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बीन बजा कर कमाने वाला


पिछले दिनों हम एक पहाड़ी पर्यटन स्थल पर परिवार सहित घूमने गये हुये थे। वहां के मुख्य बाजार में घूमते घूमते एक जगह पर हमने देखा कि एक व्यक्ति ने सपेरे वाली बीन बजानी शुरु कर दी और लोगों का मनोरंजन करने लगा। 

लोग बाग खुश होकर खुद ही कुछ न कुछ रुपये पैसे उसके आगे रखने लगे। हमें भी ये काफी अच्छा लगा और हमने उसका एक वीडियो भी अपने कैमरे से बना लिया। 

आप भी इसको सुनिये और आनन्द लीजिये।

  

Manisha मंगलवार, 18 अक्तूबर 2016

काला धन आय घोषणा योजना 2016 और नकद रकम  की समस्या


भारत सरकान ने देश में काला धन समाप्त करने के अपने प्रयासों के तहत आय घोषणा योजना 2016  आरम्भ की है जिसकी आखिरी तारीख 30 सितम्बर 2016 है।  इस घोषणा में अगर कोई व्यक्ति यदि अपनी किसी आय जिसके उपर उसने टैक्स नहीं दिया था जिसकी वजह से वो काला धन की श्रेणी में माना जायेगा। 

सरकार बार बार कह रही है कि इसकी अंतिम तिथि आगे नहीं बढ़ायी जायेगी  और लोगों को इसका फायदा उठा कर अपने काले धन को सफेद धन में परिवर्तित कर लेना चाहिये। 30 सितम्बर के बाद सरकार सख्त कार्यवाही करेगी जिसके लिये लोग खुद जिम्मेदार होंगे।

काला धन आय घोषणा योजना 2016

इस आय घोषणा योजना 2016  की घोषणा वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस साल 2016 के आम बजट में की थी। इस खिड़की के तहत घोषित काले धन पर टैक्स, पेनाल्टी और सेस के रूप में 45 फीसद रकम चुकाकर लोग बेदाग बाहर आ सकते हैं। 

केंद्रीय प्रत्यक्ष बोर्ड (सीबीडीटी) ने आयकर अफसरों को काला धन रखने वालों को इस स्कीम के तहत आकर्षित करने के लिए हर संभव प्रयास करने का निर्देश दिया है। 

साथ ही कहा है कि अपनी घरेलू काली कमाई उजागर करने वालों को आश्वस्त किया जाए कि उनकी गोपनीयता बरकरार रखी जाएगी। 


ये सब योजना  तो ठीक है  लेकिन सरकार को ये भी देखना चाहिये कि काला धन क्यों  पैदा होता है?

काले धन का एक  प्रकार तो अपराध से कमाया गया पैसा है जिसके बारे में तो सरकार सख्त कार्यवाही करनी ही चाहिये। लेकिन जो अपनी आय छुपा कर कर बचाते हैं वो वास्तविक रुप से ही काला धन कहलाता है, काले धन से आशय भी यही होता है कि कर बचा कर पैसा रखना।

काला धन पैदा होने का कारण


तो काला धन पैदा होने का कारण एक तो ये है कि टैक्स की दरें भारत में बहुत ज्यादा है और नये नये प्रकार के टैक्स लगाने के तरीके ढूंढ़े जा रहे हैं। 

इससे परेशान होकर जो लोग आय छुपा सकते हैं वो काफी हद तक छुपा कर टैक्स देने से बचते हैं। सरकार ज्यादा कमाने वालों पर ज्यादा टैक्स तो लगा देती है पर इस ज्यादा कमाने के लिये जो उसने अपने जीवन में मेंहनत की होती है उसका  कोई ध्यान नहीं रखा जाता है। 

निकम्मे और अकर्मण्य लोगोें को सरकार राहत देती है और मेहनत करने वालोें पर टैक्स लगाया जाता है।  इसके अलावा जो टैक्स दे रहा है उसी को और दूहने को सरकारें और प्रयत्न करती रहती हैं। 

तरह तरह के नोटिस टैक्स देने वालों को ही दिये जाते हैं और जो नहीं देते उनको कोई नोटिस नहीं देता, इस कारण भी लोग कहते हैं कि कर न देना ही अच्छा है।  अत: सरकार को अगर टैक्स का पालन कराना है तो टैक्स दर कम होना चाहिये और  टैक्स प्रशासन आसान होना चाहिये।


नकद रकम का फायदा 


अब मैं बताती हूं कि नकद रकम लोग क्यों रखना चाहते हैं। हमारा अनुभव ऐसा है कि बैंक में रखे पैसे या चेक, डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड के प्रयोग के मुकाबले जो लोग नकद रकम खर्च करते हैं वो फायदे में रहते हैं।  

हमारे अनुभव तो इसी ओर इशारा करते हैं -

  • अगर आप किसी भी प्रकार के इलेक्ट्रानिक सामान को डेबिट या क्रेडिट कार्ड से खरीदने जायें को आप पर 2 प्रतिशत का बैंकिंग अधिभार लगा दिया जाता है, नकद  में कोई समस्या नहीं है।
  • अधिकांश बैंकों नें आपके डेबिट कार्ड के खर्च की प्रति दिन की सीमा 50 हजार और नकद निकालने की सीमा 25 हजार से 35 हजार रुपये तक निश्चित की हुई है, यानी की आप अपने पैसे को अपने हिसाब से खर्च भी नहीं कर सकते, नकद कितना भी खर्च करिये।
  • इस सीमा की वजह से बड़ी खरीद में आप न चाह कर भी नकद रकम निकाल कर खर्च करते हैं जिसका फायदा उठा कर दुकानदार उस को आय में न दिखा कर काले धन में बदल देते हैं।
  • इसी सीमा की वजह से हम को कई बार दो-तीन दिनों तक रोजाना रूपये निकाल कर ही कोई बड़ी रकम का समान खरीदा।
  • मान लीजिये आपको 1 लाख रूपये का टीवी और होम थियेटर या कोई लैपटॉप खरीदना है और आपके बैंक में पर्याप्त रकम भी है और चाहते हैं कि जब भी आप इलेक्ट्रानिक की दुकान में जाकर सामान खरीदें तो नकद न ले जाना पड़े तो आपके पास कोई उपाय नहीं है, अगर बैंक चैक देंगे तो जब उसके द्वारा जब रकम दुकानदार के खाते में चली जायेगी तब वो आप सामान ले पायेंग यानी की दो-तीन दिन के बाद, अगर दूसरे शहर में हुये तो कोई विकल्प ही नहीं है चेक पेमेंट में कई दिन लगते हैं। अब डेबिट कार्ड के द्वारा आप पेमेंट कर नहीं सकते क्योंकि उसकी सीमा 25 या 35 हजार ही होगी। बचा क्रेडिट कार्ड,  अगर इसकी भी सीमा अगर 1 लाख के उपर हुई तब ही आप पेमेंट कर पायेंगे। इसके अलावा 2 प्रतिशत का बैंक प्रतिभार अलग। यानी कि  आप को हार झक मारकर नकद पैसा ले  जाना ही उचित लगेगा। समझ में नहीं आता कि हमारे ही पैसे पर कई सीमा बैंक द्वारा क्यों लगाई गई है।
  • कई बार हमें शहर के बड़े हस्पताल में अपने घर के या आस पडोस के किसी मिलने वाले को इलाज के लिये भर्ती कराना पड़ा जहां पर अस्पताल द्वारा पहले रकम जमा कराने को कहा गया जो कि लाखों में थी। अब आप सोच सकते हैं कि अगर आपके बैंक में रकम जमा भी हो तो भी आप केवल नकद द्वारा ही जमा करा सकते हैं यानी कि काला धन वालों को फायदा और सफेद धन वालों को नुकसान।
  • एक अन्य कम आय वाले रिश्तेदार के बच्चों की शादी में हम लोग कुछ मदद करना चाहते तो हम लोगों ने टेंट और खाने के खर्चे को अपने उपर ले लिया जो कि लाखों में था। जब हमने पेमेंट के लिये बोला तो उसने कहा कि आपको नकद देना होगा, अगर डेबिट कार्ड व क्रेडिट कार्ड से दोगे तो सर्विस टैक्स देना होगा। यानी कि  हमें नकद रकम देने में ही फायदा था, सर्विस टैक्स की रकम में तो हमें दूल्हा-दुल्हन कोई  अन्य उपहार दे सकते थे। इन ही सब कारणों से लोग टैक्स चोरी करते हैं। 

इसी तरह के रोजाना की जिन्दगी में कई उदाहरण हैं जिसकी वजह से लोग नकद रकम की ओर खिंचते हैं। सरकार को इस बारें में सोचने की जरुरत है।  काला धन तब तक नहीं रुक सकता जब तक सफेद धन को रखनें में फायदे ज्यादा हों। अभी तो काले धन वालों को ही फायदा हैं।  सरकार और समाज को समझने की जरुरत कि काला धन क्यों पैदा हो रहा है।

Manisha रविवार, 25 सितंबर 2016

रिटायरमेंट के लिए 47% भारतीय नहीं कर रहे बचत?


एचएसबीसी (HSBC) की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि भारत में कार्यशील लोगों में 47 फीसदी ने सेवानिवृत्ति के लिए या तो बचत शुरू नहीं की है या फिर बंद कर दी अथवा ऐसा करने में उन्हें मुश्किल पेश आ रही है। यह ग्लोबल औसत के 46 फीसद से अधिक है।  

इस रिपोर्ट को ऑनलाइन सर्वे के आधार पर इपसोस मोरी ने तैयार किया। यह सर्वे सितंबर और अक्टूबर 2015 में किया गया। इसमें 17 देशों के 18,207 लोगों की प्रतिक्रिया ली गई। इन देशों में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, मिस्र, फ्रांस, हांगकांग, भारत, इंडोनेशिया, मलेशिया, मेक्सिको, सिंगापुर, ताइवान, संयुक्त अरब अमीरात, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल हैं। 

भारतीय नहीं कर रहे बचत

रिपोर्ट में चिंताजनक पहलू यह है कि भारत में जिन 44 फीसद लोगों ने भविष्य के लिए बचत शुरू की थी, उन्होंने उसे रोक दिया है या ऐसा कर पाने में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। करीब 80 फीसद ने सेवानिवृत्त होने से पहले मित्रों और परिवार से सलाह ली। जबकि 82 फीसद को रिटायरमेंट के बाद इनकी सलाह मिली। 

केवल 40 फीसद सेवानिवृत्त होने से पहले और 53 फीसद सेवानिवृत्त होने के बाद पेशेवरों से सलाह प्राप्त करते हैं। इनमें वित्तीय सलाहकार, सरकारी एजेंसी, इंश्योरेंस ब्रोकर्स सहित अन्य शामिल हैं।

रिटायरमेंट के बाद वित्तीय सुरक्षा की अहमियत बढ़ जाती है। मेरे विचार में इस तरह की रिपोर्टस किसी न किसी उद्देश्य से प्रकाशित की जाती हैं। खास कर जब किसी अंतर्राष्ट्रीय कंपनी की कोई उत्पाद भारत में लांच होने वाला हो। 

भारत में सामाजिक सुरक्षा नाम मात्र की है और जो कुछ है भी वो भी केवल सरकारी क्षेत्र के कर्मियों और संगठित क्षेत्र के कर्मियों के लिये ही है। तो अगर इन क्षेत्रों के कर्मियों को अगर रिटायरमेंट के बाद पेंशन और प्रोविडेंट फंड अगर मिल रहा है तो वे क्यों बचत करेंगे? दूसरी ओर असंगठित क्षेत्र के कर्मियों का तो कोई रिटायरमेंट होता ही नहीं है तो उनकी बचत कहां होगी।

दरअसल भारत के लोगों को पहले से ही पता है कि किसी के भरोसे नहीं रहा जा सकता। अपने काम करने के वर्षों के दौरान लोग बाग अपना पैसा सोने और अन्य वस्तुओं में निवेश करते चलते हैं। 

दूसरी ओर सामाजिक ढांचा इस प्रकार बनाया गया है कि लोगो के बुढापे में उनके पुत्र उनका ध्यान रखते हैं। भारत में लोग कम पैसे में भी आराम से दिन काट लेते हैं।

अब ये सब बाते तो इन रिपोर्ट प्रकाशित करने वालों को नहीं पता, इसलिये वो ये कहते हैं कि भारतीय रिटायरमेंट के बाद के लिये बचत नहीं करते, वास्तविकता कुछ और ही है। 

Manisha मंगलवार, 16 अगस्त 2016

मोबाइल पर अग्रेजी मे सर्च का हिंदी में भी परिणाम दे रहा है गूगल


गूगल आजकल पूरी कोशिश कर रहा है कि भारतीय भाषाओं खास कर हिंदी में इंटरनेट पर पाठ्य सामग्री (कंटेंट) को
अग्रेजी मे सर्च पर भी हिंदी में परिणाम दे रहा है गूगल
बढ़ाया जाये। 

गूगल के अनुमान के अनुसार आने वाले कुछ समय में भारत के ग्रामीण इलाकों में स्मार्ट मोबाइल फोन के प्रचलन के बढ़ने से भारतीय भाषाओं खास कर हिंदी में इंटरनेट कंटेट की आवश्यकता रहेगी। 

इसी को ध्यान में रखते हुये गूगल ने मोबाइल पर अब अपने खोजक (सर्च इंजन) पर एक नई सुविधा शुरु की है। अब अपने मोबाइल पर गूगल सर्च करने वालों को हिंदी और अंग्रेजी के परिणाम एक साथ दिखाई दे रहे है। बस एक टैब पर क्लिक से मनचाहा परिणां देख सकेंगे।   

गूगल के अनुसार इस सुविधा से भारत में खोज बिलकुल रोजमर्रा की जिंंदगी जैसा हो जायेगा, जैसे लोग जरुरत के हिसाब से बोलचाल में भाषा बदलते हैं, ऐसे में सिर्फ एक टैब पर क्लिक करके अपनी पसंद की भाषा में सर्च के नताीजे देख सकेंगें।

मैंने अपने आईफोन पर गूगल में 'Who am I'  खोज के लिये टाइप किया तो देखा कि बगल के टैब में हिंदी में भी परिणांम दिख रहा था। अभी इसमें और सुधार की गुंजाइश है गूगल जरुर इसको सुधारेगा।

Manisha शनिवार, 9 जुलाई 2016

हिंदीडायरी पर ब्लॉग लेखक आमंत्रित हैं


आप में से जो लोग भी इस ब्लॉग (www.HindiDiary.com) पर अपने लेख और किसी भी विषय पर अगर लिखना चाहते हैं तो आप आमंत्रित हैं।

आप के नाम के साथ साथ आप के अपने ब्लॉग के लिंक भी लेख के साथ दिया जायेगा।

जो लोग पहले से ही अपने हिंदी में ब्लॉग चला रहे हैं, उनके लिये ये एक अच्छा मौका है।

और उदीयमान ब्लॉग लेखक भी यहां ब्लॉग लिख कर अपनी ब्लॉगिंग को  तराश सकते हैं। आप अपना ब्लॉग लेख manisha2106AToutlook.com पर ईमेल से भेज सकते हैं।

हिंदीडायरी पर ब्लॉग लेखक आमंत्रित हैं

Manisha रविवार, 26 जून 2016

ये डिजिटल इंडिया क्या है?


केन्द्र सरकार  ने 2015 में आम आदमी के 'डिजिटल सशक्तिकरण' के  जरिये देश भर में 'सुशासन अभियान' को तीव्र गति देने के लिये  महत्वकांक्षी  'डिजिटल इंडिया' की शुरूआत की है', जिसके बारे में कहा जा रहा है कि इस योजना  से देश की तस्वीर बदल सकती है, आम आदमी की जिंदगी बेहतर और आसान हो सकती है। इस योजना को 'डिजिटल रूप से सशक्त भारत' की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।


डिजिटल इंडिया Digital India



डिजिटल इंडिया योजना इस तरह से डिज़ाइन की गई है कि इसके क्रियान्वन से देश की तस्वीर बदल सकती है यानि यह योजना 'गेम चेंजर' होगी। इस के तहत पोस्ट ऑफिसों को कॉमन डिजिटल सर्विस सेंटर के रूप में विकसित किया जायेगा और छोटे शहरों में भी बीपीओ खोले जाएंगे।

मोदी सरकार चाहती है कि देश के हर नागरिक के लिए डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर बने। शासन, सेवाओं को आसानी से उपलब्ध कराना सरकार का मकसद है। भारतीयों के डिजिटल सशक्तीकरण के प्रयासों स्वरूप इस योजना का लक्ष्य इस क्षेत्र के बारे में जागरूकता बढ़ाना और लोगों को इससे जोड़ना है। 


इसका एक लक्ष्य कागजी कार्रवाई को कम-से-कम करके सभी सरकारी सेवाओं को आम जनता तक डिजिटली यानी इलेक्ट्रॉनिकली रूप से सीधे व सुगम तरीके से पहुचाना है।

डिजिटल विशेषज्ञों के अनुसार डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के तहत भारत सरकार चाहती है कि तमाम सरकारी विभाग और देश की जनता एक-दूसरे से डिजिटल अथवा इलेक्ट्रॉनिक रूप से जुड़ जाएं ताकि वे सभी तरह की सरकारी सेवाओं से लाभ उठा सकें और देश भर में सुशासन सुनिश्चि‍त किया जा सके। 

चाहे किसी गांव में रहने वाला व्यक्ति हो शहर में रहने वाला, दोनों को ही सभी सरकारी सेवाएं समान रूप से डिजिटली अथवा ऑनलाइन हासिल हों, यही डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का मुख्य लक्ष्य है। 

इस अहम सरकारी योजना को अमली जामा पहनाने के बाद आम जनता के लिए यह संभव हो जाएगा कि किस सरकारी सेवा को पाने के लिए उसे किस तरह एवं कहां ऑनलाइन आवेदन करना है और उससे किस तरह लाभान्वि‍त हुआ जा सकता है।   

दरअसल किसी भी सरकारी सेवा के डिजिटली उपलब्ध होने पर  आम आदमी के लिये उससे लाभान्वि‍त हो्ने के लिये सीधा रास्ता खुल जायेगा। जाहिर है, ऐसे में सरकारी सेवाओं के मामले में होने वाली लेट लतीफी और भ्रष्टाचार पर कारगर ढंग से लगाम लग सकेगी।

केंद्र सरकार द्वारा डिजिटल इंडिया अभि‍यान का शुभारंभ पिछले वर्ष 21 अगस्त को किया गया और इसका मुख्य उद्देश्य भारत को डिजिटली रूप से सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था में तब्दील करना है। केंद्र सरकार की योजना यह है कि इस कार्यक्रम को अगले पांच सालों में पूरा कर लिया जाए। 

यह उम्मीद की जा रही है कि डिजिटल इंडिया कार्यक्रम वर्ष 2019 तक गांवों समेत देश भर में पूरी तरह से लागू हो जाएगा। दरअसल, इस कार्यक्रम के तहत सभी गांवों और ग्रामीण इलाकों को भी इंटरनेट नेटवर्क से जोड़ने की योजना है। डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के तहत इंटरनेट को गांव-गांव पहुंचाया जाएगा।

इस कार्यक्रम के तीन प्रमुख अवयव हैं- बुनियादी डिजिटल सुविधाएं, डिजिटल साक्षरता और सेवाओं की डिजिटल डिलीवरी। इस कार्यक्रम के तहत परियोजनाओं से देश को ड़िजिटल आधारित सशक्त  सूचना अर्थव्यवस्था के रूप मे बदजाने का लक्ष्य है।

आम जनता को सरकारी सेवाएं आसानी से उपलब्ध कराना सरकार का मकसद है, ताकि लोगों को अत्याधुनिक सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का लाभ मिल सके। इसके लिए आईटी, टेलीकॉम एवं डाक विभाग जोर-शोर से कार्यरत हैं। मोदी सरकार के महत्वाकांक्षी डिजिटल इंडिया अभियान के तहत सरकार अगले तीन वर्षों में 2.5 लाख ग्राम पंचायतों को राष्ट्रीय ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क से जोड़ेगी।

एक डिजिटल लॉकर सेवा का शुभारंभ किया गया है। इस बार 2016 का सीबीएसई के 12वीं के परिणामों को घोषित करते समय ही छात्रों के प्रमाण पत्रों को डिजिटल लॉकर में रखा गया है। 

डिजिटल लॉकर के  तहत लोग अपने प्रमाण पत्रों एवं अन्य दस्तावेजों को डिजिटल स्वरूप में सुरक्षित रख सकेंगे। इसमें आधार कार्ड नंबर व मोबाइल फोन के जरिये पंजीकरण कराना होगा। डिजिटल लॉकर में सुरक्षित रखे जाने वाले प्रपत्रों को सरकारी एजेंसियों के लिए भी हासिल करना आसान होगा।

किसी व्यक्ति के विभि‍न्न दस्तावेज अगर डिजिटल लॉकर में हैं, तो उसे सरकारी योजनाओं के लिए इनकी फोटोकॉपी देने की जरूरत नहीं होगी। जाहिर है, ऐसे में लोगों को काफी सहूलियत होगी।

इतना ही नहीं, इस दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में बीपीओ खोलने की योजना का भी शुभारंभ हो गया है। दरअसल, सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में नौजवानों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए कॉल सेंटरों की स्थापना करना चाहती है। इन क्षेत्रों में बीपीओ खोलने वालों को सरकार सब्सिडी देगी। 

इसके साथ ही ऐसी उम्मीद है कि डिजिटल इंडिया वीक के दौरान सरकार डिजिटल इंडिया के ब्रांड ऐंबैसडरों की भी घोषणा करेगी। भारत सरकार अनेक एप्लीकेशंस एवं पोर्टल विकसित करने के लिए भी ठोस कदम उठा रही है जो नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभाएंगे। 

डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को मिलने वाली कामयाबी भारत को डिजिटल रूप से सशक्त बनाने और स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, बैंकिंग आदि क्षेत्रों से संबंधित सेवाओं की डिलीवरी में आईटी के इस्तेमाल में अग्रणी बनाएगी।

डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के नौ प्रमुख उद्देश्य हैं जिनका ब्योरा इस प्रकार है : -
  • ब्रॉडबैंड हाईवेज :  इनके जरिए एक तय समय सीमा में बड़ी संख्या में सूचनाओं को प्रेषित किया जा सकता है।
  • सभी को मोबाइल कनेक्टिविटी सुलभ कराना :  शहरी इलाकों में भले ही मोबाइल फोन पूरी तरह से सुलभ हो गया हो, लेकिन देश के अनेक ग्रामीण इलाकों में अभी इस सुविधा का जाल वैसा नहीं हो पाया है। इससे ग्रामीण उपभोक्ताओं को इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग के इस्तेमाल में आसानी होगी।
  • पब्लिक इंटरनेट एक्सेस प्रोग्राम :  इस कार्यक्रम के तहत पोस्ट ऑफिस को मल्टी-सर्विस सेंटर के रूप में विकसित किया जाएगा। नागरिकों को विभि‍न्न सरकारी सेवाएं मुहैया कराने के लिए वहां अनेक तरह की गतिविधियों को अंजाम दिया जायेगा।
  • ई-गवर्नेंस - प्रौद्योगिकी के जरिये शासन में सुधार : इसके तहत विभिन्न विभागों के बीच सहयोग और आवेदनों को ऑनलाइन ट्रैक किया जाएगा। इसके अलावा स्कूल प्रमाण पत्रों, वोटर आईडी कार्ड्स आदि की जहां भी जरूरत पड़े, वहां उसका ऑनलाइन इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • ई-क्रांति - सेवाओं की इलेक्ट्रॉनिक डिलीवरी : ई-एजुकेशन के तहत सभी स्कूलों को ब्रॉडबैंड से जोड़ने, सभी स्कूलों (ढाई लाख) में वाई-फाई की नि:शुल्क सुविधा मुहैया कराने और डिजिटल साक्षरता सुनि‍श्चि‍त करने की योजना है। किसानों को वास्तविक समय में मूल्य संबंधी सूचना, मोबाइल बैंकिंग आदि की ऑनलाइन सेवा प्रदान करना भी इनमें शामिल है। इसी तरह स्वास्थ्य क्षेत्र में ऑनलाइन मेडिकल परामर्श, रिकॉर्ड और संबंधित दवाओं की आपूर्ति समेत लोगों को ई-हेल्थकेयर की सुविधा देना भी इनमें शामिल है।
  • सभी के लिए सूचना : इस कार्यक्रम के तहत सूचनाओं और दस्तावेजों तक ऑनलाइन पहुंच कायम की जायेगी। इसके लिए ओपन डाटा प्लेटफॉर्म मुहैया कराया जाएगा।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण में आत्मनिर्भरता : इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र से जुड़े तमाम उत्पादों का निर्माण देश में ही किया जाएगा। इसके तहत ‘नेट जीरो इंपोर्ट्स’ का लक्ष्य रखा गया है, ताकि वर्ष 2020 तक इलेक्ट्रॉनिक्स के मामले में देश आत्मनिर्भरता हासिल कर सके।
  • रोजगार के लिए सूचना प्रौद्योगिकी :  कौशल विकास के मौजूदा कार्यक्रम को इस प्रौद्योगिकी से जोड़ा जाएगा। गांवों व छोटे शहरों में लोगों को आईटी से जुड़ी नौकरियों के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा।
  • अर्ली हार्वेस्ट प्रोग्राम्स : डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को लागू करने के लिए पहले कुछ बुनियादी ढांचागत सुविधाएं स्थापित करनी होंगी।
यह साफ जाहिर है कि डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य देश के नागरिकों को सुशासन  सुलभ कराना और उनकी जिंदगी बेहतर और आसान बनाना है। इस के जरिये ग्राम पंचायतों, स्कूलों विश्वविद्यालयों  में वाय-फाय सुविधाओं से लेकर शहरो यानि सभी जगह आम आदमी डिजिटल रूप् से सशक्त किये जाने का लक्ष्य है, जिससे उसकी जिंदगी आसान हो सकेगी साथ ही इससे आई टी, दूर संचार तथा इलेक्ट्रोनिक्स आदि अनेक क्षेत्रों में बड़ी तादाद में लोगों को रोजगार मिल सकेगा।

लेकिन सरकार को  ये भी देखना चाहिये कि ये सब अपने निर्धारित समय में ही पूरा हो, अन्यथा ये भी सरकार की एक घोषणा बन कर रह जायेगी। 

दूसरी बात ये है कि डिजिटल इंडिया का नाम ही अंग्रेजी में है तो कहीं ऐसा न हो कि भारतीय भाषायें खास कर हिंदी को कोई पूछे ही नहीं और अंग्रेजी को ही बढ़ावा मिलता रहे। वैसे भी भारतीय भाषाओं को तकनीकी रूप से पिछड़ा रखा गया है। 

सरकार सुनिश्चित करे कि सारे कार्यक्रम में हिंदी की सहभागिता बराबर रहे। और ये नाम डिजिटल इंडिया खुद ही सही नहीं है. इस कार्यक्रम का कोई अच्छा सा हिंदी नाम रखना चाहिये था।

डिजिटल इंडिया के बारे मे और जानने के लिये इसकी वेबसाइट पर जायें।

Manisha बुधवार, 15 जून 2016

हिंदी ब्लॉगरों के लिये डॉट कॉम लाइफ स्टाइल अभी संभव नहीं


हिंदी ब्लॉगिंग अभी भी शैशव अवस्था में ही है। 2006-2009 के दौरान हिंदी में काफी ब्लॉग शुरू किये गये थे और हिंदी ब्लॉगिंग ने एक आंदोलन का रुप ले लिया था। ब्लॉग के लिये हिंदी में चिठ्ठा शब्द ईजाद किया गया जो कि अपने आप में काफी प्रचलित हुआ।

इसी दौरान अंग्रेजी में भी कई भारतीय और विदेशी ब्लॉगरों ने अलग अलग विषयों पर ब्लॉग बना कर ब्लॉगिंग को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। इन लोगों ने ब्लॉगिंग की इस विधा को पूर्ण समय के लिये अपनाया और कइयों ने तो अपनी अच्छी खासी नौकरियां छोड़ कर ब्लॉगिंग को अपनाया और ब्लॉगिंग ने भी इनके निराश नहीं किया और इन सभी ब्लॉगरों को अच्छा खासा नाम और मिला और लाखों रुपये की मासिक आमदनी भी मिली।

ब्लॉगिंग के इस काम से ब्लॉगरों को कहीं भी कहीं भी काम करने की सुविधा मिली और अपने समय को वो लोग अपने परिवार और अपने शौक को दे पा रहे हैं। इसी से डॉट कॉम लाइफ स्टाइल शब्द ने जन्म लिया।

इस डॉट कॉम लाइफ स्टाइल में आदमी (ब्लॉगर) अपने समय का खुद मालिक है और अपने आराम करने और सोने के समय में भी पैसा कमा रहा है। अपने समय का अपने हिसाब से प्रयोग कर सकता है। हालांकि ऐसी स्थिति पाने के लिये अच्छी खासी मेहनत और किस्मत भी चाहिये।

Dot Com Lifestyle for Hindi Bloggers
Dot Com LifeStyle for Hindi Bloggers


पर हिंदी ब्लोगिंग वालो के लिये ये अभी बहुत दूर की कौड़ी है।

एक तो हिंदी ब्लॉगिंग में उच्च स्तरीय ब्लॉग नहीं हैं, वहीं ब्लॉग से पर्याप्त मात्रा में आय न हो पाना भी एक कारण है। दरअसल हिंदी ब्लगिंग की सबसे बड़ी समस्या अभी भी पाठकों की कम संख्या है।

कम ब्लॉग ट्रैफिक के कारण हिंदी ब्लॉगरों उतनी कमाई भी नहीं कर पाते है। साथ ही साथ हिंदी ब्लॉगरों ने पिछले 2-3 सालों में इन सब हालातों को देखते हुये सोशल मीडिया जैसे कि फेसबुक और ट्विटर पर अपने आपको स्थानान्तरित कर लिया है जहां पर तुरंत कमेंट और लाइक के द्वारा उनको पसंद किया जा रहा है ओर इस तरह हिदी ब्लॉगरों ने अपने आपको सोशल माडिया पर स्थापित कर लिया है।

अपने मोबाइल से हिंदी ब्लॉगर कहीं से भी अपनी बात लिख पा रहे हैं। इससे हिन्दी ब्लॉगरों को पाठक मिले हैं। लेकिन हिन्दी ब्लॉगिंग के विकास के लिये कोई ज्यादा अच्छी बात नहींं है। इस कारण हिंदी मे प्रोफेशनल या पेशेवराना ब्लॉगिंग का स्वतंत्र विकास नहीं हो पा रहा है। दरअसल सोशल मीडिया से पैसा कमाना तो अभी संभव नहीं है। भविष्य में शायद हो सकता है।

एक और अन्य बात ये है कि सोशल मीडिया में लिखे गये ब्लॉग को पेज खोजी इंजन जैसे कि गूगल और बिंग इत्यादि द्वारा नहीं सहेजा जाता है। जिसकी वजह से इंटरनेट संसार पर हिंदी के पेजों की संख्या अन्य भाषा के पेजों के मुकाबले में कम है। इसी वजह से विज्ञापन देने वाले संस्थान हिंदी के वेब पेजों पर अभी हिंदी में विज्ञापन नहीं दे रहे हैं। और इसी वजह से इंटरनेट पर विज्ञापनों का प्रबंधन करने वाली लगभग सभी कंपनियां हिंदी ब्लॉगरों को अपने विज्ञापन के लिये अयोग्य घोषित कर देती हैं।

हालंकि गूगल ऐडसेंस ने अब हिंदी के वेब पेजों के लिये अपना दरवाजा खोल दिया है। पर हिंदी विज्ञापन अभी भी न के बराबर हैं।

मार्च 2016 में गूगल ने गूगल ऐडसेंस के ऊपर एक कार्याशाला का आयोजन किया था, जिसमें मुझे भी जाने के लिये निमंत्रण मिला था। इस कार्यशाला में गूगल की एक प्रस्तुति हिंदी वेब पेजों के लिये थी। गूगल के अनुसार आने वाले समय में भारत में स्मार्ट फोन बढ़ने वाले हैं और ये बढ़ोत्तरी अधिकांशतया छोटे शहरों, कस्बों और ग्रामीण इलाकों में होने वाली है, ऐसे समय में वो अपनी भाषा यानी कि मुख्य रुप से हिंदी में ही इंटरनेट पर रहना चाहेंगे।

गूगल का ये मानना है कि इन भाषाओं में कंटेट की जबर्दस्त मांग आने वाली है। गूगल ने अपनी तरफ से इसके लिये काफी तैयारी कर रखी है। गूगल ऐडसेंस को पहले ही हिंदी के लिये खोल दिया गया है, और गूगल ने अनुवादक और टाइपिंग टूल दिये हैं।

अब गूगल ने अपने सर्च इंजन में भी हिंदी, हिंगलिश, अंग्रेजी हिंदी मिश्रित भाषा, अंग्रेजी में लिखी गई हिंदी को समझ कर उससे हिंदी को जानने वाले कलन विधि (अलगोरिदम) का विकास कर लिया है। लेकिन गूगल के अनुसार हिंदी में इटरनेट पर अभी कथन (कंटेंट) कम है और ये काम तो केवल हिंदी वाले ही कर सकते हैं।

गूगल की इस बात को पहले से स्थापित अंग्रेजी के कई बड़े और नामी विषय आधारित वाले ब्लॉगरों ने समझ लिया है और वो अपनी विषय सामग्री को ब्लॉग के हिंदी संस्करणों को भी शुरु कर रहे हैं या करने वाले हैं।

ऐसे में जब तक हिंदी ब्लॉगर इंटरनेट पर हिंदी में कथन का विकास नहीं करते तब तक हिंदी ब्लॉगरों की कमाई बढ़ने वाली नहीं है और हिंदी ब्लॉगरों के लिये डॉट कॉम लाइफ स्टाइल तब तक संभव नहीं है।

पर आने वाले समय में तय है। इसलिये हम सब हिंदी ब्लॉगरों को इंटरनेट पर खूब लिखना चाहिये और हिंदी के प्रसार प्रचार में योगदान देना चाहिये।

Manisha सोमवार, 13 जून 2016

तेंदुए के साथ रहना सीखना होगा


पिछले कुछ समय से भारत के तमाम शहरों, कस्बों और गांवो से तेंदुए के घरों में या लोगों की बस्तियों में घुस आने की खबरें आती रहती हैं। कुछ समय पहले बैंगलुरु के एक स्कूल में  तेंदुए के घुसने की खबर सुर्खी बनी थी। इससे पहले आगरा, मुम्बई, लखनऊ, देहरादून इत्यादि तमाम शहरों से  तेंदुए के लोगों के घरों और बस्तियों में घुस आने के समाचार रह रह कर आते रहते हैं। 

दरअसल रिहायशी इलाके लगातार बढ़ रहे हैं साथ ही साथ आधुनिक विकास ले लिये भी तमाम जमीन घेर ली जा रही है और जंगल क्षेत्र लगातार घट रहे हैं। इस वजह से छोटे जंगली जानवर भी कम होते जा रहे हैं और इन पर निर्भर बड़े जंगली जानवरों को अपनी भूख मिटाने के लिये बचे खुचे छोटे जंगली जानवर कम पड़ रहे हैं।

वनस्पतियों के कम होने से अन्य जानवर भी मानव बस्तियों में धावा बोलने लगे हैं। बंदर इसका एक उदाहरण है जो कि खाने की तलाश में मानव बस्तियों पर निर्भर हो गये हैं और तमाम शहर और कस्बे इन बंदरों से परेशान हैं।


बैंगलुरू के स्कूल में तेंदुआ


तो  तेंदुए भी खाने की तलाश में और सुरक्षित पनाहघर ढूंढने के लिये मानव बस्तियों की और आ रहे हैं और रोजाना हमको ये  तेंदुए के घरों में घुसने का समाचार मिलता है।

तेंदुए के साथ साथ रहना सीखना होगा (Living with Leopards -  लिविंग विद लियोपार्डस) 


तो समस्या ये है कि अब क्या किया जाये?  एक तो ये कर सकते हैं कि जैसे चल रहा है वैसे ही चलने दें और कोशिश की जाये कि तेंदुए मानव बस्तियों में ना आ पायें, दूसरा ये हो सकता है कि हम उनकी स्थिति को समझें और तेंदुओं के साथ सामन्जस्य बैठाया जाये। 

लोगों को तेंदुओं के खतरे को कम करने की व्यावहारिक सलाह दी जानी चाहिये । यह व्यावहारिक सलाह  उन सभी लोगों के लिये मुफीद रहेगी जो कि ऐसे इलाकों में रहते हैं जो तेंदुआ बहुल हैं और जहां से तेंदुओं के लोगों के घरों में घुसने के समाचार आते रहते हैं।  यहां लोगों के घरों में आए दिन तेंदुओं के घुसने के मामले सामने आते रहते हैं।

तेंदुओं के साथ रहते हुए खतरे को कम करने के व्यावहारिक उपाय

  • यह समझें कि तेंदुए इस इलाके स्वाभाविक निवासी हैं, और सिर्फ इनका दिखना खतरा नहीं है
  • तेंदुए हमारी बनाई हुई बाड़, वन क्षेत्र और कॉलोनियों को नहीं समझते।
  • यह सुनिश्चित करें कि अंधेरा होने के बाद बच्चे बड़ों की निगरानी में रहें। 
  • अंधेरा होने के बाद अकेले न निकलें। अगर जरूरी हो मोबाइल हो तो इस पर संगीत बजाएं। तेंदुओं को यह लगना चाहिए कि आसपास लोग हैं। तेंदुएं लोगों को संपर्क में आने से बचते हैं।
  • अगर कोई तेंदुआ दिख जाता है तो उसे चुपचाप वहां से जाने दें।
  • अगर कोई तेंदुआ दिख जाए तो उसके चारों ओर भीड़ न लगाएं। भीड़ लगने से वह डर जाएगा और भागने के क्रम में किसी को नुकसान पहुंचा सकता है।
  • कूड़ा निपटान की सही व्यवस्था सुनिश्चित करें और कुत्तों को घर के अंदर रखें।
  • तेंदुओं से निपटने का एक मात्र अधिकार वन विभाग को है। किसी भी आपात स्थिति में कंट्रोल रूम को फोन करें।

Manisha शुक्रवार, 10 जून 2016