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आस्ट्रेलिया क्यों जाते हो, यहां क्या कमी है?

विदेश में पढ़ाई

आस्ट्रेलिया से भारतीय छात्रों के साथ रंगभेदीय भैदभाव के कारण होने वाले हमले निंदनीय हैं। 

भूमण्डलीकरण के इस जमाने में एक देश के छात्र दूसरे देशों में जाते रहते हैं। अधिकांश देश दूसरे देशों के छात्रों को अपने विश्वविद्यालयों में पढ़ने के लिये आकर्षित करते रहते हैं जिसके पीछे अपनी साख बढ़ाना तथा संपन्न लोगों से पैसा कमाना भी शामिल है। 

विभिन्न् देशों और संस्थानों की फैलोशिप जैसे कि कॉमनवैल्थ की योजनाओं की वजह से भी एक दूसरे देशों में लोग पढ़ाई के लिये आते-जाते हैं। अत: ऐसी रंगभेदी घटनायें वहां के लोगों के संकीर्ण रवैये को दर्शाती हैं। 



आस्ट्रेलिया तो किसी न किसी कारण से भारत से विवाद करता ही रहता है। कभी हिंद महासागर में भारतीय नौसेना को लेकर, कभी क्रिकेट में किसी  विवाद को लेकर, कभी नाभिकीय संस्थानों को यूरेनियम न देकर आदि।

मेरे विचार में आस्ट्रेलिया की पढ़ाई भारत की पढ़ाई के मुकाबले बहुत अच्छे स्तर की नहीं हैं। 

सिर्फ विदेशों मे पढ़ाई करने के नाम पर वहां जाने की बात है वर्ना भारत के शैक्षिक संस्थानों की दक्षता और स्तर ज्यादा अच्छा है और अब तो भारत में प्राइवेट शैक्षिक संस्थान और विश्वविद्यालय भी खुल गये हैं ऐसे में विदेश में पढ़ाई करने जाने की क्या जरुरत है। 

अपने देश की पढ़ाई करके अपने देश में ही काम करिये।  

एक बात और है कि हर देश के लोगों में राष्ट्रीयता की एक भावना होती जो कि कई लोगों में ज्यादा हो जाती और वो किसी विदेशी को अपनी धरती पर तरक्की करते देख खुश नहीं होते। 

ऐसी भावना हमारे देश में भी है। अत: बाहर के किसी देश में इस तरह की घटनाओं की संभावना बनी रहती है।

Manisha रविवार, 31 मई 2009

ब्लॉग बंद होने पर कोई रास्ता नह


जब से ब्लॉगर पर से हिंदीबात ब्लॉग हटाया गया है तब से कोई भी रास्ता नजर नहीं आ रहा है कि किससे सम्पर्क किया जाये और क्या किया जाये।

तमाम जगह साइटों, फोरमों पर घूम ली पर कोई बात बनती नजर नहीं आ रही है।

मुझे लगता है कि गूगल का ये सिस्टम बहुत ही खराब है जहां पर अच्छे-खासे चलते हुये ब्लॉग को हटा देते हैं और अपील करने की भी कोई जगह नहीं है।

ब्लॉगर पर तमाम तरह की स्पैंम साईटें, पोर्न साइटें और तमाम खराब साइटें चल रही हैं पर उन को न कुछ कहकर सही ब्लॉगरों को परेशान किया जा रहा है।

मैने विभिन्न फोरमों पर देखा कि बहुत सारे लोग परेशान हो और उनके वर्षों पुराने ब्लॉग हटा दिये गये हैं वो भी बिना किसी सूचना के।

पूरा सिस्टम आटोमैटिक होने कि वजह से गड़बड़ है। देखते हैं क्या होता हैं, फिलहाल तो मैं अब हिंदीडायरी.कोम पर लिखूंगी।

Manisha शुक्रवार, 22 मई 2009

अधिकांश ट्रैवल साइटें चोरी की सामग्री से चल रही हैं


कल हम लोगों नें बच्चों की गरमियों को दौरान कुछ पर्यटन स्थलों को भ्रमण के लिये इंटरनेट पर विभिन्न ट्रैवल साइटों से उन स्थानों के बारे में जानकारी लेने की कोशिश की । 

ऐसे में गूगल के माध्यम से किसी भी स्थान को खोजने पर आने वाली अधिकांश वेबसाइटों पर वही-वही जानकारी मिली। 

यहां तक की हर शब्द और वाक्य  सब वही के वही । 

ऐसा लगता ही गूगल ऐडसेंस का फायदा लेने के लोगों ने पर्यटन वेबसाइटें  खोल रखी हैं और इधर-उधर से जानकारी चुराकर साइट तैयार करके बना दी गई हैं । 

1-2 साइटों को छोड़कर किसी भी साइट से कोई नई बात पता नहीं लगी । किसी पर कोई विस्तृत जानकारी नहीं है। 

बस पर्यटन ब्लॉग ही हैं जिन पर कुछ अलग सी जानकारी है वर्ना अधिकांश ट्रैवल बेवसाइटें किसी भी स्थान की जानकारी के लिये चोरी की सामग्री से चल रही हैं। 

इस को देखने के लिये आप गूगल में किसी भी स्थान को खोजने को कोशिश करिये और प्रथम 10 परिणामों को ब्राउजर में खोलकर देखिये, दस में से आठ में आप को एक जैसी बात लिखी मिलेगी।

Manisha सोमवार, 18 मई 2009

15वीं लोकसभा चुनाव परिणाम – कुछ आंकलन


15वीं लोकसभा चुनावों के परिणाम कल आ चुके हैं और संप्रग को वापस से सरकार बनाने के लिये मतदाताओं द्वारा चुना गया है। आने वाले कई दिनों में राजनीतिक विश्लेषक और राजनीतिज्ञ अपने – अपने विश्लेषण और निष्कर्ष निकालते रहेंगे और ऐसे समय में आम आदमी भी अपने हिसाब से कुछ सोचता है। 

मेरा भी इन लोकसभा चुनावों के परिणामों को लेकर कुछ आंकलन  है। 


vote counting
  
 
  1. मंहगाई जनता कितनी ही परेशान क्यों न हो, किसी भी चुनाव में मंहगाई को मुद्दा नहीं होती है।
  2. आतंकवाद भी इस देश में कोई मुद्दा नहीं है।
  3. मंदिर-मस्जिद, हिदु-मुस्लिम, मेरी जाति-तेरी जाति और आरक्षण की राजनीति के दिन पूरे हो गये हैं अब लोगों को विकास चाहिये, इसलिये इस बार वो दल अपने-अपने यहां जीत गये जो विकास के नाम की राजनीति कर रहे हैं। अब जनता को विकास चाहिये, जो विकास करेगा वो दुबारा जीतेगा। विकास को भूलकर खाली जातिवादी राजनीति और आरक्षण के झुनझुने पकड़ाने वाले नेता हार गये या फिर हाशिये पर आ गये हैं। 
  4. इंटरनेट द्वारा या बहुत हाई-फाई चुनाव प्रचार किसी काम का नहीं है। जनता चाहती है कि नेता परंपरागत रुप से उनसे रुबरु होकर वोट मांगे। इंटरनेट भ्रमण करने वाले और एसएमएस पाने वाले लोग वोट डालने नहीं निकलते हैं खासकर गर्मियों में, अगर चुनाव सर्दियों में हो तो फिर भी निकल सकते हैं।
  5. भाजपा जिसे पहले शहरी पड़े-लिखे मध्यम वर्ग की पार्टी कहा जाता था, शहरों में ही सबसे ज्यादी हारी है। इसका मतलब है कि भाजपा की नीतियां मध्यम वर्ग को समझ नहीं आ रही हैं। 
  6. भाजपा जीतने के लिये किसी भी प्रकार के समझौते को तैयार थी, इसका उदाहरण महा भ्रष्ट नीरा यादव को केवल कुछ वोटों के लालच में अपने दल में शामिल करने का है। 
  7. भाजपा में काफी लोग अपनी ही पार्टी को हराने के लिये काम करते है।
  8. पुराने एक ब्लॉग पोस्ट में मैंने कहा था कि भारत में सफल नेता बनने  लिये भारत को जानना जरुरी है और इसके लिये सघन भारत भ्रमण जरुरी है। इससे जमीनी स्तर की जानकारी मिलती है राहुल गांधी पिछले कुछ समय से ऐसा ही कर रहे हैं और उनका इसका फायदा मिल रहा। इसके विपरीत भाजपा के अधिकांश नेता और कुछ कांग्रेसी भी टीवी चैनलों की बहस में भाग लेकर अपनी नेतागिरी चमकाते हैं और असली चुनाव में नाकाम रहते हैं।
  9. अब विकास की राजनीति के दिन हैं खाली विचारधारा की बात करके या उर्दू लागू करके, बाबरी मस्जिद की बात छेड़के आप वोट नही पा सकते।
  10. भाजपा को अपने आप को नैतिक रुप से और विचारधारा से सबल बनाना चाहिये सफलता अपने आप मिल जायेगी। अगर भाजपा और पार्टियों जैसा ही आचरण करेगी तो लोग असली पार्टी को ही वोट देगें न कि भाजपा को। 
  11. कांग्रेस ने नये लोगों को काफी मौका दिया और इसका फायदा उसे मिला है।
  12. कांग्रेस को मीडिया का काफी सहारा मिला। मीडिया द्वारा भाजपा की बातों को उछालना और छोटे दलों की ब्लैकमेलिंग के खिलाफ महौल बनाना कांगेस को फायदा दे गया।
  13. भाजपा को मीडिया को मैनेज करना नहीं आता, अधिकांश भाजपाई अंग्रेजी समाचार चैनलों पर अंग्रेजी में बात करते हैं और जो चैनल भाजपा और हिन्दुवादियों का मजाक बनाते हैं उन्हीं पर भाजपाई ज्यादा मेहरबान रहते हैं और अपना नुकसान कराते हैं।

Manisha रविवार, 17 मई 2009

चुनाव आयोग ने पप्पू बनाया 

कल जब मैं और मेरे पति मतदान के लिये निर्धारित स्थान पर पहुंचे तो पता चला कि हमारा नाम वोटर लिस्ट से गायब है। हमारे पास वोटर आईडी कार्ड था, पहले भी वोट डाला हुआ है, लेकिन इस बार पता नहीं कैसे सोसाईटी के अधिकांश लोगों का नाम गायब था। 


Voter Id Card


यानी कि चुनाव आयोग ने ही पप्पू बना दिया। ऐसी प्रशासनिक भूलों के खिलाफ आम आदमी कुछ नहीं कर सकता है। क्या ऐसी व्यवस्था नहीं हो सकती कि मौके पर ही प्रमाण देख कर वोटर लिस्ट में नाम जोड़े जा सकें और नाम काटने वाले अधिकारी के खिलाप कार्यवाई की जा सके। 

चुनाव आयोग जनता और नेताओं पर तो तमाम तरह की बंदिशें और संहिताये लागू करता है, लेकिन ऐसी घटनायें जो हर चुनाव में होती हैं कि नाम गायब हो गये उसमें कुछ भी शायद नहीं करता है।

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Manisha शुक्रवार, 8 मई 2009

बीमारु प्रदेश पृथ्वी को बचा रहे हैं


आज 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस पर दिल्ली सरकार ने एक विज्ञापन जारी करके लोगों का आव्हान किया है कि लोग आज के दिन केवल एक घंचे के लिये शाम को 8.30 बजे से 9.30 बजे तक अपनी बिजली बंद रख कर पृथ्वी पर होने वाले पर्यावरणीय खतरे से बचाने में मदद करें। 

इससे पहले भी पिछले महीने पूरी दुनिया में एक दिन इसी वक्त पर लोगों ने बिजली बंद कर के पृथ्वी को बचाने की पहल में सहयोग दिया था। 

Earth Hour

 
अगर देखा जाये तो भारत का अधिकांश हिस्सा खासकर बीमारु कहे जाने वाले प्रदेश (बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश) इस तरह से तो पृथ्वी को वर्षों से बचाते आ रहे हैँ, क्योंकि इन प्रदेशों में रोजाना 6 से 18 घंटे तक बिजली आती ही नहीं है तो पृथ्वी को नुकसान पहुंचने का सवाल ही नहीं उठता। 

जिन जगहों पर पूरे दिन बिजली आती है जैसे कि दिल्ली, मुंबई और सभी प्रदेशों के मुख्यंमंत्रियों के गृह जनपद उनको छोड़कर लोगों से 1 घंटे के लिये बिजली बंद करने की बात कहना उनके जले पर नमक छिड़कना है। इस गर्मी के मौसम में आम भारतीय बिना बिजली के कैसे दिन काटते हैं, वो ही जानते हैं। 
 
इस तरह की बिजली की 1 घंटे की कटौती की बात भी एक प्रकार से अमीर देशों और मौज करने वालों का एक शोशा ही मालूम होती है। 

अफ्रीका और तीसरी दुनिया के देशों को, विकसित राष्ट्र जिन्होनें अपनी विलासिता से पृथ्वी को नुकसान पहुंचाया है, अब कमजोर और अल्प विकसित देशों पर पृथ्वी को बचाने का दबाव डाल रहे हैं। 

पर्यावरण की बात करना भी एक नया फैशन बन गया है।

Manisha बुधवार, 22 अप्रैल 2009

मंहगाई और आतंकवाद चुनाव में मुद्दा नहीं


अभी तक लोकसभा चनावों के लिये चल रहे चुनाव-प्रचार को देखकर तो ऐसा लगता है जैसे कि मंहगाई और आतकंवाद कोई मुद्दा ही नहीं है। कोई भी राजनीतिक दल इन के बारे में बात नहीं कर रहा है। 

रोजगार, मंहगाई, शिक्षा, विकास, आर्थिक संकट जैसे मुद्दों से मुंह चुराकर राजनीतिक दल पता नहीं कहां से कंधार कांड और बाबरी मस्जिद जैसे पुराने बासी मुद्दे उठा लाये हैं और देश की जनता के उपर जबर्दस्ती इनको मुद्दा बनाकर थोप रहे हैं। 

देश की जनता इस कुछ नया पाना चाहती है लेकिन लगता है की देश के नेताओं के पास कोई नयी बात है नहीं कहने को इसलिये दस-बीस साल पुरानी बातों के आधार पर चुनाव प्रचार कर रहे हैं। मीडिया भी ऐसी बातें नहीं उठा रहा है।

Manisha रविवार, 19 अप्रैल 2009

हमारे आसपास के बाल-श्रमिक


भारत में बाल श्रम पर प्रतिबंध है। इसको लेकर सरकार गंभीर है और लगातार अपने प्रयास करती रहती है। बाल श्रम पर रोक के मामले में पश्चिमी देशों का रवैया बहुत सख्त है और उनके अनुसार बालक से किसी भी प्रकार का काम कराना गलत है। 

लेकिन भारत के सामाजिक ढांचे में इस तरह की बात नहीं की जा सकती है। यहां पर कुछ करने पर बच्चों  को शाबाशी दी जाती है मसलन यहां पर खेतों में काम करते मजदूरो के साथ-साथ उनके बच्चे भी किसी न किसी रूप में मदद करते हैं। घरों में बच्चों को काम करना सिखाया जाता है। 

भारत के सामजिक वातावरण में अगर बच्चा अपने मां-बाप को गिलास में अगर पानी ला कर पिला दे तो सभी उसकी प्रशंसा करते हैं लेकिन पश्चिम में यही बाल श्रम हो जाता है।

 
हमारे आसपास के बाल-श्रमिक Stop Child Labour



मैं यहां पर जो बताने जा रही हूं वो हमारे घर के आसपास के बच्चों के बारे में है जिनको मैं रोज काम करते देखती हूं और सोचती हूं कि ये बाल श्रमिक की श्रेणी में आते हैं या नहीं। 

दरअसल हमारी सोसाइटी में चौकीदार, धोबी, और दूध बेचने आने वाले के बच्चे अपने-अपने पिता के काम में हाथ बंटाते हैं। चौकीदार के दो लड़के करीब 10 और 12 साल के सुबह गाड़ियां साफ करते हैं और अपने पिता की आमदनी बढाते हैं। 

धोबी का पुत्र प्रेस करने के कपड़े ले जाता है और प्रेस हो जाने के बाद देने आता है। 

एक दूध वाला  है जिसकी लड़की और लड़का अक्सर सोसाइटी के फ्लैटों में दूध पहुंचाने में पिता की मदद करते हैं। 


इन सबको देखकर लगता तो है कि ये लोग ये काम न करें लेकिन फिर ये ख्याल भी आता है कि अगर ये लोग अपने पिता की मदद कर के आमदनी बढ़ा रहे है तो इनमें इनको भी तो फायदा है। दूसरी बात ये है कि ये सब बच्चे पढ़ने जाते हैं और शायद इसी आमदनी की वजह से पढ़ाई का खर्च निकल रहा है। 

तो अगर ये लोग मेहनत करके गरीबी ले लोहा ले रहे हैं तो अच्छा ही कर रहे हैं। 

मैंने अड़ोस-पड़ोस में कई लोगों से बात की, पर सब लोग उनकी इस तरह परिवार को मदद करने को सराहते ही हैं यानी इस तरह के काम को सामाजिक स्वीकृति है। 

लोगों का कहना है कि अगर ये लोग दिन भर काम करते तब गलत था लेकिन इस तरह थोड़े सा काम करने से एक तो आमदनी बढ़ रही है, दूसरे कुछ काम सीख रहे है जो आगे काम आयेगा और तीसरे ये लोग किसी गलत संगत में फंसने से बच रहे है क्योंकि अपना कुछ समय तो इस तरह से व्यतीत कर रहे है। 

तो मैं निश्चय नहीं कर पा रही हूं कि ये गलत हो रहा है या सही।

Manisha सोमवार, 13 अप्रैल 2009

खोखली होती भारत में परिवार संस्था


खोखली होती भारत में परिवार संस्थापिछले कुछ समय से समाचार पत्रों में छपने वाले कुछ समाचारों से ऐसा लगता है मानो भारत में परिवार नाम की संस्था पर ग्रहण लग गया है। 

पहले मुंबई, फिर पंजाब, उसके बाद दिल्ली और भी न जाने कहां कहां से ऐसी खबरें आईं कि विश्वास नहीं हुआ। 

ये खबरें थीं सगे बाप द्वारा अपनी ही बेटी से जबर्दस्ती या सहमति से सेक्स संबंध स्थापित करने की। पिछले कुछ समय से ये समाचार कुछ ज्यादा ही आ रहें हैं। 

परिवार जहां बच्चों को प्यार, संस्कार और सुरक्षा मिलनी चाहिये  वहां ये सब होगा तो परिवार का ही क्या मतलब रह जाता है। दुसरी ओर  इंदौर और पंजाब से सी खबरे आईं कि अपने मां-बाप के कत्ल के लिये सगे पुत्र ने ही सुपारी दी। 

कई जगह ऐसा काम पुत्रियों द्वारा भी किया गया है। 

इसके अलावा भतीजे द्वारा चाचा-ताउ की हत्या की खबरें तो आम हो चुकी हैं। पैसे के लिये अब किसी रिश्ते का कोई मोल नहीं रह गया हैं ऐसा लगता है। 

संपति और पैसै का आखिर क्या करेंगे जब अपना ही कोई नहीं होगा। पत्नी द्वारा पति की हत्या करना या कराना या पति द्वारा पत्नि की हत्या करना रोज सुर्खियों में होता है। 

तांत्रिकों को फेर में पड़कर अपने सगे संबंधियों या अड़ोस-पड़ोस के बच्चों की हत्या करना भी आजकल काफी सुना जाता है। एक जगह तो मां-बाप ने पुत्र पाने के ले लिये पुत्री का हत्या करदी और कई जगह भतीजे-भांजियों की भी बलि लोग चढाते हैं। 

इन तांत्रिकों के चक्कर में कई घर बरबाद हो गये लेकिन तांत्रिकवाद अब तो फैलता ही जा रहा है और कई समाचार चैनलों तक पर तांत्रिक दिखने लगे हैं। पढ़े-लिखे और शहरी लोग भी इन सब चक्करों में पड़ रहे हैं।

पूरे परिवार के द्वारा आत्महत्या की खबरें अब बहुत आम हो चुकी हैं और आत्महत्या के मामले में भारत दुनिया में नंबर एक हो चुका है। 

परिवार का मुखिया छोटे-छोटे मासुमों को भी मारकर खुद आत्महत्या कर लेता है। जिन मां-बाप को इन बच्चों को पोसना चाहिये वो ही इन्हें मार रहे हैं।

समाज का बन्धन कम हो गया है। हर कोई मन-सर्जी से अपनी जिन्दगी जीना चाहता है। 

एकाकी पन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के दौर में ऐसा लगता है कि भारत में अब परिवार की संस्था जो समाज का सबसे मजबूत हिस्सा है खतरे में है।

Manisha रविवार, 12 अप्रैल 2009

स्कूल वाले फीस बढ़ाते ही जा रहे हैं 


पिछले 15-20 दिनों से दिल्ली और उसके आसपास के सभी निजी स्कूलों के छात्रों के अभिभावक आन्दोलन की स्कूल वाले फीस बढ़ाते ही जा रहे हैं राह पर हैं पर कोई सुनवाई नहीं हो रही है। 

आंदोलन की वजह है इन निजी विद्यालयों द्वारा मननानी तरह से मासिक फीस में बढ़ोतरी। 

स्कूलों का कहना है कि उन्हें शिक्षकों को छठे वेतन आयोग द्वारा वेतन बढ़ाने के कारण ज्यादा वेतन देना पढ़ेगा इसलिये फीस में वृद्धि आवश्यक है। 

कई वर्षों से ये स्कूल हर वर्ष इसी प्रकार फीस बढ़ाते आ रहे हैं, इसको लेकर कुछ लोग दिल्ली उच्च न्यायालय भी गये थे लेकिन वहां भी 40 प्रतिशत वृद्धि को मंजूरी मिल गई थी। 

इस वर्ष निजी स्कूलों को फीस में वृद्धि के लिये सरकार ने 500 रुपये तक बढ़ाने की मंजुरी दे दी थी। इसी बात का फायदा उठा कर और वेतन आयोग का बहाना लेकर पूरे राजधानी क्षेत्र में निजी पब्लिक स्कूलों ने अनाप-शनाप फीस वृद्धि कर दी है। 

इस बात से परेशान होकर अभिभावक फीस कम कराने के लिये आंदोलनरत हैं लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हो रही है। 

इसका कारण है कि ये स्कूल बड़े-बड़े लोगो द्वारा चलाये जाते हैं जिनकी पहुंच बहुत ऊपर तक होती है।  सीबीऐसई (CBSE) जो इन को मान्यता देता है, इस मामले में खामोश है और राज्य सरकारों का इन विद्यालयों पर कोई अंकुश नहीं है। 

ये स्कूल फीस वृद्धि के अलावा स्कूल ड्रेस, कॉपी-किताबों की बिक्री से भी कमाई करते हैं।  वास्तव में ये सब कई प्रकार की समानांतर शिक्षा प्रणालियों की वजह से होने वाली परेशानियां हैं। 

शिक्षा से सरकारों ने अपने हाथ खींच रखे हैं जिससे शिक्षा मंहगी होती जा रही है और आम आदमी परेशान है। ये स्थिति शायद पूरे देश में है।

Manisha रविवार, 5 अप्रैल 2009