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शुक्र है देश में मुस्लिम और इसाई संगठन हैं


चाहे आप मुझे पुरातनपंथी कहें, पिछड़ा कहें, दकियानूसी कहें या कुछ और लेकिन मैं सरकार द्वारा समलैंगिकों और कानून की धारा 377 हटाने के सख्त खिलाफ हूं। मुझे मालूम है कि इस समय देश में अपने आप को समलैंगिक समर्थक दिखाकर पर प्रगतिशील होने का फैशन है पर मैं क्या करूं मेरी जानकारी और विचारों के अनुसार मैं इसकी विरोधी हूं। मेरे इस बारे में विचार इस प्रकार हैं

  1. समलैंगिकता के समर्थक कहते हैं कि ये उनको कुदरत की देन है, भगवान ने उन्हे ऐसा बनाया है। हो सकता है ऐसा ही हो लेकिन फिर भी ये लोग अचानक से कुछ ज्यादा कैसे हो गये हैं? खैर, कुछ समय पहले एक शोध के अनुसार बताया गया था कुछ अपराधी जन्मजात अपराधी मानसिकता के होते हैं अर्थात कुदरत ने  बर्बर अपराधियों और बुरे लोगों को भी बनाया है तो क्या जिन पर ये साबित हो जाये वो जन्मजात ऐसे है तो क्या उनको अपराध करने की छूट सरकार द्वारा दी जानी चाहिये? इसके अलावा सामाचार पत्रों में भी कुछ खबरें इस प्रकार की आई थी कुछ लोग जबरन हिजड़े बनाये जा रहे है। क्या इसको बढ़ावा नहीं मिलेगा?
  2. समलैंगिकता के समर्थक कहते हैं कि धारा 377 उनको परेशान करने के काम आती है। वैसे आज तक कितने केस धारा 377 के सामने आये है? समलैंगिक तो धारा 377 के लगे होने के बावजूद इस काम में लगे हुये हैं। जिसको बुराई की ओर जाना है  उसको कोई रोक नहीं सकता है।
  3. कुछ समलैंगिकता के समर्थक कहते हैं कि ये सब तो भारतीय समाज में हजारों सालों से चला आ रहा है। बेशक चला आ रहा है। बुराई तो हमेशा से साथ रही है लेकिन उसको दबाने की भी कोशिश होती रही है। मानव सभ्यता के इतिहास में हत्या, चोरी, लूटमार वगैरह सब रही हैं, तो क्या इन सब पर से सिर्फ इसीलिये कानून की रोक हटा ली जानी चाहिये क्योंकि ये हजारों सालों से हो रही हैं और इनको कोई कानून नहीं रोक पाया है?
  4. समलैंगिकता के समर्थन में जब से पत्रकार खासकर अंग्रेजी के, और फैशन डिजायनर आये हैं तब से इसके लिये सरकार पर दबाव बनाया जा रहा है। इसके पक्ष में समाचार छापे जा रहे हैं।
  5. समलैंगिकता के समर्थक कहते हैं कि किसी बुराई को दबाने से वह और बढ़ती है पर मेरे विचार से इसका उल्टा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण शराब का है। शराबबंदी  के विरोधी भी ऐसी ही दलीलें देते हैं लेकिन जब से गली-गली शराब बिकनी शुरू हुई है शराबियों की संख्या बढ़ ही रही है।
  6. समलैंगिक यूरोप और अन्य देशों का उदाहरण देने लगते हैं कि वहां पर इसकी आजादी है इत्यादि। लेकिन जिन देशों में रोक है उनके नाम नहीं बताते। अमेरिका के भी 51 राज्यों में से आधे से भी ज्यादा राज्यों में इस पर रोक है। उनका नाम कोई नहीं बताता। दूसरी बात क्या भारत और यूरोप, अमेरिका के सामाजिक परिवेश समान हैं? यहां कौन सा समलैंगिक 18 वर्ष का रोते ही मां-बाप से अलग रहने लगता है?  अगर यूरोप, अमेरिका  का ही अनुसरण करना है तो हर बात में करो। सलेक्टिव बातों में नहीं।
  7. अगर सरकार गे-परेड की बात को ध्यान में रखकर धारा 377 हटाना चाहती है तो लाखों लोगो की इससे भी बड़ी रैली की जा सकती है समलैंगिकता के विरोध में।
  8. सारे ही धर्म समलैंगिकता को गलत बताते है और इसके लिये मना करते हैं। अगर लगता है कि धर्म गलत कह रहा है तो फिर उस धर्म को पूरा छोड़ो। कुछ बातों को मानना और कुछ को नहीं मानना गलत है। अखिर सारे धर्म गलत हैं और सिर्फ समलैंगिकता के समर्थक सही हैं ऐसा तो नहीं हो सकता। क्या समलैंगिकता कोई नया धर्म बनने जा रहा है?
LGBT


मैंने अपने दिल की बात कह दी है। शुक्र है देश में मुस्लिम और इसाई संगठन हैं जो इस समलैंगिकता की बुराई का विरोध कर रहे हैं वर्ना सरकार ने तो माहौल बना ही दिया था। 

हिंदु संगठन तो इस मामने कहीं दिख ही नहीं रहे हैं। ये भी अब प्रगतिशील होना चाहते हैं। अल्पसंख्य्कों की वजह से ही सही सरकार  पीछे तो हटी।

Manisha मंगलवार, 30 जून 2009

शराब पीने वालों की सरकार को चिंता


हमारे यहां सरकार किसी की चिंता करे न करे पर शराब पीने वालों के लिये हमेशा सेवा में तत्पर रहती है। 
आखिर इतना राजस्व जो मिलता है। 

कभी किसी चीज की बाजार में कमी हो, साप्ताहिक बंदी कब होती है इसके बारे में सरकार द्वारा कभी भी विज्ञापन जारी करके जनता को नहीं बताया जाता है।

लेकिन जब कभी भी शराब बंदी दिवस (Dry Day) होता है, सरकार उसकी जानकारी कई दिन पहले से ही समाचार पत्रों में विज्ञापन करके बताने लगती है मानो बताती हो कि अभी से खरीद लो बाद में मत पछताना। 

सरकार को इस तरह विज्ञापन करने की क्या जरुरत है? जिस चीज का भारी विरोध होना चाहिये सरकार उसी के साथ है। 

आज के अखबारों में आया विज्ञापन देखिये, अभी से बताया जा रहा है कि कब शराब की दुकानें बन्द रहेंगीं।

Manisha गुरुवार, 2 अप्रैल 2009

गांधी के विचारों को भी तो बचाईये


गांधी महात्मा गांधी की निजी वस्तुओं को जिसमें उनका चश्मा, जेब घड़ी, चप्पलें, एक प्लेट और एक कटोरी शामिल है, को अमेरिकी में नीलामी किये जाने के खिलाफ भारत सरकार काफी प्रयत्न कर रही है कि किसी तरह ये नीलामी रुक जाये और गांधीजी की विरासत जो कि देश की धरोहर है देश में वापस आ जाये। 

लेकिन नीलामकर्ता ने  नीलामी रोकने के लिए भारत सरकार के सामने कड़ी शर्तें पेश की हैं जिनमें अपनी प्राथमिकता बदलकर सैन्य खर्च के बजाय विशेष तौर पर निर्धनतम लोगों को स्वास्थ्य सुविधा दिए जाने की शर्त शामिल है। 

सरकार का और उस पर इस नीलामी को रोकने के लिये दबाब डालने नालों का ये प्रयास सराहनीय है लेकिन ये और भी सराहनीय होगा यदि सरकार और सब लोग मिल कर गांधीजी के विचारों को बचायें। हो ये रहा है कि गांधी जी की वस्तुयें बचाई जा रही हैं और उनके विचारों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।


गांधी जी शराब के सख्त खिलाफ थे और शराब के खिलाफ जीवन पर्यन्त संघर्ष करते रहे पर अब सरकार ही शराब की दुकानें खुलवा रही हैं। जिस कांग्रेस को गांधीजी ने शराब के विरोध में लगाया था उसके मंत्री अब पब भरो आन्दोलन चलाना चाहते है। गांधीजी ने दुनिया को अहिंसा सिखाई पर हमारे देश मे अब हिंसा से समाधान खोजे जाते हैं। लोग अपनी बात मनवाने के लिये पिटाई का सहारा ले रहे हैं। बात बात पर लोग लड़ने पर उतारु हो जाते हैं। 

गांधी जी देश के गांवो की और देश की स्वावलंबन की बाते करते थे, हम वापस दूसरे देशो की कंपनियों को आमंत्रित कर रहे हैं।  गांधी जी के विचारों का मजाक बनाना मध्यम वर्ग का शौक है। गांधी को मजबूरी का नाम बताया जाता है। 

ऐसे कृतघ्न राष्ट्र में पहले गाधी जी और उनके विचारों की रक्षा होनी चाहिये फिर हमें उन से जुड़ी हुई वस्तुओ के बारे में सोचना चाहिये, ये नही कि बस नाम के लिये हल्ला मचा कर नीलामी रोक ली और फिर गांधीजी को भूल गये।

Manisha गुरुवार, 5 मार्च 2009

लोकसभा टीवी - एक स्तरीय समाचार चैनल


हाल के दिनों में लोकसभा टीवी को देखने का मौका मिला। हमारे केबल टीवी पर लोकसभा टीवी नहीं आता था। केवल टीवी के खराब प्रसारण से परेशान होकर हमने अब टाटा स्काई लगवा लिया है। 

केबल के मुकाबले इसमें पिक्चर और आवाज दोनों ही केबल के मुकाबले बहुत अच्छे हैं। 
Loksabha TV टाटा स्काई पर लोकसभा टीवी आता है। इसको घर में कोई नहीं देखता था। 

चैनल सर्फिंग में इसे छोड़कर सब आगे बढ़ जाते थे। सब यही सोचते थे कि ये एक और सरकारी चैनल है जो कि लोकसभा कि कार्यवाही को दिखाने के लिये शुरु किया गया है। ये भी दूरदर्शन का तरह ही होगा। 

एक दिन समाचार पत्र में लोकसभा टीवी पर पेस्टनजी फिल्म के आने का विज्ञापन देखकर पता चला कि इस चैनल पर हिंदी फिल्में भी आती हैं। 

मुझे और मेरे पतिदेव दोनों को ही आर्ट फिल्में कुछ ज्यादा ही पसंद आती हैं। 

तो जाहिर है कि हमने पेस्टनजी पिक्चर का आनन्द लिया। 

अब चैनल सर्फिंग के दौरान लोकसभा टीवी पर कुछ देर रुका जाने लगा। अगले ही हफ्ते लोकसभा टीवी लोकसभा टीवी पर धारावी फिल्म को दिखाया गया। 

ये फिल्म भी शौक से देखी गयी और अच्छी भी बहुत लगी। लोकसभा टीवी पर इन फिल्मों को शनिवार की रात 9.30 बजे और दुबारा रविवार को दिन में 2.00 बजे से दिखाया जाता है।



इन फिल्मों को देखने के दौरान और बाद में लोकसभा टीवी पर हमने कई और प्रोग्राम देखे। देखने के बाद पता चला कि लोकसभा टीवी दूरदर्शन की छाया से मुक्त है। 

इस पर न तो प्राइवेट चैनलों की तरह टीआरपी की आपाधापी में दिखाये जाने वाले सांप-सांपिन, नाच और अपराध के समाचार हैं और न हीं दूरदर्शन के जैसे थकाउ प्रोग्राम। इस पर न केवल स्तरीय प्रोग्राम हैं बल्कि सामयिक विषयों पर कई अच्छे प्रोग्राम हैं। 

हालांकि बड़ो को ये प्रोग्राम देखने चाहिये, लेकिन बच्चों के लिये तो लोकसभा टीवी बहुत ही उत्तम है क्योंकि इसके कार्यक्रमों का स्तर न केवल अच्छा है बल्कि साफ सुथरा भी है और ज्ञानवर्धक तो हैं हीं। 

प्रतियोगी परीक्षा के दावेदारों के लिये सामान्य ज्ञान बढ़ाने के लिये लोकसभा टीवी सही माध्यम है। हमारे घर में सबको लोकसभा टीवी हिंदी के बाकी समाचार चैनलों के मुकाबले ज्यादा अच्छा लगता है 

और इसको अब नियमित रुप से देखा जा रहा है। एक जमाना था जम हम लोग सरकारी समाचार चैनल दूरदर्शन से परेशान होकर निजी समाचार चैनलों पर गये थे और अब उन से परेशान होकर वापस सरकार के ही चैनल को अच्छा पा कर उसे देख रहे हैं।

लोकसभा टीवी के कार्यक्रम वेबकास्ट के जरिये भी यहां देखे जा सकते हैं। कार्यक्रमों की समय-सारणी यहां उपलब्ध है।

Manisha शुक्रवार, 21 सितंबर 2007