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शादी है जी आपको परेशानी तो होगी ही


शादी का मौसम है। हर तरफ घुड़चड़ी और बैंडबाजों का माहौल है। लोग सड़कों पर पटाखे चला रहे हैं, और नाच रहे हैं। शहनाई का सुर खुशियों में इजाफा कर रहा है। सड़क पर जश्न ही जश्न है। 

Indian Marriage


लेकिन इस जश्न के पीछे गाड़ियों का एक लंबा काफिला ऐसे लोगों का है जो उस बारात का हिस्सा नहीं हैं। सड़क पर जश्न मना रहे लोगों के कारण जाम की जो स्थिति उपजी है, वो उसी जाम के शिकार हैं। खुशियों का माहौल उनके लिये शोर-शराबे से ज्यादा कुछ भी नहीं है। 

करें भी तो क्या करें! बस मन ही मन कुढ़न के अलावा और चारा भी तो नहीं हैं। सोच रहे हैं कि इन लोगों में जरा भी सिविक सेंस नहीं है। अपनी खुशी में दूसरों को परेशान करने का अधिकार इन्हें किसने दे दिया?

दिन बदला और शादी की बारातों का सीन भी बदल गया। आज वो लोग एक बारात का हिस्सा बन गये जो कल तक जाम में फंसे कुढ़ रहे थे। आज मौका इनकी खुशी का है तो भला कोई कमी कैसे छोड़ दें? 

आज वो सड़क पर नाच-गा रहे हैं, पटाखे जला रहे हैं और मस्ती में झूम रहे हैं, पटाखे जला रहे हैं और मस्ती में झूम रहे हैं। आज उन्हें बारात के पीछे खड़े गाड़ियों के काफिले की कोई चिंता नहीं है। 

आज उन्हें नागरिक दायित्व भी याद नहीं आ रहे। बस सड़क पर नाचना, जाम लगाना व आयोजन स्थल के पास की जगह को अपनी बपौती समझना आदि-आदि उनके अधिकार में शामिल हैं। कर्तव्य बोध से अनजान हैं। 

उन्हें पता है कि कल जब वह जाम में फंसे थे तो उनकी क्या मानसिक स्थिति थी। आज नहीं फंसे हैं। आज उनकी खुशी का दिन है तो दूसरों को दुख तो झेलना ही पड़ेगा।

रोज कुछ लोग झूमते हैं, और रोज कुछ लोग कुढ़ते हैं। आखिर सामाजिक दायित्वों को समझने की पहल कौन करेगा?

30-40 साल पहले का समय है। बारात लड़की वालों के यहां जानी है। सभी बारात की तैयारियों में व्यस्त हैं। बच्चे नये कपड़े मिलने की खुशी में आनन्दित हो रहे हैं। बड़े लोग करीने से कड़क कलफ लगी हुई प्रेस किये हुये कपड़े पहन रहे हैं। 

लड़के के पिताजी ने रिश्तेदारी में एवं अड़ोस पड़ोस सब जगह पहचान के लोगों को व्यक्तिगत तौर पर न्योत दिया है। सब लोग खुश हैं, बारात में जो जाना है, वहां आवभगत होगी, सत्कार होगा, इज्जत होगी। 

लेकिन ये क्या लड़के के मामाजी जरा नाराज नजर आ रहे हैं। क्या बात हो गई? अजी, बस उन्हें लग रहा है कि उन्हें ज्यादा पूछा नहीं जा रहा है। लड़के के पिता तुरंत उनको मनाने आते हैं । थोड़ी मान-मनौव्वल के बाद वो मान जाते हैं। 

ऐसे ही बारात में जाने से पहले कई रिश्तेदार और पास-पड़ोस के लोग थोड़े नखरे दिखाते हैं और लड़के वालों को उन्हें बारात में ले जाने के लिये मनाना पड़ता है। 

लड़की के घर बारात पहुंचने पर बारात का स्वागत होता है। लड़की के घर के बड़े रिश्तेदारों से लड़के पक्ष के रिश्तेदारों की पहचान और मिलनी कराई जाती है। बरातियों के खाने-पीने का इंतजाम घरातियों से अलग किया गया है। सब खुश हैं।

समय बदलता है, अब का मौडर्न समय आ गया है। अब किसी के पास समय नहीं है। लड़के वालों ने सभी जगह शादी के कार्ड भेज दिये हैं। कार्ड में साफ लिखा है "कृपया इस कार्ड को ही व्यक्तिगत बुलावे की मान्यता प्रदान करें" । 

अब कोई रूठ जाये या नाराज हो जाये किसी को परवाह नहीं है। मामाजी नाराज हो गये तो हो जाने दो। ये भी हमारे काम नहीं आते हैं। अड़ोस-पड़ोस वालों को तो कोई चाहता भी नहीं कि वो बारात में जायें। 

दहेज अब ज्यादा लिया जाता है लेकिन रिश्तेदारों और अड़ोस-पड़ोस वालों से छुपाकर। 

लड़की वाले भी अब बाराती और घराती सब का इंतजम एक जैसा और एक ही जगह करते है। अब लड़की वाले भी लड़के वालों की तरह सूटेड-बूटेड सजे-धजे नजर आते हैं। बारातियों के आने तक खाने-खिलाने का एक दौर पूरा हो चुका होता है। 

पता ही नहीं चलता कि कौन लड़की वाला है और कौन घर वाला। लड़के की शादी है कि लड़की की शादी है ये फर्क भी पता नहीं चलता। रुठने मनाने की तो कौन कहे, कोई पूछने वाला तो हो?

रिश्तों के इस गिरावट के दौर के लिये जिम्मेदार कौन है?

Manisha सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

आदिवासियों का वेलेंटाइन डे भगोरिया


पश्चिम मध्य प्रदेश के आदिवासी जनजातीय युवक युवतियों का वेलेंटाइन डे (प्रणय पर्व) भगोरिया 25 फरवरी को शुरू हो रहा है। आदिवासी अंचल झाबुआ और खारगौन जिलों में परंपरागत रूप से मनाए जाने वाले इस रंगीन पर्व में स्थालीय भील और भीलाला लोगों के युवक और युवतियां बड़े उत्साह के साथ शामिल होते हैं। 


Bhagoria आदिवासियों का वेलेंटाइन डे भगोरिया


इस मेले के प्रति विदेशियों में भी खासा आकर्षण है। भारत भ्रमण के दौरान वे भगोरिया मेलों में बड़ी तादाद में शामिल होते हैं। भगोरिया हाट में आने वाले आदिवासी युवक-युवती एक दूसरे को पसंद करने के बाद भागकर विवाह कर लेते हैं। इस भाग जाने की वजह से ही इसको भगोरिया कहते हैं

परंपरा के अनुसार अगर किसी लड़के को कोई लड़की पसंद आ जाती है तो वो उस लड़की के गालों पर गुलाल लगाकर अपनी चाहत का इजहार कर देता है। अगर लड़की को भी लड़का पसंद होता है तो वो भी लड़के को गुलाल लगा देती है। 

इसके बाद ये लोग वहां से भाग जाते हैं। इसके बाद आदिवासी समाज इनको पति-पत्नि का दर्जा दे देता है।

इस भगोरिया को फसल पकने और होली की खुशी का भी प्रतीक माना जाता है। साल भर अलग-अलग स्थानों पर काम धंधा करने वाले आदिवासी भगोरिया पर्व पर अपने अपने घरों पर लौट आते हैं और गिले शिकवे भुलाकर मौज मस्ती के साथ इस पर्व को मनाते हैं। 

यह पर्व होली से पहले मनाया जाता है। बदलते जमाने के साथ भगोरिया पर भी आधुनिक संस्कृति का प्रभाव पड़ा है। आदिवासियों के पहनावे में बदलाव आया है तथा वाद्य यंत्रों ढोल और मृदंग का स्थान इलेक्ट्रानिक्स उपकरणों ने ले लिया है। झाबुआ, धार और खरगोन जिलों प्रमुख हैं जहां भगोरिया पर्व मनाया जाता है। इन जिलों के कई जिलो के गांवों में भगोरिया हाट लगते हैं।

कड़ियां:

Manisha शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2007