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Communist Labour Demonstration Slogans

भारत में वर्ष 1925 में कम्यूनिस्ट पार्टी की स्थापना हुई थी। इसकी स्थापना के बाद से भारत में मजदूरों के बेहतर कामकाजी स्थिति के लिये बहुत सारे धरने-प्रदर्शन किये गये और संघर्ष किये गये। गरीब किसान और खेत मजदूरों को शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए उन्हें संगठित करने में बहुत से आंदोलन किये गये।

धरने-प्रदर्शन, हड़तालों, आन्दोलनों और जलुसों में बहुत से जोशीले नारे लगाये जाते रहे । हम ने बचपन से बड़े होने तक देश में तमाम तरह के ऐसे नारे सुने हैं जो कि कम्यूनिस्ट विचारधारा के लोग लगाया करते हैं। कुछ नारे तो ऐसे हैं कि अन्य पार्टियों के कार्यकर्ता भी लगा देते हैं।

जोशीले नारे गढ़ने में वाम दलों को महारत हासिल रही है। इनके नारों की आक्रामकता को दूसरे दलों ने भी स्वीकारा और उन्होंने भी इसी तर्ज को अपनाया। यूं तो ये नारे अंग्रेजी समेत भारत की तमाम भाषाओं में रहे हैं पर हम यहां पर हिंदी भाषा में लगाये जाने वाले नारों की ही बात करेंगे।

यहां पर हम ऐसे ही कुछ मजदुरी हड़ताल या फिर अन्य प्रकार के धरने-प्रदर्शनों में लगने वालो नारों के देखेंगे।

मजदूरों के संघर्ष में लगाये जाने वाले जोशीले सदाबहार नारे


  1. जनता जिन्दाबाद - आमतौर पर प्रयोग होने वाला नारा या कथन जिससे ये अहसास होता है कि जनता ही सर्वोच्च है। लोकतंत्र में तो वैसे भी जनता का फैसला ही माना जाता है। लेकिन इन नारों के द्वारा ये संदेश भी दिया जाता है कि जनता तो हमारे (आन्दोलन वालों के) साथ है।
  2. यह आजादी झूठी है, देश की जनता भूखी है - ये नारा कम्यूनिस्टों द्वारा भारत की आजादी के तुरंत बाद लगाया जाता था और आन्दोलन भी किया गया लेकिन इससे जनता इस पार्टी से दूर हो गई और इस नारे की वजह से नुकसान ही हुआ।
  3. इंकलाब जिंदाबाद - ये नारा समाजवादी, कम्यूनिस्ट विचारधारा का सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली नारा है। क्योंकि इस नारे को भगत सिहं इत्यादि क्रांतिकारियों ने भी प्रयोग किया था इसलिये जनता में भी ये बहुत मान्य है।
  4. हर जोर-जुल्म की टक्कर में, संघर्ष हमारा नारा है -  यह एक सबसे ज्यादा प्रचलित नारों में से एक है। लोग कहते हैं कि अगर यह नारा न होता तो दुनिया के आधे संघर्ष शुरू होते ही खतम हो जाते। इस नारे को लगाते समय लोग उनके हर काम को संघर्ष की तरह लेते हैं। विरोध प्रदर्शनों का ये एक आमतौर पर सुनाई देने वाला नारा है।
  5. दुनिया के मजदूरों एक हो - ये कम्यूनिस्टों का पूरी दुनिया में लगाया जाने वाला नारा है।
  6. मजदूर एकता, जिन्दाबाद - एक आम नारा जो हर प्रबंधन विरोधी प्रदर्शन में मजदूर लगाते हैं।
  7. चाहे जो मजबूरी हो, हमारी मांगे पूरी हों - हर प्रदर्शन में लगने वाला नारा जिमसें हर हाल में अपनी मांग पूरी करने पर जोर दिया जाता है।
  8. सिहासन खाली करो कि जनता आती है -  ये नारा एक राजनैतिक नारा है जिसमें सत्ता के सिंहासन पर बैठा व्यक्ति निरंकुश और अत्याचारी है और वामपंथियों के नेतृत्व में जनता अपना शासन चाहती है। वैसे जनता के नाम पर जहां भी एक बार वामपंथी या कम्यूनिस्ट विचारधारा के लोग अगर शासन में आ जाते हैं वहां पर जनता फिर किसी दूसरे शासन को नहीं देख पाती है, ये हमेशा के लिये सत्ता पर बैठ जाते हैं। ये रामधारी सिंह दिनकर की कविता की पंक्तियाँ हैं।
  9. तानाशाही नहीं चलेगी, नहीं चलेगी - मजदूरों और आम विरोध प्रदर्शनों का नारा
  10. आवाज दो हम एक हैं - आंदोलनकारियों में एकता बनाये रखने के लिये लगने वाला नारा
  11. हल्ला बोल, हल्ला बोल - विरोध प्रदर्शनों का ये एक आमतौर पर सुनाई देने वाला नारा है। 
  12. अभी तो अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है  - विरोध प्रदर्शनों का ये एक आमतौर पर सुनाई देने वाला नारा है। इस नारे के माध्यम से आंदोलनकारियों को अपना मनोबल बनाये रखने का आव्हान रहता है।


  13. XXXX मुर्दाबाद, मुर्दाबाद - किसी कपंनी के प्रबंधन या फिर किसी राजनैतिक पद वाले व्यक्ति के खिलाफ नारेबाजी
  14. जो हम से टकरायेगा, चूर चूर हो जायेगा - किसी कपंनी के प्रबंधन या फिर किसी राजनैतिक पद वाले व्यक्ति के खिलाफ नारेबाजी
  15. बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे - हाल के दिनों में वाम समर्थित प्रदर्शनों में पोस्टरों पर लिखा जाने वाला नारा
  16. हमें चाहिये आजादी -  ये भी हाल के दिनों में वाम समर्थित प्रदर्शनों में पोस्टरों पर लिखा जाने वाला बहुत ही विवादास्पद नारा है। विरोधी इसको विघटनकारी मानते हैं और समर्थक इसको अन्याय के खिलाफ नारा।

इसके अलावा भी कई अलग-अलग तरह के नारे हैं जो कि तमाम विरोध प्रदर्शनों में लगाये जाते हैं। यदि आपको भी कोई  ऐसा ही रोचक नारा याद आ रहा हो तो नीचे के टिप्पणी कक्ष (कमेंट बॉक्स) में बतायें।

Manisha रविवार, 4 अक्तूबर 2020

लोकतांत्रिक देश में धरने प्रदर्शनों के लिये कोई जगह नहीं


हम लोग कई बार जब दिल्ली में घूमने के लिये निकलते समय अगर कनॉट-प्लेस के पास स्थित जंतर मंतर पर पहुंच जाते हैं तब वहां पर देखते हैं कि वहां पर सड़क के दोनो ओर कई प्रकार के धरने और प्रदर्शन चल रहे होते हैं, जिन कई व्यक्ति और संगठन अपनी विभिन्न मांगो को लेकर धरने में शामिल रहते हैं। 

कई बार शाम को वहां पर लोग मोमबत्तियां जला कर भी अपना विरोध किसी बात पर व्यक्त कर रहे होते हैं। इन लोगों को की वजह से जंतर मंतर पर काफी गहमा गहमी रहती है और पुलिस की भी व्यवस्था रहती है। 


कई मीडिया कर्मी भी वहां इन धरने प्रदर्शनों को कवर करने के लिये आते रहते हैं। इस के अलावा कई बड़े लोग जैसे कि खिलाड़ी, फिल्मी कलाकार और राजनेता इन धरने प्रदर्शनों को अपना समर्थन देने आते रहते हैं। 

एक लोकतांत्रिक देश में ये सब होते ही रहना चाहिये क्योंकि इसी से पता चलता है कि लोग अपनी आस्था लोकतंत्र में बनाये रखते हैं और इस विश्वास में रहते हैं कि उनकी बात सुनी जायेगी।


Delhi Dharna Place Jantar Mantar


इसी के पास संसद मार्ग पर संसद मार्ग थाने के सामने संसद का घेराव और कई बड़े राजनैतिक प्रदर्शनों के लिये आये दिन कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं जिन कई बार बड़े-बड़े राजनेता भी पहुंचते हैं।

लेकिन इस सब में लोगो कई प्रकार की परेशानियां उठानी पड़ती हैं। संसद मार्ग और उसके आस पास बहुत सारे सरकारी, गैर सरकारी व मीडिया के कार्यालय हैं जिनमें काम करने वाले कर्मचारियों को इस तरह के आये दिन होने वाले धरने-प्रदर्शनों की वजह से रास्ता परिवर्तन व भीड़-भाड़ होने से काफी परेशानी उठानी पड़ती है। 

अक्सर इनकी वजह से जबर्दस्त जाम लग जाते हैं जिसकी वजह से लोग इन धरने प्रदर्शन वालों और नेताओं को कोसने लगते हैं। इसके अलावा जो लोग जंतर मंतर पर पर धरने के लिये आते हैं उनके लिये भी किसी भी प्रकार के कोई इंतजाम नहीं होते हैं।

इसलिये मेरा मानना है कि दिल्ली में और हो सके तो सभी राज्यों की राजधानियों में जहां कि अक्सर किसी न किसी बात को लेकर धरने प्रदर्शन होते रहते हे वहां पर लोकतंत्र के इस जीवंत रुप के लिये स्थायी रुप से बड़ी जगह निर्धारित की जानी चाहिये जैसे कि इंगलैंड में लंदन में हाइड पार्क में किया गया है। साथ ही साथ पूरे क्षेत्र में पुलिस सुरक्षा, पेयजल की व्यस्था, शौचालय की व्यवस्था, मेडिकल की सुविधा भी प्रदान की जानी चाहिये। 

धरने के बाद जाम न लगे इसके लिये भी तजाम किये जाने चाहिये। क्या ये अपने आप मे विचित्र नहीं लगता कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में आजादी के 70 से ज्यादा वर्षों के  बाद भी धरने-प्रदर्शनों के लिये कोई जगह नहीं हैं?

Manisha शनिवार, 6 फ़रवरी 2016