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भाजपा और कांग्रेस मिल कर खेल रहे हैं


पिछले हफ्ते जब से तीसरे मोर्चे के गठन और उसके 15 वीं लोकसभा के चुनावों में भाजपा और कांग्रेस को चुनौती देने की बात समाचारों में प्रमुखता से प्रसारित हुई थी और बिहार तथा उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह, लालू प्रसाद यादव एवं रामविलास पासवान द्वारा हाथ मिलाने की बात आई तब से अचानक से ही पीलीभीत में वरूण गांधी द्वारा कथित सांप्रदायिक भाषण की सीडी सामने आ गई है और विभिन्न टीवी समाचार पत्रों में इसको व्यापक रुप से दिखाया जा रहा है और पिछले एक हफ्ते से लगातार इसी से संबंधित समाचार दिखाये जा रहे हैं। 

ये सीडी किसने रिकार्ड की थी और कहां से समाचार चैनलों का दी गई इसके बारे में कोई बात अभी तक पता नहीं चली है। मेरा मानना है कि इन सब के पीछे भाजपा और कांग्रेस का मिला जुला हाथ है। दोनो मिलकर इस बात को बढ़ा रहे हैं। इस में इनका साथ कुछ चैनल दे रहे हैं। 


जब से वरूण गांधी के भाषण की सीडी जारी हुई है तब से हर दूसरे दिन भाजपा और कांग्रेस का कोई न कोई नेता इस संबंध में कोई न कोई वक्तव्य देकर इस मुद्दे को जिलाये हुये हैं। इस समाचार के प्रसारित होने के बाद से ही तासरे मोर्चे से संबंधित समाचार गायब हैं और चुनावों में जो रोजगार, शिक्षा, सुरक्षा, अच्छा प्रशासन इत्यादि मुद्दे उठते उससे अब जनता का ध्यान हटाकर सांप्रदायिकता पर केंद्रित कर दिया गया है। 

जनता इन दोनों दलों के जाल में फंसकर आपस में सर फोड़ेगी और हिन्दू औ मुस्लिम के सवाल पर वोट डालेगी, ऐसी साजिश रची जा रही है। जनता को सावधान रहना होगा और इस वेवजह के मुददे से बच कर मुलभूत बातों पर आधारित मतदान करना होगा।

Manisha शनिवार, 28 मार्च 2009

अब तो ये भी मान गये कि पाकिस्तानी हमारे जैसे नहीं


कल के दिल्ली से प्रकाशित हिन्दुस्तान टाइम्स (Hindustan Times Delhi 08/02/2009) में वीर सांघवी द्वारा लिखा गया लेख देखिये। जो बात भारत का आम नागरिक शुरु से कह रहा है उसको अब ये बड़े-बड़े लोग भी मान रहे हैं कि पाकिस्तान के लोग हमारे जैसे नहीं हैं। 

पाकिस्तान के लोग वास्तव में भारत विरोधी, हिन्दी विरोधी, जेहादी मानसिकता वाले, झूठे और इस्लामी जगत में सिरमौर बनने की इच्छा रखने वाले हैं। 

दरअसल भारत में कुछ अति उदारवादी और शांतिवादियो का प्रिय शौक है भारत के लोगों को बार-बार ये बताना कि पाकिस्तान के लोग हमारे जैसे ही हैं, वो हमारी जैसी बोली बोलते है, वो हमारे जैसे दिखते हैं, वो हमारे भाई हैं इत्यादि इत्यादि। 

आजादी से पहले तो पाकिस्तान भारत का ही हिस्सा था तो वो हमारे जैसे तो दिखेंगे ही, हमारी बोली बोलने वाले होंगे ही, लेकिन ये अलग हैं दिमागों में भरी अपनी अलगाव की भावना से। अगर ये हमारे जैसे ही थे, हमारे ही भाई थे तो पाकिस्तान अलग बनवाया ही क्यों था?  


आप टीवी पर किसी भी पाकिस्तानी को सुनिये, मानने को भी तैयार नहीं है कि वहां कोई गलत बात हो रही है। इमरान खान जैसा व्यक्ति जो इंग्लैंड में पढ़ा है इतने साल वहां रहा है पढ़ा-लिखा है वो भी आजकल जेहादी आतंकवादियो का समर्थन करता नजर आता है। 

लड़कियों के स्कूल बम से उड़ा दिये गये जायें, लड़कियां पढ़ न पायें, शरीयत के अनुसार शासन चले, इमरान खान को इसमें कोई परेशानी  नहीं है। इसी से समझा जा सकता है कि पाकिस्तान का समाज किस कदर जेहाद में अंधा हो चुका है। 

अब वक्त आ गया है हम सब समझे कि पाकिस्तानी हमारे जैसे नहीं हैं। इनकी सोच हमसे बिलकुल अलग है। उदारवादियों और शांतिवादियों को अब इनको अपने जैसा होने का प्रचार बन्द कर देना चाहिये। 

मुंबई में 26/11 की आतंकी घटना के बाद से अब इन उदारवादियों और शांतिवादियों की खोखली बातों को कोई मानने को तैयार नहीं है और इसी का प्रमाण है वीर सांघवी का ये लेख।

Manisha रविवार, 15 मार्च 2009

50 साल का हो गया लिज्जत पापड़


महिलाओं को आपसी सहयोग की एक सशक्त मिसाल लिज्जत पापड़ आज 50 साल का हो गया। आज ही के लिज्जत पापड़ दिन 15 मार्च 1959 को कुछ महिलाओं ने आपसी सहयोग से उधार के 80 रूपयों से इसकी शुरआत की थी, जो कि आज 300 करोड़ के कारोबार में तब्दील हो चुका है। 

लिज्जत पापड़ को भारत के हर घर में कम से कम एक बार तो इस्तेमाल किया ही गया होगा। इसका टीवी पर आने वाला इसका Lijjat Papad विज्ञापन मजेदार कुर्रम कुर्रम पापड़ सबको याद है। महिलाओं द्वारा महिलाओं के लिये चलाये जाने वाली संस्था श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़ बधाई की पात्र हैं और इस बात की मिसाल हैं कि महिलायें अगर ठान लें तो क्या नहीं कर सकतीं। आज इससे 40000 के करीब महिलायें जुडीं हुई हैं और उनको रोजगार मिल रहा है। लिज्जत और अमूल भारत में आपसी सहयोग, सहकारिता के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

लिज्जत पापड़ की संस्था के बारे में अधिक जानने के लिये http://www.lijjat.com पर जाइये।

Manisha

महिला दिवस भी हिन्दी दिवस की तरह है


भारत में अच्छे भले उद्देश्य भरे किसी  भी काम को कैसे निरूद्देशीय खाली-पीली बाते बनाने में बदला जाता है,
अंतर्राष्ट्ररीय महिला और हिन्दी दिवस इसका प्रमाण 8 मार्च को होने वाला अंतर्राष्ट्ररीय महिला दिवस है। 

इस महिला दिवस पर तमाम तरह की संगोष्ठियां आयोजित की जाती है, महिला सशक्तिकरण का ढोल पीटा जाता है, तरह तरह के वादे किये जाते हैं। इन सब कामों में पूरुष ज्यादा बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। 

ऐसा दिखाया जाता है मानों समाज महिलाओं के लिये कितना चिन्तित है और कितना कुछ करना चाहता है। देखिये आज महिला दिवस पर सबसे ज्यादा पुरुष चिठ्ठाकारों  ने ही महिला दिवस पर लिखा है। 

राजनैतिक पार्टियां बतायेंगी कि कैसे वो महिलाओं के उत्थान के लिये वचनबध्द हैं, लेकिन चुनावों में महिलाओं के टिकट देने की बारी आयेगी तो बताया जायेगा कि जीतने वाले उम्मीदवारों को ही टिकट दिया जायेगा। 

कहने का मतलब ये है कि किसी की दिलचस्पी इस में नहीं है कि कैसे इस देश में महिलाओं को उनका उचित स्थान मिले, उचित अवसर मिलें, बल्कि इस बात में है कि वो कैसे ज्यादा महिला हितैषी दिखें। 


इसी वजह से  महिला दिवस भी हिंदी दिवस की ही तरह से हो गया है जिसको मनाने के अगले ही दिन से लोग भुल जाते हैं और अपने पुराने ढर्रे पर आ जाते हैं। बिना महिलाओं की तरक्की क्या देश आगे बढ़ सकता है? 

महिलाओं के उत्थान की बात करने वालों के पास पच्चीस प्रतिशत वाले समुदाय की महिलाओं की तरक्की के बारे में कोई योजना नहीं होती है मानो उनका विकास जरुरी नहीं है। 

पूरे साल महिलाओं को अपने अधिकारों के लिये संघर्ष करना पड़ता है। अगर समाज के लोग केवल एक दिन याद न रखकर पूरे साल ईमानदारी से अपनी बातों पर अमल करें तो वाकई कुछ ही सालों में बहुत परिवर्तन आ सकता है।

Manisha रविवार, 8 मार्च 2009

गांधी के विचारों को भी तो बचाईये


गांधी महात्मा गांधी की निजी वस्तुओं को जिसमें उनका चश्मा, जेब घड़ी, चप्पलें, एक प्लेट और एक कटोरी शामिल है, को अमेरिकी में नीलामी किये जाने के खिलाफ भारत सरकार काफी प्रयत्न कर रही है कि किसी तरह ये नीलामी रुक जाये और गांधीजी की विरासत जो कि देश की धरोहर है देश में वापस आ जाये। 

लेकिन नीलामकर्ता ने  नीलामी रोकने के लिए भारत सरकार के सामने कड़ी शर्तें पेश की हैं जिनमें अपनी प्राथमिकता बदलकर सैन्य खर्च के बजाय विशेष तौर पर निर्धनतम लोगों को स्वास्थ्य सुविधा दिए जाने की शर्त शामिल है। 

सरकार का और उस पर इस नीलामी को रोकने के लिये दबाब डालने नालों का ये प्रयास सराहनीय है लेकिन ये और भी सराहनीय होगा यदि सरकार और सब लोग मिल कर गांधीजी के विचारों को बचायें। हो ये रहा है कि गांधी जी की वस्तुयें बचाई जा रही हैं और उनके विचारों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।


गांधी जी शराब के सख्त खिलाफ थे और शराब के खिलाफ जीवन पर्यन्त संघर्ष करते रहे पर अब सरकार ही शराब की दुकानें खुलवा रही हैं। जिस कांग्रेस को गांधीजी ने शराब के विरोध में लगाया था उसके मंत्री अब पब भरो आन्दोलन चलाना चाहते है। गांधीजी ने दुनिया को अहिंसा सिखाई पर हमारे देश मे अब हिंसा से समाधान खोजे जाते हैं। लोग अपनी बात मनवाने के लिये पिटाई का सहारा ले रहे हैं। बात बात पर लोग लड़ने पर उतारु हो जाते हैं। 

गांधी जी देश के गांवो की और देश की स्वावलंबन की बाते करते थे, हम वापस दूसरे देशो की कंपनियों को आमंत्रित कर रहे हैं।  गांधी जी के विचारों का मजाक बनाना मध्यम वर्ग का शौक है। गांधी को मजबूरी का नाम बताया जाता है। 

ऐसे कृतघ्न राष्ट्र में पहले गाधी जी और उनके विचारों की रक्षा होनी चाहिये फिर हमें उन से जुड़ी हुई वस्तुओ के बारे में सोचना चाहिये, ये नही कि बस नाम के लिये हल्ला मचा कर नीलामी रोक ली और फिर गांधीजी को भूल गये।

Manisha गुरुवार, 5 मार्च 2009

कमेंट मोडरेशन अब जरुरी है


उच्चतम न्यायालय के इस फैसले के बाद कि किसी भी ब्लॉग पर किसी भी प्रकार कंटेंट के लिये वो ब्लोगर ही जिम्मेदार माना जायेगा, सभी चिठ्ठारों को सावधान रहने की जरुरत है। हम लोग अपने चिठ्ठे पर जो कुछ भी लिखते हैं उसके लिये जिम्मेदार माने जायें, ये बात तो ठीक है और इसके लिये  कोर्ट के निर्देश अभी तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आजादी को सीमित करते दिखते हैं, लेकिन फिर भी ठीक है। इसकी व्यापक व्याख्या तो कानूनविद पूर्ण रुप से करेंगे और यह जरुरी भी है कि जल्दी ही इस बारे में सारे संशय दुर हो जाने चाहिये।
 

लेकिन ये बात कि किसी भी ब्लॉग, साइट या फोरम पर होने वाले किसी भी कमेंट के लिये उस साइट, ब्लॉग को चलाने वाला जिम्मेदार माना जायेगा, बहुत ही खतरनाक है। इस तरह तो किसी भी चिठ्ठ् पर, वेबसाइट पर या फोरम साइट पर जो कुछ लोगो द्वारा लिख जा रहा है उसका जिम्मेदार उसको चलाने वाला माना जायेगा। अत:  अब ये जरुरी हो गया है कि सभी चिठ्ठाकर अब अपने चिठ्ठे पर कमेंट मोडरेशन को लागू करें व सभी प्रकार की टिप्पणियों पर नजर रखें। वर्ना कभी भी किसी को लगा कि उसकी भावनायें आहत हो रही हैं तो वो परेशान कर सकता है।

Manisha गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009

हमारे ये स्वयंभू ठेकेदार


वर्षों पहले जब हम छोटे थे तब पंजाब में आतंकवाद का दौर था और आये दिन निर्दोष जनता, पुलिसवाले तथा कुछ आतंकवादी मारे जाते थे। ऐसे समय में एक आदमी जगजीत सिंह अरोड़ा अपने आप को खालिस्तान नाम के देश का स्वयंभू राष्ट्पति घोषित कर के आराम से इंग्लैंड मे रहता था। जब खालिस्तान का आतंकवाद समाप्त हो गया तो इनका भी नशा उतर गया और एक आम आदमी की तरह भारत आ गये और अब कहां हैं कुछ पता नहीं। इसी प्रकार चंबल के कुछ डाकू उस समय अपने आप को दस्यु सम्राट कहलाना पसंद करते थे। जब दस्यु समस्या खत्म हो गई तो ये स्वयंभू  दस्यु सम्राट भी गायब हो गये। इसी तरह हर महिला डाकू अनिवार्य रूप से दस्यु रानी कहलाती थीं।

ऐसे ही  लोग अलग-अलग स्वयंभू  ठेकेदारी की ऐसी कई दुकानें इन दिनों  चल रही हैं :

  • भारत की संस्कृति के ठेकेदार -  इस तरह की ठेकेदारी की दुकान कई लोग चला रहे हैं। विश्व हिंदु परिषद, बजरंग दल, शिवसेना तथा आजकल चर्चा में श्रीराम सेना। भारत की संस्कृति की रक्षा ये लोग भारत की सभ्यता और संस्कृति की धज्जियां उड़ा कर करते हैं। इनको खुद को भारत की भारत की संस्कृति का ज्ञान नहीं है लेकिन भारत की संस्कृति के स्वयंभू  ठेकेदार   हैं। 
  • प्रगतिशीलता के स्वयंभू ठेकेदार -   कुछ लोग भारत में प्रगतिशीलता और आधुनिकता के स्वयंभू ठेकेदार  हैं जिनमें पत्रकार खास कर अंग्रेजी मीडिया के, पेज थ्री की सोशलाइट्स तथा वो लोग शामिल हैं जो भारत की परंपरागत सभ्यता, संस्कृति, भाषा आदि बिलकुल भी पसंद नहीं है। इस तरह के स्वयंभू प्रगतिशील  लोग संस्कृति सभ्यता के ठेकेदारों का विरोध करने के लिये शराब, पब, कोकीन की रेव पार्टियां, कम कपड़े पहनने का रिवाज, समलैंगिकता इत्यादि किसी भी बात के जबर्दस्त समर्थन करते हैं, इनके लिये सामाजिक मान्यतायें इत्यादि कुछ मायने नहीं रकती हैं।
  • धर्मनिरपेक्षता के स्वयंभू ठेकेदार -  ये एक ऐसी ठेकेदारी है जिसे हर कोई करना चाहता है और हर कोई धर्मनिरपेक्षता का स्वयंभू ठेकेदार बना फिरता है और अपने को धर्मनिरपेक्षता का और दूसरों को सांप्रदायिक होने का प्रमाणपत्र फटाफट जारी कर देता है। लगभग सारे ही पत्रकार, वामपंथी पार्टियां, सभी जातिवादी दल, मौका परस्त दल इत्यादि इसमें हैं। भारत में ये सबसे बड़ी स्वयंभू  ठेकेदारी है । आप कैसे भी घोटाले कीजिये, जातिवादी राजनीति करिये, दलबदल करिये, विशेष धर्म को आरक्षण की मांग करिये,  विशेष धर्म  की सारी सही-गलत बातों को मानिये आप धर्मनिरपेक्षता के स्वयंभू ठेकेदार बने रहेंगे।
  • हिंदुओं के ठेकेदार – हिंदुओं के भी कई स्वयंभू ठेकेदार हैं। भाजपा, शिवसेना, विश्व हिंदु परिषद, बजरंग दल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, आर्य समाज इत्यादि हिंदुओं के स्व घोषित ठेकेदार हैं। इन्हें हिंदुओं के हित से ज्यादा दूसरे धर्मो इत्यादि के मामले में बोलने की आदत है। हाल ही में उड़ीसा के एक मंदिर मे एक मंत्री के दर्शन करने के बाद मंदिर को धोने जैसी कलंकित घटना पर इनकी जुबान नहीं चली और ऐसी घटना भविष्य में न हो, इसके लिये कोई  प्रयास नहीं किया गया लेकिन दूसरे धर्म से संबंधित कोई बात हो फिर देखिये कैसे कैसे बयान आते हैं।
  • मुस्लिमों के ठेकेदार – इस तरह के ठेकेदार मुसलमानो को हमेशा बताते रहते हैं कि देखो तुम्हारा भला हमारे साथ रहने में ही है वर्ना तुम खतरे में हो। मुसलमानों  को ये कभी नहीं बताते कि अच्छी पढ़ाई लिखाई करो, जागरुक बनो, तरक्की करो, आर्थिक रुप से सक्षम बनो लेकिन उनको उर्दू के नाम पर, आरक्षण दिलाने के नाम और उनकी पहचान खत्म होने के खतरे के नाम पर बरगलाते  रहते हैं।
  • मानवाधिकारों के स्वयंभू ठेकेदार –  इस तरह की ठेकेदारी के भी कई  स्वयंभू ठेकेदार  घूम रहे हैँ। इस तरह के ठेकेदारों की ठेकेदारी हमेशा अपराधियों, आतंकवादियो के मानवाधिकारों के नाम होती है। बटाला हाउस में हर ऐसा मानवाधिकारों का हर स्वयंभू ठेकेदार  हो आया, लेकिन हाल ही में महाराष्ट्र के गढ़चिरोली में नक्सलियों द्वारा मारे गये 15 पुलिसवालों के लिये किसी मानवाधिकारी ने एक भी बयान नहीं दिया और न हीं कोई फैक्ट फाइंडिंग टीम भेजी। मानवाधिकारों की  ठेकेदारी करने से अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होते हैं और  दुनिया भर में भाषण देने के लिये बुलाया जाता है। 
  • भारत-पाक की शांति के स्वयंभू ठेकेदार – भारत और पाकिस्तान की शांति की बाते करने की ठेकेदारी भी बड़ी मजेदार है। ऐसे लोग भारत-पाक की सीमा पर मोमबत्तियां जलाकर और एक दूसरे के देश में मुफ्त में प्रायोजित दौरे करते रहते हैं और बार बार बताते है कि दोनो देशों में कितनी समानतायें हैं, खाना एक है, बोली एक है, जुबान एक है इत्यादि- इत्यादि। 
  • कश्मीर के ठेकेदार – कश्मीर की जनता ने भले ही हाल के विधानसभा चुनावों में भारी मात्रा में भाग लेकर इनको नकार दिया हो लकिन ऑल पार्टी हुरियत कांफ्रेंस कश्मीर के सबसे बड़े स्वयंभू ठेकेदार  हैं। इन्होने आजतक किसी भी चुनाव में भाग नहीं लिया लेकिन कश्मीर का जनता की नुमाइंदगी की पूरी ठेकेदारी इनकी है। ये भारत-पाकिस्तान के बीच के कश्मीर विवाद के स्वयंभू तीसरे पक्षकार हैं। 
  • युवाओं के स्वयंभू ठेकेदार -  कांग्रेस के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी आजकल युवाओं को आगे बढ़ाने के नाम पर युवाओं के नयें स्वयंभू नेता बन रहे हैं। 
  • जातियें के ठकेदार – कुछ लोग अपनी राजनीति की दुकान विभन्न जातियों के स्वयंभू नेता बन कर चलाते हैं। इस तरह के नेता उन जातियों के ऊले की कोई बात नहीं करते हैं, उनको आगे बढ़ाने की कोई कोशिश नहीं करते हैं लेकिन चुनाव में उनके थोक में वोट पाने के लिये उनको स्तेमाल करते हैं।
  • ब्लागिंग के स्वयंभू – हिंदी और अंग्रेजी चिठ्ठाकारी में भी कई स्वयंभू घोषित लोग हैं, कोई भारत का पहला स्वयंभू प्रोफेशनल ब्लोगर है, कोई हिंदी का पहला स्वयंभू चिठ्ठाकार है, कोई रेल में बैठ कर चिठ्ठाकारी करने वाला पहला स्वयंभू ब्लोगर है, कोई हवाई जहाज से लिखने का पहला ब्लोगर है, कोई बताता है कि हिंदा चिठ्ठाकारी में स्तरीय लेखन नहीं होता है और बताता है कि कैसा लेखन होना चाहिये।
इस तरह के स्वयं घोषित लोग आप को हर क्षेत्र में मिल जायेंगे। अगर कोई क्षेत्र बचा रह गया हो तो फटाफट अपने आप को उस क्षेत्र का स्वयंभू चैंपियन घोषित कर दीजिये।

Manisha शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009

मैकाले की शिक्षा का विकल्प क्या है? 


श्रीमान जी.कें. अवधिया जी ने अपने चिठ्ठे धान के देश में मैकाले द्वारा भारत के विषय में उसके विचार तथा मैकाले के द्वारा भारत में प्रारम्भ की गई शिक्षा प्रणाली के बारे में कहा गया है। 

मैं बचपन से समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में इस तरह के लेख पढ़ती आ रही हूं जिनमें यह बताया जाता रहा है कि मैकाले ने भारत में अंग्रेजी शासन को मजबूत करने और भारत के लोगों को क्लर्क बनाने लायक ही शिक्षा देने के उद्देश्य से ऐसी शिक्षा-प्रणाली लागू करी जिसे भारत में लोगों का नैतिक ह्रास हो गया और केवल क्लर्कों की फौज तैयार हो गई। 

हो सकता है ये सही बात हो, क्योंकि अंग्रेज शासक थे और वो अपने हिसाब से ही शिक्षा देना चाहते थे। 

लेकिन मुझे आज तक कोई ऐसा लेख पढ़ने को नहीं मिला जो मैकाले से पहले की शिक्षा-प्रणाली के बारे में विस्तार से बताये और साथ ही ये भी बताये कि अगर मैकाले की शिक्षी-प्रणाली में इतनी खराबियां हैं तो उसकी वैकल्पिक शिक्षा-प्रणाली क्या हो? 

विद्वान लोग इस बारे में कुछ बता पायें को कुछ पता चले।  


मैंने तो ये देखा है कि यहां पर कई तरह कि शिक्षा दी जा रही है, मदरसों की, आरएसएस की, राज्यों के बोर्डों की, केन्द्रीय सीबीएसई की, आईसीएससी की, गरीबों की अलग और मंहगे पब्लिक स्कूलों और बोर्डिंग स्कूलों की अलग। 

अगर ये सब मैकाले का ही सिस्टम लागु कर रहे हैं तो इन्हीं में से तो हमारे इंजीनियर, डाक्टर, शिक्षाविद, अर्थशास्त्री इत्यादि निकल रहे है जो पूरी दुनिया में काम पाते हैं और तीसरी दुनिया के कई देशों के बच्चे इसी शिक्षा के लिये भारत आते हैं। 

कहीं ऐसा तो नहीं कि हमें पूरी प्रणाली को बदलने  के बजाय उसको स्तरीय बनाना चाहिये। आप लोग बतायें कि आखिर हमारी शिक्षा-प्रणाली कैसी होनी चाहिये?

Manisha सोमवार, 26 जनवरी 2009

गणित का प्रश्न : राजनीति में कौन किसके साथ है?


आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर राजनीतिक दांव-पेंच, उठा पटक और आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है। आम मतदाता के लिये भ्रम की स्थित बन रही है। आइये देखिये कि क्या स्थिति है : 

Indian Parliament भारतीय संसद

  •  समाजवादी पार्टी की कहना है कि भाजपा और बसपा मिले हुये हैं।
  • बसपा का कहना है कि कांग्रेस, सपा और भाजपा मिले हुये हैं।
  • भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस के इशारे पर बसपा वरुण गांधी पर रासुका लगा रही है।
  • मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस से बिना समझौते के अलग चुनाव लड़ रही है लेकिन संयुक्त प्रगतिशील मोर्चे (संप्रग - UPA)  को उसका समर्थन है और उसका कहना है कि देश में धर्मनिरपेक्षी सरकार बिना कांग्रेस के नही बन सकती। 
  • लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान के दल बिहार में कांग्रेस को हटाकर अलग से चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन संप्रग  के घटक दल हैं।
  • लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान के दल संप्रग  के घटक दल  हैं लेकिन मुलायम सिंह यादव के साथ मिलकर एक नया चौथा मोर्चा भी बना लिया है
  • अन्नाद्रमुक की जयललिता कांग्रेस के साथ जाना चाहती हैं और भाजपा को खुश करने के लिये कुछ कुछ हिन्दुत्व समर्थक बयान भी जारी कर देती हैं।
  • शरद पवार का दल संप्रग  का घटक दल है लेकिन वो खुद भी प्रधानमंत्री बनना चाहते है
  • वामपंथी दल अब संप्रग  के घटक दल नहीं हैं, अलग से चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन चुनावों के बाद परिस्थितियों को देखते हुये सरकार में शामिल हो सकते हैं।
  • मायावती की पार्टी तीसरे मोर्चे के साथ भी है और देश भर में अकेले चुनाव भी लड़ रही है।


मेरी तो समझ में नही आ रहा कि कौन किसके साथ है?  कोई बता सकता है कि कौन सी पार्टी किस से मिली हुई है और किसके विरोध में है। यह एक गणित का प्रश्न का बन गया है कि राजनीति में कौन किसके साथ है।

Manisha रविवार, 4 जनवरी 2009

वॉग मैगजीन अब भारत में भी


अपनी पसंद की मैगजीन फेमिना लेने पास के ही स्टाल पर जाना हुआ तो देखा कि वॉग (Vogue) भी नई पत्रिकाओं की भीड़ में रखी है। बुक स्टाल वाले ने बताया कि ये अब यहां भी शुरु हो गई है। 

उत्सुकतावश वॉग का पहला संस्करण तो खरीद लिया ये देखने के लिया कि आखिर इस मैगजीन की इतना नाम है, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई देशों में छपती है, चलो देखते हैं। 
 

पहला संस्करण 356 पेज का मोटा सा 100/- की कीमत का है। 

अधिकांश पत्रिका मंहगी चीजों और विलसिता वाली चीजों के विज्ञापनों से भरी हुई है। ज्यादातर विज्ञापन मंहगी घड़ियों के हैं। 

विदेशी पत्रिकायें अब एक एक करके भारत में आती जा रही हैं। वॉग के मुकाबले के लिये पहले से ही कोस्मोपोलिटन (Cosmopolitan) पत्रिका भारत में छप रही है। 

इन विदेशी पत्रिकाओं का मुकाबले के लिये भारत की पत्रिकाओं वुमेन्स ऐरा (Women's Era) और फेमिना (Femina) ने भी अपना स्तर बढ़ा लिया है। 

ये भी अब मोटी मोटी आने लगी हैं। 

अब पढ़ने वालों के पास ज्यादा विकल्प हैं।

Manisha बुधवार, 17 अक्तूबर 2007

लोकसभा टीवी - एक स्तरीय समाचार चैनल


हाल के दिनों में लोकसभा टीवी को देखने का मौका मिला। हमारे केबल टीवी पर लोकसभा टीवी नहीं आता था। केवल टीवी के खराब प्रसारण से परेशान होकर हमने अब टाटा स्काई लगवा लिया है। 

केबल के मुकाबले इसमें पिक्चर और आवाज दोनों ही केबल के मुकाबले बहुत अच्छे हैं। 
Loksabha TV टाटा स्काई पर लोकसभा टीवी आता है। इसको घर में कोई नहीं देखता था। 

चैनल सर्फिंग में इसे छोड़कर सब आगे बढ़ जाते थे। सब यही सोचते थे कि ये एक और सरकारी चैनल है जो कि लोकसभा कि कार्यवाही को दिखाने के लिये शुरु किया गया है। ये भी दूरदर्शन का तरह ही होगा। 

एक दिन समाचार पत्र में लोकसभा टीवी पर पेस्टनजी फिल्म के आने का विज्ञापन देखकर पता चला कि इस चैनल पर हिंदी फिल्में भी आती हैं। 

मुझे और मेरे पतिदेव दोनों को ही आर्ट फिल्में कुछ ज्यादा ही पसंद आती हैं। 

तो जाहिर है कि हमने पेस्टनजी पिक्चर का आनन्द लिया। 

अब चैनल सर्फिंग के दौरान लोकसभा टीवी पर कुछ देर रुका जाने लगा। अगले ही हफ्ते लोकसभा टीवी लोकसभा टीवी पर धारावी फिल्म को दिखाया गया। 

ये फिल्म भी शौक से देखी गयी और अच्छी भी बहुत लगी। लोकसभा टीवी पर इन फिल्मों को शनिवार की रात 9.30 बजे और दुबारा रविवार को दिन में 2.00 बजे से दिखाया जाता है।



इन फिल्मों को देखने के दौरान और बाद में लोकसभा टीवी पर हमने कई और प्रोग्राम देखे। देखने के बाद पता चला कि लोकसभा टीवी दूरदर्शन की छाया से मुक्त है। 

इस पर न तो प्राइवेट चैनलों की तरह टीआरपी की आपाधापी में दिखाये जाने वाले सांप-सांपिन, नाच और अपराध के समाचार हैं और न हीं दूरदर्शन के जैसे थकाउ प्रोग्राम। इस पर न केवल स्तरीय प्रोग्राम हैं बल्कि सामयिक विषयों पर कई अच्छे प्रोग्राम हैं। 

हालांकि बड़ो को ये प्रोग्राम देखने चाहिये, लेकिन बच्चों के लिये तो लोकसभा टीवी बहुत ही उत्तम है क्योंकि इसके कार्यक्रमों का स्तर न केवल अच्छा है बल्कि साफ सुथरा भी है और ज्ञानवर्धक तो हैं हीं। 

प्रतियोगी परीक्षा के दावेदारों के लिये सामान्य ज्ञान बढ़ाने के लिये लोकसभा टीवी सही माध्यम है। हमारे घर में सबको लोकसभा टीवी हिंदी के बाकी समाचार चैनलों के मुकाबले ज्यादा अच्छा लगता है 

और इसको अब नियमित रुप से देखा जा रहा है। एक जमाना था जम हम लोग सरकारी समाचार चैनल दूरदर्शन से परेशान होकर निजी समाचार चैनलों पर गये थे और अब उन से परेशान होकर वापस सरकार के ही चैनल को अच्छा पा कर उसे देख रहे हैं।

लोकसभा टीवी के कार्यक्रम वेबकास्ट के जरिये भी यहां देखे जा सकते हैं। कार्यक्रमों की समय-सारणी यहां उपलब्ध है।

Manisha शुक्रवार, 21 सितंबर 2007
शिफ्ट की नौकरी से कम होती जिंदगी

जिंदगी कम करती शिफ्ट की नौकरी


प्रेस ट्रस्ट की एक खबर के अनुसार शिफ्ट में काम करना खतरनाक है। 

अगर आपकी शिफ्ट (पाली) जल्दी-जल्दी बदलती है तो थोड़ा संभल जाएं। 

शिफ्ट में जल्दी बदलाव आपकी सेहत के लिए ठीक नहीं है। इससे आप बीमारी के शिकार हो सकते हैं, जो आपकी जिंदगी छोटी कर सकती है। 

एक नए अध्ययन से पता चला है कि शिफ्टों में काम करने वालों की जिंदगी सामान्य पाली में काम करने वालों की अपेक्षा छोटी हो जाती हैं। 

रायपुर के पंडित रविशंकर शुक्ला विश्वविद्यालय में स्कूल आफ लाइफ साइंसेज के अतनु कुमार पाती द्वारा किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है। 

उन्होंने नागपुर में दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के दिन में काम करने वाले 3,912 तथा पालियों में काम करने वाले 4,623 कर्मचारियों पर यह अध्ययन किया। इसमें पता चला कि दिन में काम करने वाले व्यक्तियों का जीवनकाल पालियों में काम करने वाले अपने समकक्षों से 3.94 साल ज्यादा होता है। 

दिन में काम करने का मतलब है सुबह नौ से शाम छह बजे तक की पाली। इसमें एक बजे से एक घंटे का भोजनावकाश शामिल है। जबकि, पालियों में काम करने वाले लोगों की शिफ्ट रोटेट होती रहती है।

Manisha सोमवार, 23 अप्रैल 2007

भारतीय बचत नहीं करते


एक सर्वेक्षण के अनुसार ज्यादातर भारतीयों में धन की बचत करने की प्रवृत्ति नहीं होती। अपनी इस आदत के कारण आय के स्त्रोत समाप्त होने की स्थिति में उनके सामने गंभीर आर्थिक संकट पैदा हो जाता है। 
नेशनल काउंसिल फॉर अप्लाइड इकनोमिक रिसर्च के इस सर्वेक्षण ने इस मिथक को तोड़ दिया है कि भारतीय विशेषकर गुजराती समुदाय पैसों की बचत करने वाले होते हैं।

मैक्स न्यूयार्क लाइफ (एमएनवाईएल) के अनुसार देशभर में 63000 लोगों के बीच किए गए सर्वेक्षण में पाया गया है कि पैसा बचाने की प्रवृत्ति नहीं होने के कारण कारण अधिकतर भारतीय उस समय संकट की स्थिति में फंस जाते हैं जब उनके मुख्य आय के स्त्रोत समाप्त हो जाते हैं। 

एमएनवाईएल के सहयोग से किए गए इस सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 96 प्रतिशत लोगों का कहना है यदि उनकी आय के प्रमुख स्त्रोत बंद हो जाएं तो वे अपनी बचत के सहारे एक साल से अधिक समय तक जीवन-यापन नहीं कर सकते हैं। 

गुजरात के बारे में सूद ने बताया कि राज्य में 96 प्रतिशत और अहमदाबाद में 98 प्रतिशत लोगों के समक्ष आय के स्त्रोत बंद होने की स्थिति में तत्काल आर्थिक संकट पैदा होने का खतरा है।

वैसे यह सर्वेक्षण पुरानी मान्यताओं को तोड़ता हुआ दिख रहा है। अभी तक को भारतीय अपनी आय में से कुछ न कुछ बचाने की कोशिश करते थे, खास कर व्यवसायी वर्ग तो बचत के लिये मशहूर हैं।

कड़ी : नेशनल काउंसिल फॉर अप्लाइड इकनोमिक रिसर्च की वेबसाइट

Manisha गुरुवार, 12 अप्रैल 2007

गांव के इन नामों का क्या मतलब है?


उत्तर प्रदेश में आजकल चुनाव का माहौल है। अत: चुनाव से संबंधित खबरें समाचार पत्रों में छपती रहती हैं। एक खबर के अनुसार एक वर्तमान विधायक ने अपने क्षेत्र के जिन गांवों का दौरा किया उनके नाम इस प्रकार हैं। जावली, डगरपुर, गोठरा, निठौरा, घिटौरा, सिरौरा, नवादा, गौना, सिंगौला, खेकड़ा, रटौला, पांची, चमरावल, कहरका, मुकारी, घटौली, पटौली, ढिकौली, पिलाना इत्यादि।

खबर के इन गांवों के नामो को पढ़ कर लगा कि यह नाम किस आधार पर रखे गये होंगे। मैं कोई इतिहास की
छात्रा नहीं रही हूँ बल्कि मैं तो आई टी (IT) की छात्रा रही हूँ, लेकिन सामान्य जानकारी के अनुसार पुराने समय से ही गांवों, कस्बों व शहरों के नामों को रखने का कोई ठीक-ठीक सा कारण मालूम होता है। अत: यह एक कौतुहल का विषय है कि ऊपर लिखे नामों का क्या आधार रहा होगा। ये नाम गाजियाबाद जिले के एक विधानसभा क्षेत्र के हैं, यदि अन्य सभी जगहों का यदि अध्ययन किया जाये तो काफी नाम ऐसे मिलेंगे जो कौतुहल पैदा करेंगे।

गांवों, कस्बों व शहरों के नामों को रखने का आधार जितना मुझे समझ आया है उसके अनुसार नाम, खासकर गांवों और मुहल्लों के नाम अधिकतर किसी व्यक्ति या किसी जाति या किसी इलाके की ओर इशारा करते हैं। मसलन, जगतसिंहपुरा, टीकरी ब्राह्मणान, खटिकाना, सेवला जाट, पुरवियों का मोहल्ला, जटवाड़ा, मुहल्ला कायस्थान इत्यादि।
कुछ प्रचलित आधार ये हैं:
  • पुर - किसी विशेष कारण, व्यकि विशेष, जाति इत्यादि के ऊपर रखे हुये नाम जैसे कि जयपुर, उदयपुर, बाजपुर, ईश्वरपुर, इस्लामपुर, आदि।
  • बाद - अधिकांश मुस्लिम लोगों द्वारा या उनके नामों पर बसाये गये गांव, शहर जैसे हैदराबाद, उस्मानाबद, फिरोजाबाद, गाजियाबाद आदि।
  • गढ़ी - अधिकांश वह जगह जहां पर छोटी सैनिक चौकी या छोटा-मोटा किला इत्यादि होता था, छोटे राजा, जमीदार या सामंतों का रहने की जगह क्योंकि उन्हें बड़े राजा, बादशाह, महाराणा इत्यादि के लिये यहां पर सैनिक रखने होते थे। जैसे गढ़ी भदौरिया, प्रह्लाद गढ़ी आदि।
  • गढ़ - वह स्थान जहां कुछ बड़े किले या सैन्य व्यवस्था थी जैसे कि कुम्भलगढ़, सज्जनगढ़।
  • सर - जहां पर पानी के बड़े तालाब इत्यादि थे, मसलन अमृतसर, मुक्तसर, गरड़ीसर आदि।
  • डेरा - जहां पर किसी बडे फकीर या फौज के बड़े ओहदेदार का डेरा था जैसे कि डेरा बाबा फरीद खां, डेरा इस्माइल खां, डेरा गाजी आदि।
  • नगर - किसी के नाम पर या किसी के द्वारा बसाया हुआ, रिहाइशी इलाका जैसे विजयनगर, श्रीनगर आदि।
  • मंडी - नाम से ही पता चलता है कि ये मंडी होगी जैसे मंडी सईद खां, लोहा मंडी आदि।


इसके अलावा गांवों के नामों में इलाके के आधार पर भी कुछ वर्गीकरण है जैसे कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नाम के नगला शब्द प्रचलन में है जैसे कि नगला धनी, नगला छउआ, नगला पदी आदि, वहीं पश्चिमी राजस्थान के गांवों के नाम में वास और ढाणी का खूब प्रयोग होता है जैसे कि गैलावास, मीणावास, ठाकुरावास, ईश्वरसिंह की ढाणी, पटवारी की ढाणी आदि। गांवों के नाम के बारे में एक दिलचस्प बात ये है कि यदि नाम में खुर्द है तो एक गांव उसी नाम का कलां भी होगा जैसे कि अगर एक गांव है टीकरी खुर्द तो पड़ोस में एक गांव टीकरी कलां भी होगा। 

Venkatana


पूरा भारत तो मैंने घूमा नहीं है इसलिये बाकि जगह का कुछ पक्का पता नहीं है। कश्मीर में 'मर्ग' होते है जिनका मतलब कोई कश्मीरी ही बता सकता है जैस गुलमर्ग, सोनमर्ग, खिलनमर्ग आदि। श्रीनगर कश्मीर में पुराने शहर (down town Srinagar) में उस इलाके के नाम में कदल आता है जहां पर पुल होते हैं।

अब आप लोग इस पृष्ठभूमि में बतायें कि विधायक साहब द्वारा घूमें गये गांवों के नामों का क्या आधार है? गांवों, कस्बों व शहरों के नामों को रखने के बारे में और जानकारी आप लोग यहां दे सकते हैं।

Manisha शनिवार, 31 मार्च 2007

उफ यह गलत हिन्दी


जब भी मैं बाजार या कहीं जाती हूँ तो मुझे गलत और उलटे मतलब की हिंदी देखकर बहुत ही अफसोस और हिन्दी Hindi गुस्सा आता है। जब हम अपने बच्चों को अंग्रेजी के शब्दों की स्पेलिंग याद कराने के लिये उन्हें डराते-धमकाते हैं, उनसे अंग्रेजी सही लिखने की उम्मीद करते हैं, तो अपनी मातृ-भाषा के बारे में कैसे चलताऊ रवैया अपना लेते है। 

बहुत जगह गलत-सलत हिंदी लिखी रहती है। 

कुछ जो अभी याद आ रही हैं वो मैं बताती हूँ:
  • उत्तर भारत के अधिकांश ट्रकों के पीछे 'मां का आशीर्वाद' लिखा होता है। लेकिन यह हमेशा ही गलत रुप में 'मां का आर्शीवाद' लिखा होता है।
  • अधिकांश दर्जियों की दुकानों पर हिंदी में 'शूट स्पेशलिस्ट' लिखा होता है, जबकि अंग्रेजी में हमेशा सही Suit Specialist लिखा होता है।
  • खोमचे पर इडली-डोसा बेचने वालों की दुकानों पर 'इटली-डोसा' लिखा रहता है। कई बार यह और भी गलत रुप में इटली-डोशा लिखा होता है।
  • सभी जगह पर सड़क (रोड - Raod) के लिये 'रोड़' लिखा रहता है।
  • कई जगह जहां सड़क पर दुर्घटना होने की काफी संभावना रहती है, वहां लगाये हुये नोटिस बोर्ड पर अक्सर 'दुर्घटना संभावित क्षेत्र' की जगह 'दुर्घटना ग्रस्त क्षेत्र' लिखा रहता है। क्या उस क्षेत्र के साथ दुर्घटना होने की संभावना होती है?
इन बातों का क्या समाधान है?

Manisha शुक्रवार, 30 मार्च 2007

एक चिठ्ठी माननीय श्री शरद पवार, अध्यक्ष, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के नाम


यह चिठ्ठी एक अनाम भारतीय क्रिकेट प्रेमी की ओर से अध्यक्ष बीसीसीआई को लिखी जा रही है। इसे करोड़ो भारतीयों की तरफ से लिखा माना जाये।

शरद पवार

 
आदरणीय शरद पवार जी,

सादर नमस्कार,
आज मैंने रात भर जाग कर भारत और श्रीलंका के बीच विश्व कप क्रिकेट 2007 के लिये हुये मुकाबले को देखा। जैसी करोंड़ो भारतीयों की इच्छा थी, उसके अनुसार न खेलते हुये भारत की टीम ने श्रीलंका के आगे घुटने टेक दिये। 
मेरे अनुसार भारत की क्रिकेट टीम अक्सर ही ऐसा करती रहती है। इसलिये मैं आपके सामने यह प्रस्ताव रखना चाहता हूँ कि भारत की क्रिकेट टीम के वर्तमान खिलाड़ियों की जगह मुझे और मेरे मोहल्ले के तमाम लड़कों को भारतीय टीम में रखा जाना चाहिये। हमें भी मौका मिलना चाहिये। 
वर्तमान भारतीय क्रिकेट टीम के एक एक सदस्य को 1 लाख रुपये प्रति वन डे मैच के हिसाब से मिलते हैं (शायद इससे ज्यादा ही मिलते हैं) , लेकिन फिर भी यह टीम हार जाती है। शरद जी, हम लोग यह काम 50 हजार में करने को तैयार हैं । 
यानी की आखिर टीम को हरवाना ही है तो हम 50 प्रतिशत डिस्काउंट पर टीम हराने को तैयार हैं। हम टीम को हरवाने की पूरी गारंटी लेंगे (अगर आप लोग चाहें तो इससे भी कम पर बात कर सकते हैं)। 
जो काम भारत की टीम 50 ओवर में करती है, वो हम 25 ओवर में ही करवा देंगे। आप एक मौका तो दे कर देखिये।

शरदजी, यकीन जानिये इससे कई फायदे होंगे। आप देखेंगे कि इसमें सबका फायदा है, हमारा, आपका, आम जनता का और देश का। आइये, मैं आपको बताता हूँ कि ये सब फायदे कौन कौन से हैं। 

सबसे पहला फायदा तो यह हमें ही होगा। हम भारत की टीम को परमानेंटली हरवाने के जो पैसे लेंगे उससे हमारी गरीबी दूर होगी। हम आम भारतीयों को भी क्रिकेट की ग्लैमर भरी दुनिया देखने को मिलेगी।

जनता का देखिये कितना फायदा होगा, जब हम गारंटी के साथ भारत की क्रिकेट टीम को हरवायेंगे तो अरबों-करोड़ों भारतीयों को जीत की कोई आशा ही नहीं होगी और फिर किसी भी भारतीय क्रिकेट प्रेमी का दिल नहीं टूटेगा। 
हम आशा के अनुरुप ही प्रदर्शन करेंगे। जब दिल ही नहीं टूटेगा तो देश के लोग-बाग खुश रहेंगे और उनकी उत्पादकता बढ़ेगी। टीवी से लोग कम चिपकेंगे और काम के ऊपर ध्यान देंगे।

मुझे और मेरे साथियों या मेरे जैसे ही करोड़ों भारतीयों में से ही किसी को खिलाने से देश का भी बहुत फायदा है। जब हम गारंटी से हारेंगे तो देश में कहीं भी विरोध स्वरुप धरने प्रदर्शन नहीं होगा। देश की कानून व्यवस्था काबू में रहेगी। 
हम 25 ओवर में ही भारत की क्रिकेट टीम को हरवायेंगे तो करोंड़ो भारतीय जो क्रिकेट टीवी पर देखते हैं वो टीवी को जल्द ही बंद कर देंगे इससे बिजली की कितनी बचत होगी आप अंदाज लगा सकते हैं। 
हमारी आधी मैच फीस से भी देश को आर्थिक फायदा होगा।

अब मैं आपको बताता हूँ कि मुझे भारतीय क्रिकेट टीम में मौका देने में आपका कितना फायदा है। 
अब ये तो सभी जानते हैं कि आप एक मंझे हुये राजनीति के खिलाड़ी हैं। आपकी हर चाल में राजनीतिक नफा-नुकसान का आंकलन होता है। मुझे मौका देने में आपका राजनीतिक फायदा भी बहुत है। 
र्वप्रथम तो आप मुझ जैसे आम आदमी को मौका देकर देस में यह प्रचार कर सकते हैं कि आप और आप की सरकार आम आदमी का कितना ध्यान रखती है। 
"आपकी सरकार आम आदमी के साथ" यह नारा आप लगा सकते हैं। 
हमारी गरीबी दूर होगी तो आप हल्ला कर सकते हैं कि आप का शासन में आम आदमी की आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा है। 
जब टीवी पर मैच ज्यादा देर तक न देखे जाने के कारण टीवी बंद होने का कारण बिजली की बचत होगी, देश में बिजली की उपलब्धता बढ़ेगी जिसे भी आप अपने पक्ष में भुना सकते हैं। 
आप भी निश्चित होकर किसानों की समस्याओं की ओर ज्यादा दे पाओगे और विपक्षियों का मंह बंद कर पाओगे।
अत: आप से विनम्र निवेदन है कि एक बार मुझे क्रिकेट टीम में मौका जरूर दीजिये और आम आदमी के हाथ मजबूत कीजिये।

आपका,

एक भारतीय क्रिकेट प्रेमी - अ.ब.स.

Manisha रविवार, 25 मार्च 2007

वैधानिक चेतावनी - कमजोर दिल वाले क्रिकेट मैच न देखें


एक खबर के अनुसार जामनगर में एक आदमी भारत की बंगलादेश के खिलाफ विश्व कप में हार के सदमे को बर्दाश्त
वैधानिक चेतावनी
न कर पाने के कारण दिल का दौरा पड़ने से मर गया। इस बात को ध्यान में रखकर मेरे ख्याल से एक वैधानिक चेतावनी भारत द्वारा खेलने वाले सभी क्रिकेट मैच प्रसारणों पर तुरंत प्रभाव से प्रसारित की जानी चाहिये।

यह प्रसारण एक हॉरर शो है। इसको कमजोर दिल वाले न देखें। बच्चे अपने माता-पिता के साथ देखें। इस मैच में कुछ भी हो सकता है। भले ही भारत की ओर से एक दीवार (Wall), एक नवाब, एक सुल्तान, एक महाराजा, एक युवराज, एक मास्टर-ब्लास्टर खेल रहे हों, या फिर कोई दो लीटर दूध पीने वाला खेल रहा हो, भारत कभी भी, कहीं भी, किसी से भी हार सकता है। भारत की टीम आम आदमी की तरह प्रदर्शन कर सकती है। इस चेतावनी के बाद भी अगर कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से मैच देखता है, तो अपने हर्जे-खर्जे का जिम्मेदार खुद होगा

Manisha मंगलवार, 20 मार्च 2007

भरमाने वाले चित्र


कुछ चित्र ईमेल के जरिये अक्सर देखने को मिलते रहते हैं। इम बार किसी मित्र ने भरमाने वाले ऐसे चित्र भेजे कि देख कर सिर चकरा गया। हालांकि उस दिन होली थी और थोड़ी सी ठंडाई (भांग वाली) पी थी, लेकिन वो तो बहुत थोड़ी थी।

इसलिये पक्का करना पड़ा कि ये चित्र ही घुमावदार हैं। कुछ चित्र इनमें से पहले देखे हुये थे, लेकिन कुछ नये और अनदेखे हैं। 

लिहाजा इनको चिठ्ठे में समाहित करके सार्वजनिक करने का इरादा कर लिया। तो आप सब भी इन चित्रों को देखिये और कुछ देर तक भ्रम की स्थिति में रहिये।



बैंगनी लाईने सीधी हैं या घूमी हुई?

बीच का कौन सा गोला बड़ा है?

चौकोरों के बीच में गोले किस रंग के हैं?

आदमी का चेहरा और अंग्रेजी का L से शुरू होता शब्द

क्या ये संभव है?

ध्यान से लगातार देखिये।

Manisha मंगलवार, 6 मार्च 2007

चिठ्ठा जगत ब्लॉगिंग के यक्ष प्रश्न


अब हिंदी चिठ्ठा जगत ब्लॉगिंग के पांच (कईयों के मामले में और भी ज्यादा) यक्ष प्रश्नों से कोई चिठ्ठाकार नहीं बच सका, यहां तक नीलिमा जी ने अपने वाद-संवाद में टैग कर के बताया कि मुजरिम हाजिर है और फिर डॉन ने अपने गुर्गो में हमारा नाम देकर गैंगवार में नाम शामिल कर एनकाउंटर का खतरा बढ़ा दिया है।

डॉन को तो पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है, लेकिन उसको गुर्गे तो पकड़े क्या एनकाउंटर में खलास भी हो जाते हैं।

तो एनकाउंटर से बचने के लिये जरूरी है कि जल्द से जल्द नीलिमा जी और डॉन के प्रश्नों के उत्तर दिये जायें।

चिठ्ठा जगत ब्लॉगिंग


बड़े बड़े नामी और वरिष्ठ चिठ्ठाकार भी इसकी चपेट में आ गये तो मुझ जैसी नई चिठ्ठाकार की बिसात ही क्या?

टैगियाने का यह बढ़ता हुआ छूत का रोग सबको गिरफ्त में लेता हुआ मेरे दरवाजे भी आ खड़ा हुआ।

पहले पहले मुजरिम बनने के कारण पूछे गये प्रश्न

प्रश्न : आपकी चिट्ठाकारी का भविष्य क्या है?
  • मेरे विचार में मेरे द्वारा की गई हिंदी चिठ्ठाकारी का भविष्य बहुत ही उज्जवल है, हालांकि यह बात अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने वाली बात होगी परन्तु मेरा विचार तो यही है, क्योंकि हालांकि हिंदी चिठ्ठाकारी में नई ही हूं, फिर भी शुरुआत के दिनों और अबके दौर में बहुत फर्क आ गया है। आप सभी लोगों कि टिप्पणियां मेरे जैसे लोगों के लिये प्रोत्साहन का कार्य करती हैं, और अब आप सब के साथ मिल कर चिठ्ठाकारी करने में हिचक नहीं रही। अब जब भी कोई नई ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त होती है तो बस उसे सब लोगों के साथ बांटने बैठ जाती हूं। अब तो यह आलम है कि कहीं कोई समाचार, कोई आलेख, कोई घटना देख मन में यह ख्याल आता है कि अगर इसके ऊपर ब्लॉग पोस्ट बनाई जाये तो कैसा रहे? आप लोग भी अपनी टिप्पणियों द्वारा खूब प्रोत्साहित करते हैं तो आगे भी हिम्मत कर पाती हूं। हिंदी में लिखने के शुरूआता दौर में यही नहीम समझ में आता था कि क्या लिखूं? इसीलिये शुरुआती दौर में इधर-उधर से देखे शेर और दिल्ली की हमारा बदनाम ब्लू लाइन बसों में चिपके हुये ड्राइवरों के सड़कछाप शेर-डॉयलॉग इत्यादि लिख कर देखा कि हिंदी लिख भी सकते हैं कि नहीं। पर शुरुआती दिनों कि झिझक तो अब खैर नहीं रही बल्कि अब तो लगता है कि हिंदी चिठ्ठा जगत तो एक परिवार की तरह है । इसलिये मैं मानती हूं कि यदि हिंदी चिठ्ठा ग्रुप इसी तरह कार्यरत रहा तो हिंदी चिठ्ठाकारी का भविष्य बहुत ही उज्जवल रहेगा और अन्य नये लोग भी इन चिठ्ठों को पढ़कर प्रोत्साहित होंगे।
प्रश्न : आपके पसंदीदा टिप्पणीकार?
  • सारे ही लोग टिप्पणी करके प्रोत्साहित करते हैं तो किसी विशेष का नाम लेना उचित नहीं होगा।
प्रश्न : तीसरा सवाल वही है जो प्रत्यक्षा जी का तीसरा सवाल था यानि किसी एक चिट्ठाकार से उसकी कौन सी अंतरंग बात जानना चाहेंगे ?
  • दरअसल बात ये है कि आप सब लोग इस बात से परिचित होंगे कि हमारे किस्से कहानियों में और खास तौर से हिंदी फिल्मों में अक्सर दिखाया जाता है कि किसी प्रसिद्ध कहानीकार या शायर को चाहने वाली कई लड़कियां होती हैं, जो कई बार तो खाली शायर के नाम से ही प्यार करने लगती हैं। तो मैं अपने हिंदी जगत के प्रसिद्ध और पुराने या जो लोग आजकल जीत रहे हैं, उनसे पूछना चाहूंगी कि क्या उनकी कोई गुमनाम प्रशंसिकायें है जो कि चिठ्ठों पर टिप्पणी न करके सीधे ई-मेल भेजती हों?


  • प्रश्न : वह बहुत मामूली बात जो आपको बहुत परेशान किए देती है?

    • मेरे अपने जब किसी भी कारणवश परेशान होते हैं तो मैं बहुत ज्यादा परेशान हो जाती हूँ। उस समय लगता है कि कोई जादू की छड़ी होती सब सही कर देती, पर ऐसा कहां मुमकिन है। मेरे बच्चे, पति, रिश्तेदार, अड़ोस-पड़ोस इत्यादि में जब कोई परेशान होता है तो मैं परेशान हो जाती हूँ। यानी यदि कोई दूसरा परेशान होता है तो मैं भी परेशान हो जाती हूँ।


  • प्रश्न : आपकी जिंदगी का सबसे खूबसूरत झूठ?
    • यूँ तो मैं भगवान की कृपा से झूठ नहीं बोलती हूँ। लेकिन ये भी नहीं मैं आजकल के जमाने में सत्यवादी हरिश्चंद्र हूँ। एक बार मजाक में बोला गया झूठ काफी मजेदार है। हुआ यूँ कि मैंनें अपनी बिटिया के लिये एक नई ड्रेस खरीदी थी। उसने जब उस ड्रेस को पहना तो वो बड़ी खुश हुई और मेरे से बार-बार पूछने लगी कि कहां से खरीदा है। टालने की गरज से और मजाक में मैंने कह दिया कि भीख में लाये हैं। उसने अड़ोस-पड़ोस सब जगह खुशी-खुशी बता दिया कि मेरी मम्मी ये ड्रेस भीख में लाई हैं। यह बात याद करके आज भी हंसी आ जाती है।

    और अब सीबीआई के वो प्रश्न जिनका जबाव देकर मैं क्वात्रोची की तरह बच जाउंगी।
    प्रश्न : हिन्दी चिट्ठाकारी ही क्यों?
    • हिंदी चिठ्ठाकारी इसलिये क्योंकि मैं हिंदी भाषी हूँ, हिंदी में ही सोचती हूँ और हिंदी की तरक्की चाहती हूँ।
    2.प्रश्न : जीवन में कब सबसे अधिक खुश हुए?
    • अपनी शादी पर। क्यों? कभी किसी पोस्ट में बताउंगी।
    3. प्रश्न : अगला जन्म मिले तो क्या नहीं बनना चाहोगे?
    • अ-भारतीय
    4. प्रश्न :कौन सा चिट्ठा सबसे अधिक पसन्द है, क्यों?
    • अपना (हिंदीबात).. हा. हा... (श्रीशजी की तरह - रावण वाली हंसी) , सभी अच्छे चिठ्टे हैं , किसी एक का नाम पूछकर गैगवार छिड़ने का खतरा है और मेरा एनकाउंटर पक्का है।
    5. प्रश्न : हिन्दी चिट्ठाजगत के प्रचार प्रसार में क्या योगदान दे सकते हैं?
    • अभी तो फिलहाल हिंदी चिठ्ठाकारी के माध्यम से ही कुछ सेवा हो सकती है, बाकि जैसा आदेश हिन्दी चिट्ठाजगत के 'भाई' लोगों का हो।
    मेरा ख्यांल है कि सभी चिठ्ठाकारों को टैगियाया जा चुका है इसलिये किसी को टैग नही करं रही हूँ। अगर कोई हैं, तो वो खुद को शिकार समझें और इन्हीं प्रश्नों का उत्तर दें।
  • Manisha मंगलवार, 27 फ़रवरी 2007

    शाबाश सौरव दादा! 


    आखिरकार तुमनें यह साबित कर दिया कि तुम यूं ही बंगाल टाइगर नहीं कहलाते हो। 20 दिन पहले कौन सोच सकता कि सौरव गांगुली भारतीय क्रिकेट टीम में वापसी करेंगे और अगर वापसी करेंगे तो टीम में अंतिम ग्यारह जगह मिलेगी या नहीं और सबसे बड़ी बात अगर जगह मिली भी तो गांगुली कैसा प्रदर्शन करेंगे।

    लेकिन बंगाल टाइगर ने सारी आशंकाओं को खारिज करते हुये जोहानसबर्ग में दक्षिण अफ्रीका के साथ हो रहे पहले टेस्ट मैच में न केवल जगह बनायी बल्कि अपने शानदार प्रदर्शन से भारत की स्थिति इस मैच में मजबूत कर दी है।

    सौरव गांगुली Sourav Ganguly


    भारत यह टैस्ट मैच जीतने के कगार पर पहुंच गया है। सौरव गांगुली ने जोहानसबर्ग टेस्ट मैच में पहली पारी में नाबाद रहते हुये शानदार 51 रन बनाये तथा दूसरी पारी में 25 रन बनाये। 

    ये रन दिखने में शायद कम लगें लेकिन जिस तरह की मैच की पिच है और भारत के अन्य बललेबाजों ने जिस तरह का प्रदर्शन किया तथा सौरव गांगुली जिस तरह की विपरीत परिस्थिति में खेलने आये उसको देखते हुये इसे बहुत अच्छा प्रदर्शन ही माना जायेगा। 

    सौरव गांगुली ने यह दिखाया कि आदमी को अपने उपर पूरा विश्स रखना चाहिये और विपरीत परिस्थितियों में धैर्य नहीं खोना चाहिये।

    चित्र क्रिकइंफो.कॉम के सौजन्य से

    Manisha शनिवार, 24 फ़रवरी 2007

    आदिवासियों का वेलेंटाइन डे भगोरिया


    पश्चिम मध्य प्रदेश के आदिवासी जनजातीय युवक युवतियों का वेलेंटाइन डे (प्रणय पर्व) भगोरिया 25 फरवरी को शुरू हो रहा है। आदिवासी अंचल झाबुआ और खारगौन जिलों में परंपरागत रूप से मनाए जाने वाले इस रंगीन पर्व में स्थालीय भील और भीलाला लोगों के युवक और युवतियां बड़े उत्साह के साथ शामिल होते हैं। 


    Bhagoria आदिवासियों का वेलेंटाइन डे भगोरिया


    इस मेले के प्रति विदेशियों में भी खासा आकर्षण है। भारत भ्रमण के दौरान वे भगोरिया मेलों में बड़ी तादाद में शामिल होते हैं। भगोरिया हाट में आने वाले आदिवासी युवक-युवती एक दूसरे को पसंद करने के बाद भागकर विवाह कर लेते हैं। इस भाग जाने की वजह से ही इसको भगोरिया कहते हैं

    परंपरा के अनुसार अगर किसी लड़के को कोई लड़की पसंद आ जाती है तो वो उस लड़की के गालों पर गुलाल लगाकर अपनी चाहत का इजहार कर देता है। अगर लड़की को भी लड़का पसंद होता है तो वो भी लड़के को गुलाल लगा देती है। 

    इसके बाद ये लोग वहां से भाग जाते हैं। इसके बाद आदिवासी समाज इनको पति-पत्नि का दर्जा दे देता है।

    इस भगोरिया को फसल पकने और होली की खुशी का भी प्रतीक माना जाता है। साल भर अलग-अलग स्थानों पर काम धंधा करने वाले आदिवासी भगोरिया पर्व पर अपने अपने घरों पर लौट आते हैं और गिले शिकवे भुलाकर मौज मस्ती के साथ इस पर्व को मनाते हैं। 

    यह पर्व होली से पहले मनाया जाता है। बदलते जमाने के साथ भगोरिया पर भी आधुनिक संस्कृति का प्रभाव पड़ा है। आदिवासियों के पहनावे में बदलाव आया है तथा वाद्य यंत्रों ढोल और मृदंग का स्थान इलेक्ट्रानिक्स उपकरणों ने ले लिया है। झाबुआ, धार और खरगोन जिलों प्रमुख हैं जहां भगोरिया पर्व मनाया जाता है। इन जिलों के कई जिलो के गांवों में भगोरिया हाट लगते हैं।

    कड़ियां:

    Manisha शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2007