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कारगिल लड़ाई के 10 वर्ष : हमें चाहिये मुशर्रफ जैसे लीडर


आज पाकिस्तान द्वारा भारत पर थोपे गये कारगिल की लड़ाई की 10वीं वर्षगांठ है। अमर शहीद सैनिकों और
General Musharraf
उनके अफसरों की बहादुरी और कुशलता और शहादत को भल कौन भारतीय भुला सकता है? 

कैप्टन सौरभ कालिया, कैप्टन विक्रम बत्रा, कैप्टन विजय थापर, कर्नल वांगचुक, मेजर बलवंत सिंह, हवलदार योगेंद्र सिंह यादव, तोपखाने के कई कई वीर सपूतों ने अपनी जान देकर भारत का मान रखा। 

बिलकुल सीधी चढ़ाई चढ़ते हुये दुश्मन का मुकाबला विरले वीर, साहसी और जीवट के पक्के सैनिक ही कर सकते हैं। और इस तरह की लड़ाई को जीतना वास्तव में एक अनोखी गौरव गाथा है। 

कारगिल में वीरता की इतनी कहानियां लिख गईं हैं जो सदियों तक कही जाती रहेंगी। 


लेकिन सैनिकों के इस वीरता पूर्वक कारनामे को नमन करने के वावजूद उस समय के खलनायक मुशर्रफ को एक दूसरी ही वजह से याद कर रही हूं। 

पहली वजह से तो वो पिटने लायक है और भर्त्सना के लायक है। लेकिन दूसरी वजह है उसका चाणक्य की नीतियो पर चलते हुये जबर्दस्त रणनीतिकार होना। 

आखिर ये उसी के दिमाग की उपज थी कि भारत की सोती हुई सेना को पता ही नहीं चला कि उनकी खाली की हुई चौकियों पर पाकिस्तानी घुसपैठियों (छद्म सैनिक) ने कब्जा कर लिया और जो लड़ाई हुई उसमें भारत के वीर जवाव तो हताहत हुये ही, भारत की रक्षा तैयारियों का भी जायजा लिया गया, कश्मीर समस्या पर दुनिया का ध्यान भी खींच लिया और साथ ही पाकिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार को भी फंसा दिया। 

यानी की एक तीर से कई शिकार। 

मुशर्रफ और वहां की सेना चाणक्य की नीतियों पर चल कर गुप्त और छद्म गतिविधियां करके अपने दुश्मन (भारत) तो हमेशा परेशान करते रहते हैं और भारत को कभी चैन से नहीं बैठने देते हैं। 



क्या हमें ऐसा नेता नहीं चाहिये जो इस तरह से अपने दुश्मनों के परेशान करता रहे? क्या हमें ऐसे लीडर नहीं चाहिये जो रणनीतिक तौर पर दूर की सोंचे और कार्यवाही करें। 

अभी हाल ही में चीन के एक प्रांत में दंगा हो गया तो वहां के राष्ट्रपति ने तुरंत चेतावनी दे दी कि कोई दखलंदाजी न करे वर्ना अच्छा नहीं होगा, तो क्या हमें ऐसे नेता नहीं चाहिये जो दुनिया में आंखों में आंखे डाल कर अपनी बात कह सकें? 

यहां तो हालत ये है कि इन्ही मुशर्रफ साहब को एक नेता ने अपने यहां बिना बात के न्यौत लिया और एक नेता ने लिखित में मान लिया कि भारत बलूचिस्तान में गड़बड़ियों मे शामिल है। 

आखिरी बार इस तरह की कुछ खूबियों वाला लीडर इंदिरा गांधी के रूप में जरुर मिला था। वैसे भारत को प्रभावशाली नेता काफी लंबे समय से नहीं मिले हैं। 

याद कीजिये कृष्ण, समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त, अशोक, शेरशाह सूरी, अकबर जैसे कितने नाम हैं भारत में जो गिने जा सकते हैं। हम भारतीय सब प्रकार से सक्षम हैं, सबसे अच्छे हैं बस अच्छे नेतृत्व से वंचित हैं।

आज भी कारगिल की दसवीं वर्षगांठ पर नेता गायब हैं।

Manisha रविवार, 26 जुलाई 2009

भारत आतंकवाद फैला रहा है


भारत की जनता चाहे कितना भी पाकिस्तान को नापसंद करे, कितनी ही कड़ी कार्यवाही पाकिस्तान के खिलाफ चाहे, पाकिस्तान चाहे कितना ही भारत के खिलाफ आतंकवाद फैलाता रहे, भारत के हर पार्टी के नेता (पार्टी विद डिफरेंस के भी!), मीडिया के एक सशक्त वर्ग तथा कुछ बुद्धीजीवियों को पाकिस्तान से विशेष प्रेम है। 

Manisha शुक्रवार, 24 जुलाई 2009

हमारे – उनके विश्वास  और अंधविश्वास 


21 जुलाई को चांद पर मानव के कदम रखने के 40 साल पूरे होने जा रहे हैं। दुनिया भर में इस अद्भुत घटना को याद किया जा रह है। चांद पर पहुंच कर धरता के लोगों मे अपनी मनवीय श्रेश्ठता का परिचय दिया था।

लेकिन कई लोगों को ये विश्वास कभी नहीं हुआ कि इंसान चांद पर पहुंच गया है। अमेरिका के ही कई लोग ऐसे थे जो इस बात पर विश्वास नहीं करते थे। 

Manisha सोमवार, 20 जुलाई 2009

बलजीत के लिये दुआ कीजिये


हम सब के लिये भारतीय हॉकी टीम के बेहतरीन गोलकीपर बलजीत सिहं के लिये ये दुआ करने का समय है। बलजीत को अभ्यास के दौरान आंख में गेंद लग गई थी जिससे उन्हें दाहिनी आंख में गंभीर चोट लग गई है और उनके दोबारा खेलने की संभावना कम है। 

बेहतरीन गोलकीपर बलजीत सिहं को खोना हमारी हॉकी और देश के लिये काफी बड़ा झटका रहेगा लिहाजा हम लोगों की दुआ से भगवान उनको वापस खेलने लायक बनायें, ऐसी हम सब को भगवान से प्रार्थना करनी चाहिये।

Manisha

आखिर किस बात की खुशी है इन्हें?


न्यायालय द्वारा सबूतों के अभाव में उज्जैन के प्रोफेसर सबरवाल के हत्यारों को छोड़ने के बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं द्वारा देखिये किस प्रकार से प्रसन्नता व्यक्त की जा रही है। 

New Low in Hindu Politics


आखिर किस बात की खुशी है इन्हें? क्या अपने गुरु के मारे जाने की (अभी गुरु पूर्णिमा को गुजरे कुछ ही दिन हुये हैं) या उनके हत्यारों के छूट जाने की? 

क्या ये हमारी हिंदु संस्कृति है? हिदूवादियों के गिरावट का इससे कोई निकृष्ट उदाहरण हो सकता है क्या?


Manisha मंगलवार, 14 जुलाई 2009

अब तो कुछ करो पत्रकारों


आज छत्तीसगढ़ के जिला राजनांदगांव के मदनवाड़ा इलाके मे नक्सलियों ने पुलिस पार्टी पर हमला करके  30 पुलिस वालों को मार डाला है और अभी प्राप्त समाचार के अनुसार एक और हमला करके 8 और पुलिस वालों को मार डाला है। इसमें एक एसपी भी हैं। 

पत्रकारिता


हर 15-20 दिन में इस प्रकार का समाचार मिलता है जिमसें हमें देश के पुलिस वालों की जान बड़ी संख्या में नक्सलियों द्वारा लिये जाने के समाचार प्राप्त होते रहते है।  

नक्सली पुलिस वालों को शहीद किये जा रहे हैं और हमारा दिल्ली का राष्ट्रीय माडिया नक्सलियों  तालीबान और गे – समलैंगिकों के समाचारो को अहमियत दे रहा है। 

अरे पत्रकारों, तालीबान ने भी इतने पुलिस वालो की हत्या नहीं की होगी जितनी नक्सलियों ने की है। आखिर कब इन पुलिस वालों के उपर कार्यक्रम बनाओगे और अपनी जिम्मेदारी निभाओगे? छोड़ों तालीबान और समलैगिकों को। 

लगातार खबरें दिखा कर सरकार पर दबाव डालो कि वो कुछ करे। क्या नक्सलवाद की समस्या समलैगिको की समस्या से ज्यादा बड़ी है? अब तो कुछ करो पत्रकारों!!!!

बहरहाल शहीद पुलिस वालों को मेरा सलाम और उनसे निवेदन की वो खुद ही कुछ करें यहां की सरकार और मीडिया आपकी चिन्ता करने वाले नहीं है।

Manisha सोमवार, 13 जुलाई 2009

शराब रुपी अमृत पीकर मरते लोग


आज गुजरात के अहमदाबाद में जहरीली शराब पीकर जान गंवाने वालों का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। प्रशासन ने  अब तक 86 लोगों की मौत की पुष्टि कर दी है। लेकिन, यह आंकड़ा 100 के पार पहुंचने की आशंका जताई जा रही है। इससे पहले कुछ दिन पूर्व में ये किस्सा दिल्ली में हुआ था। 

Manisha गुरुवार, 9 जुलाई 2009

बात यहीं तक रहेगी या आगे भी जायेगी


दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के बाद गे और उनके जैसे तमाम लोगों ने राहत की सांस ली होगी। अब उन्हें अपने हिसाब जिन्दगी जीने की कानूनी छूट रहेगी। 

हमें भी अब रोज - रोज की बिना मतलब की बहस और रोज-रोज समलैंगिकों के समर्थन में छपने वाले लेखों से छूट मिल जायेगी। बस अब देखना यही रहेगा कि ये बात यहीं तक रहेगी या फिर समलैंगिकों की शादी की आजादी, वेश्यावृति को भी व्यक्तिगत आजादी की मांग पर कानूनी मान्यता देने व अन्य बातों की ओर भी जायेगी। 

दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से मेरी असहमति है लेकिन देश को और हमें इस आदेश को मानना चाहिये। उम्मीद है बात यहीं खत्म हो जायेगी।


Manisha शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

शुक्र है देश में मुस्लिम और इसाई संगठन हैं


चाहे आप मुझे पुरातनपंथी कहें, पिछड़ा कहें, दकियानूसी कहें या कुछ और लेकिन मैं सरकार द्वारा समलैंगिकों और कानून की धारा 377 हटाने के सख्त खिलाफ हूं। मुझे मालूम है कि इस समय देश में अपने आप को समलैंगिक समर्थक दिखाकर पर प्रगतिशील होने का फैशन है पर मैं क्या करूं मेरी जानकारी और विचारों के अनुसार मैं इसकी विरोधी हूं। मेरे इस बारे में विचार इस प्रकार हैं

  1. समलैंगिकता के समर्थक कहते हैं कि ये उनको कुदरत की देन है, भगवान ने उन्हे ऐसा बनाया है। हो सकता है ऐसा ही हो लेकिन फिर भी ये लोग अचानक से कुछ ज्यादा कैसे हो गये हैं? खैर, कुछ समय पहले एक शोध के अनुसार बताया गया था कुछ अपराधी जन्मजात अपराधी मानसिकता के होते हैं अर्थात कुदरत ने  बर्बर अपराधियों और बुरे लोगों को भी बनाया है तो क्या जिन पर ये साबित हो जाये वो जन्मजात ऐसे है तो क्या उनको अपराध करने की छूट सरकार द्वारा दी जानी चाहिये? इसके अलावा सामाचार पत्रों में भी कुछ खबरें इस प्रकार की आई थी कुछ लोग जबरन हिजड़े बनाये जा रहे है। क्या इसको बढ़ावा नहीं मिलेगा?
  2. समलैंगिकता के समर्थक कहते हैं कि धारा 377 उनको परेशान करने के काम आती है। वैसे आज तक कितने केस धारा 377 के सामने आये है? समलैंगिक तो धारा 377 के लगे होने के बावजूद इस काम में लगे हुये हैं। जिसको बुराई की ओर जाना है  उसको कोई रोक नहीं सकता है।
  3. कुछ समलैंगिकता के समर्थक कहते हैं कि ये सब तो भारतीय समाज में हजारों सालों से चला आ रहा है। बेशक चला आ रहा है। बुराई तो हमेशा से साथ रही है लेकिन उसको दबाने की भी कोशिश होती रही है। मानव सभ्यता के इतिहास में हत्या, चोरी, लूटमार वगैरह सब रही हैं, तो क्या इन सब पर से सिर्फ इसीलिये कानून की रोक हटा ली जानी चाहिये क्योंकि ये हजारों सालों से हो रही हैं और इनको कोई कानून नहीं रोक पाया है?
  4. समलैंगिकता के समर्थन में जब से पत्रकार खासकर अंग्रेजी के, और फैशन डिजायनर आये हैं तब से इसके लिये सरकार पर दबाव बनाया जा रहा है। इसके पक्ष में समाचार छापे जा रहे हैं।
  5. समलैंगिकता के समर्थक कहते हैं कि किसी बुराई को दबाने से वह और बढ़ती है पर मेरे विचार से इसका उल्टा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण शराब का है। शराबबंदी  के विरोधी भी ऐसी ही दलीलें देते हैं लेकिन जब से गली-गली शराब बिकनी शुरू हुई है शराबियों की संख्या बढ़ ही रही है।
  6. समलैंगिक यूरोप और अन्य देशों का उदाहरण देने लगते हैं कि वहां पर इसकी आजादी है इत्यादि। लेकिन जिन देशों में रोक है उनके नाम नहीं बताते। अमेरिका के भी 51 राज्यों में से आधे से भी ज्यादा राज्यों में इस पर रोक है। उनका नाम कोई नहीं बताता। दूसरी बात क्या भारत और यूरोप, अमेरिका के सामाजिक परिवेश समान हैं? यहां कौन सा समलैंगिक 18 वर्ष का रोते ही मां-बाप से अलग रहने लगता है?  अगर यूरोप, अमेरिका  का ही अनुसरण करना है तो हर बात में करो। सलेक्टिव बातों में नहीं।
  7. अगर सरकार गे-परेड की बात को ध्यान में रखकर धारा 377 हटाना चाहती है तो लाखों लोगो की इससे भी बड़ी रैली की जा सकती है समलैंगिकता के विरोध में।
  8. सारे ही धर्म समलैंगिकता को गलत बताते है और इसके लिये मना करते हैं। अगर लगता है कि धर्म गलत कह रहा है तो फिर उस धर्म को पूरा छोड़ो। कुछ बातों को मानना और कुछ को नहीं मानना गलत है। अखिर सारे धर्म गलत हैं और सिर्फ समलैंगिकता के समर्थक सही हैं ऐसा तो नहीं हो सकता। क्या समलैंगिकता कोई नया धर्म बनने जा रहा है?
LGBT


मैंने अपने दिल की बात कह दी है। शुक्र है देश में मुस्लिम और इसाई संगठन हैं जो इस समलैंगिकता की बुराई का विरोध कर रहे हैं वर्ना सरकार ने तो माहौल बना ही दिया था। 

हिंदु संगठन तो इस मामने कहीं दिख ही नहीं रहे हैं। ये भी अब प्रगतिशील होना चाहते हैं। अल्पसंख्य्कों की वजह से ही सही सरकार  पीछे तो हटी।

Manisha मंगलवार, 30 जून 2009

अज्ञात टिप्पणीकार पर रोक सही नहीं है


हिंदी चिठ्ठा जगत में इस समय अज्ञात टिप्पणाकारों द्वारा छद्म नामों से टिप्पणी करके लड़ाई-झगड़े कराने की कोशिश को लेकर हंगामा मचा हुआ। 

इस को लेकर आशीष खंडेलवालजी ने हिंदी ब्लॉग टिप्स के अपने चिठ्ठे पर कल काफी अच्छा व्यंग भी लिखा था। 

शास्त्रीजी और सुरेश चिपलूकरजी भी अपनी नाराजगी व्यक्त कर चुके हैं। 

मेरे विचार में परेशानी अज्ञात टिप्पणीकारों से न होकर उनके द्वारा की गई अनाप-शनाप टिप्पणियों को लेकर होनी चाहिये। 

अज्ञात या Anonymous पर रोक होना इंटरनेट की मुल अवधारणा के खिलाफ है। इंटरनेट के संस्थापकों ने इंटरनेट पर स्वतंत्र चिंतन और अभिव्यक्ति की अवधारणा को मजबूत करने के लिये ही इंटरनेट पर गुमनाम रहकर अपनी बात कहने की आजादी दी थी। इसका दुरुपयोग भी हुआ है लेकिन इसका फायद भी बहुत है। 

गुमनाम रहकर ही कई ब्लॉगर दुनिया में अपनी बात कह पाये हैं। क्या ईराक, ईरान, अफगानिस्तान, चीन या ऐसे कई देश जहां बोलने की आजादी नहीं है वहां पर लोग अपनी बात दुनिया के दूसरे हिस्सों में पहुंचा पाते? नहीं। 

कई बार अपनी बात आप अज्ञात रह कर ही कर सकते हैं। टिप्पणियों की भी ऐसी ही बात है। हम लोगों को अज्ञात टिप्पणी पर रोक के बजाय उस पर मोडरेशन लगा कर पहले उसे पढ़ कर आगे बढा़ना चाहिये।

 टिप्पणी अवांछित है, अश्लील है या किसी और को बदनाम करने के लिये की गई है, ऐसी टिप्पणी को हर हाल में रोका जाना चाहिये और इसके लिये कमेंट मोडरेशन काफी है। 

अज्ञात टिप्पणी पर रोक न लगाकर इसे सेंसर करना ज्यादा ठीक है।  अत: अज्ञात टिप्पणीकार पर रोक सही नहीं है।

Manisha शनिवार, 27 जून 2009