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स्टीफन हाकिंग से पूरी तरह सहमत


प्रसिद्ध वैज्ञानिक और विचारक स्टीफन हाकिंग से मैं पूरी तरह सहमत हूं कि धरती के अलावा भी जीवन है। कल
Jaadu Alien
(26/04/2010) के सभी समाचार पत्रों में स्टीफन हाकिंग  के धरती से अलग जीवन के बारे  विचार छपे थे कि मनुष्यों को एलियंस (अंतरिक्ष जीव) के साथ संपर्क करने की कोशिश नहीं करना चाहिए।  

हाकिंग ने ब्रम्हांड के कई रहस्यों पर बताया और कहा कि वो इस बात के प्रति आश्वस्त हैं कि एलियंस हैं। खास बात यह कि वह सिर्फ ग्रहों पर ही अंतरिक्ष जीवों की संभावना को नहीं स्वीकारते, बल्कि सितारों और अंतरिक्ष में दो ग्रहों के बीच विस्तृत खाली आकाश में भी इनकी मौजूदगी बताते हैं।

हम लोग बचपन में जब कॉमिक्स पढ़ा करते थे तो उसमें फ्लैश गार्डन व अन्य कई अंतरिक्ष की कहानियां होती थी और वहां से मेरा ये विश्वास बनता गया कि अपनी धरती के अलावा भी कहीं न किसी ग्रह पर जरुर जीवन है। 

इसीलिये मैं स्टीफन हाकिंग से पूरी तरह सहमत हूं। 

वैसे एक विचार और मन में आता हे कि अगर दूसरे ग्रहों पर अगर जीवन है तो उनके भी कुछ भगवान होंगे फिर धरती के ईश्वर, अल्लाह और गॉड की अवधारणा का क्या होगा? क्या वहां कोई और भगवान होंगे या यहीं वालों की भी पूजा वहां होगी?

ये जरुर हो सकता है कि जैसा हम सोचते हैं वैसे प्राणी वहां दुसरे ग्रहों पर न हों बल्कि कुछ अलग तरह के हों, अभी तो अपनी धरती पर ही सारी तरह के जावों के बारे में नहीं जान पाये हैं तो दुसरों के बारें मे तो क्या ही जान पायेंगे?

आप में से कितने लोग मानते हैं कि धरती के अलावा भी जीवन है?

Manisha मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर प्रतिनिधित्व में आरक्षण


महिला होने के नाते मुझे खुशी है कि आखिरकार 14 वर्षों के बाद संसद और राज्यों की विधानसभाओं  में 33 प्रतिशत
Women Reservation in India
आरक्षण महिलाओं के लिये बिल पेश हो जायेगा। 

ये एक ऐतिहासिक क्षण है। इस प्रकार के आरक्षण के बाद बहुत कुछ बदलेगा। 

हालांकि व्यक्तिगत आधार पर मैं किसी भी प्रकार के आरक्षण के विरूद्ध हूं क्योंकि ये लोगो का प्राकृतिक और वास्तविक विकास नहीं करता है बल्कि ये अन्य लोगों के साथ अन्याय करता है, लेकिन फिर भी महिलाओं के लिये संसद और विधानसभा में आरक्षण एक अच्छा कदम है। 

इसके विरोधी महिलाओं को पिछड़े, दलित, धार्मिक आधार पर बांट कर विरोध कर रहे हैं लेकिन ये बिल अब पास हो कर रहेगा। 

ये कोई पुरुषों और महिलाओं के बाच की लड़ाई नहीं है बल्कि महिलाओं के वास्तविक विकास की बात है।

Manisha सोमवार, 8 मार्च 2010

आईपीएल के चाहने वाले दीवाने होते है क्या?


दिल्ली में आजकल एफएम रेडियो पर और टीवी पर भी विभिन्न चैनलों पर आईपीएल-3 (IPL-3) के लिये टिकटों की बिक्री के लिये विज्ञापन बज रहे हैं, और दिखाये जा रहे हैं। 

इन विज्ञापने को देख सुन कर तो ऐसा लगता है मानो आईपीएल देखने वालों को होश ही नहीं है कहां पर क्या बात करनी है? 

Manisha गुरुवार, 4 मार्च 2010

इन सेवाओं के प्रयोक्ताओं के नाम कब जाहिर होंगे?


हाल ही में दिल्ली में एक और कालगर्ल गैकेट का पर्दाफाश हुआ है जिसे एक बाबा शिवेन्द्र उर्फ राजीव रंजन द्विवेदी उर्फ इच्छाधारी बाबा चला रहा था। इसके गिरोह में तमाम अच्छे घरों की लड़कियां शामिल थीं। 

जैसे ही बाबा के पकड़े जाने की खबर आई वैसे ही मीडिया ने चटखारे लेकर खबर को दिखाना शुरु कर दिया। बताया जाने लगा कि बाबा का कारोबार पूरे भारत में फैला था, कि कालगर्ल के इस धंधें में कई पढ़ी-लिखी लड़कियां और महिलायें शामिल था, कि कैसे बाबा ने अपने आश्रम में व्यवस्थायें कर रखीं थीं, कि बाबा का कारोबार 2000 करोड़ रुपयो का है, इत्यादि इत्यादि। 

कुछ टीवी चैनलों ने बाबा की कोई डायरी भी दिखा दी जिसमें लेनदेन और सेवा लेने वालों के नाम लिखे थे।
अपराधियों के नाम सार्वजनिक किये जाने चाहिये


लेकिन इन नामो को कभी नहीं बताया जाता है। मीडिया भी इन नामों को छुपा जाता है। 

पुलिस जब भी किसी इस तरह के रैकेट को पकड़ती है तो उसके सरगना और पकड़े जाने वाली लड़कियों और औरतों के नाम तो बता दिये जाते हैं लेकिन कभी भी उनका नाम सामने नहीं आता जिन्होंने कॉलगर्लों की सेवायें ली थीं। 

बाबा का 2000 करोड़ का कारोबार बताया जा रहा है, जाहिर सी बात ये सब पैसा काला धान है जिसे कमाने वालों ने ही बाबा को दिया है उनकी सेवा के बदले में। 

यदि उन लोगों के नाम भी सार्वजनिक कर दिये  जायें जिन्होंने बाबा या अन्य किसी के द्वारा सेक्स के लिये लड़कियां मंगायी थी तो सब का पता चलेगा और सार्वजनिक बदनामी के डर से इस तरह के धंधे में लगे लोग कुछ कम भी होंगे और सरकार को बता चलेगा कि कौन लोग अपना काला धन कहां प्रयोग कर रहे हैं। 

दरअसल कालगर्ल संस्कृति के प्रयोक्ता अधिकांश बड़े सरकारी अधिकारी, नेता व समाज के बड़े-बड़े लोग हैं और इसीलिये हमेशा लड़कियों के नाम ही बाहर आते है लेकिन कभी उन पुरुषों के नाम बाहर नहीं आ पाते जो लोग ऐसे काम को प्रयोग कर उसे बढ़ावा दे रहे हैं। 

मेरे विचार में देश में जगह जगह पकड़ जा रहै सेक्स रैकेटों को चलाने वालों के अलावा उनके ग्राहकों को भी पकड़ कर उनके नाम सार्वजनिक किये जाने चाहिये। अपराधियों के नाम सार्वजनिक किये जाने चाहिये।

Manisha बुधवार, 3 मार्च 2010

हमारे नान-स्टेट एक्टर क्यो नहीं बोलते हैं?


जब मुंबई पर 26/11 पर पाकिस्तानी हमला किया गया था तब वहां के राष्ट्रपति जरदारी ने कहा था कि ये नान-स्टेट एक्टर द्वारा किया गया काम है और इसमें पाकिस्तानी सरकार का कोई हाथ नहीं है। 

Manisha शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

ई-गवर्नेंस से किसे फायदा हो रहा है?


आज से राजस्थान की राजधानी जयपुर में 13 वां राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस (ई-शासन) का सम्मेलन हो रहा है  जिसमें देश के
ई-गवर्नेंस
सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री, उनके विभाग, राज्य सरकारें एवं अन्य लोग भाग ले रहे हैं। 

देश में ई-गवर्नेंस  को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर एवं महत्वाकांक्षी रुप में पेश किया जाता है। ऐसा बताया जाता है कि सूचना प्रौद्योगिकी  की ई-गवर्नेंस  प्रणालियों से देश को और देश की जनता को बहुत फायदा पहुंच रह है या पहुंचने वाला है। 

लेकिन मेरे विचार में ऐसा नहीं है। ई-गवर्नेंस   से कुछ फायदा तो हो रहा है लेकिन ज्यादा फायदा नहीं हो रहा है। इस बारे में मेरे विचार कुछ इस प्रकार हैं -
  • सिस्टम वही का वही - ई-गवर्नेंस  प्रणालियां तो बन गई हैं लेकिन उनसे प्रशासनिक अव्यवस्था पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। मिसाल के लिये अगर जन्म-मृत्यु के प्रमाण पत्र को लेने में अगर पहले 5 दिन लगते तो कंप्युटरीकरण के बाद भी इतने ही दिन लगते हैं यानी कि काम अभी भी उसी गति से हो रहा भले ही कंप्यूटर के ऊपर भारी खर्चा हो गया है। इसी तरह से आयकर के कंप्यूटरीकरण के बावजूद लोगों को आयकर का रिफंड लेने के लिये उतने ही धक्के खाने पड़ रहे हैं जितने की पहले। या फिर आय कर का रिटर्न भरना आज भी उतना ही जटिल है जितना पहले था। यानी ई-गवर्नेंस   का फायदा आम आदमी को नहीं पहुंचा है।
  • मंहगा - ई-गवर्नेंस  के नाम पर लोगो को मिलने वाली सुविधायें मंहगी कर दी गई हैं मसलन रेलवे के टिकट पर कंप्यूटर के नाम पर सरचार्ज लगता है। या फिर उदाहरण के तौर पर दिल्ली में कंप्यूटर और स्मार्ट कार्ड वाले वाहन रजिस्ट्रेशन और वाहन लाइसेंस  की फीस बढ़ा दी गई है यानी लोगों को फायदा तो कुछ नहीं हुआ पर आर्थिक नुकसान जरुर हो गया।
  • हिंदी और क्षेत्रीय भाषायों को नुकसान – अधिकांश कंप्यूटरीकरण व ई-गवर्नेंस  एप्लीकेशंस अंग्रेजी भाषा में हैं आम जनता की भाषा में नहीं। जैसे तैसे देश में राजभाषा के काम को बढ़ाया जा रहा था लेकिन ई-गवर्नेंस  के बाद उस पर पानी फिर गया है। जरूरत आम आदमी की भाषा में ई-गवर्नेंस प्रणालियों की है।
  • बाबुओं को फायदा - ई-गवर्नेंस के नाम पर करोड़ों रुपये की योजनाये बना कर खरीदारी की जा रही है जिसमें जाहिर सी बात है कि क्या उद्देश्य रहता है।
  • भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं - ई-गवर्नेंस से कहीं भी किसी भी सरकारी विभाग में भ्रष्टाचार पर रोक नहीं लग सकी है यानी सब कुछ वैसै ही चल रहा है।


ई-गवर्नेंस कई जगह पर सफलता पूर्वक भी चल रहा जैसे कि रेल व हवाई यात्रा में रिजर्वेशन में। अधिकांश ई-गवर्नेंस वहां तो सफल है जहां पर पैसे का लेन देने है, वाकई इससे आसानी हो गई है।

लेकिन जब तक ई-गवर्नेंस  से आम जनता को परेशान करने वाली व्यवस्था नहीं बदलती तब तक ये सिर्फ एक ढोल पीटने जैसी बात रहेगी।

Manisha बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

आखिर भारत का संयम खत्म हो ही गया


कुछ दिन पहले पाकिस्तान में अमेरिका के रक्षा मंत्री राबर्ट गेट्स ने यह कहा था कि कि भारत का संयम खत्म हो सकता है। इसका सभी समाचार माध्यमों ने यह अर्थ निकाला था कि भारत पाकिस्तान की तरफ से किसी भी प्रकार के आतंकी हमले के लिये जैसे को तैसा की तर्ज पर कार्यवाही करेगा। 

Manisha सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

लोगों की भाषा क्षमता कम हो रही है


आजकल हम रोज देखते हैं कि विभिन्न कार्यक्रमों में लोग जो भाषा बोलते हैं वो इतनी हल्की होती है कि समझ में नहीं आता कि भाषाओं के मामले में समृद्ध भारत को क्या होता जा रहा है?  शिक्षा के तमाम अवसरों के बावजूद पढ़-लिखे लोग भी अनपढ़ों के बराबर ही लगते हैं। 

टीवी के विभिन्न चर्चा वाले कार्यक्रमों को देखिये, विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के प्रवक्ताओं को देखिये, नेताओं द्वारा दिये जाने वाले बयानो को देखिये, फिल्मों के संवादों को देखिये, संसद में होने वाली बहसों को देखिये आपको स्वयं समझ में आ जायेगा कि किस प्रकार की भाषा का प्रयोग होने लगा है। 

Manisha रविवार, 7 फ़रवरी 2010

कांग्रेस की किस्मत इस समय अच्छी है।

ज्योतिषी की बातें बताने वाले ब्लॉगर साथी लोग या फिर अन्य ज्योतिषियों द्वारा शायद न बताया गया हो लेकिन मुझे लगता है कि अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी की किस्मत इस समय बहुत ही अच्छी चल रही है। 

महंगाई इस समय देश में चरम पर है आप ही देखिये कि इस समय मायावती पर मूर्तियां और पार्क बनाने का आरोप है जिसे फिलहाल सर्वोच्च न्यायालय ने रोक रखा है और वो केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित रह गई हैं, नितीश कुमार की जद (यू) में भी झगड़ा चल रहा है, समाजवादी पार्टी में अमर सिंह ने मोर्चा खोला हुआ है, भाजपा में गिरावट है, हिंदुवादी शिवसेना, आरएसएस और भाजपा महाराष्ट्र में झगड़ रहे हैं, वामपंथी कमजोर हो चुके हैं और वहां भी आपसी मतभेद उभर आये हैं। 

ऐसे कमजोर विपक्ष के समय में अगर सत्तारुढ़ पार्टी की किस्मत अच्छी नहीं कही जायेगी तो क्या कहा जायेगा? 

Manisha सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

शराब पीकर दुर्घटना करने में भी बराबरी?


हम सब महिलाओं को उनके अधिकार और बराबरी के लिये संघर्ष करते रहते हैं। भारत में औरतों को अपना हक लेने के लिये कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। हमें पुरुषों के समान अधिकार और सम्मान मिलना ही चाहिये। 

लेकिन कुछ बराबरी इस तरह की है कि औरतों को न ही मिले तो ठीक है। 

Manisha

क्यों भारत के नक्शे गलत छपते हैं?


पिछले एक या दो सालों से ये देखने में आ रहा है कि भारत के राजनैतिक  नक्शे को गलत तरीके से विभिन्न स्तरों पर दिखाया जाता है। कई बार इस को लेकर हल्ला मचता है और कई बार अनदेखा हो जाता है। 

India-Wrong-Map


पहले जब हम छोटे थे तब भी समाचार पत्रों में इस बारे में कुछ छपता था कि फलां-फलां जगह भारत का गलत नक्शा छापा गया है तब भारत सरकार की प्रतिक्रिया की खबर भी छपती थी। 

अब तो पता ही नहीं चलता कि भारत सरकार को गलत नक्शा छपने की चिन्ता है भी या नहीं। 

तो आखिर क्या कारण है कि पिछले कुछ समय से भारत के नक्शे गलत छपने या वेबसाइटों पर लगने की खबर आ रही हैं। शायद ये कारण हो सकते हैं -

  • मीडिया कवरेज ज्यादा -  शायद अब इस तरह की घटनायें छुप नहीं पाती हैं और मीडिया माध्यमों में अच्छा कवरेज मिलता है जिससे हमें लगता है कि इस तरह की घटनायें बढ़ गई है
  • कर्मचारियों की लापरवाही -  कई बार कर्मचारियों खासकर सरकारी कर्मचारियों द्वारा अपने खुद के कम सामान्य ज्ञान या फिर लापरवाही की वजह से ऐसा होता है कि गलत नक्शा छप जाता है या फिर वेबसाइट पर लग जाता है। अपना काम बचाने के लिये ये लोग शायद विभिन्न वेबसाइटों से भारत का गलत नक्शा डाउनलोड कर के लगा देते हैं।
  • जानबूझ करये शायद सबसे बड़ा कारण है। भारत को जानबूझकर नीचा दिखाने के लिये विभिन्न देशों के प्रकाशक और वेबसाइटें भारत का गलत, भ्रामक और विवादास्पद नक्शा प्रदर्शित करते हैं। ऐसा इसलिये भी किया जाता है ताकि भारत की प्रतिक्रिया जानी जा सके। यदि भारत की जनता और सरकार कड़ा विरोध नहीं जतायेगी तो ये लोग धीरे-धीरे सभी जगह इसी तरह से भारत के गलत नक्शे लगाकर भारत को नुकसान पहुंचायेंगे।

दरअसल रणनातिक तौर पर दुश्मन देश इस तरह की घटनायें कर के भारत की प्रतिक्रिया को देखना चाहते हैं। इस तरह की घटनायें केवल कमजोर देशों के खिलाफ ही होती हैं। 

चीन के नक्शे को तोड़-मरोड़ कर प्रदर्शित करने की किसी प्रकाशक और वेबसाइट द्वारा हिम्मत नही होती है।

भारत सरकार की प्रतिक्रिया अक्सर कमजोर सी होती है अब समय है कि भारत सरकार को भी चीन की तरह से जोरदार ढंग से विरोध करना चाहिये।

Manisha गुरुवार, 28 जनवरी 2010

हो गई कोस्मेटिक देशभक्ति पूरी

आज देश को गणतंत्र बने हुये 60 वर्ष पूरे हो गये और इस अवसर पर जहां मन प्रफुल्लित और हर्षित है वहीं ये देख कर दुख होता है कि अधिकांश लोगो की देशभक्ति केवल दिखाने भर के लिये है। 

आज 61वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर हमारी सोसाईटी में भी लोगो ने झंड़ारोहण, राष्ट्रीय गान का गायन एवं कई अन्य कार्यक्रम आयोजित किये थे। 

लेकिन मैने देखा कि सोसाईटी की दो बिल्डिंगों को लोग अलग-अलग जगह पर अपना अपना ये सब कार्यक्रम कर रहे थे यानी कि गंणतंत्र दिवस के अवसर पर भी लोग एक न रह सके और अपनी-अपनी देशभक्ति अलग से प्रदर्शित की।

दूसरी बात ये कि गाने गाये जा रहे थे कि देश के लिये ये कर देंगे वो कर देंगे लेकिन अधिकांश लोग वो है जो किसी न किसी प्रकार से देश को नुकसान पहुंचाने वाले लोग हैं। 

कोई अपने ऑफिस में भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, किसी के बारे में सब को पता है कि वो बिना रिश्वत के कोई काम नहीं करता है, कोई बिल्डर है जो कि घटिया सामान लगाकर ज्यादा कमाता है, कोई दुकानदार है जो कि घटिया और मंहगा सामान बेचने कि फिराक में रहता है। 

कहने का मतलब ये हे कि ये सब लोग दिल से तो शायद देशभक्त हैं और अपनी देशभक्ति 26 जनवरी और 15 अगस्त को इसी तरह प्रदर्शित भी करते है लेकिन जो बाते देश को नुकसान पहुंचा रही हैं उनको छोड़ते नही हैं तो क्या ये न माना जाये कि ऐसी देशभक्ति दिखावटी (कोस्मेटिक) है।

दिल से देशभक्त बनिये और देश के लिये ऐसे काम करिये कि देश का और देश के लोगों को लाभ हो। आप सब को 61वें गणतंत्र दिवस की ढेर सारी बधाई और शुभकामना कि ऐसे ही हमारा प्यारा भारत  देश हमेशा गणतंत्र दिवस मनाता रहे।

Manisha मंगलवार, 26 जनवरी 2010

एक झटके में मिट गई अमन की आशा !


भारत और पाकिस्तान के संबंधों में मुंबई के 26/11 हमलों को बाद जो गिरावट और बातचीत में जो गतिरोध आया
Aman-Ki-Asha
है उस को लेकर फिर से भारत में शांतिवादी सक्रिय हो रहे हैं। 

इसी सिलसिले में भारत में टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार पाकिस्तान के जंग नाम के अखबार के साथ मिल कर  अमन की आशा नाम से भारत और पाकिस्तान की दोस्ती के लिये अभियान चला रहा है। 

इसी तरह से कुछ पुराने शांतिवादी और बुद्धिजीवियों ने टीवी के अपने कार्यक्रमों में इस तरह के विषयों को लेकर ट्रेक-टू डिप्लोमेसी शुरु कर दी है।  

हालांकि भारत की जनता और सरकार अभी तो इस प्रकार की किसी अमन की आशा की उम्मीद न रखते हुये इससे दुर ही बने हुये हैं। 

अमन की आशा  का यह कार्यक्रम अभी पूरा भी नहीं हुआ है कि आईपीएल-3 में क्रिकेट खिलाड़ियों के नीलामी कार्यक्रम में पाकिस्तानी खिलाड़ियों को किसी भी टीम द्वारा न लिये जाने से एक ही  झटके में अमन की आशा मिट गई है। 

अब पाकिस्तान में तरह-तरह की भारत विरोधी आवाजें सुनाई दे रही हैं और टाइम्स ऑफ इंडिया तथा जंग अखबार की अमन की आशा का प्रोग्राम बेकार की कवायद बन गया है।

इसी के साथ-साथ पाकिस्तान में अमेरिका के रक्षा मंत्री राबर्ट गेट्स ने यह कहकर अमन की आशा  को धक्का पहुंचाया है कि भारत का संयम खत्म हो सकता है यदि फिर से 26/11  की घटना दोहराई गई।  इससे भी भारत-पाक संबंधों में गिरावट और वाद-विवाद और गहरा सकता है। 

साथ-साथ ये भी पता चल रहा है कि अमेरिका दोनों देशों को डराकर दक्षिण एशिया के इस क्षेत्र में अपना रुतबा बढ़ी रहा है और भारत-पाक के आपसी संबंधों में चौधरी बन रहा है।

पर फिलहाल तो अमन की आशा मिट गई है। वैसे भी ऐसी आशा थी भी किसे?

Manisha गुरुवार, 21 जनवरी 2010

गूगल पूरा भारतीय हो रहा है – मकर-संक्रांति

ऐसे समय में जब भारतीय लोग पश्चिमी बातों के प्रभाव में अपनी भाषा, संस्कार और त्यौहरों से दूर होते जा रहे हैं, भारतीयों का अंतर्राष्ट्रीयकरण होता जा रहा है, अपनी दुकाने लेकर भारत आई विदेशी कंपनियां भारत में हिंदी में प्रचार करती हैं और भारतीय त्यौहारों के माध्यम से अपना माल बेचने की कोशिश करती दिखती हैं। 

इसी का एक उदाहरण है गूगल का मकर संक्रांति को याद रखना और ये भी याद रखना की भारत में कई जगह इस अपसर पर पतंगे उड़ाई जाती हैं। हालांकि पढ़े-लिखे भारती अब अपने बच्चों को पतंग, कंचे, गिल्ली-डंडा खेलने के लिये मना करते हैं। 

गूगल ने मकर-संक्रांति के अवसर पर अपने भारतीय होम-पेज पर ये पतंगबाजी का चित्र लगाया है जोकि हमें ही याद दिला रहा है कि उठो भारतीयों अपनी ही बातों, संस्कारों को मनाओ और मजे लूटो।

Makar Sankranti Kite Festival

इसी अवसर पर मेरे मोबाइल पर आया हुआ एक छोटा संदेश (SMS) :

मीठे गुड़ में मिल गया तिल
उड़ी पतंग और खिल गया दिल ।।
हर पल सुख और हर दिन शान्ति
आपके लिये शुभ मकर संक्रांति ।।

Manisha गुरुवार, 14 जनवरी 2010

कहां गई ग्लोबल वार्मिंग?


दिल्ली और उसके आसपास जबर्दस्त ठंड पड़ रही है। सर्दी में न कुछ काम करने का मन करता है और न ही सामान्य
Global Warming
जीवन जिया जा रहा है। 

बच्चों के स्कुल बंद कर दिये गये हैं। गलन वाली ठंडी हवा चल रही है। उत्तर भारत के हर पहाड़ी स्थान पर इस बार बर्फबारी हुई है। 

इसके साथ-साथ दुनिया के अधिकांश हिस्सों में भी जबर्दस्त ठंड पड़ रही है। कई जगह तो कई वर्षों के रिकार्ड टूट गये हैं। 

चीन, कोरिया, रुस, जर्मनी, इंग्लैंड, अमेरिका, कनाडा हर जगह बर्फ गिर रही है। 

भारत में भी पिछले 2-3 सालों में तो कोई खास ठंड नही पड़ी थी, लेकिन इस बार वापस अपने वास्तविक रुप में आ गई है। 

ऐसे में मैं सोच रही हूं कि धरती पर लोग जो ग्लोबल वार्मिंग को लेकर हल्ला कर रहे थे और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाकर अपनी अपनी बात मनवा रहे थे उनको कहीं प्रकृति यानी भगवान ने तो जबाव नहीं दिया कि चिन्ता न करो प्रकृति अपने आप तुम्हारा ध्यान रखेगी। 

कोई बतायेगा कि कहां गई ग्लोबल वार्मिंग और उसका असर?

Manisha मंगलवार, 12 जनवरी 2010

भारतीय होटल व्यवसाय या इंडस्ट्री पर्यटन सीजन में दाम बढ़ा देते हैं


पिछले साल के अंत और इस साल की शुरुआत के लिये हम लोग कुछ पर्यटन स्थलों पर परिवार के साथ घूमने के लिये गये थे जहां पर नये साल का हमने स्वागत किया और अभी हम लोग छुट्टियां मना कर लौटे हैं। 

Indian Hotel Industry भारतीय होटल व्यवसाय

इन छुट्टियों के दौरान घूमते वक्त हमने देखा कि क्रिसमस के आसपास लगातार छुट्टियों की वजह से काफी भीड़ थी और ऐसा लग रहा था कि अधिकांश लोग घूमने निकले हुये हैं। 

खैर जिस बात ने मुझ सबसे ज्यादा हैरान और परेशान किया किया कि अधिकांध होटलों और गेस्ट हाउसों में कमरे उपलब्ध नहीं थे और उपलब्ध कमरों को काफी ज्यादा दाम बढ़ा कर उठाया जा रहा था, वो भी अहसान जता कर।

हमने देखा कि कई परिवारों का घूमने का बजट इस वजह से बिगड़ गया और लोग अपना कार्यक्रम अधूरा छोड़ कर चले गये। कई होटल वालों को हमने पर्यटकों से बेरुखी से व्यवहार करते भी देखा। 

लोगों का कहना था कि पहले के वर्षों में साल के इसी समय इस तरह से कभी भी होटलों में कमरो की उपलब्धता की समस्या कभी नहीं रही फिर पता नहीं इस बार क्यों ऐसा है? 


खैर होटल वालों द्वारा इस प्रकार सरेआम पर्यटकों को लूटने से मैंने ये सोचा कि अगर ये लोग सीजन के नाम पर इस तरह बहुत ज्याद दाम बढ़ा सकते हैं तो फिर अन्य लोगों द्वारा भी इन होटल वालों से इसी सीजन के दौरान अलग तरह के दाम लेने चाहिये मसलन बिजली विभाग, जलकर, सीवर, आय कर, बिक्री कर इत्यादि को भी सीजन के रेट बढ़ा कर इस तरह से इनसे वसूलना चाहिये अन्यथा पहले से ही सरकार को पक्का कराना चाहिये कि सीजन में क्या रेट लिये जायेंगे और बाद में क्या रेट लिये जायेंगे। वर्ना पर्यटक इसी प्रकार लुटते रहेंगे।

Manisha गुरुवार, 7 जनवरी 2010

लगता है कि मेरा अंग्रेजी का सरकारी नौकरी को बताने वाला ब्लॉग कम से कम भारत में तो नंबर एक ब्लॉग बन गया है।  रोजाना पेज व्यू भी काफी ज्यादा है और अब तो फीड सब्सक्राइबर (फीड ग्राहक) की संख्या भी चार लाख के ऊपर हो गई है।

Sarkari-Naukri-Blog

Manisha बुधवार, 6 जनवरी 2010

अपने दस्तावेज कागजों को प्रमाणित करने के लिये लिख कर दें



ये मैं अपने और दूसरों के भुक्तभोगी अनभव के आधार पर  बता रही हूं कि जब भी कभी आप किसी नये मोबाइल फोन कनेक्शन, गैस कनेक्शन,  क्रेडिट कार्ड  लेने, बैंक में खाता खुलवाने हेतु अपने किसी कागजात  की फोटोकोपी अगर किसी कर्मचारी या किसी को अन्य को दें तो कृपया उस पर साफ-साफ लिख दें किसी कि सिर्फ इसी काम के लिये ये कागज हैं। 

अपने  दस्तावेज कागजों को प्रमाणित करने के लिये लिख कर दें


उदाहरण के तौर पर मान लीजिये कि आपने अपने कागजात आईसीआईसीआई बैंक में खाता खुलवाने के लिये हैं तो अपने द्वारा दिये गये कागजात पर लिख दीजिये कि सिर्फ आईसीआईसीआई बैंक में खाता खुलवाने के प्रयोग हेतु (अंग्रेजी में भी)। 

ये भी इस प्रकार लिखें कि यदि उसकी दुबारा कोई कोपी करे तो आपके द्वारा लिखा गया जरूर उसमें दिखे। 

दरअसल आजकल हमारे द्वारा दिये गये कागजातों के आधार पर लोग मोबाईल कनेक्शन व अन्य प्रकार की आपराधिक गतिविधियां करते हैं और असली मालिक को पता भी नहीं होता। 

हमारे एक परिचित जब एक बैंक से होम लोन लेने गये तो पता चला कि उनके नाम से पहले चार (4 पर्सनल लोन) लोन चल रहे हैं। अब बेचारे घूम रहे हैं। 

इसके अलावा आये दिन आतंकियों द्वारा नकली कागजात के आधार पर अपनी पहचान के लिये ड्राईविंग लाईसेंस, बैक एकाउंट खुलवाने व पासपोर्ट बनवाने की खबरें आती रहती हैं। 

अत: बाद की परेशानी से बचने के लिये पहले ही सावधानी बरतें व अपने कागजों को इस तरह से दें कि जहां पर प्रयोग होने हैं वहां को छोड़कर कहीं और न प्रयोग हो सकें।

Manisha शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009

स्वाईन फ्लू का प्रकोप बढ़ गया है


पिछले करीब 15 दिनों से दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में और उत्तर भारतswine-flu के सभी राज्यों में स्वाईन फ्लू मान की बीमारी फिर से बड़े पैमाने पर लौट आई है।  

हमारे एक परिचित को भी स्वाईन फ्लू हो गया है जिनसे मिलने के बाद हमें भी डाक्टर द्वारा टैमी फ्लू नाम की दवा खाने को बोला गया है। परिवार में सभी ने ये गोली खा ली है। 

वैसे होम्योपैथी की इन्फ्ल्यूऐंजा-200 व अपनी पारंपरिक तुलसी का काढ़ा भी इसमें प्रभावी बताया जा रहा है। हमारे परिचित वेंटीलेटर पर अस्पताल में भर्ती हैं और स्थिति गंभीर है।

विशेषज्ञों का कहना है कि जाड़े के आगमtami-fluन के कारण ही स्वाईन फ्लू के केस बढ़ गये हैं, लेकिन जाड़ा तो हर साल आता है, इसी साल इतना घातक क्यों है?  

जिस तरह से बड़े पैमाने पर ये इस समय फैल रहा है उससे तो ये भी लगता है कि किसी विकसित देश ने अपने देश में स्वाईन फ्लू के बचाव के टेस्ट के लिये भारत में तो नहीं फैला दिया या फिर किसी आतंकी संगठन ने चुपचाप तो नहीं फैला दिया?  

बहरहाल जो भी हो, रोजाना लोगों के मरने और स्वाईन फ्लू से पीड़ित होने की खबरे छप रही हैं और अस्पतालों में जगह कम पड़ रही है। स्थिति गंभीर है। सरकारें प्रयत्न कर रही हैं पर अभी अपर्याप्त है।

Manisha गुरुवार, 10 दिसंबर 2009

26/11 : पश्चिम से ही हमेशा हमला हुआ है भारत पर


अगर आप इतिहास उठा कर देखें तो पायेंगे कि भारत भूमि पर केवल एक बार को छोड़ कर (जब चीन ने 1962 में
पश्चिम से ही हमेशा हमला हुआ है भारत पर
भारत पर आक्रमण किया था)  हमेशा  पश्चिमी सीमा से हमला होता रहा है। केवल 1962 में ही उत्तर की ओर से चीन द्वारा हमला किया गया था। 

सिकन्दर, मुहम्मद बिन कासिम, महमूद गजनवी, मुहम्मद गौरी, तामूर लंग, बाबर, अकबर, नादिरशाह, अहमदशाह अब्दाली, याह्या खां, अजमल आमिर कसाब आदि हमलावर सब भारत पर पश्चिमी दिशा से ही आये थे। 

जब भी भारत की  पश्चिमी सीमा कमजोर हुई तो भारत पर हमला हुआ है। आजादी के बाद से भी पश्चिमी सीमा पर तीन बार पाकिस्तान की ओर से हमला किया गया है। 

इसलिये इतिहास से सबक लेते हुये देश को पश्चिम की ओर विशेष ध्यान  रखना चाहिये। विश्व के आतंकवाद की केन्द्र भी भारत के पश्चिम में ही स्थित है और इधर ही दुनिया का सबसे ताकतवर देश अपनी सेना लेकर बैठा हुआ है। 

दरअसल पश्चिम की ओर भारत में सपाट मैदान हैं जहां सेना तीव्र गति से चल पाती हैं, इसके अलावा ये इलाका उपजाऊ भी है इस कारण यहां समृद्धि है और इसीलिये विदेशी आक्रमणकारी हमेशा लूटने के लिये लालायित रहते रहे हैं। 

अब इसमें जेहाद और धार्मिक तथा राजनीतिक विद्वेष  भी मिल गया है। मेरे विचार में भारत को अपने आप को सुरक्षित करने के लिये पश्चिमी सीमा को सुदृण होना बहुत आवश्यक है।

Manisha गुरुवार, 26 नवंबर 2009

अंग्रेजी और हिंदी के अखबार और पत्रिकायों में बहुत विरोधाभास हैं


अंग्रेजी और हिंदी के अखबार और पत्रिकायों  बहुत विरोधाभास हैं एनडीटीवी के पत्रकार एवं हिंदी के अच्छे चिठ्ठाकार श्री रवीश कुमार जी ने अपने चिठ्ठे कस्बा  में यह प्रश्न उठाया था कि हिंदी-अंग्रेजी के अख़बारों का किसान अलग क्यों होता है?  

दरअसल ये बहुत ही बुनियादी सवाल है और ये वास्तव में हिंदी और अंग्रेजी भाषा के द्वारा सोचने और समझने का भी अन्तर है और साथ ही संस्कृतियों का भी अंतर हैं। 

मैं हिंदी और अंग्रेजी की तमाम पत्रिकायें (खास कर महिलाओं की) एवं समाचार पत्र पढ़ती हूं और कई विषयों पर देखा है कि अंग्रेजी के अखबार और पत्रिकायों की सोच बिलकुल अलग है।

  • अंगेजी की पत्रिकाये हमेशा इस तरह के लेख छापती हैं – हाउ टू प्लीज योर मैन, नो हिज सेक्सी प्लेसेज, फिफ्टी वेज टू सेटिस्फाई हिम इत्यादि। इनमें योर मैन की बात की जाती है यानी ये बताया जाता है कि किसी से भी आप संबंध बना सकती हो। यहां कभी भी हसबैण्ड शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। पूरा ध्यान पति-पत्नी पर न होकर मैन-वूमेन पर होता है।
  • अंगेजी के सारे अखबार मिलकर भी अकेले दैनिक जागरण से कम बिकते हैं (ताजा सर्वेक्षण 2009 के अनुसार) लेकिन फिर भी हिंदी समाचार पत्रों को भाषाई या वर्नाकुलर लिखते हैं और अपने आप को नेशनल (राष्ट्रीय) समाचार पत्र कहते हैं।
  • पश्चिम की हर बुराई जैसे कि प्रास्टीट्यूशन, लिव-इन-रिलेशनशिप, लेस्बियन और गे सेक्स इत्यदि के समर्थन में लेखों की अंग्रेजी पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में बहुतायत रहती है और उसके पक्ष में माहौल बनाते रहते हैं।
  • शराब के किसी बन्दीकरण के विरोध में भी अंग्रेजी पत्रकारिता सबसे आगे है।
  • अब अंग्रेजी ही इनका जीवन-यापन का साधन है इसलिये ये अंग्रेजी को बढ़ावा देने के लिये हमेशा हल्ला करते रहते हैं। अंग्रेजी इनके अनुसार अंतर्राष्ट्राय भाषा है जिसके बिना भारत का विकास नहीं हो सकता।
  • हिंदी के पत्र-पत्रिका वाले पता नहीं किस हीन भावना से ग्रस्त रहते हैं कि वो खुद ही हिंदी वालों को अंग्रेजी वालों के समतर समझते हैं। हिंदी के अखबारों और पत्रिकायों में वैज्ञानिक व अंतर्राष्ट्रीय विषयों पर बहुत ही कम छपता है। उनके अनुसार हिंदी के पाठकों का स्तर कम है।
  • स्वतंत्र किस्म के लेख हिंदी पत्रिकायों और समाचार पत्रों मे कम ही आते है, अधिकांश समाचार ऐजेंसी से लिया हुआ होता है।
  • हिंदी के समाचार पत्र स्थानीय समाचारों को बहुत ही अच्छा कवर करते हैं।

Manisha बुधवार, 25 नवंबर 2009