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अब क्यों नहीं देख रहे पुलिस से परे?


पिछले सालों में जब भी कहीं आतंकवाद की घटनायें घटती थीं और मुस्लिम बस्तियों से लोगों को पकड़ा जाता था
Indian Police
तब पत्रकारों द्वारा पुलिस की गलतियों के कुछ लेख भी छपते थे और ये बताया जाता था कि पुलिस से परे देखो या फिर पुलिस की हर बात यकीन लायक नहीं इत्यादि।  

लेकिन यही पत्र-पत्रिकाये के यही पत्रकार लोग भाजपा (बाजेपी) या गुजरात से संबंधित या फिर कथित हिंदु आतंकवाद की बात आने पर पुलिस या सीबीआई की हर बात को अटल सत्य मान कर तुरंत भाजपा और आरएसएस पर हमला बोलने लगते हैं। 

अभी अमित शाह के मामले में भी सब सीबीआई द्वारा किये जा रहे काम पर अब कोई पत्रकार नहीं कर रहा की हमें सीबीआई से परे देखना चाहिये। 

ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है। अब क्यों सीबीआई की हर बात अटल सत्य है?

फिर किसी को माओवादी होने के संदेह में पकड़ा जाता है, या फिर कश्मार में किसी को गिरफ्तार किया गया हो, तब तमाम पत्र-पत्रिकायों और टीवी के कुछ समाचार पत्रों नें इस बात को जोर शोर से कहना शुरु किया था कि पुलिस की हर बात पर यकीन नहीं करना चाहिये। 

बात भी सही है, लोकतंत्र में पत्रकारों के हमेशा ही  अपनी पैनी नजर रखनी ही चाहिये और अपने तरीके से जांच करनी चाहिये। 

Manisha मंगलवार, 27 जुलाई 2010

एसएमएस विज्ञापनों ने परेशान कर रखा है


एक समय था जब मोबाइल फोनों पर टेली मार्केटिंग कंपनियों ने लोगों को गाहे-बगाहे अपने प्रोडक्ट बेचने के लिये फोन कर कर के दुखी कर दिया था। 

तब लोगों ने परेशान होकर सरकार और कोर्ट तक अपनी आवाज पहुंचाई जिसक वजह से परेशान न करे (Do not Distहीb)  की सुविधा शुरु की गई जिसकी वजह से बिना बात के आने वाले कॉलों से तो लोगों को कुछ हद तक छुटकारा मिल गया है। 

SMS Advertisements


लेकिन टेली मार्केटिंग और मोबाईल कंपनियों ने अब लोगों को एसएमएस के जरिये विज्ञापन भेजने शुरु कर दिये हैं कि इनसे भी परेशानी होनें लगी है। पूरे दिन इन अनचाहे संदेशों को मिटाते रहना पड़ता है। 

विज्ञापन भी बस भेज दिये जाते हैं, पाने वाले की स्थिति का कोई ध्यान नही है। 

सबसे ज्यादा संदेश प्रोपर्टी खरीदने के आते हैं। इस बारे में भी लगता है हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का ही सहारा लेना पड़ेगा। 

टीआरएआई (TRAI) तो शायद मोबाईल कंपनियों के हित के लिये ही बनाई गई हैं, उपभोक्ताओं की सिर दर्दी को देखना वाला कोई नहीं है।

Manisha शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

बरसात के बारे में मौसम वैज्ञानिक क्यों फेल हैं?


पूरे उत्तर भारत में अभी तक ढंग से मानसुन की बारिश नहीं हुई है। कहीं पर कुछ कुछ बारिश हुई है, कहीं पर एक बार जोर से बरसात हो गई और उसके बाद फिर से साफ आसमान है, कुल मिला कर मानसून अभी तक नहीं आया है। 

मौसम वैज्ञानिकों ने पहले कहा कि मानसून अपने निर्धारित समय पर आ जायेगा। वो नहीं आया।  फिर कही कि एक हफ्ते के बाद आयेगा। फिर कहा कि देर से भले ही आये लेकिन बादल खूब बरसेंगे। 

फिर एक दिन जब दिल्ली में पानी बरसा तो अपने को बचाने के लिये बोल दिया कि दिल्ली में मानसून आ गया जो कि इस घोषणा के बाद फिर गायब हो गया। इसके बाद देश के उत्तर भाग में कहीं कहीं बारिश हो जाती है पर लगातार कहीं भी बारिश नहीं रही है।

Monsoon मानसून


या तो मौसम पूर्वानुमान की वैज्ञानिक विधि चूकती है या हमारे विज्ञानियों की गणना में कोई गलती रह जाती है या बरसात के बादल ही बार-बार खुद को आवारा साबित करते हैं, कुछ तो होता है, जिसके कारण खेती और जीवन से जुड़े मानसून की शुरूआत का निश्चित समय बताना अब भी कठिन बना हुआ है। पहले जिस बारिश को मानसून से पहले की बारिश कहा जाता था उसे ही अब मानसून कहा जाने लगा है।

पिछले कई बर्षों से ऐसा हो रहा है। 

हर साल अप्रैल के महीने में भारत सरकार का मौसम विभाग विज्ञान अपने तकनीकी मंत्री जी को कुछ आंकड़े देकर एक प्रेस कोंफ्रेंस करवाता है,जिसमें मंत्री जी गर्व से घोषणा करते हैं कि देश में इस बार 93-98 प्रतिशत बारिश होगी (जानबूझ कर 100 प्रतिशत नहीं बोला जाता है) और मानसून देश में समय से आयेगा इत्यादि। 

समाचार पत्रों में चित्र के साथ समाचार छप जाता है। फिर जून का महीना आता है और सब मानसून का इंतजार करते है। लेकिन मानसून देर से आता है, उसमें भी बहुत कम बारिश होती है। 

फिर संसद के मानसून सत्र में कम बारिश को लेकर सवाल किये जाते हैं। मंत्री जी जबाव में कुछ आंकड़े पेश करते हैं और साथ ही ये भी बताते हैं कि मौसम विभाग से मानसून के अनुमान लगाने के लिये नया मॉडल बनाने को कहा गया जिसके लिये विभाग को XXXX  करोड़ रुपयों की आवश्यकता पड़ेगी जिसके लिये मंत्रीजी संसद में अनुदान मांगो के एक प्रस्ताव लेकर आ जाते हैं।

फिर अगला साल आता है और फिर नये मॉडल से साथ मंत्रीजी प्रेस कांफ्रेंस करते हैं और फिर वही होता है।

आखिर ये सब कितने सालों तक चलता रहेगा? बरसात के बारे में मौसम वैज्ञानिक क्यों फेल हैं?

Manisha बुधवार, 14 जुलाई 2010
अब मैंने अपने हिंदी ब्लॉग को पुराने डोमेन नाम से नये डोमेन नाम हिंदीडायरी.कॉम (https://www.hindidiary.com) पर स्थानान्तरित कर लिया है।

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अब नये डोमेन नाम हिंदीडायरी.कॉम पर

Manisha शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

कोचिंगों का जाल तो नहीं ही टूटा


पिछले कुछ दिनों से इंजीनियरिंग और मेडिकल के प्रवेश के लिये होने वाली विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के परिणामो को घोषित किये जाने का दौर जारी है। 

राष्ट्रीय स्तर की आईआईटी-जेईई, एआईईईई, सीपीएमटी परीक्षाओं के अलावा राज्य स्तरीय इसी प्रकार की विभिन्न विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के परिणाम आ रहे हैं जिनमें जो लोग सफल हैं वो आगे की सोच रहे है कि किस कॉलेज और संस्थान में दाखिला लें और जिनका नहीं हुआ वो या तो दुबारा तैयारी करना चाहते हैं या फिर किसी अन्य कोर्स में दाखिला लेंगे। 

Coaching कोचिंग


इन  प्रतियोगी परीक्षाओं के परिणामों के घोषित होते ही विभिन्न कोचिंग संस्थानों द्वारा समाचार पत्रों में बड़े-बड़े विज्ञापन द्वारा ये बताने का दौर शुरु हो गया है जिसमें दावा किया जा रहा है कि उनके यहां से इतने बच्चों का चयन हो गया है इत्यादि इत्यादि। 

अब कि कुछ पहले आईआईटी की परीक्षा के लिये केवल दो बार की बाध्यता और 12वीं में कम से कम 60 प्रतिशत नबंरों को पास होने की शर्त ये कह कर लगाई गई थी कि इससे परीक्षार्थी 12वीं कक्षा पर ज्यादा ध्यान देंगे और कोचिंग पर लगाम लगेगी।

लेकिन लगता नहीं है कि कोचिंग का जाल टुट पाया है बल्कि और बढ़ गया है। 

ऐसे में सरकार को ध्यान देना चाहिये कि इन परीक्षायो को इस तरह से लिया जाये कि छात्र बिना कोचिंग के भी इन परीक्षायों को पास कर सकें।

Manisha गुरुवार, 10 जून 2010

स्टीफन हाकिंग से पूरी तरह सहमत


प्रसिद्ध वैज्ञानिक और विचारक स्टीफन हाकिंग से मैं पूरी तरह सहमत हूं कि धरती के अलावा भी जीवन है। कल
Jaadu Alien
(26/04/2010) के सभी समाचार पत्रों में स्टीफन हाकिंग  के धरती से अलग जीवन के बारे  विचार छपे थे कि मनुष्यों को एलियंस (अंतरिक्ष जीव) के साथ संपर्क करने की कोशिश नहीं करना चाहिए।  

हाकिंग ने ब्रम्हांड के कई रहस्यों पर बताया और कहा कि वो इस बात के प्रति आश्वस्त हैं कि एलियंस हैं। खास बात यह कि वह सिर्फ ग्रहों पर ही अंतरिक्ष जीवों की संभावना को नहीं स्वीकारते, बल्कि सितारों और अंतरिक्ष में दो ग्रहों के बीच विस्तृत खाली आकाश में भी इनकी मौजूदगी बताते हैं।

हम लोग बचपन में जब कॉमिक्स पढ़ा करते थे तो उसमें फ्लैश गार्डन व अन्य कई अंतरिक्ष की कहानियां होती थी और वहां से मेरा ये विश्वास बनता गया कि अपनी धरती के अलावा भी कहीं न किसी ग्रह पर जरुर जीवन है। 

इसीलिये मैं स्टीफन हाकिंग से पूरी तरह सहमत हूं। 

वैसे एक विचार और मन में आता हे कि अगर दूसरे ग्रहों पर अगर जीवन है तो उनके भी कुछ भगवान होंगे फिर धरती के ईश्वर, अल्लाह और गॉड की अवधारणा का क्या होगा? क्या वहां कोई और भगवान होंगे या यहीं वालों की भी पूजा वहां होगी?

ये जरुर हो सकता है कि जैसा हम सोचते हैं वैसे प्राणी वहां दुसरे ग्रहों पर न हों बल्कि कुछ अलग तरह के हों, अभी तो अपनी धरती पर ही सारी तरह के जावों के बारे में नहीं जान पाये हैं तो दुसरों के बारें मे तो क्या ही जान पायेंगे?

आप में से कितने लोग मानते हैं कि धरती के अलावा भी जीवन है?

Manisha मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर प्रतिनिधित्व में आरक्षण


महिला होने के नाते मुझे खुशी है कि आखिरकार 14 वर्षों के बाद संसद और राज्यों की विधानसभाओं  में 33 प्रतिशत
Women Reservation in India
आरक्षण महिलाओं के लिये बिल पेश हो जायेगा। 

ये एक ऐतिहासिक क्षण है। इस प्रकार के आरक्षण के बाद बहुत कुछ बदलेगा। 

हालांकि व्यक्तिगत आधार पर मैं किसी भी प्रकार के आरक्षण के विरूद्ध हूं क्योंकि ये लोगो का प्राकृतिक और वास्तविक विकास नहीं करता है बल्कि ये अन्य लोगों के साथ अन्याय करता है, लेकिन फिर भी महिलाओं के लिये संसद और विधानसभा में आरक्षण एक अच्छा कदम है। 

इसके विरोधी महिलाओं को पिछड़े, दलित, धार्मिक आधार पर बांट कर विरोध कर रहे हैं लेकिन ये बिल अब पास हो कर रहेगा। 

ये कोई पुरुषों और महिलाओं के बाच की लड़ाई नहीं है बल्कि महिलाओं के वास्तविक विकास की बात है।

Manisha सोमवार, 8 मार्च 2010

आईपीएल के चाहने वाले दीवाने होते है क्या?


दिल्ली में आजकल एफएम रेडियो पर और टीवी पर भी विभिन्न चैनलों पर आईपीएल-3 (IPL-3) के लिये टिकटों की बिक्री के लिये विज्ञापन बज रहे हैं, और दिखाये जा रहे हैं। 

इन विज्ञापने को देख सुन कर तो ऐसा लगता है मानो आईपीएल देखने वालों को होश ही नहीं है कहां पर क्या बात करनी है? 

Manisha गुरुवार, 4 मार्च 2010