरिक टी. हुसैन राणा को आतंकी साजिश के सिलसिले में गिरफ्तार किया था। दोनों लश्कर के इशारे पर भारत और डेनमार्क में हमलों की साजिश रच रहे थे।
इस सिलसिले में भारत के गृहमंत्री चिदम्बरम जी ने कहा कि इसमें पाकिस्तान का हाथ साफ है। इससे पहले पिछले साल जुलाई और इस साल अक्टूबर में काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर भी हमले किये गये थे जिन में भारत ने पाकिस्तान और उसकी आईएसआई व तालीबान का नाम लिया था और सबूत पेश किये थे।
मुंबई में 26/11 के भीषण हमले में भी भारत ने पाकिस्तान का नाम लिया था। मेरा सवाल भारत सरकार से ये है कि जब इन सबके पीछे आईसएसआई और पाकिस्तान है ये बात सब जानते हैं लेकिन आप ने ये सब जानने के बाद क्या किया ये कोई नहीं जानता।
आप तो पाकिस्तान को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा देते हैं, कभी पाकिस्तान को आतंकवाद का शिकार बताते हैं, कभी शर्म अल शेख में उससे समझौता कर लेते हैं, कभी उसको वार्ता के लिये आमन्त्रण देते हैं। तो फिर किसी भी घटना होने पर केवल पाकिस्तान का नाम लेने से क्या होगा?
कुछ कर के भी तो दिखाइये। आईएसआई और पाकिस्तान बार-बार घटनाये करते जाते हैं और आप बस उनका नाम ले लेते हैं। मैं कहती हूं कि आईएसआई का हाथ है तो आप उसका क्या कर लोगे?
सवाल ये है कि आप क्या कर लेंगे?
जाना हुआ अपोलो हॉस्पिटल में
पिछले दिनों हमारे एक परिचित दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में सीने में दर्द के कारण भर्ती थे और सबसे अच्छी बात मुझे जो लगी जिसका वजह से मैं ये पोस्ट लिख रही हूं कि वहां पर हर बोर्ड पर अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी में जरुर लिखा हुआ है और इसका ध्यान हर जगह रखा गया है।
मैने देखा कि अफगनिस्तान के लोगों के लिये अपोलो में एक विशेष काउंटर खोला हुआ है और इस अस्पताल में बहुत सारे विदेशी लोग इलाज कराने आते हैं खास कर अफगानी और इराकी लोग। हम ने बहुत सारे विदेशियों को वहां देखा।
जाना हुआ अपोलो हॉस्पिटल में
फियेट का मल्टीजेट इंजन देश का इंजन बन गया है
पिछले दिनों हमारे एक जानकार को नई कार खरीदनी थी उन्होंने कारों के बारे में थोड़ी जानकारी इकठ्ठी करनी शुरु की और इस मामले में हम लोगों से भी सलाह मांगी।
फियेट का मल्टीजेट इंजन देश का इंजन बन गया है
कुछ भी तो नहीं बदला मध्य युग से अब तक
कल शाम पश्चिम बंगाल में नक्सली समर्थक पुलिस संत्रास प्रतिरोध समिति [पीसीपीए] के माओवादियों ने दुस्साहसिक कार्रवाई करते हुए भुवनेश्वर-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस को अगवा कर लिया और ट्रेन के चालक और सह चालक का अपहरण कर लिया हालांकि बाद में चालक-सह चालक को रिहा करा लिया गया।
एक तरफ तो ऐसे हथियारों के बल पर राज्य पर कब्जा करने वाले लोग हैं वहीं दूसरी ओर आज के जमाने में आम जनता भी उसी दिमागी तौर पर मध्य युगीन हालात में रह रही है।
कुछ भी तो नहीं बदला मध्य युग से अब तक
लोकतंत्र नीचे तक नहीं पहुंचा है
हम लोग यह बात दुनिया को गर्व से बताते हैं कि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं और हमारे यहां लोकतंत्र की परम्परायें रही हैं।
लोकतंत्र नीचे तक नहीं पहुंचा है
अंग्रेजी नामों वाली हिंदी फिल्में बन रही हैं
अगर आप ने गौर किया हो तो शायद ये देखा हो कि आजकल प्रदर्शित होने वाली अधिकांश फिल्मों के नाम अंग्रेजी में हैं। पिछले कुछ दिनों में रिलीज हुई फिल्मों में वांटेड, ऑल द बेस्ट, ब्ल्यू, वेक अप सिड, फ्रूट एंड नट, डू नॉट डिस्टर्ब इत्यादि प्रमुख हैं।
- हिंदी फिल्में अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रिलीज होती हैं और अंग्रेजी नाम से थोड़ा फायदा मिल सकता है। हिंदी फिल्मों की अधिकांश कमाई प्रवासी भारतीयों द्वारा फिल्में देखने से होती है, लिहाजा उन्हीं के हिसाब से फिल्में बनती हैं।
- इससे ये भी पता चलता है कि भारत में मल्टीप्लेक्स में फिल्मे देकने वाले मध्यम और उच्च वर्ग के लिये ही फिल्में बन रही हैं
- ये भी पता चलता है कि देश के अंदर के देसी और अंदर के इलाकों के लोगों की समस्याओं और उससे संबंधित फिल्में अब कम बनने लगी हैं।
- भारत में अंग्रेजी की स्वीकार्यता भी इससे पता चलती है।
अंग्रेजी नामों वाली हिंदी फिल्में बन रही हैं
ब्लॉगर में ये क्या हो रहा है?
दीपावली पर देसी से दूर लोग
कल धूमधाम से हमारा सबसे बड़ा त्यौहार दीपावली संपन्न हुआ, हालांकि अभी कुछ और साथी त्यौहार बाकी हैं।