चुनाव मतगणना के बाद की बहानेबाजियां

चुनाव मतगणना के बाद की बहानेबाजी


हर लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बाद मतगणना होनी है और जाहिर सी बात है कि कोई न कोई राजनैतिक पार्टी जीतेगी और किसी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ेगा। चुनावों के नतीजों के बाद उनका राजनीतिज्ञ, राजनैतिक पार्टियां, विश्लेषक व जनता अपने अपने हिसाब से व्याख्या करेंगे। 

ऐसे में मतगणना के बाद प्राप्त परिणामों पर जब पक्के राजनीतिबाजों से जब इनकी व्याख्या करने को कहा जाता है कई तरह की बातें ये लोग कहते हैं। देखिये कैसी-कैसी बाते करते हैं :
चुनाव मतगणना Vote Counting


अगर किसी की पार्टी जीत गई तो वो इसका सारा श्रेय नेता अपनी पार्टी के नेता को देकर अपनी स्थिति मजबूत करेगा। मसलन हर कांग्रेसी सोनिया गांधी और राहुल गांधी को श्रेय देगा और भाजपाई आडवाणी/बाजपेयी (अब मोदी) को। (मनमोहन सिंह को जीतने पर कोई  श्रेय नहीं देगा)

अगर पार्टी हार गई तो कहेंगे कि हम ने काम तो बहुत अच्छा किया पर हम जनता तक अपनी बात पहुंचा नहीं पाये। (गलती किसकी है)


अगर खुद और खुद की पार्टी हार गई लेकिन मिलती जुलती विचारधारा की पार्टी जीत गई तो कहेंगे कि हम हार कोई बात नहीं हमारे विचारों की जीत हूई है और जनता ने हमारी बात को रखा है। (समान विचारधारा की पार्टी में मिल क्यों नहीं जाते?)

अगर भाजपा भारी बहुमत से जीत गई तो कहा जायेगा कि सांप्रदायिकता की जीत है और जनता जब समझेगी तो इन को वापस हरा देगी। (जनता समझती क्यों नहीं?)

जब हारने वाली पार्टी के नेता से हारने  का स्पष्ट कारण बताने को कहा जायेगा तो वो यह कह कर कन्नी काट लेगा की अभी कुछ कहना तो जल्दीबाजी होगी और पार्टी मिल जुल कर बाद में स्थिति का विश्लेषण करेगी। (और क्या, पार्टी के बड़े नेता की बुराई करके अपनी शामत बुलानी है?)

अगर सामने वाली पार्टी भारी बहुमत से जीत गई तो भी कहा जायेगा कि जीत तो हमारी ही हुई है आप हारी हुई पार्टियों के वोट प्रतिशत को मिला लीजिये वो जीती हुई पार्टी से ज्यादा हैं। (इस तरह से देखा जाये तो भारत में आज तक कोई पार्टी कभी जीती ही नहीं और हारी हुई पार्टियां सरकार बना रही हैं)


इस से अलग-अलग प्रकार के कई प्रकार के बहाने कल आपको दिन भर समाचार चैनलों पर सुनने को मिलेंगे और इसका आनन्द दिन भर मिलेगा।

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