कहां गई ग्लोबल वार्मिंग?
दिल्ली और उसके आसपास जबर्दस्त ठंड पड़ रही है। सर्दी में न कुछ काम करने का मन करता है और न ही सामान्य जीवन जिया जा रहा है।
बच्चों के स्कुल बंद कर दिये गये हैं। गलन वाली ठंडी हवा चल रही है। उत्तर भारत के हर पहाड़ी स्थान पर इस बार बर्फबारी हुई है।
इसके साथ-साथ दुनिया के अधिकांश हिस्सों में भी जबर्दस्त ठंड पड़ रही है। कई जगह तो कई वर्षों के रिकार्ड टूट गये हैं।
चीन, कोरिया, रुस, जर्मनी, इंग्लैंड, अमेरिका, कनाडा हर जगह बर्फ गिर रही है।
भारत में भी पिछले 2-3 सालों में तो कोई खास ठंड नही पड़ी थी, लेकिन इस बार वापस अपने वास्तविक रुप में आ गई है।
ऐसे में मैं सोच रही हूं कि धरती पर लोग जो ग्लोबल वार्मिंग को लेकर हल्ला कर रहे थे और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाकर अपनी अपनी बात मनवा रहे थे उनको कहीं प्रकृति यानी भगवान ने तो जबाव नहीं दिया कि चिन्ता न करो प्रकृति अपने आप तुम्हारा ध्यान रखेगी।
कोई बतायेगा कि कहां गई ग्लोबल वार्मिंग और उसका असर?
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सम और विषम जलवायु में यही अंतर होता है .. अधिक गर्मी तो अधिक ठंढ भी पडती है .. ठंड पडने का समयांतराल बहुत घट गया है .. वर्षभर में मात्र एक महीने ठंढ पडेगी तो वो अधिक क्यूं नहीं हो सकती ??
जवाब देंहटाएंthere is equal balance of global warming and global cooling on earth, don't worry be happy. believe in God......
जवाब देंहटाएंपिछले तीस सालों में औसत तापमान काफी बढ़ा है, वर्षा कम होने लगी है, जहाँ पहले हमारे मध्य प्रदेश में गर्मियों में नौतपा का तापमान भी पैंतीस डिग्री से अधिक नहीं जाता था आज पचास पार करने लगा है, ठण्ड भी वैसी नहीं पड़ती जैसी कभी पड़ा करती थी. ठण्ड आजकल किसी साल बहुत कम तो कभी आधे एक महीने के लिए बहुत ज्यादा हो जाती है, वर्ना पहले दशहरा आते ही ठण्ड दस्तक दे देती थी, आज दिसंबर में भी पंखे चलते हैं. केवल २० दिसंबर से १३ जनवरी तक ठण्ड महसूस की जाती है, यानि एक महीने से भी कम.
जवाब देंहटाएंवैसे ग्लोबल वार्मिंग एक वैज्ञानिक घटना है जिसका मतलब है की धरती के वायुमंडल में कार्बनडाईओक्साइड की बढ़ोतरी होना, जिससे धरती का औसत तापमान बढ़ना, जिसके कारण उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव की बर्फ का पिघलना और सागर का जलस्तर बढ़ना. इस जलस्तर बढ़ने के कारण समुद्र के किनारे के अधिकतर छोटे देश और महानगर डूब जायेंगे. मुंबई, कोल्कता, ढाका, चटगाँव, गोवा, केरल, कराची, दुबई, मालदीव, अंदमान निकोबार, लक्षद्वीप, न्यूयोर्क, लोस एंजेल्स, सेशेल्स जैसे स्थानों को सबसे ज्यादा खतरा है.
manisha ji ,
जवाब देंहटाएंhumko to bahut sare halle sunai pad rahe hain , kuch salon me, kabhi bird flu, to kabhi swine flu, kabhi global worming, sorry global warming, kabhi asman me chched kya kahte hain ki ozone layer.
gharib admi ko to ye dhande karne ke aur apna maal khapane ke international tariqe zyada lagte hain.
naya shagufa nahi suna apne , akash se chattane a rahi hain prathvi se takrane , aur sari srashtri nashta hone wali hai, ab ghabrahat me manisha ji ap kya karengi, is chattan se duniya ko bachane ke liye ap kahan jayengi.
Dear All,
जवाब देंहटाएंGlobal Warming is not just meaning "have Dryness(sirf Garmi)" but it is related also with CO2 and Ozone Layer.
And Ozone layer is a big problem for today.
If there is very coldness then what you think CO2 not produced.
We should believe in God and nature, but at the same time effort should be made for protection of environment.
जवाब देंहटाएंmanisha ji
जवाब देंहटाएंI would like to tell you that i belong to Himachal Pradesh. If you want to see the real damages due to global warming then you have to head towards delicate places like Himachal. Here the rainfall in winters was minimum this year. Due to this there was very less snowfall in upper reaches of Himalayas. Moreover snowfall was witnessed late in January which results in rapid melting of snow due to upcoming warm months. This is very fatal for the state which is mostly dependent on rain & snowfall & also for the irrigation for punjab & haryana.
ग्लोबल वार्मिंग का मतलब ये नही कि हमे इसका असर मौसम मे साफ देखने को मिले. गर्मियो के मौसम मे जबर्दस्त गर्मी और सर्दियो मे जबर्दस्त सर्दी ग्लोबल वार्मिंग का ही एक लक्षण है. गायब होते ग्लेशियर, बर्फहीन होते पर्वत शिखर, पोल्स पर बर्फ की पिघलती चट्टाने इसके कुछ नतीजे है. पिछले क़रीब 180 सालो मे पृथ्वी का तापमान 1 डिग्री सेल्सि. बढ गया है. इसको कम करने मे भी वक़्त लगेगा. लेकिन इसको और बढने से रोका जाना बेहद जरुरी है एवम इसके लिये तुरंत कदम उठाये जाने चाहिये. आने वाले समय मे फैक्ट्रियो का उत्पादन और बढेगा तब हमे ऐसा रास्ता निकालना पडेगा कि हमारी जरूरते भी पूरी हो और कार्बन उत्सर्जन भी कम हो. हमारे वैज्ञानिक इसी कोशिश मे लगे है
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