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स्टार प्लस का ट्रंप कार्ड – सच का सामना


सच का सामना रियलिटी शो के रुप में स्टार प्लस के हाथ एक बड़ा ट्रंप कार्ड लग गया है। पिछले कुछ समय से स्टार
सच का सामना Sach-Ka-Samna
प्लस की पहले नंबर की पोजीशन को केवल आठ महाने पुराने मनोरंजन चैनल कलर ने छीन लिया था और तभी से स्टार प्लस वापस अपनी इस स्थिति को हथियाने के लिये बेताब था। 

इस समय सच का सामना ने एक प्रकार का मौका स्टार प्लस को दे दिया है।  सच का सामना शायद इतना प्रसिद्ध होते लेकिन उस से विवादों के जुड़ जाने से बहुत फायदा मिला है। 

मुझे तो लगता हे कि पहले स्थान को पाने के लिये ही स्टार प्लस जानबूझ कर विवादों को हवा दे रहा है ताकि लोग जिज्ञासावश सच का सामना को देखें और स्टार प्लस को अच्छी टीआरपी मिल सके।

Manisha सोमवार, 27 जुलाई 2009

परमाणु पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत भारतीय नौसेना में शामिल


अपने ही देश में ही बनी पहली परमाणु संपन्न पनडुब्बी 'आईएनएस अरिहंत' भारतीय नौसेना में शामिल हो गई है। भारत अब स्वनिर्मित परमाणु संपन्न पनडुब्बी वाले गिने चुने देशों की कतार में शामिल हो गया।

INS Arihant


अरिहंत पनडुब्बी 'सागरिका' [के 15] प्रक्षेपास्त्र से लैस होगी, जिसकी मारक क्षमता 700 किलोमीटर है।

अरिहंत का मुख्य हथियार इसकी मारक क्षमता है। यह समुद्र में आधे किलोमीटर की गहराई या उससे अधिक में रहकर समुद्र के भीतर से मिसाइल दागने में सक्षम है। 

छह हजार टन की पनडुब्बी में 85 मैगावाट क्षमता का परमाणु रिएक्टर है और इसकी सतह पर गति 12 से 15 नोट्स तथा पानी में गति 24 नोट्स तक जा सकती है। 

इस पनडुब्बी में 95 लोग सवार होंगे तथा यह तारपीडो और 12 बैलेस्टिक मिसाइलों समेत अन्य मिसाइलों से लैस होगी।

यह ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करने के लिए कार्यक्रम से जुड़े हरेक व्यक्ति को बधाई और इसके कुशल चालन के लिये शुभकामना ।

Manisha रविवार, 26 जुलाई 2009

कारगिल लड़ाई के 10 वर्ष : हमें चाहिये मुशर्रफ जैसे लीडर


आज पाकिस्तान द्वारा भारत पर थोपे गये कारगिल की लड़ाई की 10वीं वर्षगांठ है। अमर शहीद सैनिकों और
General Musharraf
उनके अफसरों की बहादुरी और कुशलता और शहादत को भल कौन भारतीय भुला सकता है? 

कैप्टन सौरभ कालिया, कैप्टन विक्रम बत्रा, कैप्टन विजय थापर, कर्नल वांगचुक, मेजर बलवंत सिंह, हवलदार योगेंद्र सिंह यादव, तोपखाने के कई कई वीर सपूतों ने अपनी जान देकर भारत का मान रखा। 

बिलकुल सीधी चढ़ाई चढ़ते हुये दुश्मन का मुकाबला विरले वीर, साहसी और जीवट के पक्के सैनिक ही कर सकते हैं। और इस तरह की लड़ाई को जीतना वास्तव में एक अनोखी गौरव गाथा है। 

कारगिल में वीरता की इतनी कहानियां लिख गईं हैं जो सदियों तक कही जाती रहेंगी। 


लेकिन सैनिकों के इस वीरता पूर्वक कारनामे को नमन करने के वावजूद उस समय के खलनायक मुशर्रफ को एक दूसरी ही वजह से याद कर रही हूं। 

पहली वजह से तो वो पिटने लायक है और भर्त्सना के लायक है। लेकिन दूसरी वजह है उसका चाणक्य की नीतियो पर चलते हुये जबर्दस्त रणनीतिकार होना। 

आखिर ये उसी के दिमाग की उपज थी कि भारत की सोती हुई सेना को पता ही नहीं चला कि उनकी खाली की हुई चौकियों पर पाकिस्तानी घुसपैठियों (छद्म सैनिक) ने कब्जा कर लिया और जो लड़ाई हुई उसमें भारत के वीर जवाव तो हताहत हुये ही, भारत की रक्षा तैयारियों का भी जायजा लिया गया, कश्मीर समस्या पर दुनिया का ध्यान भी खींच लिया और साथ ही पाकिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार को भी फंसा दिया। 

यानी की एक तीर से कई शिकार। 

मुशर्रफ और वहां की सेना चाणक्य की नीतियों पर चल कर गुप्त और छद्म गतिविधियां करके अपने दुश्मन (भारत) तो हमेशा परेशान करते रहते हैं और भारत को कभी चैन से नहीं बैठने देते हैं। 



क्या हमें ऐसा नेता नहीं चाहिये जो इस तरह से अपने दुश्मनों के परेशान करता रहे? क्या हमें ऐसे लीडर नहीं चाहिये जो रणनीतिक तौर पर दूर की सोंचे और कार्यवाही करें। 

अभी हाल ही में चीन के एक प्रांत में दंगा हो गया तो वहां के राष्ट्रपति ने तुरंत चेतावनी दे दी कि कोई दखलंदाजी न करे वर्ना अच्छा नहीं होगा, तो क्या हमें ऐसे नेता नहीं चाहिये जो दुनिया में आंखों में आंखे डाल कर अपनी बात कह सकें? 

यहां तो हालत ये है कि इन्ही मुशर्रफ साहब को एक नेता ने अपने यहां बिना बात के न्यौत लिया और एक नेता ने लिखित में मान लिया कि भारत बलूचिस्तान में गड़बड़ियों मे शामिल है। 

आखिरी बार इस तरह की कुछ खूबियों वाला लीडर इंदिरा गांधी के रूप में जरुर मिला था। वैसे भारत को प्रभावशाली नेता काफी लंबे समय से नहीं मिले हैं। 

याद कीजिये कृष्ण, समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त, अशोक, शेरशाह सूरी, अकबर जैसे कितने नाम हैं भारत में जो गिने जा सकते हैं। हम भारतीय सब प्रकार से सक्षम हैं, सबसे अच्छे हैं बस अच्छे नेतृत्व से वंचित हैं।

आज भी कारगिल की दसवीं वर्षगांठ पर नेता गायब हैं।

Manisha

भारत आतंकवाद फैला रहा है


भारत की जनता चाहे कितना भी पाकिस्तान को नापसंद करे, कितनी ही कड़ी कार्यवाही पाकिस्तान के खिलाफ चाहे, पाकिस्तान चाहे कितना ही भारत के खिलाफ आतंकवाद फैलाता रहे, भारत के हर पार्टी के नेता (पार्टी विद डिफरेंस के भी!), मीडिया के एक सशक्त वर्ग तथा कुछ बुद्धीजीवियों को पाकिस्तान से विशेष प्रेम है। 

Manisha शुक्रवार, 24 जुलाई 2009

हमारे – उनके विश्वास  और अंधविश्वास 


21 जुलाई को चांद पर मानव के कदम रखने के 40 साल पूरे होने जा रहे हैं। दुनिया भर में इस अद्भुत घटना को याद किया जा रह है। चांद पर पहुंच कर धरता के लोगों मे अपनी मनवीय श्रेश्ठता का परिचय दिया था।

लेकिन कई लोगों को ये विश्वास कभी नहीं हुआ कि इंसान चांद पर पहुंच गया है। अमेरिका के ही कई लोग ऐसे थे जो इस बात पर विश्वास नहीं करते थे। 

Manisha सोमवार, 20 जुलाई 2009

बलजीत के लिये दुआ कीजिये


हम सब के लिये भारतीय हॉकी टीम के बेहतरीन गोलकीपर बलजीत सिहं के लिये ये दुआ करने का समय है। बलजीत को अभ्यास के दौरान आंख में गेंद लग गई थी जिससे उन्हें दाहिनी आंख में गंभीर चोट लग गई है और उनके दोबारा खेलने की संभावना कम है। 

बेहतरीन गोलकीपर बलजीत सिहं को खोना हमारी हॉकी और देश के लिये काफी बड़ा झटका रहेगा लिहाजा हम लोगों की दुआ से भगवान उनको वापस खेलने लायक बनायें, ऐसी हम सब को भगवान से प्रार्थना करनी चाहिये।

Manisha

आखिर किस बात की खुशी है इन्हें?


न्यायालय द्वारा सबूतों के अभाव में उज्जैन के प्रोफेसर सबरवाल के हत्यारों को छोड़ने के बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं द्वारा देखिये किस प्रकार से प्रसन्नता व्यक्त की जा रही है। 

New Low in Hindu Politics


आखिर किस बात की खुशी है इन्हें? क्या अपने गुरु के मारे जाने की (अभी गुरु पूर्णिमा को गुजरे कुछ ही दिन हुये हैं) या उनके हत्यारों के छूट जाने की? 

क्या ये हमारी हिंदु संस्कृति है? हिदूवादियों के गिरावट का इससे कोई निकृष्ट उदाहरण हो सकता है क्या?


Manisha मंगलवार, 14 जुलाई 2009

अब तो कुछ करो पत्रकारों


आज छत्तीसगढ़ के जिला राजनांदगांव के मदनवाड़ा इलाके मे नक्सलियों ने पुलिस पार्टी पर हमला करके  30 पुलिस वालों को मार डाला है और अभी प्राप्त समाचार के अनुसार एक और हमला करके 8 और पुलिस वालों को मार डाला है। इसमें एक एसपी भी हैं। 

पत्रकारिता


हर 15-20 दिन में इस प्रकार का समाचार मिलता है जिमसें हमें देश के पुलिस वालों की जान बड़ी संख्या में नक्सलियों द्वारा लिये जाने के समाचार प्राप्त होते रहते है।  

नक्सली पुलिस वालों को शहीद किये जा रहे हैं और हमारा दिल्ली का राष्ट्रीय माडिया नक्सलियों  तालीबान और गे – समलैंगिकों के समाचारो को अहमियत दे रहा है। 

अरे पत्रकारों, तालीबान ने भी इतने पुलिस वालो की हत्या नहीं की होगी जितनी नक्सलियों ने की है। आखिर कब इन पुलिस वालों के उपर कार्यक्रम बनाओगे और अपनी जिम्मेदारी निभाओगे? छोड़ों तालीबान और समलैगिकों को। 

लगातार खबरें दिखा कर सरकार पर दबाव डालो कि वो कुछ करे। क्या नक्सलवाद की समस्या समलैगिको की समस्या से ज्यादा बड़ी है? अब तो कुछ करो पत्रकारों!!!!

बहरहाल शहीद पुलिस वालों को मेरा सलाम और उनसे निवेदन की वो खुद ही कुछ करें यहां की सरकार और मीडिया आपकी चिन्ता करने वाले नहीं है।

Manisha सोमवार, 13 जुलाई 2009