नक्सलियों के विरुद्ध प्रचार की शुरुआत

नक्सलियों के विरुद्ध प्रचार की शुरुआत


इधर नक्सलियों के खिलाफ बनी संयुक्त सशस्त्र बल कोबरा (COBRA - Commando Battalion for Resolute Action) और छत्तीसगढ़ पुलिस के द्वारा लगभग 30 नक्सलियों के मारे जाने की अच्छी खबर आई ही थी कि इधर भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा नक्सलियों के खिलाफ जनता में प्रचार करने के लिये विज्ञापन सभी अखबारों में देने शुरु कर दिये हैं। 

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आज के सभी समाचार पत्रों में इस तरह के विज्ञापन जारी किये गये हैं। हालांकि यह अच्छी बात है लेकिन अभी नक्सलियों के हमदर्द और मानवाधिकार संगठनों के लोग आते ही होंगे ये बताने के लिये कि ये मुठभेड़ फर्जी थी और उस को लेकर माडिया में माहौल बनाया जायेगा। 

सरकारें इन के दबाबों में आ जाती हैं तो ये देखने की बात रहेगी कि सरकार खाली इस तरह से प्रचार ही करेगी या फिर सरकार में सचमुच नक्सलियों से लड़ने की इच्छा है?

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3 टिप्‍पणियां

  1. लोग नक्साल्वादी क्यों बन रहें हैं
    हमारे देश की एक तिहाई से जयादा जनता गरीब है .जो लोग आमिर हो रहे हैं वो होते जा रहे हैं , गरीब आदमी का तो मरना ही है हर तरफ से . अगर किसी गरीब के पास जमीं भी होती है तो खेती में इतना खर्चा अता है की वो कर्जबंद हो जाता है .जैसे ही वो गरीब किसान बताई पर किसी आमिर किसान या सहकर के साथ साझे में खेती करता है .समय के साथ वो उसके कर्ज में दबता चला जाता है और फिर अपनी ही जमीन में मजदुर बन कर रह जाता है .
    एक और कारन ये है की जब कोई गरीब आदमी कमजोर होता है तो कोई भी दबंग उसकी जमीन पर कब्जा कर लेता है वो दबंग आदमी तहसील और परशास न को भी पैसे के दम पर आपने कब्जे में कर लेता है मरता क्या न करता गरीब आदमी आपने ही खेत में या तो मजदूरी करता है या औने पौने दाम में अपनी जमीन बेच कर शहर जाकर या गाँव में ही रह कर मजदुर बन जाता है .
    एक बहुत बड़ा दूसरा मुद्दा है आदिवासी इलाकों से जुदा हुआ .भौतिक संशाधनों की की नजर से देखें तो ये इलाके सबसे पिछडे हैं .लेकिन पराकरतिक संशाधनों के नजर में यहाँ खनिज पदार्थों की पर्चुर्ता के कारन बहुराष्ट्रीय व्यापारिक समूह इन पर कब्जा करना चाहते हैं. यहाँ के मूल निवासियों की रोजी रोटी इन इलाकों के प्राक्रतिक वातावरण पर निर्भर होती है .खनन होने के कारन इनके सामने आजीविका का संकट तो आता ही है खनन से होने वाली आय से उन्हें कुछ भी नहीं मिलता सब कुछ नेता और बिचोलिये और कम्पनी वाले खा जाते हैं वास्तव में उस पर पहला हक़ वह के मूल निवासियों का होना चाहिए . ये खनन करने वाले होने पिने के साफ़ पानी को भी उपलब्ध नहीं करवा पाते.उससे उपजा असंतोष विद्रोह का पर्मुख कारन है .यदि सरकार मुलभुत सुविधाओं के साथ रोजगार भी मुहैया कराये सभी को न्याय मिले तो नक्साल्वाद नहीं फैलेगा
    aभी जब केंद्र सरकार नाक्साल्वादियों के खिलाफ बड़ा स्ट्राइक करने जा रही है होगा क्या नाक्साल्वादी घने जंगलों में घुस जायेंगे .संभव है की फिर काफी फर्जी मुठभेडे हो और निर्दोष लोग मारे जाएँ .
    ऐसा जरुर होगा की नाक्साल्वादियों का होसला कुछ समय के लिए कम हो जाए लेकिन सरकार के लिए ये मुश्किल होगा की वो इस विचारधारा को समाप्त कर पाए. भ्रष्ट वयवस्था गरीब आदमी को सोचने का भी मोका नहीं देती. और जब अस्तित्व का संकट खडा हो जाये तो गरीब आदमी के पास अगर कोई पैसे और शस्त्र लेकर आये और उशे सशक्त बनाने की बात करे तो मरता क्या न करता की स्तिथि से गुजर रहा आदमी क्यों नहीं बन्दूक उठाएगा .बहुत सारे लोग बोल सकते हैं की हिंशा अच्छा रास्ता नहीं है यकीनन नहीं है .लेकिन उनके पास विकल्प क्या है. ???
    जिस किसी का ग्रामीण पर्शाशनिक अमले से पाला पडा होगा वें जानते होंगे की पटवारी तहसीलदार ,पुलिस किस तरह से नाच नचाते हैं . आदमी को जिंदगी बोझ लगने लगती है .लचर पचर शाशन वयवस्था में लोग नाक्साली नहीं बनेगे तो क्या करेंगे ?

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  2. mahatma gandhi ne bhi swatantrata evam adhikaaro ki ladaai ladi thi par log aaj bhi unhe poojte hai, unka naam shraddhha se lete kyoki unhone ahimsa se apni ladaai ladi. Yadi naxaliyo ko hamare system se problem hai to use sahi tarike se prastut kiya jaye. Kuch log apne swaarthvash unki bhavanao ka durupayog kara rahe hai evam unke kandho pe banddok rakhkar apni roti senk rahe hai.

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