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हिंदी कहानी - समस्या का समाधान

अतिथि ब्लॉग पोस्ट
Hindi story Kahani samasya ka samadhan

यह कहानी एक गुरु जी और उनके शिष्य की जोड़ी की है। यह साधु महात्मा एक शहर से दूसरे शहर घुमा करते थे।
और गुरु जी जो थे वह बहुत सारे लोगों के कष्टों का निवारण करते थे। अब शिष्य जो था उनके साथ उनकी सेवा करता और गुरु जी के साथ हमेशा उनकी सहायता और मदद करता था।

अब यह साधु और शिष्य की जोड़ी यह दोनों एक शहर पहुंचे वहां पर यह साधु जी का 2 दिन का सत्संग कार्यक्रम था और उन्हें वह शहर पर वहां रुकना था जब वहां पर 2 दिन का सत्संग खत्म हो गया तो अगली सुबह दुसरे शहर के लिए रवाना होना था।

परंतु ना ही उस शहर में वे किसी को जानते थे ना ही किसी को पहचानते थे। तो उस शहर पर उन्हें वहां पर खाने और रुकने की एक समस्या थी। तभी शिष्य ने अपने गुरु जी से कहा, "गुरु जी आज की रात या तो मंदिर की सीढ़ियों पर बितानी होगी" या किसी बगीचे या रास्ते में पर ही आज की रात बितानी होगी।

इस बात पर साधु ने शिष्य से कहा, ऐसा बिल्कुल नहीं होगा अच्छे काम के लिए निकले हैं तो ऊपरवाला ध्यान जरूर रखेगा। उन्होंने अपने शिष्य सेे कहा की आज आराम से खाना खाने को भी मिलेगा और आराम से रहने के लिए एक अच्छी जगह भी मिलेगा।



फिर साधु जिस रास्ते पर से पैदल जा रहे थे उसी रास्ते के किनारे एक बगीचा था वहां पर जाकर वो ध्यान मुद्रा में बैठ गए और कुछ देर बाद उठे और चलने लगे। और शिष्य भी उनके पीछे हो लिया।

कुछ देर बाद साधु महात्मा एक होटल के पास जाकर रुके और देखा तो वहां पर सूट में एकदम तैयार होटल का मैनेजर खड़ा हुआ था। मानो जैसे कि होटल का मैनेजर दोनों का स्वागत करने के लिए होटल के सामने खड़े हुए हैं

तब मैनेजर ने साधु महात्मा जी से कहा, ऐसा लगता है कि आप सफर करके आए हैं और इस शहर में किसी को जानते तक नहीं आप जैसे महापुरुषों के लिए आपके सत्कार के लिए एक विशेष व्यवस्था हमारे होटल में रहती है।

कृपया करके यदि आपकी इच्छा हो तो आप हमारे होटल में रुक सकते हैं, तो वह साधु और शिष्य उस होटल में रुक गए। और वहां के मैनेजर ने साधु महात्मा जी से कहा कि आप सबसे पहले भोजन कर लें। तो यह सब कुछ देखकर और सुनकर शिष्य चौंक जाता है।

उसे विश्वास नहीं हो रहा था उसे लगा कि मेरे गुरु जी को यह सब कैसे पता। अगली सुबह जब वे जिस स्थान पर पहुंचने वाले थे वह वहां पर पहुंच गए। और वहा पर पांच दिवसीय सत्संग था जिसके लिए बहुत सारे लोग भी आए थे। और वह सत्संग शुरू हो गया।



साधु महात्मा जी को प्रवचन सुनते और लोगों के कष्टों को दूर करते हुए 2 दिन समाप्त हो गए। तीसरे दिन सुबह एक महिला यह गुरुजी के पास आ पहुंची उसने कहा कि गुरु जी आप के प्रवचन सुनने से मुझे बहुत बल मिलता है लेकिन मैं यह शिविर छोड़ रही हूं।

मैं यहां शिविर में कल से नहीं आऊंगी। साधु ने ध्यान से उसकी बातों को सुना और फिर कहा, उसका कारण क्या है कि तुम आगे का प्रवचन सुनना नहीं चाहती हो?

>तब महिला ने बताया कि आपके प्रवचन के बाद जो समय होता है उसमें ध्यान में बैठना होता है और मैं ध्यान में नहीं बैठ पाती, उस जगह में या तो कोई पैर पसार के बैठा होता है या फिर कोई अपने मोबाइल फोन में बतिया रहा होता है।

ऐसे में ध्यान में कैसे बैठा जाए? गुरुजी ने ध्यान से बातें सुनी और फिर उस महिला से गुरूजी ने कहा कोई बात नहीं कल से शिविर नहीं आना तुम। लेकिन तुम्हें एक क्रिया खत्म करके जाना होगा। और गुरुजी ने कहा उस महिला से कहा कि तुम्हें एक लोटे में बिल्कुल ऊपर तक भरा हुआ पानी लेना होगा और यह जो मंदिर है उसकी चारों ओर 5 चक्कर लगानी होगी।

लेकिन ध्यान इतना रहे कि लोटे में से एक बूंद भी पानी बाहर ना गिरे। जैसा गुरु जी ने कहा था बिल्कुल वैसा खत्म करके महिला गुरुजी के पास पहुंची। गुरुजी ने देखा कि लोटे में पानी हिला तक नहीं था तो गुरु जी ने महिला से पूछा, जब तुम मंदिर के चक्कर लगा रही थी। तो क्या तुम्हें कोई शोरगुल सुनाई दिया या फिर कोई मोबाइल फोन पर बतियाता रहा, या कोई पैर पसार कर बैठा हो, वह दिखाई पड़ा। तब महिला ने सर झुकाते हुए कहा, नहीं गुरु जी मुझे कुछ भी ऐसा ना दिखाई दिया ना ही सुनाई दिया।



तब गुरुजी ने कहा कि बेटी तुम्हारा सारा का सारा ध्यान इस एक लोटे के पानी पर केंद्रित था। वैसे ही तुम उस सत्संग के खत्म होने के बाद जब ध्यान के लिए बोला जाता है तो तुम बिल्कुल ऐसे ही लोटे के पानी की तरह ध्यान को केंद्रित किया करो।

अर्थात जैसा कि कहा जाता है आज की दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण जरूरी बात है जो यह है कि अगर सफल होना है तो समस्या पर नहीं समाधान पर ध्यान केंद्रित करिए।

>लेकिन आज कल की दुनिया में होता यह है कि ना ही किसी को सच्चाई की सलाह सुननी है और ना ही किसी को धोखे की तारीफ, परंतु हर कोई एक दूसरे को बस यही दोनों चीजें सुनाते रहते हैं और तारीफ के झूठे धोखे में लिपट कर अपने आप पर घमंड करके चारों ओर घूमते रहते हैं।

यह कहानी आपको कैसी लगी कृपया कर कमेंट में बताएं, और यदि आपको यह कहानी पसंद आई तो कृपया आप इसे अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ साझा करें और भी इसी तरह की बहुत सी अन्य short motivational story, मोरल स्टोरी पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें । धन्यवाद।

Manisha सोमवार, 28 सितंबर 2020

शेयर बाजार (स्टॉक मार्केट) आधारित फिल्में और वेब-सीरीज


Stock Share Market शेयर बाजार


शेयर बाजार किसी भी देश के आर्थिक जगत का बहुत बड़ा बैरोमीटर है जिससे उस देश कि अर्थव्यवस्था का कुछ कुछ अंदाजा लगाया जा सकता है। विभिन्न कंपनियों के स्टाक्स को शेयर बाजार में खरीदा बेचा जाता है और उससे कंपनियों की पूंजी बढ़ती घटती रहती है।

 

करोड़ों लोग इन शेयर बाजारों में अपनी किस्मत आजमाते हैं। इसलिये इस विषय का असर बहुत व्यापक है।


हिंदी, अंग्रेजी और अन्य भाषाओं में भी शेयर बाजार के ऊपर आधारित फिल्में, टीवी श्रंखलायें, वेब सीरीज और ढेर सारी डाक्यूमेंट्री (documentary) बने हैं। किसी किसी फिल्म में कथानक का मूल शेयर बाजार होता है वहीं कुछ में वो घटनाकृम में रहता है। 


यहां पर हम कुछ ऐसी ही हिंदी/अंग्रेजी फिल्में, वेब सीरीज की चर्चा करेंगे जो कि या तो शेयर बाजार के माहिर खिलाड़ियों के ऊपर हे या फिर रोजाना काम करने वाले ट्रेडर्स के उपर बनी हैं।



शेयर बाजार पर बनी हिंदी फिल्में

शेयर बाजार को लेकर हिंदी फिल्मों और टीवी धारावाहिकों का रुख कुछ नकारात्मक सा ही है। स्टॉक मार्केट को सट्टा की तरह पेश किया जाता है जहां पर लोग रातों रात धनी बन जाते हैं या फिर धनी व्यक्ति की कंपनी के शेयर इतने गिर जाते हैं कि उसका सब कुछ बिक जाता है और वो और उसका पूरा परिवार सड़क पर आ जाता है।

यही कारण है कि हिंदी में शेयर बाजार को लेकर कुछ चंद फिल्में ही बनी हैं।  हमारी जानकारी में यहां नीचे बताई गई हिंदी फिल्में ही स्टॉक मार्केट पर बनी हैं।



  1. शेयर बाजार (Share Bazar) (1987) - ये हिंदी फिल्म शेयर बाजार के दो ट्रेडर भाइयों मनसुख और हंसमुख मेहता के उपर बनी है जो कि बांबे स्टॉक एक्सचेंज में उठापटक करते हैं। इस फिल्म में जैकी श्राफ और डिम्पल कपाड़िया ने लीड रोल में काम किया है।
  2. गफला (Gafla) (2006) - ये फिल्म बांबे स्टॉक मार्केट में हुये 1992 के बदनाम प्रतिभूति घोटाले के मुख्य आरोपी हर्षद मेहता के जीवन पर आधारित है। ये फिल्म यू-ट्यूब पर देखने के लिये उपलब्ध है।
  3. सास बहू और सेन्सेक्स (Saas Bahu aur Sensex) (2008)  ये एक हिंदी फिल्म है जो 2008 में आई थी। शोना ऊर्वशी द्वारा निर्देशित इस फिल्म में शेयर बाजार में पैसा लगाने का और वहां काम करने के बारे में कुछ कहने के साथ ही साथ अन्य मसाले डाल कर बनाई गई एक मसाला हिंदी फिल्म है। इस फिल्म में किरण खेर, तनुश्री दत्ता, अंकुर खन्ना, फारूख शेख इत्यादि ने काम किया है।  
  4. जो हम चाहें (Jo Hum Chahein) (2011) - नवोदित कलाकार हीरो सनी गिल, हीरोईन सिमरन मुंडी  और नवोदित निर्देशक पवन गिल सबकी ये पहली फिल्म थी जिसमें हीरो MBA करने के बाद बांबे स्टॉक मार्केट में ट्रेडर बन कर अपनी आजीविका चलाना शुरू करता है।  
  5. बाजार (Bazaar) (2018) - सैफ अली खान इस फिल्म के हीरो हैं जो कि किसी भी तरह से शेयर बाजार मे पैसा कमाने में विश्वास करता है। स्टॉक मार्केट के कई काली सफेद गतिविधयां इसमें दिखाई गई हैं जैसे कि इनसाइडर ट्रेडिंग इत्यादि।
  6. स्कैम 1992 - द हर्षद मेहता स्टोरी (Scam 1992 - the Harshad Mehta Story) (हिंदी) - सोनी लिव (SonyLiv) पर उपलब्ध हो गया है। जैसा कि नाम से जाहिर है ये फिल्म हर्षद मेहता के जीवन पर आधारित है।
  7. द बिग बुल (The Big Bull) (हिंदी) (2020) - अमेजन प्राइम (Amazon Prime) पर 8 अप्रैल 2021 को उपलब्ध हो गई है। इसको अजय देवगन और कुकी गुलाटी ने बनाया है और इसके मुख्य कलाकार में अभिषेक बच्चन हैं। ये फिल्म भी हर्षद मेहता के जीवन पर आधारित है।

Scam 1992 Harshad Mehta Story on SonyLiv


शेयर बाजार आधारित हिंदी वेब सीरीज

भारत में अभी OTT आधारित प्लेटफार्म का विकास हो रहा है। ऐसे में में नये नये विषय के लिये हो सकता है कि कुछ वेब सीरीज शेयर बाजार पर भी बनें। 

फिलहाल तो हमें केवल शेयर बाजार आधारित हिंदी वेब सीरीज में एक ही सीरीज मिली है जो कि नीचे बताई है।
  • द बुल ऑफ दलाल स्ट्रीट (The Bull of Dalal Street) (हिंदी) - एसएक्स प्लेयर (MX Player) पर उपलब्ध 
  • शेयर बाजार पर इम्तियाज अली की लघु फिल्म (YouTube पर उपलब्ध)


स्टॉक मार्केट आधारित अंग्रेजी में बनी फिल्में

अंग्रेजी भाषा में फिल्म बनाने में अमेरिका का हॉलीवुड (Hollywood) सबसे बड़ा केन्द्र है। वहां पर हमेशा नये नये विषय पर फिल्में बनाने का काम चलता रहता है। 

जाहिर सी बात है कि अंग्रेजी में हॉलीवुड ने बहुत सारी शेयर बाजार आधारित फिल्में और वेब-सीरीज बनाई हैं। 

हमने यहां नाचे ऐसी अंग्रेजी फिल्मों कि सूची बनाई है जो शेयर बाजार पर आधारित हैं। इनमें से कई फिल्में आपको हिंदी भाषा में डब होकर भी देखने को मिल जायेंगी।  

अगर आप यूट्यूब, नेटफ्लिक्स, हॉटस्टार, अमेजन प्राइम, जी5, सोनीलिव आदि OTT पर अगर खोजेंगे तो आपके ये फिल्में अंग्रेजी में या हिंदी में डब होकर मिल जायेंगी और आप इनको देख सकते हैं।



  1. ट्रेडिंग प्लेसेज - Trading Places (1983)  
  2. वॉल स्ट्रीट - Wall Street (1987)  
  3. अदर पीपुल्स मनी - Other People's Money (1991)
  4. बारबेरियंस एट द गेट - Barbarians at the Gate (1993)  
  5. रोग ट्रेडर - Rogue Trader (1999)  
  6. बॉयलर रूम - Boiler Room (2000)  
  7. वॉल स्ट्रीट वारियर्स - Wall Street Warriors (2006)  
  8. मिलियन डॉलर ट्रेडर्स - Million Dollar Traders (2009)  
  9. मार्जिन कॉल Margin Call (2011)  
  10. टू बिग टू फेल - Too Big to Fail (2011)  
  11. वॉल स्ट्रीट - मनी नेवर स्लीप्स - Wall Street – Money Never Sleeps (2011)  
  12. आर्बीट्रॉज - Arbitrage (2012)  
  13. द वोल्फ ऑफ वॉल स्ट्रीट - The Wolf of Wall Street (2013)  
  14. द बिग शॉर्ट - The Big Short (2015) 
  15. इक्विटी - Equity (2016)
  16. मनी मॉन्स्टर - Money Monster (2016)


स्टॉक मार्केट पर डाक्यूमेंटरी

  1. बूम डस्ट बूम - Boom Bust Boom -- Strengths & Weaknesses of US economy
  2. ट्रेडर - Trader -- Documentary on legendary trader Paul Tudor Jones
  3. बिकमिंग वारेन बफेट - Becoming Warren Buffett -- Documentary on Buffett's upbringing
  4. 25 मिलियन पाउन्ड - 25 Million Pounds -- Financial & Thriller documentary
  5. द चाइना हसल - The China Hustle (2018) – Finance & Trade Documentary 
  6. द कॉरपोरेशन - The Corporation (2003) -- Finance Documentary
  7. बिलियन डॉलर डे - Billion Dollar Day (1985) - Documentary
  8. द एसेन्ट ऑफ मनी - The Ascent of Money (2008) -- Finance Documentary
  9. केपिटलिज्म - ए लव स्टोरी - Capitalism: A Love Story (2009) -- Finance Documentary 
  10. फलोर्ड - Floored (2009) -- Stock Trading Documentary 
  11. इनसाइड जॉब - Inside Job (2011) – Financial Crisis 2008, Finance Movie 
  12. बेटिंग ऑन जीरो - Betting On Zero -- Big bet on short selling on one company
  13. हैंक: 5 ईयर्स फ्रोम द ब्रिंक - Hank: 5 Years from the Brink -- Bailout of the banking system in 2008
  14. चेजिंग मैडॉफ - Chasing Madoff (2011)
  15. मनी फॉर नथिंग - Money for Nothing (2013)

आखिरी बात


तो ये सब जो फिल्में जो शेयर बाजार पर आधारित हेैं, उनको आपको जरूर देखना चाहिये यदि आप स्टॉक मार्केट में थोड़ी बहुत भी दिलचस्पी लेते हैं। 

हालीवुड की कुछ फिल्में तो वैसे भी बहुत प्रसिद्ध हैं, उनको तो बिना शेयर बाजार के केवल रोमांच और अच्छे अभिनय तथा कथानक के लिये देखा जा सकता है।

Manisha मंगलवार, 25 अगस्त 2020

हिंदी को बढ़ावा देने के लिये हम सब क्या करें?


भारत सरकार की राजभाषा नीति के अनुसार हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। सरकार हिंदी को बढ़ावा देने के लिये हर साल 14 सितम्बर को हिंदी दिवस का सभी सरकारी कार्यालयों में आयोजन करती है। सरकार तो हिंदी को बढ़ावा देने के लिये जो कुछ कर सकती है वो करती है पर हिंदी को बढ़ावा देने के लिये सबसे ज्यादा ये जरुरी है कि हम हिंदी भाषी लोग भी कुछ प्रयत्न करें।

हिंदी को बढ़ावा


ये बात सर्वमान्य है कि हिंदी को हम हिंदी वालों ने ही छोड़ दिया है। हमें हिंदी से तो प्यार है लेकिन नौकरी के बाजार में अंग्रेजी की महत्ता देखकर हम सब हिंदी के प्रति उदासीन होते जा रहे हैं। जबकि हमें हिंदी को ही हर क्षेत्र में बढ़ाना चाहिये।

ध्यान रहे कि आजादी के आन्दोलन में हिंदी का बहुत बड़ी योगदान है, बहुत लोगों ने अपनी कुर्बानी दी है।

चलिये अंग्रेजी की जो महत्ता आज के जमाने में है वो तो रहेगी ही और समय के साथ कम भी होगी, लेकिन तब तक हम कुछ छोटे छोटे उपाय करके अपने अपने लेवल पर हिंदी को थोड़ा थोड़ा बढ़ावा तो दे ही सकते हैं।

हिंदी को बढ़ावा देने के विभिन्न उपाय



आइये देखें कि किन छोटे छोटे उपायों से हिंदी को बढ़ावा दे सकते हैं -


  1. अगर हम कोई व्यवसाय करते है तो हम कोशिश कर सकते हैं कि समस्त साइन बोर्ड, नाम पट्टिकायें, काउन्टर बोर्ड, सूचना पट्ट आदि को हिंदी में अवश्य ही लिखें भले ही साथ में आप अंग्रेजी या अन्य किसी भाषा में भी लिखवा लें। महाराष्ट्र में सरकार ने हर बोर्ड पर मराठी में लिखने का नियम बना रखा है जिससे हिंदी वालों को भी वहां कुछ पढ़ने में दिक्कत नहीं आती है (मराठी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है)। जबकि अगर आप लखनऊ जायें तो आप देखेंगे कि दुकानों के बोर्ड अधिकांशतः अंग्रेजी में लिख हुये हैं।
  2. सभी पपत्रो, दस्तावेजों, मुद्रित सामग्री तथा अन्य लेखन सामग्री को हिंदी में मुद्रित (प्रिंट) करवाया जाये।
  3. हो सके तो व्यवसायिक और व्यक्तिगत पत्रो को हिंदी में ही लिखा जाये।
  4. विजिटिंग कार्ड पूर्ण रुप से आकर्षक हिंदी में लिखे जायें। अगर पूर्ण रुप से हिंदी में लिखना संभव नहीं है तो कुछ तो हिंदी मे होना ही चाहिये (कम से कम आप का नाम तो आकर्षक हिंदी में हो सकता है)।
  5. संभव हो तो कंप्यूटर पर यूनीकोड एनकोजिंड वाली टाईपिंग सीख लीजिय। यकीन मानिये हिंदी टाइपिंग सीखना बहुत ही आसान है, आप 2-3 दिन में ही अच्छी खासी टाइपिंग सीख जायेंगे।
  6. लिखने में आसान हिंदी पा प्रयोग करें ताकि सभी लोग समझ सकें।
  7. अच्छी हिंदी जानने वाले कभी कभी उन लोगों की कठिनाई नहीं समझ नहीं समझ पाते जिन्होंने हाल ही में थोड़ी बहुत हिंदी सीखा है। ऐसे लोगों की कठिनाई का पूरा ध्यान रखना चाहिये और अपने पांडित्य का प्रदर्शन नहीं करना चाहिये।
  8. हिंदी का वाक्यों में संस्कृत के कठिन शब्दों का अनावश्यक प्रयोग न करें।
  9. हिंदी के वाक्यों में अंग्रेजी की वाक्य संरचना से बचें अर्थात वाक्य रचना हिंदी भाषा की प्रकृति के अनुसार ही होनी चाहिये। वह अंग्रेजी मूल का अटपटा अनुवाद नहीं होना चाहिये।
  10. जहां कहीं भी यह लगे कि पढ़ने वाले को हिंदी में लिखे किसी शब्द या पदनाम को समझे में कठिनाई हो सकती है, तब कोष्ठक में अंग्रेजी रुपान्तर भी लिख देना उपयोगी रहेगा।
  11. अगर आप को हिंदी में लिखने में कठिनाई या झिझक है तो इसके लिये शुरूआत छोटी-छोटी टिप्पणियों को हिंदी में लिख कर करनी चाहिये। आप हिम्मत करेंगे तो धीरे-धीरे सब हिंदी में काम करने लगेंगे।
  12. खास बात ये है कि हमें अंग्रेजी में सोचकर हिंदी में नहीं लिखना चाहिये। कोशिश यह होनी चाहिये कि हिंदी में ही सोच कर हिंदी में  लिखें।
  13. हिंदी मे लिखते समय शब्दों के लिये अटकिये मत, किसी भी शैली के लिये रुकिये नहीं और अशुद्धियों से घबरायें नहीं।
  14. कोशिश करें कि मौलिक रुप से हिंदी लेखन करें। अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद का सहारा बहुत कम लेना चाहिये क्योंकि दोनों भाषाओं की शैली अलग-अलग है। खासकर मशीनी अनुवाद जैसे कि गूगल अनुवाद में काफी गलतियां हो सकती हैं। ऐसी मशीनी भाषा से बचें।
  15. हो सकता है कि शुरू में हिंदी में काम करने में आपको झिझक महसूस हो सकती है किन्तु काम करते-करते आप देखेंगे कि अंग्रेजी की तुलना में हिंदी सरल भाषा है, इसमें समय बचता है, हिंदी भाषा हमारी अभिव्यक्ति को स्पष्ट और प्रभावी बनाती है।


तो हम सब को प्रण लेना चाहिये कि हम हिंदी में ही काम करेंगे और हिंदी को बढ़ावा देने के सभी प्रकार के उपाय करेंगे ताकि हमारी प्यारी हिंदी भाषा का प्रसार और प्रचार हो सके।

Manisha रविवार, 26 जुलाई 2020

भारत के राज्य और उनकी भाषायें


भारत में इस समय (जून 2020) 28 राज्य और 9 केन्द्र शासित राज्य हैं। भारत में नये राज्यों का गठन और विलय होता रहता है और इसके लिये भारत के संविधान में भी आवश्यक संशोधन किया जाता है। सबसे बड़ा जो राज्यों का पुनर्गठन 1956-57 में किया गया था वो खास तौर पर भाषाओं के आधार पर ही किया गया था और उसके कारण नये राज्य भारत में बने थे। बाद के वर्षों में भी ये प्रक्रिया जारी रही और नये राज्य बनते रहे।



भारत का संविधान और भाषायें


भारत के संविधान में भारत संघ और उसके राज्यों की कोई आधिकृत भाषा नहीं बताई गई है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 343 से 351 तक भारत की अधिकृत भाषाओं के बारे में बात की गई है। भारत के संविधान में अनुच्छेद 343 के अनुसार पहले भारत की राजभाषा का दर्जा हिंदी को दिया गया था परंतु 1963 के संविधान संशोधन करके हिंदी के साथ साथ अंग्रेजी को भी यह दर्जा दिया गया। >

संविधान के आठवें अध्याय में भारत की 22 भाषाओं को अधिसूचित किया गया है जो कि आधिकारिक तौर पर भारत की राजभाषायें हैं (साथ ही साथ अंग्रेजी भी है यानी कि कुल 23 हैं)।

भारत का संविधान राज्यों की आधिकारिक और शासकीय भाषाओं के बारे में मौन है लेकिन सभी राज्यों ने अपने अपने राज्य का प्रथम प्रमुख भाषा को अधिसूचित किया हुआ है। कई राज्यों ने तो दूसरी, तीसरी और चौथी भाषा तक को मान्यता दी हुई है।

भारत के राज्यों का भाषायें Indian State Languages


भारत का राज्यों की अधिकारिक भाषायें


यहां पर हम भारत के समस्त राज्यों की जून 2020 तक की स्थिति के अनुसार भाषायों की सूची बना रहे हैं। जम्मू कश्मीर और लद्दाख के बारे में स्थिति साफ होनी बाकी है।

  • पूर्ण राज्य

    1. आंध्र प्रदेश - तेलुगु
    2. अरुणाचल प्रदेश - हिंदी/अंग्रेजी
    3. असम - असमिया (तीन बाराक घाटी जिलों की भाषा बंगाली और बोडोलैंड काउंसिल क्षेत्र का भाषा बोडो है)
    4. बिहार - हिंदी
    5. छत्तीसगढ़  - हिंदी
    6. गुजरात - गुजराती
    7. हरियाणा - हिंदी
    8. हिमाचल प्रदेश - हिंदी
    9. झारखण्ड - हिंदी
    10. कर्नाटक - कन्नड़
    11. केरल - मलयालम
    12. मध्य प्रदेश - हिंदी
    13. महाराष्ट्र - मराठी
    14. गोवा - कोंकणी / मराठी
    15. मणिपुर - मणिपुरी
    16. मेघालय - हिंदी/अंग्रेजी
    17. मिजोरम - मिजो
    18. नागालैंड - हिंदी/अंग्रेजी
    19. त्रिपुरा - बंगाली
    20. ओडिशा - उड़िया
    21. पंजाब - पंजाबी
    22. राजस्थान - हिंदी
    23. तमिलनाडु - तमिल
    24. तेलंगाना - तेलुगु
    25. उत्तर प्रदेश - हिंदी
    26. उत्तराखण्ड - हिंदी
    27. पश्चिम बंगाल - बंगाली (दार्जिलिंग को छोढ़कर, दार्जिलिंग की भाषा - नेपाली/बंगाली, गोरखा क्षेत्र प्रशासन - नेपाली)
    28. सिक्किम - नेपाली/अंग्रेजी  

  • केन्द्र शासित राज्य

    1. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह - हिंदी
    2. दिल्ली - हिंदी
    3. दादरा नागर हवेली - गुजराती
    4. दमन एवं दीव - गुजराती
    5. चंडीगढ़ - हिंदी/अंग्रेजी
    6. जम्मू एवं कश्मीर - उर्दू, कश्मारी, डोगरी एवं हिंदी
    7. पुड्डुचेरी - तमिल (माहै और यनम को छोढ़कर)
    8. लक्षद्वीप - मलयालम
    9. लद्दाख - लद्दाखी, तिब्बती, उर्दू, कश्मीरी, डोगरी एवं बाल्टी


भारत की 22 राजभाषायें


संविधान के आठवें अध्याय में अनुच्छेद 344(1) और 351 के अनुसार भारत की 22 भाषाओं को अधिसूचित किया गया है जो कि आधिकारिक तौर पर भारत की राजभाषायें हैं (साथ ही साथ अंग्रेजी भी है यानी कि कुल 23 हैं)।   As per Articles 344(1) and 351 of the Indian Constitution, the eighth schedule includes the recognition of the following 22 languages:
  1. असमिया Assamese
  2. बंगाली Bengali
  3. बोडो Bodo
  4. डोगरी Dogri
  5. गुजराती Gujarati
  6. हिंदी Hindi
  7. कन्नड़ Kannada
  8. कश्मारी Kashmiri
  9. कोंकणी Konkani
  10. मैथली Maithili
  11. मलयालम Malayalam
  12. मणिपुरी Manipuri
  13. मराठी Marathi
  14. नेपाली Nepali
  15. उड़िया Odia
  16. पंजाबी Punjabi
  17. संस्कृत Sanskrit
  18. संथाली Santali
  19. सिंधी Sindhi
  20. तमिल Tamil
  21. तेलुगु Telugu
  22. उर्दू Urdu
  23. अंग्रेजी English - ये 22 अनुसूचित भाषाओं की सूची में नहीं है पर 1963 के संविधान संशोधन के अनुसार इसे हिंदी के साथ जोड़ा गया था। This is not in the list but it is used and inserted by constitutional amendment of 1963

Manisha शनिवार, 13 जून 2020

ऑनलाइन मनोरंजन में ही हिंदी सुपरहिट है


भारत में हिंदी की जो स्थिति है वो किसी से  छुपी नहीं है। भारत के रोजगार बाजार से हिंदी लगभग गायब हो चुकी है। सरकारी क्षेत्र में भी कुछ विशेष प्रकार की जैसे कि राजभाषा विभाग में अनुवादक या हिंदी अधिकारी एवं हिंदी के अध्यापक इत्यादि की ही नौकरियां ऐसी हैं जो कि हिंदी भाषा के आधार पर आप पा सकते हैं अन्यथा सब जगह अंग्रेजी का ही बोलबाला है। 

यहां तक की ऑनलाइन जगत में कमाई कर के हिंदी ब्लॉगरों के लिये डॉट कॉम लाइफ स्टाइल अभी संभव नहीं है। हिंदी के ब्लॉगरों के लिये कमाई ज्यादा है ही नहीं।

निजी क्षेत्र में तो ऐसा लगता है कि उन्हें पता ही नहीं है कि हिंदी भी कोई भाषा है। केवल अपना माल बेचने के लिये विज्ञापन में जरुर हिंदी का प्रयोग करते हैं। सभी साक्षात्कार और सूचना आदान-प्रदान के अंग्रेजी में ही होता है। 

कभी आप किसी कंपनी के कॉल सेंटर को फोन करिये, तो आप पायेंगे कि 1 नंबर पर भाषा का चयन हमेशा अंग्रेजी ही होगा, हिंदी तो 2 नंबर पर या तीसरे नंबर पर चुनने को मिलेगी। 

ऐसे समय में सिर्फ फिल्में, टीवी सीरियल, गाने और इंटरनेट आधारित ऑनलाइन मनोरंजन के साधनों पर ही हिंदी न केवल चल रही है बल्कि सुपरहिट भी है। हिंदी फिल्मों की वजह से कम से कम दुनिया के एक बड़े हिस्से में हिंदी समझ ली जाती है।  लिखने पढ़ने में तो भारत मे ही हिंदी की स्थिति खराब  है। 

आपने अक्सर हिंदी के समाचार पत्रों और हिंदी के समाचार चैनलों पर हिंदी के शब्दों की गलत वर्तनी (Spelling) को देखा होगा या फिर धड़ल्ले से हिंदी के आसान शब्दों के होते हुये भी अंग्रेजी के शब्जों का प्रयोग होते देखा होगा।

गलत हिंदी को लोग सामान्य मान कर चलते हैं। हिंदी भाषी क्षेत्र के लोगों को दोयम दर्जे के समाचार और कार्यक्रम परोसे जाते हैं। आप देखेंगे कि अंग्रेजी और हिंदी के अखबार और पत्रिकायों के स्तर  में बहुत विरोधाभास है

जब से भारत में इंटरनेट की गति बढ़ी है और वो सस्ता भी हुआ है तब से ऑनलाइन मनोरंजन के साधनों जैसे यूट्यूब (YouTube), हॉटस्टार (Hotstar), नेटफ्लिक्स (Netflix), जी-5 (ZEE 5), एमएस प्लेयर (MX Player), वूट (Voot), अमेजॉन प्राइम वीडियो (Amazon Prime Video) इत्यादि की लोकप्रियता काफी बढ़ गई है। इन सब में भी हिंदी के ही कार्यक्रम सब से ज्यादा पसंद करे जाते हैं।  मनोरंजन सब को अपनी ही भाषा में चाहिये। 

अब एक रिसर्च क्षोध के अनुसार इस बारे में दिलचस्प डाटा जारी किया है। इस क्षोध के अुनसार ऑनलाइन मनोरंजन में हिंदी ही सुपरहिट है। बड़े शहरों में तो हिंदी के साथ साथ फिर भी अंग्रेजी व अन्य भाषायों के कार्यक्रम देखे जाते हैं पर दूसरो टीयर-2 व टीयर-3 एवं कस्बों में हिंदी भाषा में ही मनोर्ंजन देखा जाता है। नीचे दी गई चित्र को क्लिक कर के पढ़े और बतायें की सहमत हैं या नहीं।

Hindi Top Language on OTT Platform ऑनलाइन मनोरंजन में ही हिंदी सुपरहिट है

Manisha मंगलवार, 5 मई 2020

हिंदी आबू धाबी कोर्ट मे तीसरी भाषा बनी


सभी हिंदी प्रेमियों के लिये ये गर्व की बात है कि हमारी प्यारी हिंदी भाषा अब आबू धाबी के कोर्ट में तीसरी आधिकारिक भाषा बन गई है। वहां पर बड़ी संख्या में भारतीय रहते हैं जो कि लगभग 30 प्रतिशत के आसपास है।

Hindi Third Abu Dhabhi Court  Language


Manisha सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

सोशल मीडिया पर हिंदी के नये शब्द बन रहे हैं


सोशल मीडिया जो कि खुद भी एक नया हिंदी का शब्द बन गया है क्योंकि हिंदी में इसे ही अपना लिया लगता है। इंटरनेट पर हिंदी की विषय सामग्री वैसे ही कम है, अब हिंदी के अधिकांश ब्लॉगर और लिखने वाले फेसबुक और ट्विटर पर चले गये हैं क्योंकि वहां पर तुरंत पढ़ने वाले मिलते हैं।  

सोशल मीडिया का प्रयोग दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है और बढ़ते जा रहे हैं उस पर हिंदी में लिखने वाले। 

ये नये हिंदी वाले अधिकांश भावना प्रधान होते हैं, और भावना में ही वो अपनी बात भावनाओं में बह कर ही करते हैं। 

इसी कारण से अपनी बात कहने के लिये नये नये शब्दों को बना रहे हैं।  

वैसे भी किसी भाषा का विकास नये नये शब़्दों के निरंतर सृजन से ही होता है।


New Words in Hindi on Social Media सोशल मीडिया पर हिॆदी के नये शब्द बन रहे हैं


इधर जब से देश में मोदी और केजरीवाल का प्रभाव बढ़ा है तब से उनके समर्थक और विरोधी  सोशल मीडिया  पर कुछ ज्यादा ही  सक्रिय होकर अजीब अजीब से नये शब्द बना कर लिख रहे हैं।  

वामी, कांगी, आपिया, अपोला, आपटर्ड, भक्त, अंधभक्त, शांतिदूत, शांतिप्रिय, सूतिया, चादरमोद, लकड़बग्घा, शर्मनिरपेक्ष, अंडोला, अंडभक्त, लिबरांडू इत्यादि कुछ शब्द हैं जो कि सोशल मीडिया पर ईजाद किये गये हैं। 

इधर कुछ राजनीतिक और प्रसिद्ध लोगों के लिये भी सोशल माडिया पर कुछ नाम बन गये हैं, लगभग हर वो व्यक्ति जो कि सोशल माडिया पर है वो इन शब्दों को पढ़ कर उससे संबंधित राजनैतिक व्यक्ति को समझ लेगा।

दिल्ली का घूंघरु सेठ, घूंघरु सेठ, फेंकू, पप्पू, पिंकी, भूरी काकी, छोटा पेंग्यूइन इस तरह की उपाधियों के कुछ उदाहरण हैं।

इसके अलावा भी कुछ अन्य शब्द हैं जो नये बने हैं। आप भी इन शब्दों का सोशल मीडिया पर आनन्द लीजिये।

Manisha सोमवार, 2 अक्टूबर 2017

हिंदी ब्लॉगिंग दिवस की शुभकामना 


जून 2006 में जब यह हिंदी ब्लॉगिंग के लिये जब यह ब्लॉग (हिंदी ब्लागरों ने ब्लॉग को चिठ्ठा नाम दिया है, जो कि अच्छा है) शुरू किया था तब नाम के ही कुछ हिन्दी ब्लॉग थे, पर हिन्दी चिठ्ठाकारी जारी रही और फली फूली भी पर फेसबुक के आने के बाद हिंदी ब्लॉगिंग  के अधिकांश चिठ्ठाकार और साथ ही साथ नये ब्लॉगर भी फेसबुक पर स्थानांतरित हो गये। फेसबुक पर आज हिंदी ब्लॉगिंग न केवल जीवित है बल्कि बहुत फल फूल रही है।

Hindi Blogging हिंदी ब्लॉगिंग


बहरहाल फेसबुक के अलावा स्वतंत्र रुप से हिंदी के स्थापित चिठ्ठे अब कम ही रह गये हैं और जो बच गये हैं और चल रहे है वो भी  बस चल रहे हें, ऐसे में  आज के अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर्स डे पर सभी हिंदी ब्लॉगरों को शुभकामनायें।

देखें - हिंदी के ऊपर हमारे बहुत सारे ब्लॉग पोस्ट

#हिंदी_ब्लॉगिंग

Manisha शनिवार, 1 जुलाई 2017

मोबाइल पर अग्रेजी मे सर्च का हिंदी में भी परिणाम दे रहा है गूगल


गूगल आजकल पूरी कोशिश कर रहा है कि भारतीय भाषाओं खास कर हिंदी में इंटरनेट पर पाठ्य सामग्री (कंटेंट) को
अग्रेजी मे सर्च पर भी हिंदी में परिणाम दे रहा है गूगल
बढ़ाया जाये। 

गूगल के अनुमान के अनुसार आने वाले कुछ समय में भारत के ग्रामीण इलाकों में स्मार्ट मोबाइल फोन के प्रचलन के बढ़ने से भारतीय भाषाओं खास कर हिंदी में इंटरनेट कंटेट की आवश्यकता रहेगी। 

इसी को ध्यान में रखते हुये गूगल ने मोबाइल पर अब अपने खोजक (सर्च इंजन) पर एक नई सुविधा शुरु की है। अब अपने मोबाइल पर गूगल सर्च करने वालों को हिंदी और अंग्रेजी के परिणाम एक साथ दिखाई दे रहे है। बस एक टैब पर क्लिक से मनचाहा परिणां देख सकेंगे।   

गूगल के अनुसार इस सुविधा से भारत में खोज बिलकुल रोजमर्रा की जिंंदगी जैसा हो जायेगा, जैसे लोग जरुरत के हिसाब से बोलचाल में भाषा बदलते हैं, ऐसे में सिर्फ एक टैब पर क्लिक करके अपनी पसंद की भाषा में सर्च के नताीजे देख सकेंगें।

मैंने अपने आईफोन पर गूगल में 'Who am I'  खोज के लिये टाइप किया तो देखा कि बगल के टैब में हिंदी में भी परिणांम दिख रहा था। अभी इसमें और सुधार की गुंजाइश है गूगल जरुर इसको सुधारेगा।

Manisha शनिवार, 9 जुलाई 2016

हिंदीडायरी पर ब्लॉग लेखक आमंत्रित हैं


आप में से जो लोग भी इस ब्लॉग (www.HindiDiary.com) पर अपने लेख और किसी भी विषय पर अगर लिखना चाहते हैं तो आप आमंत्रित हैं।

आप के नाम के साथ साथ आप के अपने ब्लॉग के लिंक भी लेख के साथ दिया जायेगा।

जो लोग पहले से ही अपने हिंदी में ब्लॉग चला रहे हैं, उनके लिये ये एक अच्छा मौका है।

और उदीयमान ब्लॉग लेखक भी यहां ब्लॉग लिख कर अपनी ब्लॉगिंग को  तराश सकते हैं। आप अपना ब्लॉग लेख manisha2106AToutlook.com पर ईमेल से भेज सकते हैं।

हिंदीडायरी पर ब्लॉग लेखक आमंत्रित हैं

Manisha रविवार, 26 जून 2016

हिंदी ब्लॉगरों के लिये डॉट कॉम लाइफ स्टाइल अभी संभव नहीं


हिंदी ब्लॉगिंग अभी भी शैशव अवस्था में ही है। 2006-2009 के दौरान हिंदी में काफी ब्लॉग शुरू किये गये थे और हिंदी ब्लॉगिंग ने एक आंदोलन का रुप ले लिया था। ब्लॉग के लिये हिंदी में चिठ्ठा शब्द ईजाद किया गया जो कि अपने आप में काफी प्रचलित हुआ।

इसी दौरान अंग्रेजी में भी कई भारतीय और विदेशी ब्लॉगरों ने अलग अलग विषयों पर ब्लॉग बना कर ब्लॉगिंग को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। इन लोगों ने ब्लॉगिंग की इस विधा को पूर्ण समय के लिये अपनाया और कइयों ने तो अपनी अच्छी खासी नौकरियां छोड़ कर ब्लॉगिंग को अपनाया और ब्लॉगिंग ने भी इनके निराश नहीं किया और इन सभी ब्लॉगरों को अच्छा खासा नाम और मिला और लाखों रुपये की मासिक आमदनी भी मिली।

ब्लॉगिंग के इस काम से ब्लॉगरों को कहीं भी कहीं भी काम करने की सुविधा मिली और अपने समय को वो लोग अपने परिवार और अपने शौक को दे पा रहे हैं। इसी से डॉट कॉम लाइफ स्टाइल शब्द ने जन्म लिया।

इस डॉट कॉम लाइफ स्टाइल में आदमी (ब्लॉगर) अपने समय का खुद मालिक है और अपने आराम करने और सोने के समय में भी पैसा कमा रहा है। अपने समय का अपने हिसाब से प्रयोग कर सकता है। हालांकि ऐसी स्थिति पाने के लिये अच्छी खासी मेहनत और किस्मत भी चाहिये।

Dot Com Lifestyle for Hindi Bloggers
Dot Com LifeStyle for Hindi Bloggers


पर हिंदी ब्लोगिंग वालो के लिये ये अभी बहुत दूर की कौड़ी है।

एक तो हिंदी ब्लॉगिंग में उच्च स्तरीय ब्लॉग नहीं हैं, वहीं ब्लॉग से पर्याप्त मात्रा में आय न हो पाना भी एक कारण है। दरअसल हिंदी ब्लगिंग की सबसे बड़ी समस्या अभी भी पाठकों की कम संख्या है।

कम ब्लॉग ट्रैफिक के कारण हिंदी ब्लॉगरों उतनी कमाई भी नहीं कर पाते है। साथ ही साथ हिंदी ब्लॉगरों ने पिछले 2-3 सालों में इन सब हालातों को देखते हुये सोशल मीडिया जैसे कि फेसबुक और ट्विटर पर अपने आपको स्थानान्तरित कर लिया है जहां पर तुरंत कमेंट और लाइक के द्वारा उनको पसंद किया जा रहा है ओर इस तरह हिदी ब्लॉगरों ने अपने आपको सोशल माडिया पर स्थापित कर लिया है।

अपने मोबाइल से हिंदी ब्लॉगर कहीं से भी अपनी बात लिख पा रहे हैं। इससे हिन्दी ब्लॉगरों को पाठक मिले हैं। लेकिन हिन्दी ब्लॉगिंग के विकास के लिये कोई ज्यादा अच्छी बात नहींं है। इस कारण हिंदी मे प्रोफेशनल या पेशेवराना ब्लॉगिंग का स्वतंत्र विकास नहीं हो पा रहा है। दरअसल सोशल मीडिया से पैसा कमाना तो अभी संभव नहीं है। भविष्य में शायद हो सकता है।

एक और अन्य बात ये है कि सोशल मीडिया में लिखे गये ब्लॉग को पेज खोजी इंजन जैसे कि गूगल और बिंग इत्यादि द्वारा नहीं सहेजा जाता है। जिसकी वजह से इंटरनेट संसार पर हिंदी के पेजों की संख्या अन्य भाषा के पेजों के मुकाबले में कम है। इसी वजह से विज्ञापन देने वाले संस्थान हिंदी के वेब पेजों पर अभी हिंदी में विज्ञापन नहीं दे रहे हैं। और इसी वजह से इंटरनेट पर विज्ञापनों का प्रबंधन करने वाली लगभग सभी कंपनियां हिंदी ब्लॉगरों को अपने विज्ञापन के लिये अयोग्य घोषित कर देती हैं।

हालंकि गूगल ऐडसेंस ने अब हिंदी के वेब पेजों के लिये अपना दरवाजा खोल दिया है। पर हिंदी विज्ञापन अभी भी न के बराबर हैं।

मार्च 2016 में गूगल ने गूगल ऐडसेंस के ऊपर एक कार्याशाला का आयोजन किया था, जिसमें मुझे भी जाने के लिये निमंत्रण मिला था। इस कार्यशाला में गूगल की एक प्रस्तुति हिंदी वेब पेजों के लिये थी। गूगल के अनुसार आने वाले समय में भारत में स्मार्ट फोन बढ़ने वाले हैं और ये बढ़ोत्तरी अधिकांशतया छोटे शहरों, कस्बों और ग्रामीण इलाकों में होने वाली है, ऐसे समय में वो अपनी भाषा यानी कि मुख्य रुप से हिंदी में ही इंटरनेट पर रहना चाहेंगे।

गूगल का ये मानना है कि इन भाषाओं में कंटेट की जबर्दस्त मांग आने वाली है। गूगल ने अपनी तरफ से इसके लिये काफी तैयारी कर रखी है। गूगल ऐडसेंस को पहले ही हिंदी के लिये खोल दिया गया है, और गूगल ने अनुवादक और टाइपिंग टूल दिये हैं।

अब गूगल ने अपने सर्च इंजन में भी हिंदी, हिंगलिश, अंग्रेजी हिंदी मिश्रित भाषा, अंग्रेजी में लिखी गई हिंदी को समझ कर उससे हिंदी को जानने वाले कलन विधि (अलगोरिदम) का विकास कर लिया है। लेकिन गूगल के अनुसार हिंदी में इटरनेट पर अभी कथन (कंटेंट) कम है और ये काम तो केवल हिंदी वाले ही कर सकते हैं।

गूगल की इस बात को पहले से स्थापित अंग्रेजी के कई बड़े और नामी विषय आधारित वाले ब्लॉगरों ने समझ लिया है और वो अपनी विषय सामग्री को ब्लॉग के हिंदी संस्करणों को भी शुरु कर रहे हैं या करने वाले हैं।

ऐसे में जब तक हिंदी ब्लॉगर इंटरनेट पर हिंदी में कथन का विकास नहीं करते तब तक हिंदी ब्लॉगरों की कमाई बढ़ने वाली नहीं है और हिंदी ब्लॉगरों के लिये डॉट कॉम लाइफ स्टाइल तब तक संभव नहीं है।

पर आने वाले समय में तय है। इसलिये हम सब हिंदी ब्लॉगरों को इंटरनेट पर खूब लिखना चाहिये और हिंदी के प्रसार प्रचार में योगदान देना चाहिये।

Manisha सोमवार, 13 जून 2016

इस ब्लॉग का पहले का डोमेन नाम मेरे से असावधानी वश कब अपनी मियाद पूरी करके खत्म हो गया कुछ पता
https://www.HindiDiary.com
ही नहीं चला। मैंने बहुत कोशिश की कि मुझे पहले वाला डोमेन नाम वापस मिल जाये परन्तु ऐसा न हो सका । अतः हारकर अब नया डोमेन नाम https://www.HindiDiary.com लिया है । उम्मीद है कि अब इस हिंदी ब्लॉग पर लेखन निरंतर बना रहेगा ।

Manisha रविवार, 13 जनवरी 2013
अब मैंने अपने हिंदी ब्लॉग को पुराने डोमेन नाम से नये डोमेन नाम हिंदीडायरी.कॉम (https://www.hindidiary.com) पर स्थानान्तरित कर लिया है।

www.HindiDiary.com

अब नये डोमेन नाम हिंदीडायरी.कॉम पर

Manisha शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

लोगों की भाषा क्षमता कम हो रही है


आजकल हम रोज देखते हैं कि विभिन्न कार्यक्रमों में लोग जो भाषा बोलते हैं वो इतनी हल्की होती है कि समझ में नहीं आता कि भाषाओं के मामले में समृद्ध भारत को क्या होता जा रहा है?  शिक्षा के तमाम अवसरों के बावजूद पढ़-लिखे लोग भी अनपढ़ों के बराबर ही लगते हैं। 

टीवी के विभिन्न चर्चा वाले कार्यक्रमों को देखिये, विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के प्रवक्ताओं को देखिये, नेताओं द्वारा दिये जाने वाले बयानो को देखिये, फिल्मों के संवादों को देखिये, संसद में होने वाली बहसों को देखिये आपको स्वयं समझ में आ जायेगा कि किस प्रकार की भाषा का प्रयोग होने लगा है। 

Manisha रविवार, 7 फ़रवरी 2010

अंग्रेजी और हिंदी के अखबार और पत्रिकायों में बहुत विरोधाभास हैं


अंग्रेजी और हिंदी के अखबार और पत्रिकायों  बहुत विरोधाभास हैं एनडीटीवी के पत्रकार एवं हिंदी के अच्छे चिठ्ठाकार श्री रवीश कुमार जी ने अपने चिठ्ठे कस्बा  में यह प्रश्न उठाया था कि हिंदी-अंग्रेजी के अख़बारों का किसान अलग क्यों होता है?  

दरअसल ये बहुत ही बुनियादी सवाल है और ये वास्तव में हिंदी और अंग्रेजी भाषा के द्वारा सोचने और समझने का भी अन्तर है और साथ ही संस्कृतियों का भी अंतर हैं। 

मैं हिंदी और अंग्रेजी की तमाम पत्रिकायें (खास कर महिलाओं की) एवं समाचार पत्र पढ़ती हूं और कई विषयों पर देखा है कि अंग्रेजी के अखबार और पत्रिकायों की सोच बिलकुल अलग है।

  • अंगेजी की पत्रिकाये हमेशा इस तरह के लेख छापती हैं – हाउ टू प्लीज योर मैन, नो हिज सेक्सी प्लेसेज, फिफ्टी वेज टू सेटिस्फाई हिम इत्यादि। इनमें योर मैन की बात की जाती है यानी ये बताया जाता है कि किसी से भी आप संबंध बना सकती हो। यहां कभी भी हसबैण्ड शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। पूरा ध्यान पति-पत्नी पर न होकर मैन-वूमेन पर होता है।
  • अंगेजी के सारे अखबार मिलकर भी अकेले दैनिक जागरण से कम बिकते हैं (ताजा सर्वेक्षण 2009 के अनुसार) लेकिन फिर भी हिंदी समाचार पत्रों को भाषाई या वर्नाकुलर लिखते हैं और अपने आप को नेशनल (राष्ट्रीय) समाचार पत्र कहते हैं।
  • पश्चिम की हर बुराई जैसे कि प्रास्टीट्यूशन, लिव-इन-रिलेशनशिप, लेस्बियन और गे सेक्स इत्यदि के समर्थन में लेखों की अंग्रेजी पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में बहुतायत रहती है और उसके पक्ष में माहौल बनाते रहते हैं।
  • शराब के किसी बन्दीकरण के विरोध में भी अंग्रेजी पत्रकारिता सबसे आगे है।
  • अब अंग्रेजी ही इनका जीवन-यापन का साधन है इसलिये ये अंग्रेजी को बढ़ावा देने के लिये हमेशा हल्ला करते रहते हैं। अंग्रेजी इनके अनुसार अंतर्राष्ट्राय भाषा है जिसके बिना भारत का विकास नहीं हो सकता।
  • हिंदी के पत्र-पत्रिका वाले पता नहीं किस हीन भावना से ग्रस्त रहते हैं कि वो खुद ही हिंदी वालों को अंग्रेजी वालों के समतर समझते हैं। हिंदी के अखबारों और पत्रिकायों में वैज्ञानिक व अंतर्राष्ट्रीय विषयों पर बहुत ही कम छपता है। उनके अनुसार हिंदी के पाठकों का स्तर कम है।
  • स्वतंत्र किस्म के लेख हिंदी पत्रिकायों और समाचार पत्रों मे कम ही आते है, अधिकांश समाचार ऐजेंसी से लिया हुआ होता है।
  • हिंदी के समाचार पत्र स्थानीय समाचारों को बहुत ही अच्छा कवर करते हैं।

Manisha बुधवार, 25 नवंबर 2009

प्रसिद्ध अंगेरेजी ब्लॉगर अमित अग्रवाल नें सबसे मशहूर भारतीय ब्लोगों की सूची के हिंदी भाग में अब इस चिठ्ठे को भी शामिल कर लिया है। इसी समय मेरे इस हिंदीबात चिठ्ठे के 400 से के ऊपर फीड ग्राहक भी हो गये हैं।

HindiBaat-in-IndiaBlogs

Manisha मंगलवार, 24 नवंबर 2009

अंग्रेजी नामों वाली हिंदी फिल्में बन रही हैं



अगर आप ने गौर किया हो तो शायद ये देखा हो कि आजकल प्रदर्शित होने वाली अधिकांश फिल्मों के नाम अंग्रेजी में हैं। पिछले कुछ दिनों में रिलीज हुई फिल्मों में  वांटेड, ऑल द बेस्ट, ब्ल्यू, वेक अप सिड, फ्रूट एंड नट, डू नॉट डिस्टर्ब  इत्यादि प्रमुख हैं। 

अंग्रेजी नाम वाली हिंदी फिल्में बन रही हैं


हालांकि पहले भी ऐसी फिल्में पहले भी बनती रही है लेकिन पिछले कुछ समय से इस तरह की अंग्रेजी नाम वाली फिल्में कुछ ज्यादा ही बन रही हैं। 

अपनी कॉमेडी फिल्मों के लिये प्रसिद्ध डेविड धवन  अंग्रेजी नाम का इस्तेमाल काफी समय से कर रहे हैं उनकी कई फिल्मों के नाम इसी तरह के थे जैस् कि कुली नंबर वन, आंटी नंबर वन, हीरो नंबर वन, बीबी नंबर वन, पार्टनर, लोफर, डू नॉट डिस्टर्ब इत्यादि रहे हैं। 

राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त निर्देशक मधुर भंडारकर की तो हर फिल्म का नाम अंग्रेजी का होता है। उन्होनें अब तक चांदनी बार, पेज थ्री, कॉरपोरेट, ट्रैफिक सिगनल, फैशन आदि बनाई हैं जो कि अंग्रेजी नामों की है और अब वो एक और फिल्म जेल लेकर आ रहे हैं। 


आने वाली कुछ फिल्में भी इसी तरह से अंग्रेजी नामों वाली बन रही हैं

 आखिर क्या कारण है इस तरह से फिल्में बन रही है। कुछ बातें इस बात का शायद जबाब दे सकें 
  • हिंदी फिल्में अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रिलीज होती हैं और अंग्रेजी नाम से थोड़ा फायदा मिल सकता है। हिंदी फिल्मों की अधिकांश कमाई प्रवासी भारतीयों द्वारा फिल्में देखने से होती है, लिहाजा उन्हीं के हिसाब से फिल्में बनती हैं।
  • इससे ये भी पता चलता है कि भारत में मल्टीप्लेक्स में फिल्मे देकने वाले मध्यम और उच्च वर्ग के लिये ही फिल्में बन रही हैं
  • ये भी पता चलता है कि देश के अंदर के देसी और अंदर के इलाकों के लोगों की समस्याओं और उससे संबंधित फिल्में अब कम बनने लगी हैं।
  • भारत में अंग्रेजी की स्वीकार्यता भी इससे पता चलती है।
मेरे विचार में अपवाद के रुप में तो अंग्रेजी नाम वाली हिंदी फिल्में तो ठीक हैं लेकिन अगर ये बहुतायत से होने लगे तो खतरे की घंटी है। हमें समय रहते चेत जाना चाहिये।

Manisha रविवार, 25 अक्टूबर 2009

चिठ्ठाजगत के लिये नुकसान है ब्लॉगवाणी का बंद होना


ब्लॉगवाणीएक तो वैसे ही हिंदी के ब्लॉग पाठकों की संख्या की कमी से जूझ रहे हैं, वहीं दुसरी ओर हिंदी के चिठ्ठों के संकलन वाले एग्रीगेटर बंद होते जा रहे हैं। सबसे पुराना चिठ्ठा एग्रीगेटर नारद तो पहले से ही गायब था और अब ब्लॉगवाणी का बंद होना वास्तव में हिंदी चिठ्ठों के लिये बहुत नकसानदेह रहेगा।

जहां जरुरत इनकी संख्या को बढ़ाने की है वहीं पर ये बंद हो रहे हैं।

हालांकि ब्ल़गवाणी नें अपने वर्तमान रुप को बंद करने की कोई ठोस वजह नहीं बताई, जो बताई है वो किसी वेबसाईट के बंद होने के लिये को पर्याप्त कारण नहीं है।

>आखिर लोग तो वेबसाइटों की कमियों का फायदा उठाते हैं, उसके लिये कोई वेबसाइट थोड़े ही बन्द की जाती हैं?

मेरे विचार में ब्लॉगवाणी जैसे और संकलक खुलने चाहिये और उनको इन का व्यवसायिक दोहन भी करना चाहिये, बिना कमाई करे चल पाने मुश्किल हैं। फ्री सेवा करने की रोमानी दुनिया से बाहर निकल कर वास्तविक दुनिया के हिसाब से इन्हें चलाने की आवश्यकता है। आखिर अंग्रेजी के ब्लॉग एग्रीगेयटर भी तो ऐसा कर ही रहे हैं। लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता तब तक हिंदी ब्लॉगजगत को खासा नुकसान है।

पुनश्च : पाठकों की मांग पर ब्लोगवाणी वापस शुरु हो गया है। बहुत ही अच्छी खबर है।

Manisha मंगलवार, 29 सितंबर 2009

ये पाकिस्तानी अखबार का चित्र है


गौर से देखिये ये भारत के किसी अखबार में छपने वाले विज्ञापन का चित्र नहीं, बल्कि पाकिस्तान के कराची शहर से छपने वाले डॉन (Dawn)  अखबार का चित्र है। 

Manisha शनिवार, 26 सितंबर 2009

अज्ञात टिप्पणीकार पर रोक सही नहीं है


हिंदी चिठ्ठा जगत में इस समय अज्ञात टिप्पणाकारों द्वारा छद्म नामों से टिप्पणी करके लड़ाई-झगड़े कराने की कोशिश को लेकर हंगामा मचा हुआ। 

इस को लेकर आशीष खंडेलवालजी ने हिंदी ब्लॉग टिप्स के अपने चिठ्ठे पर कल काफी अच्छा व्यंग भी लिखा था। 

शास्त्रीजी और सुरेश चिपलूकरजी भी अपनी नाराजगी व्यक्त कर चुके हैं। 

मेरे विचार में परेशानी अज्ञात टिप्पणीकारों से न होकर उनके द्वारा की गई अनाप-शनाप टिप्पणियों को लेकर होनी चाहिये। 

अज्ञात या Anonymous पर रोक होना इंटरनेट की मुल अवधारणा के खिलाफ है। इंटरनेट के संस्थापकों ने इंटरनेट पर स्वतंत्र चिंतन और अभिव्यक्ति की अवधारणा को मजबूत करने के लिये ही इंटरनेट पर गुमनाम रहकर अपनी बात कहने की आजादी दी थी। इसका दुरुपयोग भी हुआ है लेकिन इसका फायद भी बहुत है। 

गुमनाम रहकर ही कई ब्लॉगर दुनिया में अपनी बात कह पाये हैं। क्या ईराक, ईरान, अफगानिस्तान, चीन या ऐसे कई देश जहां बोलने की आजादी नहीं है वहां पर लोग अपनी बात दुनिया के दूसरे हिस्सों में पहुंचा पाते? नहीं। 

कई बार अपनी बात आप अज्ञात रह कर ही कर सकते हैं। टिप्पणियों की भी ऐसी ही बात है। हम लोगों को अज्ञात टिप्पणी पर रोक के बजाय उस पर मोडरेशन लगा कर पहले उसे पढ़ कर आगे बढा़ना चाहिये।

 टिप्पणी अवांछित है, अश्लील है या किसी और को बदनाम करने के लिये की गई है, ऐसी टिप्पणी को हर हाल में रोका जाना चाहिये और इसके लिये कमेंट मोडरेशन काफी है। 

अज्ञात टिप्पणी पर रोक न लगाकर इसे सेंसर करना ज्यादा ठीक है।  अत: अज्ञात टिप्पणीकार पर रोक सही नहीं है।

Manisha शनिवार, 27 जून 2009