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कल जब मैं और मेरे पति मतदान के लिये निर्धारित स्थान पर पहुंचे तो पता चला कि हमारा नाम वोटर लिस्ट से गायब है। हमारे पास वोटर आईडी कार्ड था, पहले भी वोट डाला हुआ है, लेकिन इस बार पता नहीं कैसे सोसाईटी के अधिकांश लोगों का नाम गायब था। यानी कि चुनाव आयोग ने ही पप्पू बना दिया। ऐसी प्रशासनिक भूलों के खिलाफ आम आदमी कुछ नहीं कर सकता है। क्या ऐसी व्यवस्था नहीं हो सकती कि मौके पर ही प्रमाण देख कर वोटर लिस्ट में नाम जोड़े जा सकें और नाम काटने वाले अधिकारी के खिलाप कार्यवाई की जा सके। चुनाव आयोग जनता और नेताओं पर तो तमाम तरह की बंदिशें और संहिताये लागू करता है, लेकिन ऐसी घटनायें जो हर चुनाव में होती हैं कि नाम गायब हो गये उसमें कुछ भी शायद नहीं करता है।
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