अब तो ये भी मान गये कि पाकिस्तानी हमारे जैसे नहीं

अब तो ये भी मान गये कि पाकिस्तानी हमारे जैसे नहीं


कल के दिल्ली से प्रकाशित हिन्दुस्तान टाइम्स (Hindustan Times Delhi 08/02/2009) में वीर सांघवी द्वारा लिखा गया लेख देखिये। जो बात भारत का आम नागरिक शुरु से कह रहा है उसको अब ये बड़े-बड़े लोग भी मान रहे हैं कि पाकिस्तान के लोग हमारे जैसे नहीं हैं। 

पाकिस्तान के लोग वास्तव में भारत विरोधी, हिन्दी विरोधी, जेहादी मानसिकता वाले, झूठे और इस्लामी जगत में सिरमौर बनने की इच्छा रखने वाले हैं। 

दरअसल भारत में कुछ अति उदारवादी और शांतिवादियो का प्रिय शौक है भारत के लोगों को बार-बार ये बताना कि पाकिस्तान के लोग हमारे जैसे ही हैं, वो हमारी जैसी बोली बोलते है, वो हमारे जैसे दिखते हैं, वो हमारे भाई हैं इत्यादि इत्यादि। 

आजादी से पहले तो पाकिस्तान भारत का ही हिस्सा था तो वो हमारे जैसे तो दिखेंगे ही, हमारी बोली बोलने वाले होंगे ही, लेकिन ये अलग हैं दिमागों में भरी अपनी अलगाव की भावना से। अगर ये हमारे जैसे ही थे, हमारे ही भाई थे तो पाकिस्तान अलग बनवाया ही क्यों था?  


आप टीवी पर किसी भी पाकिस्तानी को सुनिये, मानने को भी तैयार नहीं है कि वहां कोई गलत बात हो रही है। इमरान खान जैसा व्यक्ति जो इंग्लैंड में पढ़ा है इतने साल वहां रहा है पढ़ा-लिखा है वो भी आजकल जेहादी आतंकवादियो का समर्थन करता नजर आता है। 

लड़कियों के स्कूल बम से उड़ा दिये गये जायें, लड़कियां पढ़ न पायें, शरीयत के अनुसार शासन चले, इमरान खान को इसमें कोई परेशानी  नहीं है। इसी से समझा जा सकता है कि पाकिस्तान का समाज किस कदर जेहाद में अंधा हो चुका है। 

अब वक्त आ गया है हम सब समझे कि पाकिस्तानी हमारे जैसे नहीं हैं। इनकी सोच हमसे बिलकुल अलग है। उदारवादियों और शांतिवादियों को अब इनको अपने जैसा होने का प्रचार बन्द कर देना चाहिये। 

मुंबई में 26/11 की आतंकी घटना के बाद से अब इन उदारवादियों और शांतिवादियों की खोखली बातों को कोई मानने को तैयार नहीं है और इसी का प्रमाण है वीर सांघवी का ये लेख।

विज्ञापन

कोई टिप्पणी नहीं