जिन्दगी की शायरी और शेर

जिन्दगी की शायरी और शेर


अक्सर जब हम किसी महफिल, समारोह या फिर किसी भी प्रकार के आयोजन में जाते हैं तो हम देखते हैं कि कुछ लोग बहुत ही जल्दी सबको अपनी बातों से प्रभावित कर के वहां पर अपना प्रभाव छोड़ जाते हैं। 

ऐसे लोग जिन्दगी की बातों के उपर कुछ ऐसे शेर शायरी वाक्य या सूक्ति का प्रयोग करते हैं जिससे लोग उनसे अत्यंत ही प्रभावित हो जाते हैं। 

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मैने भी कई ऐसे सामाजिक, राजनैतिक, तकनीकी या फिर पारिवारिक आयोजनों मे भाग लिया है जहां पर कोई वक्ता अपने संबोधन में कुछ ऐसी लच्छेदार बाते करते हैं कि लोग वाह वाह कर उठते हैं। 

कुछ लोग उर्दू भाषा की ऐसी शेरो शायरी का प्रयोग करते हैं जो कि जिन्दगी के कई पहलूओं को छू जाती है, कई लोग हिंदी और अंग्रेजी के कुछ प्रसिद्ध वाक्यों को बोलते हैं।


अक्सर मंच पर बोलने वाले लोग, टीवी पर किसी बहस में बोलने वाले लोग और संसद या राज्यों की विधान सभाओं में बोलने वाले राजनीतिज्ञ लोग  ऐसी ही जिन्दगी की शेरो-शायरी को बोलते हैं और अपनी बात के वजन को हजार गुना बढ़ा देते हैं।

संसद में तो कई बहस अपनी शेरो शायरी और जबाबी शेरो-शायरी के लिये प्रसिद्ध हैं जैसे कि मनमोहन सिंह और सुषमा स्वराज की बहस, हाल के दिनों मे मोदी जी भी संसद में अपनी बात में शेर शायरी के रखने लगे हैं।

जिन्दगी की शेरो शायरी के कुछ शेर तो अत्यंत ही प्रसिद्ध है बहुत ही ज्यादा प्रयोग होते हैं। मेरा आप लोगों के लिये अनुरोध रहेगा कि इस प्रकार के कम से कम 40-50 शेर तो आप याद कर ही लीजिये और हम महफिल में अपनी धाक जमाइये।



जिन्दगी की शायरी


दो पल की है जिन्दगी
उसको तू मुस्करा के जी


कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता
एक पत्थर तो जरा तबियत से उछालो यारो ।


यार जरा माहौल बना
हर पल में उठा सदियों का मजा
जो बीत गया सो बीत गया
जो बीतना है वो हंस के बिता
यार जरा माहौल बना
हर पल में पी बस एक दवा
जी खोल के जी, जी जान से जी
कुछ कम ही सही पर शान से जी



कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता,
कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता,
जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है,
जुबां मिली है मगर हमजुबां नहीं मिलता,
बुझा सका है कौन भला वक्त के शोले,
ये एसी आग है चिसमें धुवां नहीं निकलता
तेरे जहां में ऐसा नहीं के प्यार नहीं ना हो
जहां उम्मीद हो वहां नहीं मिलता
निदा फाजली



हजारों जवाबो से अच्छी है मेरी खामोशी,
न जाने कितने सवालों की आबरू रखी


मुल्क ने मांगी थी एक चिंगारी, फकत रोशनी के लिए 
निज़ाम ने हुक्म दिया, चलो आग लगा दी जाए


ना इधर-उधर की तू बात कर, 
ये बता कि काफिला क्यों लुटा, 
हमें रहज़नों से गिला नहीं, 
तेरी रहबरी का सवाल है


माना कि तेरे दीद के काबिल नहीं हूं मैं, 
तू मेरा शौक देख, मेरा इंतजार देख


खुदी को कर बुलंद इतना के हर तकदीर से पहले
खुदा बंदे से खुद पूछा तेरी रजा क्या है?


उम्र-ए-दराज़ मांग के लाई थी चार दिन
दो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में


कितना है बद-नसीब 'ज़फ़र' दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में


तम मुझको न चाहो, तो कोई बात नहीं
तुम किसी और को चाहो तो मुश्किल होगी 


कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, 
यूं ही कोई बेवफा नहीं होता


तुम्हें वफा याद नहीं हमें जफा याद नहीं, 
जिंदगी और मौत के दो ही तराने हैं 
एक तुम्हें याद नहीं, एक हमें याद नहीं


हमको है उनसे वफा की उम्मीद
जो नहीं जानते वफा क्या है 


चमन को सींचने में कुछ पत्तियां झड़ गई होंगी,
यहीं इल्जाम लग रहा है हम पर वेवफाई का,
चमन को रौंद डाला जिन्होंने अपने पैरों से,
वही दावा कर रहे हैं इस चमन की रहनुमाई का। 


फ़ानूस बन के जिस की हिफ़ाज़त हवा करे 
वो शमा क्या बुझे जिसे रौशन ख़ुदा करे।


ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर 
या वो जगह बता दे जहाँ पर ख़ुदा न हो 


और भी ग़म हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा


दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग़ से 
इस घर को आग लग गई घर के चराग़ से 


ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त
वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में


ज़िंदगी रोक के अक्सर यही कहती है मुझे
तुझ को जाना था किधर और किधर आ गया है


बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहाँ दरिया समुंदर से मिला दरिया नहीं रहता


वक़्त दो मुझ पर कठिन गुज़रे हैं सारी उम्र में
इक तेरे आने से पहले इक तेरे जाने के बाद


हो जाए जहाँ शाम वहीं उन का बसेरा
आवारा परिंदों के ठिकाने नहीं होते


तुम को आता है प्यार पर ग़ुस्सा 
मुझ को ग़ुस्से पे प्यार आता है 


इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा 
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं 


कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता 
कहीं ज़मीन, कहीं आसमाँ नहीं मिलता


बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था
हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा


कश्ती चलाने वालों ने जब हार कर दी पतवार हमें
लहर लहर तूफान मिले और मौज-मौज मझधार हमें,
फिर भी दिखाया है हमने और फिर ये दिखा देंगे, सबको, 
इन हालात में आता है दरिया पार करना हमें 


हजारों ख्वाहिशें ऐसी, कि हर ख्वाहिश पे दम निकले 


नजर को बदलो तो नजरें बदल जाती हैं
सोच को बदलो तो सितारे बदल जाते हैं,
कश्तियां बदलने कि जरूरत नहीं, 
दिशा को बदलो तो किनारे खुद-ब-खुद बदल जाते हैं


बझ जाते हैं दिये, कभी तेल की कमी से भी
हर बार कुसूर हवा के झोंके का नहीं होता


चमन में इख्तिलात-ए-रंगोबू से बात बनती है
हम ही हम हैं तो क्या हम हैं, तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो


इस मोड़ पर घबरा के थम न जाइये आप
जो बात नयी है उसे अपनाइए आप
डरते हैं नयी राह पे क्यों चलने से
हम आगे-आगे चलते हैं आजाइए आप


यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोम सब मिट गए जहां से
 अब तक मगर है बाकी, नाम-ओ-निशां हमारा 


कुछ ऐसे भी मंजर हैं तारीख की नजरों में, 
लम्हों ने खता की थी, सदियों ने सजा पाई


हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
 वो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता


तकाजा है वक्त का कि तूफान से जूझो, 
कहां तक चलोगे किनारे किनारे 


ता उम्र ये भूल मैं करता रहा
धूल चेहरे पर थी और आइना साफ़ करता रहा


मुक्तसर सी जिंदगी के अजब से अफसाने हैं,
यहां तीर भी चलाने हैं और परिन्दे भी बचाने हैं


तुम तहज़ीब को भी इखलास समझते हो
दोस्त होता नहीं हर शख्स, हाथ मिलाने वाला



गुलाचीं ने तो कोशिश कर डाली, सूनी हो चमन की हर डाली
कांटों ने मुबारक काम किया, फूलों की हिफ़ाजत कर बैठे



रंज कि जब गुफ्तगू होने लगी
आप से तुम, तुम से तू होने लगी



मैं अकेला ही चला था जानिबे-मंजिल, मगर
लोग साथ आते गये, कारवां बनता गया



मौत का भी इलाज हो शायद
जिन्दगी का कोई इलाज नहीं
ज़माना बढ़े शौक से सुन रहा था
हमीं सो गये, दास्तां कहते कहते



लहरों की जिन्दगी पर कुर्बान हजार जाने,
हमको नहीं गवारा साहिल की मौत मरना




यकीन जानिये इस तरह के जिन्दगी के शेर और शायरी को यदि हम याद कर लें और अपनी रोजाना की बाेलचाल में इस्तेमाल करना शुरू कर दें तो आप देखेंगे कि लोग आप से प्रभावित होने लगे हैं और आप की लोकप्रियता बढ़ने लगी है।

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