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Results for " लोकसभा "

चुनाव मतगणना के बाद की बहानेबाजी


हर लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बाद मतगणना होनी है और जाहिर सी बात है कि कोई न कोई राजनैतिक पार्टी जीतेगी और किसी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ेगा। चुनावों के नतीजों के बाद उनका राजनीतिज्ञ, राजनैतिक पार्टियां, विश्लेषक व जनता अपने अपने हिसाब से व्याख्या करेंगे। 

ऐसे में मतगणना के बाद प्राप्त परिणामों पर जब पक्के राजनीतिबाजों से जब इनकी व्याख्या करने को कहा जाता है कई तरह की बातें ये लोग कहते हैं। देखिये कैसी-कैसी बाते करते हैं :

Manisha शुक्रवार, 15 मार्च 2019

आखिर किस को वोट दें? किसी पार्टी में कोई गुण है और किसी में कोई ओर गुण। अरविन्द केजरी में सरलता और
आखिर किस को वोट दें? Whom to Vote
ईमानदारी है, मुलायम सिंह यादव में हिंदी प्रियता है, मायावती में कड़क प्रशासन है, कांग्रेस में ऐसी कश्मीर नीति है जिसमें किसी से बात न करना ही ठीक है, मोदी में अच्छी गवर्नेंस है तो ममता में नीचे तक के लोगों से संपर्क।  

क्या ये सारे गुण मिलाकर कोई नहीे हो सकता जिसको हम अपना वोट द सकें?

Manisha मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

15वीं लोकसभा चुनाव परिणाम – कुछ आंकलन


15वीं लोकसभा चुनावों के परिणाम कल आ चुके हैं और संप्रग को वापस से सरकार बनाने के लिये मतदाताओं द्वारा चुना गया है। आने वाले कई दिनों में राजनीतिक विश्लेषक और राजनीतिज्ञ अपने – अपने विश्लेषण और निष्कर्ष निकालते रहेंगे और ऐसे समय में आम आदमी भी अपने हिसाब से कुछ सोचता है। 

मेरा भी इन लोकसभा चुनावों के परिणामों को लेकर कुछ आंकलन  है। 


vote counting
  
 
  1. मंहगाई जनता कितनी ही परेशान क्यों न हो, किसी भी चुनाव में मंहगाई को मुद्दा नहीं होती है।
  2. आतंकवाद भी इस देश में कोई मुद्दा नहीं है।
  3. मंदिर-मस्जिद, हिदु-मुस्लिम, मेरी जाति-तेरी जाति और आरक्षण की राजनीति के दिन पूरे हो गये हैं अब लोगों को विकास चाहिये, इसलिये इस बार वो दल अपने-अपने यहां जीत गये जो विकास के नाम की राजनीति कर रहे हैं। अब जनता को विकास चाहिये, जो विकास करेगा वो दुबारा जीतेगा। विकास को भूलकर खाली जातिवादी राजनीति और आरक्षण के झुनझुने पकड़ाने वाले नेता हार गये या फिर हाशिये पर आ गये हैं। 
  4. इंटरनेट द्वारा या बहुत हाई-फाई चुनाव प्रचार किसी काम का नहीं है। जनता चाहती है कि नेता परंपरागत रुप से उनसे रुबरु होकर वोट मांगे। इंटरनेट भ्रमण करने वाले और एसएमएस पाने वाले लोग वोट डालने नहीं निकलते हैं खासकर गर्मियों में, अगर चुनाव सर्दियों में हो तो फिर भी निकल सकते हैं।
  5. भाजपा जिसे पहले शहरी पड़े-लिखे मध्यम वर्ग की पार्टी कहा जाता था, शहरों में ही सबसे ज्यादी हारी है। इसका मतलब है कि भाजपा की नीतियां मध्यम वर्ग को समझ नहीं आ रही हैं। 
  6. भाजपा जीतने के लिये किसी भी प्रकार के समझौते को तैयार थी, इसका उदाहरण महा भ्रष्ट नीरा यादव को केवल कुछ वोटों के लालच में अपने दल में शामिल करने का है। 
  7. भाजपा में काफी लोग अपनी ही पार्टी को हराने के लिये काम करते है।
  8. पुराने एक ब्लॉग पोस्ट में मैंने कहा था कि भारत में सफल नेता बनने  लिये भारत को जानना जरुरी है और इसके लिये सघन भारत भ्रमण जरुरी है। इससे जमीनी स्तर की जानकारी मिलती है राहुल गांधी पिछले कुछ समय से ऐसा ही कर रहे हैं और उनका इसका फायदा मिल रहा। इसके विपरीत भाजपा के अधिकांश नेता और कुछ कांग्रेसी भी टीवी चैनलों की बहस में भाग लेकर अपनी नेतागिरी चमकाते हैं और असली चुनाव में नाकाम रहते हैं।
  9. अब विकास की राजनीति के दिन हैं खाली विचारधारा की बात करके या उर्दू लागू करके, बाबरी मस्जिद की बात छेड़के आप वोट नही पा सकते।
  10. भाजपा को अपने आप को नैतिक रुप से और विचारधारा से सबल बनाना चाहिये सफलता अपने आप मिल जायेगी। अगर भाजपा और पार्टियों जैसा ही आचरण करेगी तो लोग असली पार्टी को ही वोट देगें न कि भाजपा को। 
  11. कांग्रेस ने नये लोगों को काफी मौका दिया और इसका फायदा उसे मिला है।
  12. कांग्रेस को मीडिया का काफी सहारा मिला। मीडिया द्वारा भाजपा की बातों को उछालना और छोटे दलों की ब्लैकमेलिंग के खिलाफ महौल बनाना कांगेस को फायदा दे गया।
  13. भाजपा को मीडिया को मैनेज करना नहीं आता, अधिकांश भाजपाई अंग्रेजी समाचार चैनलों पर अंग्रेजी में बात करते हैं और जो चैनल भाजपा और हिन्दुवादियों का मजाक बनाते हैं उन्हीं पर भाजपाई ज्यादा मेहरबान रहते हैं और अपना नुकसान कराते हैं।

Manisha रविवार, 17 मई 2009

चुनाव आयोग ने पप्पू बनाया 

कल जब मैं और मेरे पति मतदान के लिये निर्धारित स्थान पर पहुंचे तो पता चला कि हमारा नाम वोटर लिस्ट से गायब है। हमारे पास वोटर आईडी कार्ड था, पहले भी वोट डाला हुआ है, लेकिन इस बार पता नहीं कैसे सोसाईटी के अधिकांश लोगों का नाम गायब था। 


Voter Id Card


यानी कि चुनाव आयोग ने ही पप्पू बना दिया। ऐसी प्रशासनिक भूलों के खिलाफ आम आदमी कुछ नहीं कर सकता है। क्या ऐसी व्यवस्था नहीं हो सकती कि मौके पर ही प्रमाण देख कर वोटर लिस्ट में नाम जोड़े जा सकें और नाम काटने वाले अधिकारी के खिलाप कार्यवाई की जा सके। 

चुनाव आयोग जनता और नेताओं पर तो तमाम तरह की बंदिशें और संहिताये लागू करता है, लेकिन ऐसी घटनायें जो हर चुनाव में होती हैं कि नाम गायब हो गये उसमें कुछ भी शायद नहीं करता है।

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Manisha शुक्रवार, 8 मई 2009

मंहगाई और आतंकवाद चुनाव में मुद्दा नहीं


अभी तक लोकसभा चनावों के लिये चल रहे चुनाव-प्रचार को देखकर तो ऐसा लगता है जैसे कि मंहगाई और आतकंवाद कोई मुद्दा ही नहीं है। कोई भी राजनीतिक दल इन के बारे में बात नहीं कर रहा है। 

रोजगार, मंहगाई, शिक्षा, विकास, आर्थिक संकट जैसे मुद्दों से मुंह चुराकर राजनीतिक दल पता नहीं कहां से कंधार कांड और बाबरी मस्जिद जैसे पुराने बासी मुद्दे उठा लाये हैं और देश की जनता के उपर जबर्दस्ती इनको मुद्दा बनाकर थोप रहे हैं। 

देश की जनता इस कुछ नया पाना चाहती है लेकिन लगता है की देश के नेताओं के पास कोई नयी बात है नहीं कहने को इसलिये दस-बीस साल पुरानी बातों के आधार पर चुनाव प्रचार कर रहे हैं। मीडिया भी ऐसी बातें नहीं उठा रहा है।

Manisha रविवार, 19 अप्रैल 2009

भाजपा और कांग्रेस मिल कर खेल रहे हैं


पिछले हफ्ते जब से तीसरे मोर्चे के गठन और उसके 15 वीं लोकसभा के चुनावों में भाजपा और कांग्रेस को चुनौती देने की बात समाचारों में प्रमुखता से प्रसारित हुई थी और बिहार तथा उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह, लालू प्रसाद यादव एवं रामविलास पासवान द्वारा हाथ मिलाने की बात आई तब से अचानक से ही पीलीभीत में वरूण गांधी द्वारा कथित सांप्रदायिक भाषण की सीडी सामने आ गई है और विभिन्न टीवी समाचार पत्रों में इसको व्यापक रुप से दिखाया जा रहा है और पिछले एक हफ्ते से लगातार इसी से संबंधित समाचार दिखाये जा रहे हैं। 

ये सीडी किसने रिकार्ड की थी और कहां से समाचार चैनलों का दी गई इसके बारे में कोई बात अभी तक पता नहीं चली है। मेरा मानना है कि इन सब के पीछे भाजपा और कांग्रेस का मिला जुला हाथ है। दोनो मिलकर इस बात को बढ़ा रहे हैं। इस में इनका साथ कुछ चैनल दे रहे हैं। 


जब से वरूण गांधी के भाषण की सीडी जारी हुई है तब से हर दूसरे दिन भाजपा और कांग्रेस का कोई न कोई नेता इस संबंध में कोई न कोई वक्तव्य देकर इस मुद्दे को जिलाये हुये हैं। इस समाचार के प्रसारित होने के बाद से ही तासरे मोर्चे से संबंधित समाचार गायब हैं और चुनावों में जो रोजगार, शिक्षा, सुरक्षा, अच्छा प्रशासन इत्यादि मुद्दे उठते उससे अब जनता का ध्यान हटाकर सांप्रदायिकता पर केंद्रित कर दिया गया है। 

जनता इन दोनों दलों के जाल में फंसकर आपस में सर फोड़ेगी और हिन्दू औ मुस्लिम के सवाल पर वोट डालेगी, ऐसी साजिश रची जा रही है। जनता को सावधान रहना होगा और इस वेवजह के मुददे से बच कर मुलभूत बातों पर आधारित मतदान करना होगा।

Manisha शनिवार, 28 मार्च 2009

गणित का प्रश्न : राजनीति में कौन किसके साथ है?


आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर राजनीतिक दांव-पेंच, उठा पटक और आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है। आम मतदाता के लिये भ्रम की स्थित बन रही है। आइये देखिये कि क्या स्थिति है : 

Indian Parliament भारतीय संसद

  •  समाजवादी पार्टी की कहना है कि भाजपा और बसपा मिले हुये हैं।
  • बसपा का कहना है कि कांग्रेस, सपा और भाजपा मिले हुये हैं।
  • भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस के इशारे पर बसपा वरुण गांधी पर रासुका लगा रही है।
  • मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस से बिना समझौते के अलग चुनाव लड़ रही है लेकिन संयुक्त प्रगतिशील मोर्चे (संप्रग - UPA)  को उसका समर्थन है और उसका कहना है कि देश में धर्मनिरपेक्षी सरकार बिना कांग्रेस के नही बन सकती। 
  • लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान के दल बिहार में कांग्रेस को हटाकर अलग से चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन संप्रग  के घटक दल हैं।
  • लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान के दल संप्रग  के घटक दल  हैं लेकिन मुलायम सिंह यादव के साथ मिलकर एक नया चौथा मोर्चा भी बना लिया है
  • अन्नाद्रमुक की जयललिता कांग्रेस के साथ जाना चाहती हैं और भाजपा को खुश करने के लिये कुछ कुछ हिन्दुत्व समर्थक बयान भी जारी कर देती हैं।
  • शरद पवार का दल संप्रग  का घटक दल है लेकिन वो खुद भी प्रधानमंत्री बनना चाहते है
  • वामपंथी दल अब संप्रग  के घटक दल नहीं हैं, अलग से चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन चुनावों के बाद परिस्थितियों को देखते हुये सरकार में शामिल हो सकते हैं।
  • मायावती की पार्टी तीसरे मोर्चे के साथ भी है और देश भर में अकेले चुनाव भी लड़ रही है।


मेरी तो समझ में नही आ रहा कि कौन किसके साथ है?  कोई बता सकता है कि कौन सी पार्टी किस से मिली हुई है और किसके विरोध में है। यह एक गणित का प्रश्न का बन गया है कि राजनीति में कौन किसके साथ है।

Manisha रविवार, 4 जनवरी 2009

लोकसभा टीवी - एक स्तरीय समाचार चैनल


हाल के दिनों में लोकसभा टीवी को देखने का मौका मिला। हमारे केबल टीवी पर लोकसभा टीवी नहीं आता था। केवल टीवी के खराब प्रसारण से परेशान होकर हमने अब टाटा स्काई लगवा लिया है। 

केबल के मुकाबले इसमें पिक्चर और आवाज दोनों ही केबल के मुकाबले बहुत अच्छे हैं। 
Loksabha TV टाटा स्काई पर लोकसभा टीवी आता है। इसको घर में कोई नहीं देखता था। 

चैनल सर्फिंग में इसे छोड़कर सब आगे बढ़ जाते थे। सब यही सोचते थे कि ये एक और सरकारी चैनल है जो कि लोकसभा कि कार्यवाही को दिखाने के लिये शुरु किया गया है। ये भी दूरदर्शन का तरह ही होगा। 

एक दिन समाचार पत्र में लोकसभा टीवी पर पेस्टनजी फिल्म के आने का विज्ञापन देखकर पता चला कि इस चैनल पर हिंदी फिल्में भी आती हैं। 

मुझे और मेरे पतिदेव दोनों को ही आर्ट फिल्में कुछ ज्यादा ही पसंद आती हैं। 

तो जाहिर है कि हमने पेस्टनजी पिक्चर का आनन्द लिया। 

अब चैनल सर्फिंग के दौरान लोकसभा टीवी पर कुछ देर रुका जाने लगा। अगले ही हफ्ते लोकसभा टीवी लोकसभा टीवी पर धारावी फिल्म को दिखाया गया। 

ये फिल्म भी शौक से देखी गयी और अच्छी भी बहुत लगी। लोकसभा टीवी पर इन फिल्मों को शनिवार की रात 9.30 बजे और दुबारा रविवार को दिन में 2.00 बजे से दिखाया जाता है।



इन फिल्मों को देखने के दौरान और बाद में लोकसभा टीवी पर हमने कई और प्रोग्राम देखे। देखने के बाद पता चला कि लोकसभा टीवी दूरदर्शन की छाया से मुक्त है। 

इस पर न तो प्राइवेट चैनलों की तरह टीआरपी की आपाधापी में दिखाये जाने वाले सांप-सांपिन, नाच और अपराध के समाचार हैं और न हीं दूरदर्शन के जैसे थकाउ प्रोग्राम। इस पर न केवल स्तरीय प्रोग्राम हैं बल्कि सामयिक विषयों पर कई अच्छे प्रोग्राम हैं। 

हालांकि बड़ो को ये प्रोग्राम देखने चाहिये, लेकिन बच्चों के लिये तो लोकसभा टीवी बहुत ही उत्तम है क्योंकि इसके कार्यक्रमों का स्तर न केवल अच्छा है बल्कि साफ सुथरा भी है और ज्ञानवर्धक तो हैं हीं। 

प्रतियोगी परीक्षा के दावेदारों के लिये सामान्य ज्ञान बढ़ाने के लिये लोकसभा टीवी सही माध्यम है। हमारे घर में सबको लोकसभा टीवी हिंदी के बाकी समाचार चैनलों के मुकाबले ज्यादा अच्छा लगता है 

और इसको अब नियमित रुप से देखा जा रहा है। एक जमाना था जम हम लोग सरकारी समाचार चैनल दूरदर्शन से परेशान होकर निजी समाचार चैनलों पर गये थे और अब उन से परेशान होकर वापस सरकार के ही चैनल को अच्छा पा कर उसे देख रहे हैं।

लोकसभा टीवी के कार्यक्रम वेबकास्ट के जरिये भी यहां देखे जा सकते हैं। कार्यक्रमों की समय-सारणी यहां उपलब्ध है।

Manisha शुक्रवार, 21 सितंबर 2007