लोकतंत्र नीचे तक नहीं पहुंचा है
हम लोग यह बात दुनिया को गर्व से बताते हैं कि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं और हमारे यहां लोकतंत्र की परम्परायें रही हैं।
लेकिन दुसरी ओर मैं देखती हूं कि वास्तव में सच्चे लोकतंत्र के तो कोई लक्षण ही नहीं हैं।
सच्चा लोकतंत्र वो होता है जहां पर कोई अदना सा भी अपनी बात कह सके, अपनी बात के लिये लोगो का समर्थन ले सकें।
लेकिन व्यवहार में क्या हो रहा है? अभी हाल ही में तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत के बाद कहा गया कि मुख्यमंत्री का चुनाव कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी करेंगी।
अब नवनिर्वाचित विधायकों को तो काम ही नहीं रहा अपने और प्रदेश के लिये कोई नेता वो चुनने से वंचित हो गये, इसी तरह बीजेपी ने राजस्थान में वसुंधरा राजे से कहा कि वो पद छोड़ दे भले ही वहां के भाजपा के विधायक चाह रहे कि वो उस पद पर रहें।
उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार और बसपा के सारे निर्णय खुद ही लेना चाहती हैं, किसी अन्य को कोई निर्णय लेने की आजादी नहीं है। यहां तक की मंत्री भी अपने विभाग के सिसी आदमी का ट्रांसफर तक नही कर सकता।
दिल्ली में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों के लिये तैयारी को लेकर निगरानी का मामला उठा तो सीधे प्रधानमंत्री को दखल देनी पड़ी।
नीचे कोई सही तरीके से निर्णय लेने के लिये नहीं है। यानी सारे निर्णय उपर के लोग ही लेंगे, नीचे कोई जिम्मेदार नहीं है।
क्या ऐसे ही लोकतंत्र चालाया जाता है?
हमारे घरों में भी कुछ ऐसा ही हाल है। भले ही बच्चे वयस्क हो जायें, लेकिन घर के अधिकांश मामलों में घर के बुजुर्ग ही अंतिम फैसला करना चाहते हैं।
आखिरकार निर्णय लेने की क्षमता नीचे तक तो पहुंचनी ही चाहिये न।
क्या केवल समय पर चुनाव करा देना ही लोकतंत्र है या अपने व्यवहार में लोकतांत्रिक बनना भी जरुरी है?
Tweet
आपका कहना सही है।
जवाब देंहटाएंवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को प्रगति पथ पर ले जाएं।
इस देश के पिछडने का कारण ही यह है कि हम युवाओं को निर्णय नहीं लेने देते और न ही लोकतांत्रिक प्रकार से निर्णय लेते हैं। एक व्यक्ति साठ साल का हो जाता है, उसका वृद्ध पिता भी होता है लेकिन जब भी कोई बात परिवार में आती है, पिता उसे चुप करा देते हैं कि चुप अभी मैं बैठा हूँ। ऐसे ही ऑफिसों में होता है, जब तक वह बॉस नहीं बन जाता उसके निर्णय मान्य नहीं होते। सरकारी नौकरियों में तो हम देखते हैं कि बेचारा एक व्यक्ति सेवानिवृत्ति के कुछ माह पूर्व ही बॉस बनता है। अर्थात उसकी बुद्धि का कभी भी प्रयोग नहीं होता। वर्तमान युग मे परिवर्तन हुआ है, बडी कम्पनियों में नौजवान ही सारे निर्णय ले रहे हैं तो परिणाम सामने हैं। वास्तव में तो ऊपर के लोग सारे असुरक्षा बोध से ग्रस्त हैं इसलिए ही सारे निर्णय स्वयं लेते हैं।
जवाब देंहटाएं