अंग्रेजी और हिंदी के अखबार और पत्रिकायों में बहुत विरोधाभास हैं

अंग्रेजी और हिंदी के अखबार और पत्रिकायों में बहुत विरोधाभास हैं


अंग्रेजी और हिंदी के अखबार और पत्रिकायों  बहुत विरोधाभास हैं एनडीटीवी के पत्रकार एवं हिंदी के अच्छे चिठ्ठाकार श्री रवीश कुमार जी ने अपने चिठ्ठे कस्बा  में यह प्रश्न उठाया था कि हिंदी-अंग्रेजी के अख़बारों का किसान अलग क्यों होता है?  

दरअसल ये बहुत ही बुनियादी सवाल है और ये वास्तव में हिंदी और अंग्रेजी भाषा के द्वारा सोचने और समझने का भी अन्तर है और साथ ही संस्कृतियों का भी अंतर हैं। 

मैं हिंदी और अंग्रेजी की तमाम पत्रिकायें (खास कर महिलाओं की) एवं समाचार पत्र पढ़ती हूं और कई विषयों पर देखा है कि अंग्रेजी के अखबार और पत्रिकायों की सोच बिलकुल अलग है।

  • अंगेजी की पत्रिकाये हमेशा इस तरह के लेख छापती हैं – हाउ टू प्लीज योर मैन, नो हिज सेक्सी प्लेसेज, फिफ्टी वेज टू सेटिस्फाई हिम इत्यादि। इनमें योर मैन की बात की जाती है यानी ये बताया जाता है कि किसी से भी आप संबंध बना सकती हो। यहां कभी भी हसबैण्ड शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। पूरा ध्यान पति-पत्नी पर न होकर मैन-वूमेन पर होता है।
  • अंगेजी के सारे अखबार मिलकर भी अकेले दैनिक जागरण से कम बिकते हैं (ताजा सर्वेक्षण 2009 के अनुसार) लेकिन फिर भी हिंदी समाचार पत्रों को भाषाई या वर्नाकुलर लिखते हैं और अपने आप को नेशनल (राष्ट्रीय) समाचार पत्र कहते हैं।
  • पश्चिम की हर बुराई जैसे कि प्रास्टीट्यूशन, लिव-इन-रिलेशनशिप, लेस्बियन और गे सेक्स इत्यदि के समर्थन में लेखों की अंग्रेजी पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में बहुतायत रहती है और उसके पक्ष में माहौल बनाते रहते हैं।
  • शराब के किसी बन्दीकरण के विरोध में भी अंग्रेजी पत्रकारिता सबसे आगे है।
  • अब अंग्रेजी ही इनका जीवन-यापन का साधन है इसलिये ये अंग्रेजी को बढ़ावा देने के लिये हमेशा हल्ला करते रहते हैं। अंग्रेजी इनके अनुसार अंतर्राष्ट्राय भाषा है जिसके बिना भारत का विकास नहीं हो सकता।
  • हिंदी के पत्र-पत्रिका वाले पता नहीं किस हीन भावना से ग्रस्त रहते हैं कि वो खुद ही हिंदी वालों को अंग्रेजी वालों के समतर समझते हैं। हिंदी के अखबारों और पत्रिकायों में वैज्ञानिक व अंतर्राष्ट्रीय विषयों पर बहुत ही कम छपता है। उनके अनुसार हिंदी के पाठकों का स्तर कम है।
  • स्वतंत्र किस्म के लेख हिंदी पत्रिकायों और समाचार पत्रों मे कम ही आते है, अधिकांश समाचार ऐजेंसी से लिया हुआ होता है।
  • हिंदी के समाचार पत्र स्थानीय समाचारों को बहुत ही अच्छा कवर करते हैं।

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2 टिप्‍पणियां

  1. Bahut sahi likha hai aapne Lekin sath me yah aapka personal najariya ho sakta hai.

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  2. Both of the media(Hindi & English) know very well who and what their reader is. They sell what their markets buy. The intention and the purpose behind publishing newspapers and magazines is not what it should be, which is awakening the people, but running the business only. Swine flu is spreading day by day in the country and no media whether print or electronic is giving news on it presently. When it outbroke in India, you could watch news on it 24 hrs on every newschannel. And when first death took place in Pune, it became biggest news of that day.

    Now, last time when i read it on some news website, the toll had crossed figure of 490. Media know well there is no big and new thing in Swine Flu taking its toll bigger day by day. And so, they are not giving coverage on it. What they shout and flash on screen are the news like- Kamal Khan makes a reentry in Big Boss, Has Dhoni fallen in love with..., Remains of Ashok Vatika found in Sri Lanka, and so on.

    So Bhaiya, sidhi si bat hai, Media chahe english hai ya Hindi, They are just doing their business. Vo woh bechenge jo bikega. Youth is very keen about sexual relationships. Hindi media desh ki sanskriti ko bachane ko dhindhora pitta hai. To doosri taraf angreji media youth ki utsukta ka fayda uthata hai. Dono me se hi kisi ko apni zimmedari se koi lena dena nahi hai. We should not expect a revoultion from Media. Hindi and local vernacular media politically influenced hote hain. To English midia ko aam public se koi lena dena nahi hai.

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