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रिटायरमेंट के लिए 47% भारतीय नहीं कर रहे बचत?


एचएसबीसी (HSBC) की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि भारत में कार्यशील लोगों में 47 फीसदी ने सेवानिवृत्ति के लिए या तो बचत शुरू नहीं की है या फिर बंद कर दी अथवा ऐसा करने में उन्हें मुश्किल पेश आ रही है। यह ग्लोबल औसत के 46 फीसद से अधिक है।  

इस रिपोर्ट को ऑनलाइन सर्वे के आधार पर इपसोस मोरी ने तैयार किया। यह सर्वे सितंबर और अक्टूबर 2015 में किया गया। इसमें 17 देशों के 18,207 लोगों की प्रतिक्रिया ली गई। इन देशों में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, मिस्र, फ्रांस, हांगकांग, भारत, इंडोनेशिया, मलेशिया, मेक्सिको, सिंगापुर, ताइवान, संयुक्त अरब अमीरात, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल हैं। 

भारतीय नहीं कर रहे बचत

रिपोर्ट में चिंताजनक पहलू यह है कि भारत में जिन 44 फीसद लोगों ने भविष्य के लिए बचत शुरू की थी, उन्होंने उसे रोक दिया है या ऐसा कर पाने में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। करीब 80 फीसद ने सेवानिवृत्त होने से पहले मित्रों और परिवार से सलाह ली। जबकि 82 फीसद को रिटायरमेंट के बाद इनकी सलाह मिली। 

केवल 40 फीसद सेवानिवृत्त होने से पहले और 53 फीसद सेवानिवृत्त होने के बाद पेशेवरों से सलाह प्राप्त करते हैं। इनमें वित्तीय सलाहकार, सरकारी एजेंसी, इंश्योरेंस ब्रोकर्स सहित अन्य शामिल हैं।

रिटायरमेंट के बाद वित्तीय सुरक्षा की अहमियत बढ़ जाती है। मेरे विचार में इस तरह की रिपोर्टस किसी न किसी उद्देश्य से प्रकाशित की जाती हैं। खास कर जब किसी अंतर्राष्ट्रीय कंपनी की कोई उत्पाद भारत में लांच होने वाला हो। 

भारत में सामाजिक सुरक्षा नाम मात्र की है और जो कुछ है भी वो भी केवल सरकारी क्षेत्र के कर्मियों और संगठित क्षेत्र के कर्मियों के लिये ही है। तो अगर इन क्षेत्रों के कर्मियों को अगर रिटायरमेंट के बाद पेंशन और प्रोविडेंट फंड अगर मिल रहा है तो वे क्यों बचत करेंगे? दूसरी ओर असंगठित क्षेत्र के कर्मियों का तो कोई रिटायरमेंट होता ही नहीं है तो उनकी बचत कहां होगी।

दरअसल भारत के लोगों को पहले से ही पता है कि किसी के भरोसे नहीं रहा जा सकता। अपने काम करने के वर्षों के दौरान लोग बाग अपना पैसा सोने और अन्य वस्तुओं में निवेश करते चलते हैं। 

दूसरी ओर सामाजिक ढांचा इस प्रकार बनाया गया है कि लोगो के बुढापे में उनके पुत्र उनका ध्यान रखते हैं। भारत में लोग कम पैसे में भी आराम से दिन काट लेते हैं।

अब ये सब बाते तो इन रिपोर्ट प्रकाशित करने वालों को नहीं पता, इसलिये वो ये कहते हैं कि भारतीय रिटायरमेंट के बाद के लिये बचत नहीं करते, वास्तविकता कुछ और ही है। 

Manisha मंगलवार, 16 अगस्त 2016

फिर से छोटी डाकघर बचत योजनाओं पर ब्याज दर घटाई गईं


छोटी डाकघर बचत योजनायें
मार्च 2016 मे सरकार ने पब्लिक प्रोविडेंट फंड (पीपीएफ) और डाकघर  द्वारा चलाये जाने वाली छोटी बचत योजनाओं में दी जाने वाली ब्याज दरों में कुछ कटौती की है। 

पीपीएफ की अभी तक की दर 8.7% थी जो कि अब घटाकर 8.1% कर दी गई है वहीं किसान विकास  पत्र की वर्तमान दर 8.7% से घटाकर 7.8% कर दी गई है।

इसके अलावा अन्य छोटी बचत योजनाओं में इस प्रकार की कटौती की गई है :

  • डाकघर की 1 साल की जमा राशि पर 8.4% से घटाकर 7.1%
  • डाकघर की 2 साल की जमा राशि पर 8.4% से घटाकर 7.2%
  • डाकघर की 3 साल की जमा राशि पर 8.4% से घटाकर 7.4%
  • डाकघर की 5 साल की जमा राशि पर 8.5% से घटाकर 7.9%
  • डाकघर की 5 साल की राष्ट्रीय बचत पत्र पर  पर  घटाकर 8.1%
  •  5 साल की वरिष्ठ बचत योजना पर 9.3% से घटाकर 8.6%
  • बालिका बचत योजना पर  9.2% से घटाकर 8.6% 


पिछली बार की बाजपेयी जी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने भी छोटी बचत योजनाओं में कटौती की थी और जिसका खामियाजा उसको अगले आम चुनावों में हार कर भुगतना पड़ा था। 

आम लोग छोटी छोटी बचत करके उम्मीद करते हैं कि कुछ उनको इसका सही समय अच्छा रिटर्न प्राप्त होगा। लेकिन सरकार के ब्याज दरों को घटाने से लोगों की उम्मीदों को झटका लगता है। 

कई सेवानिवृत लोग इन बचत से  प्राप्त होने वाली ब्याज को मासिक तौर पर प्राप्त  करके अपना घर चलाते हैं। 

सरकार का ये कदम शायद राजकोषीय  घाटा कम करने के लिये उठाया गया है लेकिन इससे आम लोगो को बहुत परेशानी होती है।

इस कदम को सरकार को वापस लेना चाहिये।  

हर महीने लोग जब अपनी ब्याज को देखते हैं तब उनको बहुत खराब लगता है और यह बार बार हर महीने उनको वापस याद दिलाता है जिसका राजनैतिक खामियाजा बहुत ज्यादा होता है, सरकार को यह ध्यान रखना चाहिये।

Manisha शुक्रवार, 18 मार्च 2016

भारतीय बचत नहीं करते


एक सर्वेक्षण के अनुसार ज्यादातर भारतीयों में धन की बचत करने की प्रवृत्ति नहीं होती। अपनी इस आदत के कारण आय के स्त्रोत समाप्त होने की स्थिति में उनके सामने गंभीर आर्थिक संकट पैदा हो जाता है। 
नेशनल काउंसिल फॉर अप्लाइड इकनोमिक रिसर्च के इस सर्वेक्षण ने इस मिथक को तोड़ दिया है कि भारतीय विशेषकर गुजराती समुदाय पैसों की बचत करने वाले होते हैं।

मैक्स न्यूयार्क लाइफ (एमएनवाईएल) के अनुसार देशभर में 63000 लोगों के बीच किए गए सर्वेक्षण में पाया गया है कि पैसा बचाने की प्रवृत्ति नहीं होने के कारण कारण अधिकतर भारतीय उस समय संकट की स्थिति में फंस जाते हैं जब उनके मुख्य आय के स्त्रोत समाप्त हो जाते हैं। 

एमएनवाईएल के सहयोग से किए गए इस सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 96 प्रतिशत लोगों का कहना है यदि उनकी आय के प्रमुख स्त्रोत बंद हो जाएं तो वे अपनी बचत के सहारे एक साल से अधिक समय तक जीवन-यापन नहीं कर सकते हैं। 

गुजरात के बारे में सूद ने बताया कि राज्य में 96 प्रतिशत और अहमदाबाद में 98 प्रतिशत लोगों के समक्ष आय के स्त्रोत बंद होने की स्थिति में तत्काल आर्थिक संकट पैदा होने का खतरा है।

वैसे यह सर्वेक्षण पुरानी मान्यताओं को तोड़ता हुआ दिख रहा है। अभी तक को भारतीय अपनी आय में से कुछ न कुछ बचाने की कोशिश करते थे, खास कर व्यवसायी वर्ग तो बचत के लिये मशहूर हैं।

कड़ी : नेशनल काउंसिल फॉर अप्लाइड इकनोमिक रिसर्च की वेबसाइट

Manisha गुरुवार, 12 अप्रैल 2007