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आपका ब्लॉग इस तरह हैक हो सकता है


आजकल हैकर विभिन्न वेबसाइटों को हैक करने के लिये कई तरीके अपनाते रहते हैं। किसी साइट को हैक करने का एक पुराना और अजमाया हुआ तरीका कदाचित पासवर्ड का पता लगाना होता है जिसके बाद पूरी साइट पर हैकर का कब्जा है जाता है।

आज मेरे जीमेल (Gmail)  खाते में एक ऐसी ईमेल आई जो देखने में तो लगती थी कि ब्लॉगर (Blogger) की तरफ से आई है और मैनें इस ईमेल में बताई गई साइट को खोल भी लिया था।

लेकिन मैं किसी भी ईमेल या साइट द्वारा पासवर्ड मांगे जाने पर उसे पहले शक की निगाह से देखती हूं और फिर उसकी जांच करती हूं, इसलिये मैंने इस साइट का सोर्स कोड (Source Code) देख लिया जो कि पता चला कि कि ये तो ब्लॉगर पर न ले जा कर किसी और साइट पर ले जा रहा है यानी कि अगर गलती से अपना पासवर्ड और साइट बता दी तो समझिये कि आपकी साइट हैक हो गई।

अगर चिठ्ठाकारों को इस तरह की ईमेल मिले तो कृपया सावधान रहें, आपका ब्लॉग हैक हो सकता है.

Inactive-blog-email


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अगर आप इस साइट का सोर्स कोड देखेंगे तो आपको पता चल जायेगा कि किस तरह से हैकर किसी भी तरह आपके विभिन्न चिठ्ठों का पता व पासवर्ड जानने की कोशिश कर रहे हैं। सावधान रहें।

Manisha मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

श्राद्ध पक्ष में राष्ट्रमंडल खेल – परेशानी ही परेशानी


कई प्रकार के विवादों से घिरे 19वें राष्ट्रमंडल खेलों को लेकर तमाम तरह की बातें कही जा रही हैं। 
Commonwealth Games

मेरे भी मन में दो बातें हैं। पहली तो ये कि अक्टूबर के आरम्भ का समय भारत में खेलों के लिहाज से गर्म और ऊमस भरा होता है। 

ये अलग बात है कि दिल्ली में अभी तक बारिश हो रही है जिससे मौसम सुहावना बना हुआ है लेकिन जिस दिन बारिश नहीं होती उस दिन गर्मी और ऊमस परेशान कर देती है। 

ऐसे में इस समय तो खिलाड़ियो का पसीना ज्यादा बहेगा जिनसे उन के प्रदर्शन पर असर पड़ेगा। वहीं दर्शकों को भी धूप में गर्म और ऊमस के वातावरण में स्टेडियम में बैठना मुश्किल हो जायेगा।

दूसरी बात है कि राष्ट्रमंडल खेलों के उदघाटन के समय भारत में श्राद्ध पक्ष चल रहा होगा जिसमें मान्यता है कि कोई अच्छा काम नहीं किया जाता। वैसे ही कुछ लोग मना रहे है राष्ट्रमंडल खेल फ्लाप हो जायें, ऐसे में आयोजकों को श्राद्धों के दिनों का ध्यान कर लेते तो अच्छा ही रहता।

मेरे विचार में भारत में नवंबर के आरम्भ और फरवरी के अंत का मौसम इस प्रकार के बड़़े अंतर्राष्ट्रीय खेलों के आयोजन के लिये उपयुक्त रहता। बहरहाल हर भारतीय की तरह मेरे भी शुभकामना है कि दिल्ली राष्ट्रमंडल खेल सफलतापूर्वक संपन्न हो ताकि भारत का नाम रोशन रहे।

Manisha गुरुवार, 23 सितंबर 2010

कश्मीर समस्या पर कहे जाने वाले कुछ जुमले


कश्मीर को लेकर भारत की समस्या अब अगले दौर में पहुंच गई है। अब की बार बहुत सोच-समझ कर
कश्मीर समस्या
अलगाववादियों द्वारा जो योजना बनाई गई है उसमें पत्थर फेंक कर विरोध का नया तरीका ढूढ़ा गया है। 

खैर मैं कश्मीर की स्थिति के बारे में बात न करके पिछले 63 सालों से चले आ रहे कुछ जुमलों की बात करना चाहती हूं जो कि हमेशा सुनाई पड़ते रहते है। देखिये कश्मीर को लेकर कैसी कैसी बाते की जाती हैं।

  • कश्मीर भारत का अटूट अंग है – ये बात भारत सरकार द्वारा हमेशा कही जाती है, हालांकि आजकल कम ही ऐसा कहा जाता है। ये बात अलग है कि शायद ही कभी आपने पाक अधिकृत कश्मीर, गिलगित, बालटिस्तान, हुंजा, अक्साई चिन को भारत का हिस्सा बताने की बात भारत सरकार या भारत के नेताओं से सुनी हो।
  • कश्मीर से धारा 370 हटाओ – राष्ट्रवादी और हिंदुवादियों का प्रिय जुमला। इन्ही लोगों द्वारा सत्ता में आने के बाद इसी धारा 370 के समर्थन में बयान जारी किये गये, अब फिर से कभी कभी सुनाई पड़ता है। चूंकि ये बात हिंदुवादियों द्वारा कही जाती है इसलिये भारत के तमाम बु्द्धिजीवी और कॉलमिस्ट धारा 370 को जारी रखने के पक्ष में पूरी जान लगा कर लेख लिखते रहते हैं।
  • कश्मीर  में जनमत संग्रह कराया जाये – जब से भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र संघ में कश्मीरियो को आत्मनिर्णय की बात मानी थी तब से पाकिस्तान और कश्मीर  को अलगाववादी इस बात की रट लगाते रहते है, भारत सरकार इससे बचती है। अब ये बात पुरानी हो गई है।
  • कश्मीर की समस्या भारत और पाकिस्तान के आपसी संबंधो के सुधार में बाधक है – पाकिस्तान की सरकार का ये पारंपरिक बयान है जिसमें कहा जाता है कि जब तक कश्मीर समस्या को हल नहीं किया जाता, भारत और पाकिस्तान के संबंध सामान्य नहीं हो सकते। यहां तक की पाकिस्तान की धरती से होने वाले आतंकवाद पर भी तभी रोक लग सकती है जब भारत कश्मीर की समस्या को सुलझाये।
  • कश्मीर  भारत की धर्मनिरपेक्षता की कसौटी है – ये बात भी कई बार कही जाती है कि कश्मीर भारत की धर्मनिरपेक्ष नीतियों की पहचान है जहां पर सब धर्मों के नोग मिल कर रहते हैँ। कश्मीर के अलग होने की स्थिति में शेष भारत में रह रहे अल्पसंख्यकों की स्थिति पर फर्क पड़ेगा।
  • ये कश्मीरियत की पहचान की समस्या का संघर्ष है – ये बात हमारे देश के बूद्धिजीवियों द्वारा 90 के दशक के शुरूआत मे जब सशस्त्र संघर्ष शुरू हुआ था, तब कही जाती थी और बताया जाता था कि कश्मीरियित तो सहिष्णुतावादी, धर्मनिरपेक्ष, सूफीवादी परंपरा है, लेकिन जल्दी ही पता चल गया कि ये अलगाववाद का आंदोलन है जोकि कश्मीर को भारत से अलग करने का पाकिस्तानी योजना है। फिर ये बात सुनाई देनी बंद हो गई। अब जब से कश्मीर में पत्थरबाजी शुरू हुई है, घुमा-फिरा कर इसी तरह की बात की जा रही कि ये युवाओॆ का संघर्ष है आदि आदि।
  • कश्मीर को स्वायत्तता दो – ये जोर शोर से कश्मीर की नेशनल कांफ्रेंस द्वारा कही जाती है, इस बात के लिय प्रधानमंत्री संविधान के दायरे में रहकार बात करने को तैयार हैं।
  • दूध मांगो खीर देंगे, कश्मीर मांगो चीर देंगे – ये बात भारत कुछ अति राष्ट्रवादियों द्वारा कही जाती थी, लेकिन जब इन लोगों द्वारा समर्थित सरकार द्वारा बिना शर्त कश्मीर में वार्ता आरम्भ की गई और समस्या के लिये जिम्मेदार पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुशर्रफ को भारत बुलाया तब से ये बात कहीं गायब हो गई है।
  • कश्मीर को लेकर हमारा समर्थन नैतिक है – मुंह में राम और बगल में छुरी का उदाहरण, पाकिस्तान ने व्यापक योजना बनाकर कश्मीर में आतंकवाद और सशस्र् संघर्ष जारी रखा हुआ है लेकिन हमेशा कहता है कि वो कश्मीर में जारी स्वतंत्रता आंदोलन को नैतिक समर्थन देता है।
  • कश्मीर बनेगा पाकिस्तान – ये नारा कश्मीर के अलगाववादियों और पाकिस्तान में होने वाली कश्मीर के समर्थन में होने वाली रैलियों में लगाया जाता है।
  • हमें क्या चाहिये – आजादी- आजादी -  कश्मीर के कुछ अलगाववादियों (खासकर जेकेएलएफ) द्वारा लगाये जाने वाला एक और नारा । पाकिस्तानी इस नारे को पसंद नही करते क्योंकि इससे एक तो कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने की योजना को पलीता लगता है वहीं उसके वहीं उसके खुद के कब्जे वाले कश्मीर को भी हाथ से निकल जाने का खतरा है।

इसी तरह की कई बातें आये दिन कही जाती रहती हैं। अगर कल को कश्मीर अगर भारत से अलग भी हो गया तो भारत के बुद्धिजीवी और शांतिवादि आपको ये बताने लगेंगे कि देखो कश्मीरी हमारे जैसे ही, हमारे भाई हैं जिनकी हमें मदद करनी चाहिये इत्यादि।

Manisha रविवार, 12 सितंबर 2010

जी हां, यहीं होगा अगर तालीबान न हारा तो!


तालीबान के कालो कारनामे Taliban

अमेरिका की प्रतिष्ठित पत्रिका टाइम (TIME) द्वारा अपने नये अंक में छापे गये आलेख और चित्र द्वारा दुनिया को चेताया है कि अफगानिस्तान में क्या हो सकता है यदि वहां पर तालीबान को न हराया गया तो। 

ये खतरा जितना अफगानिस्तान के लिये वास्तविक है क्योंकि वहां के लोग तो तालीबान के 5 वर्षों के राज में देख चुके हैं कि कितना जालिम राज्य था उनका, बल्कि पाकिस्तान, कश्मीर और भारत के लोगों के लिये भी है। 

अगर अमेरिका अपने कहे अनुसार तालीबान को बिना हराये अफगानिस्तान से निकल गया तो फिर वहां पर पाकिस्तान की मदद से वापस से तालीबान आसानी से कब्जा कर लेगा और फिर ये खतरा सीधे भारत की सीमा तक आ जायेगा। 

उम्मीद की जानी चाहिये अमेरिका के राष्ट्रपति भारत के नेताओं की तरह लफ्फाजी में फंसकर कोई फैसला न लेकर अपनी दुनिया के प्रति जिम्मेदारी निभायेंगे और पहले की तरह अफगानिस्तान से भाग नहीं जायेंगे। 

टाइम पत्रिका के इस आलेख से एक विवाद तो खड़ा हो गया है लेकिन मैं इस मामले में टाइम पत्रिका के साथ हूं क्योंकि मुझे मालूम है कि औरतों की स्थिति तालीबान के राज में क्या थी और क्या होगी?  

क्या ये नाक कटी महिला को ह्दय विदारक तस्वीर आपको सचेत नहीं करती है?

Manisha शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

कालका–शिमला खिलौना ट्रेन यात्रा


हाल ही हम लोग अपने परिवार के साथ शिमला की यात्रा पर गये थे, जिसके लिये हमने कालका से शिमला के लिये सुबह चलने वाली शिवालिक डीलक्स में आरक्षण कराया था। 94 किलोमीटर की खूबसूरत नजारों से भरपूर यात्रा लगभग 5 घंटे ले लेती है। इसका किराय अभी 280 रुपये प्रति वयस्क यात्री है तथा इसमें स्वागत चाय, अखबार तथा नाश्ता दिया जाता है। इस ट्रेन के कुछ चित्र देखिये (क्लिक करके आप बड़े रुप में देख सकते हैं)

Kalka Shimla Toy Train

Kalka Shimla Toy Train

Kalka Shimla Toy Train

Koti Station - Kalka Shimla Toy Train

Koti - Kalka Shimla Toy Train

Barog - Kalka Shimla Toy Train

Kalka Shimla Toy Train

Kanda Ghat - Kalka Shimla Toy Train

Tunnel - Kalka Shimla Toy Train

Tara Devi - Kalka Shimla Toy Train


Tara Devi Station - Kalka Shimla Toy Train

Tara Devi - Kalka Shimla Toy Train

Shimla Station - Kalka Shimla Toy Train

Manisha रविवार, 1 अगस्त 2010

पेट पूजा नहीं पीट पूजा


ये चित्र दिल्ली में एक फल और उनका रस निकाल कर बेचने की दुकान का है जो कि लोगों को पेट पूजा के लिये बुलाना चाहता या फिर पीट पूजा के लिये। 

हम लोग रविवार को इंडिया गेट घूम कर मैट्रो ट्रेन पकड़ने के लिये जब केन्द्रीय सचिवालय स्टेशन गये तब इस पर नजर गई।

Peat Puja Pet Puja

Manisha बुधवार, 28 जुलाई 2010

अब क्यों नहीं देख रहे पुलिस से परे?


पिछले सालों में जब भी कहीं आतंकवाद की घटनायें घटती थीं और मुस्लिम बस्तियों से लोगों को पकड़ा जाता था
Indian Police
तब पत्रकारों द्वारा पुलिस की गलतियों के कुछ लेख भी छपते थे और ये बताया जाता था कि पुलिस से परे देखो या फिर पुलिस की हर बात यकीन लायक नहीं इत्यादि।  

लेकिन यही पत्र-पत्रिकाये के यही पत्रकार लोग भाजपा (बाजेपी) या गुजरात से संबंधित या फिर कथित हिंदु आतंकवाद की बात आने पर पुलिस या सीबीआई की हर बात को अटल सत्य मान कर तुरंत भाजपा और आरएसएस पर हमला बोलने लगते हैं। 

अभी अमित शाह के मामले में भी सब सीबीआई द्वारा किये जा रहे काम पर अब कोई पत्रकार नहीं कर रहा की हमें सीबीआई से परे देखना चाहिये। 

ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है। अब क्यों सीबीआई की हर बात अटल सत्य है?

फिर किसी को माओवादी होने के संदेह में पकड़ा जाता है, या फिर कश्मार में किसी को गिरफ्तार किया गया हो, तब तमाम पत्र-पत्रिकायों और टीवी के कुछ समाचार पत्रों नें इस बात को जोर शोर से कहना शुरु किया था कि पुलिस की हर बात पर यकीन नहीं करना चाहिये। 

बात भी सही है, लोकतंत्र में पत्रकारों के हमेशा ही  अपनी पैनी नजर रखनी ही चाहिये और अपने तरीके से जांच करनी चाहिये। 

Manisha मंगलवार, 27 जुलाई 2010

एसएमएस विज्ञापनों ने परेशान कर रखा है


एक समय था जब मोबाइल फोनों पर टेली मार्केटिंग कंपनियों ने लोगों को गाहे-बगाहे अपने प्रोडक्ट बेचने के लिये फोन कर कर के दुखी कर दिया था। 

तब लोगों ने परेशान होकर सरकार और कोर्ट तक अपनी आवाज पहुंचाई जिसक वजह से परेशान न करे (Do not Distहीb)  की सुविधा शुरु की गई जिसकी वजह से बिना बात के आने वाले कॉलों से तो लोगों को कुछ हद तक छुटकारा मिल गया है। 

SMS Advertisements


लेकिन टेली मार्केटिंग और मोबाईल कंपनियों ने अब लोगों को एसएमएस के जरिये विज्ञापन भेजने शुरु कर दिये हैं कि इनसे भी परेशानी होनें लगी है। पूरे दिन इन अनचाहे संदेशों को मिटाते रहना पड़ता है। 

विज्ञापन भी बस भेज दिये जाते हैं, पाने वाले की स्थिति का कोई ध्यान नही है। 

सबसे ज्यादा संदेश प्रोपर्टी खरीदने के आते हैं। इस बारे में भी लगता है हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का ही सहारा लेना पड़ेगा। 

टीआरएआई (TRAI) तो शायद मोबाईल कंपनियों के हित के लिये ही बनाई गई हैं, उपभोक्ताओं की सिर दर्दी को देखना वाला कोई नहीं है।

Manisha शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

बरसात के बारे में मौसम वैज्ञानिक क्यों फेल हैं?


पूरे उत्तर भारत में अभी तक ढंग से मानसुन की बारिश नहीं हुई है। कहीं पर कुछ कुछ बारिश हुई है, कहीं पर एक बार जोर से बरसात हो गई और उसके बाद फिर से साफ आसमान है, कुल मिला कर मानसून अभी तक नहीं आया है। 

मौसम वैज्ञानिकों ने पहले कहा कि मानसून अपने निर्धारित समय पर आ जायेगा। वो नहीं आया।  फिर कही कि एक हफ्ते के बाद आयेगा। फिर कहा कि देर से भले ही आये लेकिन बादल खूब बरसेंगे। 

फिर एक दिन जब दिल्ली में पानी बरसा तो अपने को बचाने के लिये बोल दिया कि दिल्ली में मानसून आ गया जो कि इस घोषणा के बाद फिर गायब हो गया। इसके बाद देश के उत्तर भाग में कहीं कहीं बारिश हो जाती है पर लगातार कहीं भी बारिश नहीं रही है।

Monsoon मानसून


या तो मौसम पूर्वानुमान की वैज्ञानिक विधि चूकती है या हमारे विज्ञानियों की गणना में कोई गलती रह जाती है या बरसात के बादल ही बार-बार खुद को आवारा साबित करते हैं, कुछ तो होता है, जिसके कारण खेती और जीवन से जुड़े मानसून की शुरूआत का निश्चित समय बताना अब भी कठिन बना हुआ है। पहले जिस बारिश को मानसून से पहले की बारिश कहा जाता था उसे ही अब मानसून कहा जाने लगा है।

पिछले कई बर्षों से ऐसा हो रहा है। 

हर साल अप्रैल के महीने में भारत सरकार का मौसम विभाग विज्ञान अपने तकनीकी मंत्री जी को कुछ आंकड़े देकर एक प्रेस कोंफ्रेंस करवाता है,जिसमें मंत्री जी गर्व से घोषणा करते हैं कि देश में इस बार 93-98 प्रतिशत बारिश होगी (जानबूझ कर 100 प्रतिशत नहीं बोला जाता है) और मानसून देश में समय से आयेगा इत्यादि। 

समाचार पत्रों में चित्र के साथ समाचार छप जाता है। फिर जून का महीना आता है और सब मानसून का इंतजार करते है। लेकिन मानसून देर से आता है, उसमें भी बहुत कम बारिश होती है। 

फिर संसद के मानसून सत्र में कम बारिश को लेकर सवाल किये जाते हैं। मंत्री जी जबाव में कुछ आंकड़े पेश करते हैं और साथ ही ये भी बताते हैं कि मौसम विभाग से मानसून के अनुमान लगाने के लिये नया मॉडल बनाने को कहा गया जिसके लिये विभाग को XXXX  करोड़ रुपयों की आवश्यकता पड़ेगी जिसके लिये मंत्रीजी संसद में अनुदान मांगो के एक प्रस्ताव लेकर आ जाते हैं।

फिर अगला साल आता है और फिर नये मॉडल से साथ मंत्रीजी प्रेस कांफ्रेंस करते हैं और फिर वही होता है।

आखिर ये सब कितने सालों तक चलता रहेगा? बरसात के बारे में मौसम वैज्ञानिक क्यों फेल हैं?

Manisha बुधवार, 14 जुलाई 2010
अब मैंने अपने हिंदी ब्लॉग को पुराने डोमेन नाम से नये डोमेन नाम हिंदीडायरी.कॉम (https://www.hindidiary.com) पर स्थानान्तरित कर लिया है।

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अब नये डोमेन नाम हिंदीडायरी.कॉम पर

Manisha शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

कोचिंगों का जाल तो नहीं ही टूटा


पिछले कुछ दिनों से इंजीनियरिंग और मेडिकल के प्रवेश के लिये होने वाली विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के परिणामो को घोषित किये जाने का दौर जारी है। 

राष्ट्रीय स्तर की आईआईटी-जेईई, एआईईईई, सीपीएमटी परीक्षाओं के अलावा राज्य स्तरीय इसी प्रकार की विभिन्न विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के परिणाम आ रहे हैं जिनमें जो लोग सफल हैं वो आगे की सोच रहे है कि किस कॉलेज और संस्थान में दाखिला लें और जिनका नहीं हुआ वो या तो दुबारा तैयारी करना चाहते हैं या फिर किसी अन्य कोर्स में दाखिला लेंगे। 

Coaching कोचिंग


इन  प्रतियोगी परीक्षाओं के परिणामों के घोषित होते ही विभिन्न कोचिंग संस्थानों द्वारा समाचार पत्रों में बड़े-बड़े विज्ञापन द्वारा ये बताने का दौर शुरु हो गया है जिसमें दावा किया जा रहा है कि उनके यहां से इतने बच्चों का चयन हो गया है इत्यादि इत्यादि। 

अब कि कुछ पहले आईआईटी की परीक्षा के लिये केवल दो बार की बाध्यता और 12वीं में कम से कम 60 प्रतिशत नबंरों को पास होने की शर्त ये कह कर लगाई गई थी कि इससे परीक्षार्थी 12वीं कक्षा पर ज्यादा ध्यान देंगे और कोचिंग पर लगाम लगेगी।

लेकिन लगता नहीं है कि कोचिंग का जाल टुट पाया है बल्कि और बढ़ गया है। 

ऐसे में सरकार को ध्यान देना चाहिये कि इन परीक्षायो को इस तरह से लिया जाये कि छात्र बिना कोचिंग के भी इन परीक्षायों को पास कर सकें।

Manisha गुरुवार, 10 जून 2010

स्टीफन हाकिंग से पूरी तरह सहमत


प्रसिद्ध वैज्ञानिक और विचारक स्टीफन हाकिंग से मैं पूरी तरह सहमत हूं कि धरती के अलावा भी जीवन है। कल
Jaadu Alien
(26/04/2010) के सभी समाचार पत्रों में स्टीफन हाकिंग  के धरती से अलग जीवन के बारे  विचार छपे थे कि मनुष्यों को एलियंस (अंतरिक्ष जीव) के साथ संपर्क करने की कोशिश नहीं करना चाहिए।  

हाकिंग ने ब्रम्हांड के कई रहस्यों पर बताया और कहा कि वो इस बात के प्रति आश्वस्त हैं कि एलियंस हैं। खास बात यह कि वह सिर्फ ग्रहों पर ही अंतरिक्ष जीवों की संभावना को नहीं स्वीकारते, बल्कि सितारों और अंतरिक्ष में दो ग्रहों के बीच विस्तृत खाली आकाश में भी इनकी मौजूदगी बताते हैं।

हम लोग बचपन में जब कॉमिक्स पढ़ा करते थे तो उसमें फ्लैश गार्डन व अन्य कई अंतरिक्ष की कहानियां होती थी और वहां से मेरा ये विश्वास बनता गया कि अपनी धरती के अलावा भी कहीं न किसी ग्रह पर जरुर जीवन है। 

इसीलिये मैं स्टीफन हाकिंग से पूरी तरह सहमत हूं। 

वैसे एक विचार और मन में आता हे कि अगर दूसरे ग्रहों पर अगर जीवन है तो उनके भी कुछ भगवान होंगे फिर धरती के ईश्वर, अल्लाह और गॉड की अवधारणा का क्या होगा? क्या वहां कोई और भगवान होंगे या यहीं वालों की भी पूजा वहां होगी?

ये जरुर हो सकता है कि जैसा हम सोचते हैं वैसे प्राणी वहां दुसरे ग्रहों पर न हों बल्कि कुछ अलग तरह के हों, अभी तो अपनी धरती पर ही सारी तरह के जावों के बारे में नहीं जान पाये हैं तो दुसरों के बारें मे तो क्या ही जान पायेंगे?

आप में से कितने लोग मानते हैं कि धरती के अलावा भी जीवन है?

Manisha मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर प्रतिनिधित्व में आरक्षण


महिला होने के नाते मुझे खुशी है कि आखिरकार 14 वर्षों के बाद संसद और राज्यों की विधानसभाओं  में 33 प्रतिशत
Women Reservation in India
आरक्षण महिलाओं के लिये बिल पेश हो जायेगा। 

ये एक ऐतिहासिक क्षण है। इस प्रकार के आरक्षण के बाद बहुत कुछ बदलेगा। 

हालांकि व्यक्तिगत आधार पर मैं किसी भी प्रकार के आरक्षण के विरूद्ध हूं क्योंकि ये लोगो का प्राकृतिक और वास्तविक विकास नहीं करता है बल्कि ये अन्य लोगों के साथ अन्याय करता है, लेकिन फिर भी महिलाओं के लिये संसद और विधानसभा में आरक्षण एक अच्छा कदम है। 

इसके विरोधी महिलाओं को पिछड़े, दलित, धार्मिक आधार पर बांट कर विरोध कर रहे हैं लेकिन ये बिल अब पास हो कर रहेगा। 

ये कोई पुरुषों और महिलाओं के बाच की लड़ाई नहीं है बल्कि महिलाओं के वास्तविक विकास की बात है।

Manisha सोमवार, 8 मार्च 2010

आईपीएल के चाहने वाले दीवाने होते है क्या?


दिल्ली में आजकल एफएम रेडियो पर और टीवी पर भी विभिन्न चैनलों पर आईपीएल-3 (IPL-3) के लिये टिकटों की बिक्री के लिये विज्ञापन बज रहे हैं, और दिखाये जा रहे हैं। 

इन विज्ञापने को देख सुन कर तो ऐसा लगता है मानो आईपीएल देखने वालों को होश ही नहीं है कहां पर क्या बात करनी है? 

Manisha गुरुवार, 4 मार्च 2010

इन सेवाओं के प्रयोक्ताओं के नाम कब जाहिर होंगे?


हाल ही में दिल्ली में एक और कालगर्ल गैकेट का पर्दाफाश हुआ है जिसे एक बाबा शिवेन्द्र उर्फ राजीव रंजन द्विवेदी उर्फ इच्छाधारी बाबा चला रहा था। इसके गिरोह में तमाम अच्छे घरों की लड़कियां शामिल थीं। 

जैसे ही बाबा के पकड़े जाने की खबर आई वैसे ही मीडिया ने चटखारे लेकर खबर को दिखाना शुरु कर दिया। बताया जाने लगा कि बाबा का कारोबार पूरे भारत में फैला था, कि कालगर्ल के इस धंधें में कई पढ़ी-लिखी लड़कियां और महिलायें शामिल था, कि कैसे बाबा ने अपने आश्रम में व्यवस्थायें कर रखीं थीं, कि बाबा का कारोबार 2000 करोड़ रुपयो का है, इत्यादि इत्यादि। 

कुछ टीवी चैनलों ने बाबा की कोई डायरी भी दिखा दी जिसमें लेनदेन और सेवा लेने वालों के नाम लिखे थे।
अपराधियों के नाम सार्वजनिक किये जाने चाहिये


लेकिन इन नामो को कभी नहीं बताया जाता है। मीडिया भी इन नामों को छुपा जाता है। 

पुलिस जब भी किसी इस तरह के रैकेट को पकड़ती है तो उसके सरगना और पकड़े जाने वाली लड़कियों और औरतों के नाम तो बता दिये जाते हैं लेकिन कभी भी उनका नाम सामने नहीं आता जिन्होंने कॉलगर्लों की सेवायें ली थीं। 

बाबा का 2000 करोड़ का कारोबार बताया जा रहा है, जाहिर सी बात ये सब पैसा काला धान है जिसे कमाने वालों ने ही बाबा को दिया है उनकी सेवा के बदले में। 

यदि उन लोगों के नाम भी सार्वजनिक कर दिये  जायें जिन्होंने बाबा या अन्य किसी के द्वारा सेक्स के लिये लड़कियां मंगायी थी तो सब का पता चलेगा और सार्वजनिक बदनामी के डर से इस तरह के धंधे में लगे लोग कुछ कम भी होंगे और सरकार को बता चलेगा कि कौन लोग अपना काला धन कहां प्रयोग कर रहे हैं। 

दरअसल कालगर्ल संस्कृति के प्रयोक्ता अधिकांश बड़े सरकारी अधिकारी, नेता व समाज के बड़े-बड़े लोग हैं और इसीलिये हमेशा लड़कियों के नाम ही बाहर आते है लेकिन कभी उन पुरुषों के नाम बाहर नहीं आ पाते जो लोग ऐसे काम को प्रयोग कर उसे बढ़ावा दे रहे हैं। 

मेरे विचार में देश में जगह जगह पकड़ जा रहै सेक्स रैकेटों को चलाने वालों के अलावा उनके ग्राहकों को भी पकड़ कर उनके नाम सार्वजनिक किये जाने चाहिये। अपराधियों के नाम सार्वजनिक किये जाने चाहिये।

Manisha बुधवार, 3 मार्च 2010

हमारे नान-स्टेट एक्टर क्यो नहीं बोलते हैं?


जब मुंबई पर 26/11 पर पाकिस्तानी हमला किया गया था तब वहां के राष्ट्रपति जरदारी ने कहा था कि ये नान-स्टेट एक्टर द्वारा किया गया काम है और इसमें पाकिस्तानी सरकार का कोई हाथ नहीं है। 

Manisha शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

ई-गवर्नेंस से किसे फायदा हो रहा है?


आज से राजस्थान की राजधानी जयपुर में 13 वां राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस (ई-शासन) का सम्मेलन हो रहा है  जिसमें देश के
ई-गवर्नेंस
सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री, उनके विभाग, राज्य सरकारें एवं अन्य लोग भाग ले रहे हैं। 

देश में ई-गवर्नेंस  को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर एवं महत्वाकांक्षी रुप में पेश किया जाता है। ऐसा बताया जाता है कि सूचना प्रौद्योगिकी  की ई-गवर्नेंस  प्रणालियों से देश को और देश की जनता को बहुत फायदा पहुंच रह है या पहुंचने वाला है। 

लेकिन मेरे विचार में ऐसा नहीं है। ई-गवर्नेंस   से कुछ फायदा तो हो रहा है लेकिन ज्यादा फायदा नहीं हो रहा है। इस बारे में मेरे विचार कुछ इस प्रकार हैं -
  • सिस्टम वही का वही - ई-गवर्नेंस  प्रणालियां तो बन गई हैं लेकिन उनसे प्रशासनिक अव्यवस्था पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। मिसाल के लिये अगर जन्म-मृत्यु के प्रमाण पत्र को लेने में अगर पहले 5 दिन लगते तो कंप्युटरीकरण के बाद भी इतने ही दिन लगते हैं यानी कि काम अभी भी उसी गति से हो रहा भले ही कंप्यूटर के ऊपर भारी खर्चा हो गया है। इसी तरह से आयकर के कंप्यूटरीकरण के बावजूद लोगों को आयकर का रिफंड लेने के लिये उतने ही धक्के खाने पड़ रहे हैं जितने की पहले। या फिर आय कर का रिटर्न भरना आज भी उतना ही जटिल है जितना पहले था। यानी ई-गवर्नेंस   का फायदा आम आदमी को नहीं पहुंचा है।
  • मंहगा - ई-गवर्नेंस  के नाम पर लोगो को मिलने वाली सुविधायें मंहगी कर दी गई हैं मसलन रेलवे के टिकट पर कंप्यूटर के नाम पर सरचार्ज लगता है। या फिर उदाहरण के तौर पर दिल्ली में कंप्यूटर और स्मार्ट कार्ड वाले वाहन रजिस्ट्रेशन और वाहन लाइसेंस  की फीस बढ़ा दी गई है यानी लोगों को फायदा तो कुछ नहीं हुआ पर आर्थिक नुकसान जरुर हो गया।
  • हिंदी और क्षेत्रीय भाषायों को नुकसान – अधिकांश कंप्यूटरीकरण व ई-गवर्नेंस  एप्लीकेशंस अंग्रेजी भाषा में हैं आम जनता की भाषा में नहीं। जैसे तैसे देश में राजभाषा के काम को बढ़ाया जा रहा था लेकिन ई-गवर्नेंस  के बाद उस पर पानी फिर गया है। जरूरत आम आदमी की भाषा में ई-गवर्नेंस प्रणालियों की है।
  • बाबुओं को फायदा - ई-गवर्नेंस के नाम पर करोड़ों रुपये की योजनाये बना कर खरीदारी की जा रही है जिसमें जाहिर सी बात है कि क्या उद्देश्य रहता है।
  • भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं - ई-गवर्नेंस से कहीं भी किसी भी सरकारी विभाग में भ्रष्टाचार पर रोक नहीं लग सकी है यानी सब कुछ वैसै ही चल रहा है।


ई-गवर्नेंस कई जगह पर सफलता पूर्वक भी चल रहा जैसे कि रेल व हवाई यात्रा में रिजर्वेशन में। अधिकांश ई-गवर्नेंस वहां तो सफल है जहां पर पैसे का लेन देने है, वाकई इससे आसानी हो गई है।

लेकिन जब तक ई-गवर्नेंस  से आम जनता को परेशान करने वाली व्यवस्था नहीं बदलती तब तक ये सिर्फ एक ढोल पीटने जैसी बात रहेगी।

Manisha बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

आखिर भारत का संयम खत्म हो ही गया


कुछ दिन पहले पाकिस्तान में अमेरिका के रक्षा मंत्री राबर्ट गेट्स ने यह कहा था कि कि भारत का संयम खत्म हो सकता है। इसका सभी समाचार माध्यमों ने यह अर्थ निकाला था कि भारत पाकिस्तान की तरफ से किसी भी प्रकार के आतंकी हमले के लिये जैसे को तैसा की तर्ज पर कार्यवाही करेगा। 

Manisha सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

लोगों की भाषा क्षमता कम हो रही है


आजकल हम रोज देखते हैं कि विभिन्न कार्यक्रमों में लोग जो भाषा बोलते हैं वो इतनी हल्की होती है कि समझ में नहीं आता कि भाषाओं के मामले में समृद्ध भारत को क्या होता जा रहा है?  शिक्षा के तमाम अवसरों के बावजूद पढ़-लिखे लोग भी अनपढ़ों के बराबर ही लगते हैं। 

टीवी के विभिन्न चर्चा वाले कार्यक्रमों को देखिये, विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के प्रवक्ताओं को देखिये, नेताओं द्वारा दिये जाने वाले बयानो को देखिये, फिल्मों के संवादों को देखिये, संसद में होने वाली बहसों को देखिये आपको स्वयं समझ में आ जायेगा कि किस प्रकार की भाषा का प्रयोग होने लगा है। 

Manisha रविवार, 7 फ़रवरी 2010

कांग्रेस की किस्मत इस समय अच्छी है।

ज्योतिषी की बातें बताने वाले ब्लॉगर साथी लोग या फिर अन्य ज्योतिषियों द्वारा शायद न बताया गया हो लेकिन मुझे लगता है कि अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी की किस्मत इस समय बहुत ही अच्छी चल रही है। 

महंगाई इस समय देश में चरम पर है आप ही देखिये कि इस समय मायावती पर मूर्तियां और पार्क बनाने का आरोप है जिसे फिलहाल सर्वोच्च न्यायालय ने रोक रखा है और वो केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित रह गई हैं, नितीश कुमार की जद (यू) में भी झगड़ा चल रहा है, समाजवादी पार्टी में अमर सिंह ने मोर्चा खोला हुआ है, भाजपा में गिरावट है, हिंदुवादी शिवसेना, आरएसएस और भाजपा महाराष्ट्र में झगड़ रहे हैं, वामपंथी कमजोर हो चुके हैं और वहां भी आपसी मतभेद उभर आये हैं। 

ऐसे कमजोर विपक्ष के समय में अगर सत्तारुढ़ पार्टी की किस्मत अच्छी नहीं कही जायेगी तो क्या कहा जायेगा? 

Manisha सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

शराब पीकर दुर्घटना करने में भी बराबरी?


हम सब महिलाओं को उनके अधिकार और बराबरी के लिये संघर्ष करते रहते हैं। भारत में औरतों को अपना हक लेने के लिये कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। हमें पुरुषों के समान अधिकार और सम्मान मिलना ही चाहिये। 

लेकिन कुछ बराबरी इस तरह की है कि औरतों को न ही मिले तो ठीक है। 

Manisha